वास्तव में अगर जम्मू कश्मीर के बारे में बातचीत करने की जरूरत है तो वह है पीओके और अक्साई चीन के बारे में। इसके ऊपर देश में चर्चा होनी चाहिए। गिलगित जो अभी पीओके में है विश्व में एकमात्र ऐसा स्थान है जो कि 5 देशों से जुड़ा हुआ है अफगानिस्तान, तजाकिस्तान (जो कभी रूस का हिस्सा था), पाकिस्तान, भारत और तिब्बत -चाइना।
वास्तव में जम्मू कश्मीर का महत्व जम्मू के कारण नहीं, कश्मीर के कारण नहीं, लद्दाख के कारण नहीं, वास्तव में अगर इसका महत्व है तो वह है गिलगित-बाल्टिस्तान के कारण।
भारत के इतिहास में भारत पर जितने भी आक्रमण हुए यूनानियों से लेकर आज तक (शक, हूण, कुषाण, मुग़ल) वह सारे गिलगित से हुए। हमारे पूर्वज जम्मू-कश्मीर के महत्व को समझते थे, उनको पता था कि अगर भारत को सुरक्षित रखना है तो दुश्मन को हिंदूकुश अर्थात गिलगित-बाल्टिस्तान उस पार ही रखना होगा। किसी समय इस गिलगित में अमेरिका बैठना चाहता था, ब्रिटेन अपना बेस गिलगित में बनाना चाहता था, रूस भी गिलगित में बैठना चाहता था। यहां तक कि पाकिस्तान ने 1965 में गिलगित को रूस को देने का वादा तक कर लिया था। आज चाइना गिलगित में बैठना चाहता है और वह अपने पैर पसार भी चुका है और पाकिस्तान तो बैठना चाहता ही था।
दुर्भाग्य से इस गिलगित के महत्व को सारी दुनिया समझती है केवल एक उसको छोड़कर जिसका वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान है और वह है भारत।
क्योंकि हमको इस बात की कल्पना तक नहीं है कि भारत को अगर सुरक्षित रहना है तो हमें गिलगित-बाल्टिस्तान किसी भी हालत में चाहिए। आज हम आर्थिक शक्ति बनने की सोच रहे हैं। क्या आपको पता है कि गिलगित से रोड के जरिए आप विश्व के अधिकांश कोनों में जा सकते हैं। गिलगित से रोड के जरिए 5000 किमी. दुबई है, 1400 किमी दिल्ली है, 3500 किमी रूस है, लंदन 8000 किमी है। जब हम सोने की चिडिय़ा थे हमारा सारे देशों से व्यापार चलता था। 85 प्रतिशत जनसंख्या इन मार्गों से जुड़ी हुई थी।
मध्य एशिया, यूरेशिया, यूरोप, अफ्रीका, सब जगह हम रोड से जा सकते हैं। आज हम पाकिस्तान के सामने आईपीआई (ईरान-पाकिस्तान-इंडिया) गैस लाइन बिछाने के लिए गिड़गिड़ाते हैं, ये तापी की परियोजना है जो कभी पूरी नहीं होगी। अगर हमारे पास गिलगित होता तो गिलगित के आगे तज़ाकिस्तान था, हमें किसी के सामने हाथ नहीं फ़ैलाने पड़ते।
हिमालय की 10 बड़ी चोटियां है जो कि विश्व की 10 बड़ी चोटियों में से हैं और ये सारी हमारी है और इन 10 में से 8 गिलगित-बाल्टिस्तान में हैं। तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के बाद जितने भी पानी के वैकल्पिक स्त्रोत हैं वह सारे गिलगित-बाल्टिस्तान में हैं।
आप हैरान हो जाएंगे कि वहां बड़ी-बड़ी 50-100 यूरेनियम और सोने की खदाने हैं। आप पीओके के मिनरल डिपार्टमेंट की रिपोर्ट को पढि़ए, आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे। वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान का महत्व हमको मालूम नहीं है और सबसे बड़ी बात गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग एंटी पाक यानि पाकिस्तान के खिलाफ हैं।
