प्रिय दोस्तों,
सूचना क्रांति के इस युग में जबकि घटना घटित होने से पूर्व ही विश्लेषण एवं निष्कर्र्ष संभव होने के दावे किये जा रहे हैं, एक नयी मासिक पत्रिका का प्रकाशक चौकाता तो है ही, साथ ही इससे स्पष्ट हो जाता है कि या तो प्रकाशक भावावेशी है अथवा एक सुनियोजित मस्तिष्क, किन्तु व्यवसायिक बिल्कुल भी नहीं। निश्चय ही यह कदम एक सुनियोजित योजना का प्रथम पग है।
सैंकड़ो राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक पत्र-पत्रिकाओं, चैनलों, प्रकाशनों, सेमिनारों, जनर्लों व पुस्तकों आदि के बाद भी अगर ‘डॉयलाग’ की आवश्यकता है तो क्यों? क्या अब तक के डॉयलाग अधुरे थे? अथवा उनके निष्कर्ष अप्रभावी? शायद ऐसा नहीं है। हमारा उद्देश्य किसी वाद, विचारधारा, दर्शन अथवा मत को बड़ा या छोटा करना नहीं है, न ही उसे नकारना अथवा उसको महत्वहीन या महत्वपूर्ण साबित करना। हम सब मतों, विचारों, आन्दोलनों दर्शनों का सम्मान करते हैं और उनकी अपने समय के अनुरुप उपयोगिता एवं प्रासंगिकता को भी समझते हैं किन्तु समय के बदलाव के साथ उनकी अप्रासंगिकता अथवा अनुपयोगिता तथा वर्तमान में देश में व्याप्त संवादहीनता को महसूस करते हुए मानवता एवं भारतीय लोकतान्त्रिक राजव्यवस्था के लिए ‘नये दर्शन’ एवं भारतीय जनमानस के लिए ‘वैकल्पिक राजव्यवस्था’ की अपरिहार्यता हेतु संवाद की आवश्यकता को समझते हैं। हमारी पत्रिका का उद्देश्य वर्तमान व्यवस्था की खामियों और उनको दूर करने के उपायों के बाद भी फैली अव्यवस्था दिशाहीनता अराजकता व लूट-खसोट को उजागर करना तथा नयी ‘वैकल्पिक व्यवस्था’ के सम्पूर्ण बिन्दुओं को उजागर करना है जो निश्चित रूप से एक बेहतर समाज एवं सबल राष्ट्र के निर्माण का सम्पूर्ण दर्शन होगा। इस व्यष्टि व समष्टि के सामंजस्य का सम्मान करते हुए भारत के संविधान के अन्तर्गत एक ऐसी लोकतान्त्रिक व्यवस्था खोजने को तत्पर हैं जो सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित हो तथा राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति को अपने अन्दर समाहित कर उसकी अधिकांश समस्याओं का समाधान कर सके। एक समृद्ध बौद्धिक समाज की स्थापना के लक्ष्य के साथ प्रारम्भ हो रहा यह आन्दोलन व्यवस्था एवं इससे जुड़े लोगों के प्रत्येक कार्यक्षेत्र पर नजर रखेगा। उनकी नीतियों, दर्शन, कार्यप्रणाली तथा सफलता-असफलता का मूल्यांकन करते हुए उनका विकल्प सामने रखेगा और यह भी सिद्ध करेगा कि कार्य की वास्तविक सफलता के लिए हमारे द्वारा दी गई नीतियाँ, दर्शन एवं कार्यप्रणाली अधिक उपयुक्त एवं प्रभावशाली है।
हम आह्वान करते हैं भारतीय राजव्यवस्था एवं समाज से जुड़े राजनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों, नीति-नियत्ताओं, कूटनीतिज्ञों, प्रशासकों, अर्थशास्त्रियों, पत्रकारों, शिक्षाविदों, समाजशास्त्रियों एवं अन्य सभी राष्ट्र प्रेमी, बन्धुजनों से कि अगर वे वास्तव में संविधान के दर्शन को व्यवहार में लाना चाहते हैं तो हमारे द्वारा दिये गये सुझावों, नीतियों, दर्शन व कार्यप्रणाली को प्रासंगिकता को समझें परखें एवं अपनायें। यह न भूलें कि नीतियों एवं कार्यक्रमों के सिद्धान्तों और व्यवहार में व्यापक अंतर के कारण भारतीय जनमानस अत्यधिक उद्धेलित है। आपकी सजगता देश को प्रगति के नये शिखर पर पहुँचा सकती है। अगर आप नहीं बदलेंगे तो ‘वैकल्पिक व्यवस्था’ की चाह में उभरे रचनात्मक आन्दोलन का नेतृत्व राजव्यवस्था की डोर अपने हाथ में ले लेगा।
‘परिवर्तन की चाह – संवाद की राह’
आपका
अनुज अग्रवाल
मुख्य सम्पादक
Editor- Anuj Agrawal
Associate Editor- Ravi Shankar, Neha Jain
संपादक- अनुज अग्रवाल
सहायक संपादक- रवि शंकर, नेहा जैन