जिस तरह से भारतीय समाज में अनेक तरह के अंधविश्वास और कुरूतियां फैली है ठीक वैसे ही राजनेताओं के बीच भी यह गहरे तक समाई है। असल में हम राजनेताओं को जितना सुलझा हुआ और व्यवहारिकता के धरातल पर चलने वाला इंसान मानते है वह उतना ही ईश्वर आश्रित और पंगु व्यवहार का पक्षधर रहा है। हाल ही में अंधविश्वास का एक मामला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मध्यप्रदेश यात्रा को लेकर सामने आया है। दरअसल पीएम मोदी को नमामी देवी नर्मदे यात्रा के समापन अवसर पर मध्यप्रदेश के अमरकंटक पहुंचना था। भारतीय राजनीति में अमरकंटक को लेकर कई तरह की शंका-कुशंका और मान्यताएं हैं। माना जाता है कि जिस भी राजनेता ने नर्मदा नदी को लांघा है, उसे अपनी सत्ता गंवानी पड़ी है। भारतीय राजनीति के इतिहास पर नजर डालें तो पांच बड़ेे नेताओं के ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जिन्हे नर्मदा लांघने के बाद सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। अमरकंटक जाने के लिए नर्मदा लांघने और उसके बाद सत्ता गंवाने वालों में तात्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के अलावा मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, उमा भारती, सुंदरलाल पटवा, श्यामाचरण शुक्ल, केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत शमिल है। इन सबको लेकर राजनीतिक समाज में ऐसा अंधविश्वास प्रचलित है कि जिस किसी नेता ने हवाई यात्रा के जरिये नर्मदा को लांधा है उसे कुर्सी गंवानी पड़ी थी। ऐसा अंधविश्वास प्रचलित है कि सन 1982 में जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हेलिकॉप्टर से अमरकंटक आई थी उसके बाद ही उनकी 1984 में हत्या हो गई थी और इस तरह से उनके हाथों से सत्ता चली गई थी। कुछ इसी तरह से पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत के संबंध में भी अंधविश्वास है। वे राष्ट्रपति चुनाव से पहले अमरकंटक हेलिकॉप्टर से आए थे लेकिन उसके बाद उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी। एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा बाबरी मस्जिद ध्वंस से पहले हेलिकॉप्टर से अमरकंटक पहुंचे थे उनका भी कुर्सी गंवानी पड़ी।
एमपी के ही पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय अर्जुनसिंह मुख्यमंत्री रहते हुए हेलिकॉप्टर से अमरकंटक गए थे, लेकिन इसके बाद ही उन्हें कांग्रेस पार्टी से अलग होकर नई पार्टी बनानी पड़ी। प्रदेश की फायर ब्रांड नेता व पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के संबंध में भी कुछ इसी तरह की धारणाएं प्रचलन में है। उमा सीएम रहते हुए 2004 में हेलिकॉप्टर से अमरकंटक गई थी उसके बाद से उन्हें भी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। इसके बाद से तो उमा हमेशा सड़क मार्ग से ही अमरकंटक जाती रही। आपको जोरदार बात बताएं कि इन सबमें एक ही समानता है। जितने भी नेताओं का जिक्र किया गया है वे सभी हेलिकॉप्टर से ही अमरकंटक पहुंचे थे। हालांकि तमाम उदाहरण सामने आने के बाद अमरकंटक जाने वाले नेताओं ने हेलिकॉप्टर की यात्रा से परहेज किया था। मजेदार बात तो ये भी है कि यूपी के नोएडा से भी नेताओं को अमरकंटक की तरह ही डर लगा रहता है। बताया जाता है कि आज तक जो भी मुख्यमंत्री नोएडा गया , उसे यूपी की सत्ता से हाथ धोना पड़ा है। पिछली सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इसी डऱ के चलते अपने मुख्यमंत्रित्व काल में कभी नोएडा नहीं गए। हम इसे यूं कहे कि हदें नहीं होतीं अंधविश्वासों की तो अतिश्योक्ति नही होगा।
हालाकि अमरकंटक पहुंचने वाले सब नेताओं को ये नही मालूम था कि नर्मदा के ऊपर से हवाई यात्रा करने से वह इस हद तक कुपित हो जाती है कि कुर्सी से हाथ धोना पड़ जाता है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जरूर यह जानकारी थी कि अगर हवाई यात्रा करके नर्मदा के ऊपर से गए तो कुर्सी से हाथ धोना तय है। इसी के चलते उनने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में कभी नर्मदा नदी हवाई यात्रा के जरिये पार नही की। आज तक उनकी कुर्सी की सलामती का एक कारण यह भी बताया जाता है। जनचर्चा है कि उनने इसी के चलते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी हवाई यात्रा से नर्मदा को लांघने नही दिया। शिवराजसिंह नही चाहते थे कि मोदी को भी कुर्सी छोडऩे का श्राप लगे इसलिए उनने अलग स्थान पर हेलीपेड बनवा