आर.के.सिन्हा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में हुई पहली मुलाकात से ही दोनों के बीच एक प्रकार की आत्मीयता और निकटता भी दिखाई दी। इसमें कोई शक नहीं है कि दो बड़े नेताओं के बीच निजी संबंध विकसित होने से उनके देशों के संबंधों में भी प्रगाढ़ता आने लगती है। मोदी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच एक निजी कैमेस्ट्री विकसित हो गई थी। मोदी-ट्रंप की यह पहली मुलाकात थी।मोदी और ट्रंप का इस्लामिक आतंकवाद से मिलकर निपटने का आह्वान बेहद अहम है। आज सारा संसार इस्लामिक आतंकवाद से त्राहि-त्राहि कर रहा है। अमेरिका और भारत इस्लामिक आतंकवाद के शिकार रहे हैं। इसलिए इस बिंदु पर दोनों का एक साथ आना संसार के लिए एक बड़ी खबर माना जाना चाहिए। ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव में कैंपेन के दौरान भी यह दावा किया था कि 11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद दुनिया भर के मुसलमान जश्न मनाने के लिए ‘सड़कों पर उतर’ आए थे। ट्रंप ने देश में मुसलमानों की निगरानी करने के लिए एक डाटा बेस बनाने का भी वादा किया था। अमेरिका में मुस्लिमों के डाटाबेस की व्यवस्था करने के ट्रप के बयान पर तगड़ा भी विवाद हो गया था। ट्रंप ने एनबीसी न्यूज से कहा था, ‘मैं निश्चित तौर ‘’डाटाबेस के अलावे भी बहुत सी व्यवस्थाएं करूंगा।’ इसके साथ ही ट्रंप ने कहा था,’ हम मस्जिदों पर भी बड़ी निगाह रखने जा रहे हैं। हमें बहुत, बहुत सावधानी से देखना होगा। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए अमेरिका के मुस्लिमों पर अभूतपूर्व निगरानी जरूरी होगी।”
मोदी-ट्रंप के बीच इस्लामिक आतंकवाद के सवाल पर लड़ने का आहवान इस बात की गवाही है कि ट्रंप अपने मिशन में कामयाब होने के बाद भी अपने चुनावी वादे को भूले नहीं हैं। निर्विवाद रूप से अमेरिका में 9/11 की घटना के बाद औसत अमेरिकी नागरिक मुसलमानों से भयभीत रहने लगा है। वे मुस्लिम मर्दों और महिलाओं के हिजाब से खौफ खाते हैं। मोदी और ट्रंप का इस्लामिक आतंकवाद से एक साथ मिलकर लड़ने का फैसला इस्लामिक आतंकवाद को खाद-पानी देने वालों के लिए बुरी खबर है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हालिया अमेरिका यात्रा के फोकस में स्वाभाविक रूप से उनकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात रही। पर उनकी 25 जून को वॉशिंगटन में अमेरिकी कंपनियों के शीर्ष सीईओज के साथ मुलाकात भी अपने आप में बेहद खासमखास थी। गूगल, मास्टर कार्ड, एपल वगैरह के सीईओज मोदी से मिले। ये बैठक इसलिए हुई थी कि सभी सीईओज भारत में मोटा निवेश करने को तैयार है। उन्हें भारत में निवेश करने में संभावनाएं नजर आती हैं। मोदी ने कहा कि हरेक अमरीकी उधमी भारत में निवेश करने को लेकर उत्सुक हैं। पिचाई ने कहा कि अमेरिकी कंपनी के सीईओ के गोलमेज सम्मेलन में पीएम मोदी से कई योजनाओं पर चर्चा हुई।
अपनी अमेरिका यात्रा के पहले ही दिन मोदी ने अमेरिकी कंपनियों के सीईओस के साथ मुलाकात के दौरान भारत की विकास यात्रा को उनके सामने रखा। मोदी ने उनकी सरकार द्वारा पिछले तीन साल में उठाये गये और निकट भविष्य में उठाए जाने वाले कदमों के बारे में भी जानकारी दी। बैठक में एपल के टिम कुक, माइक्रोसॉफ्ट के सत्य नडेला, गूगल के सुंदर पिचाई, मास्टर कार्ड के अजय बंगा, सिस्को के जॉन चैंबर्स और अमेजन के जेफ बेजोस मौजूद थे। एपल के चीफ ने मोदी को बेंगलुरु में एप्पल आईफोन प्रोडक्शन की प्रगति को लेकर जानकारी दी है। एपल बेंगलुरु में अपना पहला इंडिया मेड आईफोन बना रहा है। इन बड़ी अमेरिकी कंपनियों के आला अफसरों का भारतीय प्रधानमंत्री से मुलाकात यह ठोस संकेत है कि ये सब भारत में निवेश को लेकर उत्सुक हैं। शायद ही संसार के किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष के अमेरिका पहुंचने पर उनसे इतने सीईओज मिलने के लिए पहुंचते हों। मोदी की पिछली अमेरिकी यात्रा के दौरान फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग पर भी पहुंचे थे। मार्क और मोदी के बीत दिल्ली में भी मुलाकात हो चुकी है। ये सारे संकेत कह रहे हैं कि भारत में आ रहा है तगड़ा निवेश।