दुर्भाग्य क्या है? हम हमेशा कश्मीर बोलते हैं जम्मू-कश्मीर नहीं बोलते हैं। कश्मीर कहते ही जम्मू, लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान दिमाग से निकल जाता है। ये जो पाकिस्तान के कब्जे में पीओके है उसका क्षेत्रफल 79000 वर्ग किलोमीटर है उसमें कश्मीर का हिस्सा तो सिर्फ 6000 वर्ग किलोमीटर है और 9000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा जम्मू का है और 64000 वर्ग किलोमीटर हिस्सा लद्दाख का है जो कि गिलगित-बाल्टिस्तान है। यह कभी कश्मीर का हिस्सा नहीं था। यह लद्दाख का हिस्सा था। वास्तव में सच्चाई यही है। इसलिए पाकिस्तान यह जो बार-बार कश्मीर का राग अलापता रहता है तो उसको कोई यह पूछे तो सही कि क्या गिलगित-बाल्टिस्तान और जम्मू का हिस्सा, जिस पर तुमने कब्ज़ा कर रखा है क्या ये भी कश्मीर का ही भाग है? कोई जवाब नहीं मिलेगा।
क्या आपको पता है गिलगित-बाल्टिस्तान, लद्दाख के रहने वाले लोगों की औसत आयु विश्व में सर्वाधिक है। यहां के लोग विश्व के अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा जीते हैं।
भारत में आयोजित एक सेमिनार में गिलगित-बाल्टिस्तान के एक बड़े नेता को बुलाया गया था। उन्होंने कहा कि ”वी आर द फॉरगॉटन पीपुल ऑफ फॉरगॉटन लैन्ड्स ऑफ भारत’’। उन्होंने कहा कि देश हमारी बात ही नहीं जानता। किसी ने उनसे सवाल किया कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं? तो उन्होंने कहा कि 60 साल बाद तो आपने मुझे भारत बुलाया और वह भी अमेरिकन टूरिस्ट वीजा पर और आप मुझसे सवाल पूछते हैं कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं? उन्होंने कहा कि आप गिलगित-बाल्टिस्तान के बच्चों को आईआईटी, आईआईएम में दाखिला दीजिए, एम्स में हमारे लोगों का इलाज कीजिए, हमें यह लगे तो सही कि भारत हमारी चिंता करता है, हमारी बात करता है। गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान की सेना कितने अत्याचार करती है लेकिन आपके किसी भी राष्ट्रीय अखबार में उसका जिक्र तक नहीं आता है। आप हमें ये अहसास तो दिलाइये की आप हमारे साथ है।
और मैं खुद आपसे यह पूछता हूं कि आप सभी ने पाकिस्तान को हमारे कश्मीर में हर सहायता उपलब्ध कराते हुए देखा होगा। वह बार बार कहता है कि हम कश्मीर की जनता के साथ हैं, कश्मीर की आवाम हमारी है, लेकिन क्या आपने कभी यह सुना है कि किसी भी भारत के नेता, मंत्री या सरकार ने यह कहा हो कि हम पीओके-गिलगित-बाल्टिस्तान की जनता के साथ हैं, वह हमारी आवाम है, उनको जो भी सहायता उपलब्ध होगी हम उपलब्ध करवाएंगे। आपने यह कभी नहीं सुना होगा। कांग्रेस सरकार ने कभी पीओके-गिलगित-बाल्टिस्तान को पुन: भारत में लाने के लिए कोई बयान तक नहीं दिया, प्रयास तो बहुत दूर की बात है। हालांकि पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार के समय पीओके का मुद्दा उठाया गया फिर 10 साल पुन: मौन धारण हो गया और फिर से नरेंद्र मोदी जी की सरकार आने पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में ये मुद्दा उठाया।
