उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पर जिस प्रकार से अमर्यादित आचरण का आरोप लगाकर उन्हें बदनाम करने का प्रयास किया गया है वह निंदनीय ही नहीं चिंताजनक भी है। सर्वाधिक चिंता की बात यह है कि चार न्यूज पोर्टलों- स्क्रोल, द लीफलैट, कारवां और द वायर ने एक साथ व एक ही भाषा में इस संबंध में, आनन-फानन में जिस प्रकार समाचार चलाया वह किसी गहरे षड्यंत्र की ओर इशारा करता है और यह सब किया गया ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ की आड़ में। जैसा कि स्वाभाविक था कि इस गम्भीर मामले में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज हुई। इसकी जांच भी होगी। यह षड्यंत्र किसने रचा और किसके इशारों पर रचा गया इसका पता करना कोई बहुत कठिन काम नहीं होना चाहिए। क्योंकि जिस महिला के ‘शपथ पत्र’ को आधार बनाया गया है वह अनजान नहीं है। इसी प्रकार वे चारों न्यूज पोर्टल भी अनजाने नहीं हैं। मीडिया में वे काफी चर्चित नाम हैं और इस प्रकार के सनसनीखेज आरोप लगा कर हंगामा खड़ा करने के विशेषज्ञ माने जाते हैं। अभी तक कुछ बड़े नामों को इन्होंने निशाना बनाकर उन्हें बदनाम करने का षड्यंत्र रचा है। परंतु इस बार उन्होंने न्याय व्यवस्था से सम्बद्ध संवैधानिक संस्था के मुखिया को ही निशाना बनाया। इससे उनके मनसूबे भली प्रकार समझे जा सकते हैं और यह भी समझा जा सकता है कि भारत में उन्हें किसी का भी खौफ नहीं है और वे जैसा चाहें ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का दुरुपयोग अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए कर सकते हैं। ऐसे में उच्चतम न्यायालय को निम्न बातों पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए।
1 क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी को भी किसी भी व्यक्ति का चरित्रहरण करने की छूट उपलब्ध होनी चाहिए?
2 क्या किसी भी व्यक्ति पर अप्रमाणित आरोप लगा कर मीडिया अपनी जिम्मेदारी से बच सकता है?
3 क्या जिस व्यक्ति पर आरोप लगाए जा रहे हैं उस का पक्ष जाने बिना ही कोई भी अनर्गल आरोप लगाना पत्रकारिता के मानदंडों के अनुरूप है?
4 क्या मीडिया को एक तरफा मीडिया ट्रायल की असीमित छूट है?
इस बात की जांच की जानी चाहिए कि-
1 इन चारों न्यूज पोर्टलों की वास्तविक मंशा क्या थी?
2 इन पोर्टलों ने क्या इससे पूर्व भी इसी प्रकार की अपुष्ट खबरें चला कर उच्च पदासीन लोगों को बदनाम किया?
3 क्या ये पोर्टल किसी गम्भीर षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं?
4 क्या यह भारत की संवैधानिक संस्थाओं पर सुनियोजित हमले कर उन्हें कमजोर करने के किसी विदेशी षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं?
5 इन पोर्टलों के आय के स्रोत क्या हैं?
6 जब इन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश को नहीं बख्शा तो इनके लिए कोई दूसरा व्यक्ति क्या मायने रखता है? इसका यह भी अर्थ है कि इन्हें किसी प्रभावशाली शक्ति का संरक्षण प्राप्त है, वह शक्तिस्रोत कौन है?
इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ न्यायप्रिय बुद्धिजीवियों को इस बात पर तो आपत्ति है कि उच्चतम न्यायालय की उस बैंच में स्वयं मुख्य न्यायाधीश क्यों शामिल हुए जिस में उन पर लगे आरोपों पर विचार किया गया लेकिन इनमें से किसी ने भी यह नहीं कहा कि मुख्य न्यायाधीश पर इस प्रकार के गम्भीर आरोप लगाने से पूर्व इन तथाकथित पत्रकारों ने पूरे मामले की गहन छानबीन क्यों नहीं की और सिर्फ एक शपथपत्र के आधार पर आनन-फानन में चारों ने एक साथ यह समाचार क्यों चलाया?
