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अक्ल के पत्थर

दुखद, त्रासद समाचार है कि इंदौर में कोरोना वायरस की जांच करने जा रही मेडिकल टीम पर पत्थऱ फेंके गये।
पत्थरबाजी का जहालत भरा यह  बरताव एकदम पागल कुत्ते के बरताव जैसा है। कुत्ता पागल हो जाये, उसकी मदद करने कोई  जाये, तो वह काट खाता है। कुत्ता कुत्ता होता है, पर इंदौर की मेडिकल टीम को चोट पहुंचा रहे पत्थरबाज तो इंसान थे। इंसान में कब पागल कुत्ता घुस जाये,कहा ना सकता।
पागल कुत्ते को मारा जा सकता है।
पर पागल कुत्ता टाइप इंसान तो दांव लगने पर मंत्री विधायक बन सकता है। पागल कुत्तों का वोटबैंक नहीं होता। पर पागल कुत्ते की तरह बरताव कर रहे इंसान का अगर वोट बैंक है, तो वह मंत्री विधायक बनकर और बड़े स्तर का कटखना हो सकता है। कुत्तों में अगर वोट बैंक होते, और पागल कुत्तों की आक्रामकता देखकर अगर उनकी विशेष लोकप्रियता होती, तो पागल कुत्ता होना बहुत ही फायदे का सौदा होता। पागल कुत्ता बनने की होड़ लगती। पागल कुत्ते को छेड़ने की हिम्मत किसी में न होती। ऊपरवाले को धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि कुत्तों में वोटबैंक नहीं होते। और पागल कुत्तों के बचाव में दूसरे कुत्ते , खासकर नेता  कुत्ते उतरते ना दिखते।
वोटबैंक के गणित अलग हैं। अगर कटखनेपन की डिमांड है, अगर पत्थरबाजी की डिमांड है, अगर पागलपने की डिमांड है, तो उसे वोट मिलते हैं, तो पत्थरबाजी को भी समर्थन मिल जाता है। पत्थरबाजी यूं एक तरह से बहुत सेक्युलर गतिविधि है, पत्थर चोट पहुंचाते समय आम तौर पर धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करता। हिंदू मुसलमान किसी को भी लग जाये, समान भाव से चोट पहुंचाता है। पत्थऱ किसी के लिए चोट हैं, किसी के लिए नोट हैं और किसी के लिए वोट हैं। कश्मीर में पत्थरबाजी का चोट, नोट, वोट माडल सबने देख  लिया है।
इंदौर ने मेडिकल टीम पर पत्थरबाजी देखी है।
पागलपना रुके, पत्थऱबाजी रुके, यही दुआ हो सकती है।
दिल्ली में निजामुद्दीन में एक एक धार्मिक आयोजन हुआ, धार्मिक आयोजन के स्थल का नाम था मरकज। मरकज का मतलब है केंद्र, अब वह  धार्मिक मरकज कोरोना के केंद्र के तौर पर स्थापित हो गया है। दिल्ली समेत पूरे देश के तमाम राज्यों को कोरोना –संक्रमण इस केंद्र से गया।
देश की राजधानी-दिल्ली।
कोरोना की भारतीय राजधानी-निजामुद्दीन मरकज।
राजधानी होना दिल्ली के नसीब में है। आम मरकज भी और कोरोना मरकज भी। निजामुद्दीन के धार्मिक आयोजन से जुड़े एक मौलाना साहब एक वीडियो में जो बता रहे थे, उसका आशय था कि मस्जिद में आइये। चिंता छोड़िये। अब यह मौलाना एकांत में हैं, एक और प्रसारण में इन्होने बताया है कि डाक्टरों की सुनें और डाक्टरों की सुनकर यह एकांत में है।
एकांत में यह खुद चले गये हैं और पीछे जो भीड़ थी, वह मरकज से लेकर राज्य स्तर से लेकर कस्बा स्तर से लेकर गांव स्तर पर चली गयी है। मौलाना एकांत में हैं, मौलाना की जिन्होने सुनी है, उनमें से कई मौत की सोहबत में जा चुके हैं। जाने की राह पर हैं।
जिस जमात के मरकज ने दिल्ली में कोरोना फैलाया, वही जमात पाकिस्तान में भी कोरोना फैलाने की जिम्मेदार है। इसे जमात का ग्लोबलाइजेशन कह सकते हैं। ग्लोबलाइजेशन सिर्फ कारों और कंप्यूटरों के जरिये ही नहीं फैल रहा है। कोई जमात अगर समर्थ हो, तो अपने बूते पर अपनी तरह  से कोरोना-ग्लोबलाइजेशन मचा सकती है।
इंदौर में मेडिकल टीम पर उन लोगों ने पत्थऱ मारे, जिनकी मदद के लिए यह टीम गयी थी।
पागल कुत्ते का इलाज आसान है। पागल इंसान का नहीं।
इंसानी और कुत्ताई पागलपन में यही फर्क होता है।
विकट पागलपन चल रहा है। पत्थर अक्ल पर पड़ते हैं फिर बंदा पत्थर हाथ में लेकर निकल पड़ता है, मेडिकल टीम पर पथराव करने के लिए। शरीर पर पड़े पत्थरों का इलाज तो दवा पट्टी से हो जाता है, पर अक्ल पर पत्थऱ पड़ जायें, तो बंदा मौलाना हो जाता है और तमाम तरह की बकवास करने लगता है। इसका कोई इलाज नहीं है।

आलोक पुराणिक

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