आज अगर आप किसी को गिलगित के बारे में पूछ भी लोगे तो उसे यह पता नहीं है कि यह जम्मू कश्मीर का ही भाग है। वह यह पूछेगा क्या यह कोई चिडिय़ा का नाम है? वास्तव में हमें जम्मू कश्मीर के बारे में जो गलत नजरिया है उसको बदलने की जरूरत है।
अब करना क्या चाहिए? तो पहली बात है सुरक्षा में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होना चाहिए। जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा का मुद्दा बहुत संवेदनशील है, इस पर अनावश्यक वाद-विवाद नहीं होना चाहिए। एक अनावश्यक वाद विवाद चलता है कि जम्मू कश्मीर में इतनी सेना क्यों है? तो बुद्धिजीवियों को बता दिया जाए कि जम्मू-कश्मीर का 2800 किलोमीटर का बॉर्डर है जिसमें 2400 किलोमीटर पर एलओसी है। आजादी के बाद भारत ने पांच युद्ध लड़े, वह सभी जम्मू-कश्मीर से लड़े। भारतीय सेना के 18 लोगों को परमवीर चक्र मिला और वह 18 के 18 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं।
इनमें 14000 भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं जिनमें से 12000 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं। अब सेना बॉर्डर पर नहीं तो क्या मध्यप्रदेश में रहेगी? क्या यह सब जो सेना की इन बातों को नहीं समझते वही यह सब अनर्गल चर्चा करते हैं?
वास्तव में जम्मू कश्मीर पर बातचीत करने के बिंदु होने चाहिए। पीओके, वेस्ट पाक रिफ्यूजी, कश्मीरी हिंदू समाज, आतंक से पीडि़त लोग, धारा 370 और 35 ए का दुरूपयोग, गिलगित-बाल्टिस्तान का वह क्षेत्र जो आज पाकिस्तान-चाइना के कब्जे में है। जम्मू-कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान में अधिकांश जनसंख्या शिया मुसलमानों की है और वह सभी पाक विरोधी हैं। वह आज भी अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं, पर भारत उनके साथ है ऐसा उनको महसूस कराना चाहिए, देश कभी उनके साथ खड़ा नहीं हुआ। वास्तव में पूरे देश में इसकी चर्चा होनी चाहिए।
वास्तव में जम्मू-कश्मीर के विमर्श का मुद्दा बदलना चाहिए। जम्मू कश्मीर को लेकर सारे देश में सही जानकारी देने की जरूरत है। इसके लिए एक इंफॉर्मेशन कैंपेन चलना चाहिए। पूरे देश में वर्ष में एक बार 26 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर का दिवस मनाना चाहिए और सबसे बड़ी बात है जम्मू कश्मीर को राष्ट्रवादियों की नजर से देखना होगा। जम्मू कश्मीर की चर्चा हो तो वहां के राष्ट्रभक्तों की चर्चा होनी चाहिए तो उन 5 जिलों के कठमुल्ले तो फिर वैसे ही अपंग हो जाएंगे।
इस कश्मीर श्रृंखला के माध्यम से मैंने आपको पूरे जम्मू कश्मीर की पृष्ठभूमि और परिस्थितियों से अवगत करवाया और मेरा मुख्य उद्देश्य सिर्फ यही है कि जम्मू कश्मीर के बारे में देश के प्रत्येक नागरिक को यह सब जानकारियां होनी चाहिए।
अब आप इतने समर्थ हैं कि जम्मू कश्मीर को लेकर आप किसी से भी वाद-विवाद या तर्क कर सकते हैं। किसी को आप समझा सकते हैं कि वास्तव में जम्मू-कश्मीर की परिस्थितियां क्या है। वैसे तो जम्मू कश्मीर पर एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है लेकिन मैंने जितना हो सका उतने संक्षिप्त रूप में इसे आपके सामने रखा है।