मोदी-ओबामा
हालांकि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कहा जा रहा था कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार और अमेरिका में हिलेरी क्लिंटन के राष्ट्रपति बनने पर दोनों देश और करीब आ जाएंगे। हालांकि कूटनीति को जानने वालों को पता है कि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन से दोनों देशों के संबंध कतई प्रभावित नहीं होने वाले थे। दोनों देशों के संबंध उस दायरे से कहीं आगे जाते हैं, जब सत्ता परिवर्तन का असर संबंधों पर होता है। इन संबंधों में किसी पर्सनेल्टी का असर नहीं हो सकता। हां, दोनों नेताओं के मधुर निजी संबंधों से देशों के बिच आपसी संबंध और बेहतर तो हो सकते हैं। यह दुनिया ने नरेन्द्र मोदी और बराक ओबामा के बेहतरीन संबंधों में देखा। अब मोदी और डोनाल्ड ट्रंप भी मिलकर बेहतर तरीके से काम करेंगे, इसमें अब कोई शक नहीं होना चाहिए। दोनों की पहली ही मुलाकात में यह साफतौर पर दिखा। याद रखिए भारत और अमेरिका स्वाभाविक साझेदार हैं, क्योंकि वे एक दूसरे की जरूरतों के पूरक हैं। भारत-अमेरिका सम्बन्ध पहले से कहीं बेहतर हैं, क्योंकि दोनों देश समुद्री सुरक्षा से लेकर आतंकवाद विरोधी लड़ाई तक कई मुद्दों पर आगे बढ़ रहे हैं। अमेरिका बदले हालात को समझ और स्वीकार कर चुका है। प्रधानमंत्री मोदी की ठोस और प्रो-एक्टिव पहल के चलते दोनों देशों के संबंध अनिश्चितता के जंजाल से कब के बाहर निकल चुके हैं। अब दोनों देशों को एक दूसरे की ताकत और एक दूसरे की जरूरत के बारे में कोई गलतफहमी नहीं है। ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में भारत के बाजार की अनदेखी कर ही नहीं सकते। अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए अमेरिका को भारत का बाजार तो हर हालत में चाहिए। इसलिए अमेरिका किसी भी सूरत में भारत को इग्नोर नहीं कर सकता। लेकिन अब भारत भी बराबरी के मंच पर खड़ा है।
भारतीयों का बोलबाला
अमेरिका में भारतीय बहुत खास मुकाम पर हैं। कॉरपोरेट संसार से लेकर दूसरे क्षेत्रों में अहम पदों पर हैं भारतीय। एक बात और साफ है कि ट्रंप अपने देश के भारतीय मूल के नागरिकों को नाराज नहीं कर सकते। अमेरिका में बसे भारतीयों के हित तो सुरक्षित रहेंगे ही। ट्रंप अपनी चुनावी सभाओं में भी वहां बसे भारतीयों को अपने पाले में लाने की तगड़ी पहल कर रहे थे। वे हिन्दू और हिन्दुस्तान के कसीदे पढ़ते रहे । कश्मीरी पंडितों और आतंकवाद से पीड़ित बांग्लादेशी हिंदुओं द्वारा आयोजित समारोह में ट्रंप ने कहा, ‘मैं हिंदू समाज और भारत का एक बड़ा प्रशंसक हूं। अगर मैं चुना जाता हूं तो भारतीय और हिंदू समुदाय को व्हाइट हाउस में एक सच्चा दोस्त मिल जाएगा।’ ट्रंप को भारत और अमेरिका में हिन्दुओं की ताकत का अहसास है। वे भारतीय समुदाय की मेहनत और उद्यमिता को जानते हैं। ट्रंप को मालूम है कि अमेरिका में भारतीय बेहद मजबूत समूह है।कमाई के मामले में तो भारतीय अमेरिकी सबसे धनी माने जाते हैं। सारी सिलिकॉन वैली भारतीय पेशेवरों से भरी पड़ी है। अमेरिका भारतीयों के ज्ञान का भी लोहा मानता है। इस पृष्ठभूमि में भारत-अमेरिका संबंध आगे भी बेहतर ही रहने वाले हैं। मोदी की यात्रा से दोनों देश अब अहम मुद्दे साथ-साथ दिखेंगे।
(लेखक राज्य सभा सांसद एवं हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषीय संवाद सेवा के अध्यक्ष हैं)