संघ प्रमुख मोहन भागवत का कथन कि ‘राष्ट्रवाद’ जैसे शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका मतलब नाज़ी या हिटलर से निकाला जा सकता है, ऐसे में राष्ट्र या राष्ट्रीय जैसे शब्दों को ही प्रमुखता से इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दुनिया के सामने इस वक्त इस्लामी आतंकवाद, कट्टरपंथ और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे बड़ी चुनौती हैं। दुनिया के सामने जो बड़ी समस्याएं हैं, उनसे सिर्फ भारत ही निजात दिलवा सकता है। हिंदू ही एक ऐसा शब्द है जो भारत को दुनिया के सामने सही तरीके से पेश करता है। भले ही देश में कई धर्म हों, लेकिन हर व्यक्ति एक शब्द से जुड़ा है जो हिंदू है। ये शब्द ही देश की संस्कृति को दुनिया के सामने दर्शाता है। वास्तव में यही भारत, भारतीयता और हिंदुत्व का सही परिचय है- शांतिपूर्ण सह अस्तित्व, मानवतावादी दृष्टिकोण, प्रकृति केंद्रित विकास व सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की अवधारणा।
वास्तव में हिंदुत्व के मायने इससे कहीं ज्यादा गहरे हैं किंतु भारत की राजनीति में हिंदुत्व दर्शन और जीवन शैली नहीं वरन चिन्हों व प्रतीकों का खेल अधिक है। पिछले 6-7 वर्षों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भगवा लहर पर सवार भाजपा ने देश की सेकुलर राजनीति की जड़ों को ही हिला दिया। हिंदुओं को जातियों में बांटकर और उन जातियों को क्षेत्रीय गणित के अनुरूप मुस्लिम, सिख या ईसाई धर्म के लोगों से जोड़कर वोट बैंक की राजनीति का एक जाल बनाकर सत्ता हड़पने का खेल सफलतापूर्वक पिछले सत्तर वर्षों में सभी सेकुलर राजनीतिक दलों ने खेला। विचारधारा विहीन इस खेल में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, संसाधनों की लूट, आरक्षण, खुला भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद व विदेशी ताकतों के सामने सरकारों के घुटने टेकने की अनगिनत कहानियां हैं। अल्पसंख्यकवाद, कुशासन, लूट, भ्रष्टाचार व जातिवाद की राजनीति से तंग आ चुके देशवासियों विशेषकर बहुसंख्यक समुदाय को नरेंद्र मोदी के विश्वसनीय चेहरे व ‘सबका साथ-सबका विकास’ के नारे ने आकर्षित किया व सन 2014 व 2019 में वे मोदी के साथ खड़े हो गए। भारतीय राजनीति में बहुसंख्यक समुदाय के एकजुट होने की यह घटना अभूतपूर्व थी। अंग्रेजों की बनायी ‘बांटो और राज करो’ की नीति जिसको आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी व अन्य धर्मनिरपेक्ष दल बखूबी प्रयोग कर सत्ता पाते रहे यकायक बिखर गयी। आधे अधूरे विकास के बीच भारत की नई पीढ़ी दिग्भ्रमित थी कि वो है कौन? पश्चिमी जीवन शैली व जड़ो से काट देने वाली धर्मनिरपेक्ष जीवन शैली ने उनके सामने ‘पहचान का संकट’ खड़ा कर दिया। वे जिस भारतीय होते हुए भी ‘इंडियन’ बनाए जा रहे थे, अपनी संस्कृति, भाषा और जड़ों से अलग करने के जो खेल सेकुलर दलों ने खेले उनसे बहुसंख्यक आबादी हिंदुओं के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए थे। हिंदुओं के मान बिंदुओं का अपमान, तीर्थ स्थलों की उपेक्षा, देवी देवताओं व त्यौहारों का मखौल उड़ाना, गो, ग्राम, गंगा व गायत्री का अपमान, धर्मांतरण की कोशिशें, आदिवासी, दलित व पिछड़े समुदायों को अलग करने के षड्यंत्र, हिंदू दर्शन व जीवन शैली को नकारना, फर्जी बाबाओं की फौज खड़ी करके हिंदुओं को भ्रमित करने के खेल करना, शैक्षणिक पुस्तकों में झूठे तथ्यों की भरमार करना व सच छिपाना जैसे हज़ारों खेल व कुचक्र दिनरात चलाए गए जिनसे हिंदू समाज आक्रोशित होता गया और एकजुट भी और इसी कारण सेकुलरपंथी दलों की दुकान सिमटने लगी।