दिया जबकि अभी तक जितने भी राजनेता अमरकंटक पहुंचे उनका उडन खटोला यहां के लालपुर हेलीपेड पर लैंड करता था। ये कृत्य न केवल अंधविश्वास की हद को साबित करता है बल्कि धार्मिक अंधता व पंड़ावाद को भी बढ़ावा देता है। शिवराज सिंह विकट के अंधविश्वासी हैं। इस अंधविश्वास के कारण वे प्रदेश अशोक नगर में भी जाने से कतराते है। अशोक नगर को लेकर ये भ्रम या अंधविश्वास है कि यहां जो भी सीएम जाता है उसे कुर्सी गंवानी पड़ती है। मतलब साफ है कि कुर्सी पर काबिज रहने के लिए काम धाम और काबिलियत को साबित नही करना होता है बल्कि टोटके , अंधविश्वास और किवदंतियों को ढोने की जरूरत होती है। जैसे- जैसे प्रदेश के चुनाव पास आते जा रह है वैसे-वैसे वे अंधविश्वास और टोने- टोटकों की ओर खचें चले जा रहे है। हम सब इस बात से भली तरह से अवगत है कि नर्मदा नदी न कभी इतनी क्रुर रही है और न ही पूर्वाग्रही, जिसका कहर उसके ऊपर से उडऩ खटोलों से जाने वाले नेताओं पर बरपे। नर्मदा अगर इतनी ही निर्दयी होती तो नियमित उड़ानों को वह जाने क्यों बख्श देती जिनमें नेता भी सवार होते है। हकीकत तो यह है कि शिवराजसिंह अब धार्मिक अंधता में अंधे हो गए है। या इसे ऐसा भी माना जा सकता है कि नर्मदा यात्रा की लंबी और महंगी नौटंकी से जो प्रगतिशील लोग नाराज हो चले हैं उनकी नाराजी को दूर करने के लिए इस तरह का प्रपंच रचा गया हो। वैसे भी भारतीय समाज में खासकर अगड़ी जातियों में धर्म का गहरे तक असर है। इस धार्मिकता की आड़ में अंधविश्वास को बढ़ावा देकर भी शिवराजसिंह फिर से सत्ता हाथियाना चाहते है। धार्मिक अंधता भारतीयों की सनातनी कमजोरी रही है। वैसे भी कहा गया है कि धर्म वो अफीम है जिसका नशा एक बार किसी को हो जाए वह जिंदगी भीर उस नशे से बाहर नही निकल सकता है। इस तरह की अंधता का सबसे बड़ा लाभ तो ये है कि लोग मुद्दे की बात भूल कर चमत्कारों और अंधविश्वासों के रहस्य रोमांच में डूब जाते है। मतलब साफ है कि इस तरह के कृत्यों से सांप भी मर जाता है और लाठी भी टुटती नही है। धर्म के सहारे अपनी नैया को पार लगाने की कोशिश करने वाले शिवराजसिंह ये बता दे कि कौन सी किताब में लिखा है कि नर्मदा के ऊपर से हवाई यात्रा करने पर वह नाराज हो जाती है और नेताओं को श्राप देती है। असल में सच तो ये है कि जब से शिवराजसिंह पर व्यापम घोटाले और ड़ंपर कांड के दाग लगे है तब से वह इस तरह के असुरक्षा के कवच में घिर गए है। सच कहूं तो वे कुंभ के मेले के बाद से इमानदारी से जनता की सेवा कर ही नही रहे है। धरम- करम और धार्मिक यात्राओं के नशे में ही मशगुल है। जनता ने जिस प्रशासनिक काम काज व सेवा के लिए उनको चुना है, इतना बड़ा ओहदा दिया है वे उसकी कीमत ही नही जान रहे है। अगर जान बुझ कर भी अंजान बनने या नदियों के संरक्षण के बहाने धार्मिक अंधता फैलाने में लगे है तो यह लापरवाही जरूर उन्हें डुबो सकती है क्योंकि जनता सब देखती है और बहुत बारीकी से समझ परख कर ही वोट करती है। शिवराज सिंह को यह जान लेना चाहिए कि जनता पद के अनुरूप काम नही करने वालों को रास्ते लगा देती है। फिर वैसे भी पद को ढोने वालों के लिए कहा स्थान होता है। जनता को धोके में रखकर अगर वे यह सोचे कि मैं जो भी कर रहा हूं अच्छा कर रहा हूं इससे बड़ी भूल कुछ और नही हो सकती है। इस तरह के बेईमान कृत्य से तो उन्हें कोई देवी- देवता, नदी पहाड़ या राजनीतिक आका भी नही बचा सकता है। धर्म की आड़ में जनता की खरी कमाई को जो भी नेता यूं ही बरबाद करेगा उसकी बददूआ से कोई नही बचेगा। जिस नर्मदा यात्रा के नाम पर शिवराजसिंह ने जनता के टेक्स की करोड़ों अरबों रूपये की राशि को पानी में बहाया है उससे नर्मदा भी खुश नही होगी। शिवराज ने नर्मदा यात्रा में शामिल होने वाली जिन बड़ी-बड़ी हस्तियों का लाखों -करोड़ों रूपये यूं ही लूटा दिए उससे नर्मदा कभी प्रशंन्न नही होगी बल्कि कुपित होकर यही श्राप देगी कि गरीबों को बरबाद कर अमीरों को आबाद करने वाले की कुर्सी अब बचने वाली नही है। फिर चाहे वे कितने भी जतन कर ले, तंत्र मंत्र पूजा पाठ कर ले सब धरे के धरा रह जाएगा। रही बात नरेन्द्र मोदी की तो जब उनके नसीब में सत्ता का सुख ही नही लिखा होगा तब नर्मदा भी उनको सत्ता सुख देने में असमर्थ होगी तो फिर शिवराज कौन होते है उनको सत्ता का सुख देने वाले। सवाल तो यहां लाख टके का यही है कि जो नेता जनता की सेवा के नाम पर नौटंकी करेगा वह जनता की नजरों बच नही पाएगा फिर चाहे कितने ही अंधविश्वास में जीएं। ठ्ठ