मुख्यधारा की राजनीति में स्वीकार्य और स्थापित होते हिंदुत्व ने अंतत: सेकुलरपंथी दलों को भी अनमनेपन से ही सही नरम हिंदुत्व की राजनीति की ओर मोडऩा प्रारंभ कर दिया। गुजरात के विधानसभा चुनावों से यह दौर बहुत स्पष्ट रूप से शुरु हुआ और भाजपा चुनाव हारते हारते बची। मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में अंतत: कांग्रेस पार्टी के नरम हिंदुत्व की राजनीति में भाजपा के किले ढह गए। अपने चमत्कारी नेतृत्व व लोकप्रियता के दम पर मोदी सन 2019 का लोकसभा चुनाव तो आसानी से जीत गए मगर प्रदेशों में लोकप्रिय नेतृत्व के अभाव व विपक्ष की नरम हिंदुत्व की राजनीति ने महाराष्ट्र, झारखंड व दिल्ली में भी भाजपा को पीछे कर दिया व हरियाणा में गठबंधन कर भाजपा अपनी सरकार बना पायी। वामपंथी हो या ममता बनर्जी, राहुल गांधी हो, अशोक गहलोत या फिर कमलनाथ, भूपेश बघेल हो या फिर अरविंद केजरीवाल सबके सब अब मंदिर मंदिर डोलते घूमते हैं, तिलकधारी हो गए हैं, हनुमान चालीसा पढऩे लगे है व सुंदर कांड का पाठ करवा रहे हैं। वोट बैंक की खातिर मजबूरी में, संकेतों व प्रतीकों में ही सही मगर हिंदुत्व जो हर भारतीय की सच्चाई है व भारत की अंतरात्मा है अब राजनीतिक अज्ञातवास से बाहर आ चुका है। पिछले कुछ वर्षों में बाजारवाद, इस्लामिक आतंकवाद व कट्टरवाद के विरुद्ध विश्व पटल पर यह एक वैकल्पिक दर्शन बनकर उभर रहा है। वसुधैव कुटुम्बकम का भाव रखने वाले इस जीवन दर्शन व जीवन पद्धति जिसमें योग, आयुर्वेद व आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से सम्पूर्ण जीव जगत के कल्याण की संकल्पना है, को विश्व के हर प्राणी तक पहुंचाने की आवश्यकता है। दुनिया में समय समय पर फैलती महामारियों व हाल ही में चीन में फैले कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव को समाप्त करने में भी हिंदू जीवन शैली ही सहज समाधान बनकर उभरी है। दु:खद व कड़वी सच्चाई यही है कि इस्लामिक, ईसाई व बाजार की ताकतों ने दुनिया में अपना वर्चस्व स्थापित करने के क्रम में हिंदुत्व को पददलित करने के अनगिनत षड्यंत्र रचे। सनातन संस्कृति की उपलब्धियों की उपेक्षा की या उनको चुराकर उन पर अपना ठप्पा लगा दिया। भारत के इतिहास को ही तोड़मरोड़कर रख दिया। उद्विकास में भारत के योगदान, प्रथम बारमानव सभ्यता व संस्कृति को स्थापित करने व आदर्श राज्य अवधारणा को मूर्त रूप देने वाले रघुकुल व राजा राम, सरयू नदी, रामायण व राम रावण युद्ध आदि सभी को इन लोगों ने जानबूझकर काल्पनिक सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ईसा से कई सदी पूर्व ही अद्वैतवाद ,चारधाम व शंकराचार्य परंपरा को स्थापित कर जैन और बौद्ध धर्मों को हिंदू धर्म में आत्मसात करने वाले आदि शंकराचार्य को मध्यकाल मे जन्मा बताया जाता है। विदेशी आक्रमणकारियों जिन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत को नष्ट करने की हरसंभव कोशिशें की, को महान बताया जाता है। भारत मे जातीय संघर्ष की काल्पनिक कहानियों को बढ़चढ़कर बताया जाता है व इस्लामिक व ईसाई आक्रमणकारियों की काली करतूतों व षड्यंत्रों को छुपाने के खेल खेले जाते हैं। ऐसे में जब भारत की केंद्रीय राजनीति में हिंदुत्व अपरिहार्य हो चुका है, उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में उसके गौरवशाली अतीत को भी पूर्ण सम्मान मिलेगा। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति पूरी तरह समाप्त होगी, आरक्षण, जातिवाद, मुफ्तखोरी की राजनीति से देश को मुक्ति मिलेगी। देश की राजनीति अपराध मुक्त होकर सुशासन, पारदर्शिता व विकास के सनातनी स्वरूप को लेकर आगे बढ़ेगी। शोषण, महिला व बसल उत्पीडऩ से समाज मुक्त होगा। भय, भूख व भ्रष्टाचार अतीत की बात हो जाएंगे और भारतीयता व सनातन संस्कृति के उत्कृष्ट मापदंड वैश्विक रूप से समुन्नत मानव समाज का निर्माण कर पाएंगे। यही वास्तविक हिंदुत्व है जिसको आने वाले समय की राजनीति की मुख्यधारा में हम सबको मिलकर स्वीकार्य भी बनाना है और स्थापित भी करना है।
Anuj Agarwal, Editor