देश में न्याय व्यवस्था में विश्वास बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि माननीय न्यायालय इस संबन्ध में गहन जांच करा कर दोषियों को आवश्यक दंड दे।
रविन्द्र अग्रवाल
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राहुल गांधी जवाब दो
चूंकि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई राहुल गांधी के झूठे बयान कि ‘कोर्ट ने कहा है कि चौकीदार चोर है’ के खिलाफ कोर्ट की अवमानना मामले पर सुनवाई करने जा रहा हैं, इसको रोकने के लिए कांग्रेसी खेमे की चार वेबसाइट स्क्रॉल, द लीफलेट, कारवां और द वायर ने एक सी भाषा मे मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजे जिसमें कोर्ट की पूर्व महिला कर्मचारी के मुख्य न्यायाधीश द्वारा यौन शोषण के आरोपो का जिक्र था। कुछ समय पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने बताया था कि कांग्रेस के वकील नेता कपिल सिब्बल राम जन्मभूमि मामले में सुनवाई लटकाए रखने का दबाव न्यायाधीशों पर डालते रहे हैं और उनकी बात न मानने पर महाभियोग लगाने की घमकी देते थे। क्या इस खेल के पीछे भी सिब्बल हैं? राहुल गांधी जवाब दो! अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले की तह तक पहुंच गया तो इस षड्यंत्रकारी सिंडिकेट का क्या हश्र होगा शायद किसी को भी अंदाजा नहीं।
घिर चुके हैं राहुल गांधी
‘चौकीदार चोर है’ यह सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है पर मीनाक्षी लेखी के द्वारा दायर केस में। अवमानना की कार्यवाही झेल रहे राहुल अब अपने चुनावी शपथपत्र में नागरिकता, संपत्ति व शिक्षा की गलत जानकारी देकर फंस गए हैं और अमेठी में उनके प्रतिद्वंद्वी चार उम्मीदवारों ने उनके शपथपत्र को चुनौती दे दी है। उधर बिहार से भाजपा नेता सुशील मोदी ने ‘सारे मोदी चोर हैं’ के राहुल गांधी के बयान पर मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया है। नेशनल हेराल्ड अखबार समूह में 5000 करोड़ की हेराफेरी के मामले में वे अपनी मां सहित जमानत पर है ही। ऐसा लगता है कि भाजपा ने पिछले कुछ दिनों में उनको खुली छूट देकर गलतियां करने दी और अब चारो ओर से फ़ांस लिया है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गगोई को झूठे यौन शोषण मामले में फंसाने के षड्यंत्र के तार भी उन्हीं से जुड़ते जा रहे हैं। तौबा तोबा क्या होगा पप्पू का अब!
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पप्पू का फिर से पोपट!
राहुल गांधी महज़ मूर्ख ही नहीं, चाटुकार पिद्दियों से घिरे एक निर्लज्ज और घटिया नेता के तौर पर दिन-ब-दिन नंगे होते जा रहे हैं।
देश के लिए राहत की बात है कि कांग्रेस के प्रथम-परिवार का उत्तराधिकारी होने के कारण स्वयं को कांग्रेस और देश की गद्दी पर बैठने के जन्मजात अधिकारी समझने वाले यह शख्स दिमाग से बिल्कुल पैदल हैं और बढिय़ा पैकेजिंग के बावजूद अपने कूढ़मगज होने का प्रमाण आये दिन देते रहते हैं, जिससे समझदार लोग इनके झांसे में नहीं आते। हां, मोदी के अन्धविरोधी, जो मज़बूरी में इनका समर्थन करते हैं और कांग्रेसी रजवाड़े की गुलामी विरासत में पाने वाले लोगों की बात अलग है।
अभी हाल-फिलहाल की इनकी दो मूर्खताएं देखने लायक रहीं।
सत्ता-प्राप्ति के लिए मतदाताओं को बरगलाने के लिए ‘सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है कि राफेल मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार किया है’ कहकर न्यायालय की आपराधिक अवमानना के केस में बुरी तरह फंसे पप्पू ने भले ही चुनाव के दौरान फिलहाल तो अपनी फज़ीहत कराई है, पर न्यायालय इसपर क्या रुख़ अख्तियार करता है, देखने वाली बात है। एक भाजपा के मीनाक्षी लेखी जैसे वकील हैं जो राहुल द्वारा प्रधानमंत्री को निशाना बनाये जाने पर पॉइंट पकड़कर कोर्ट में इनकी पतलून उतार देते हैं, दूसरी तरफ कांग्रेस में सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील कपिल सिब्बल जैसे लोग हैं, जो बजाय राहुल को कड़वी, पर सही सलाह देने के बजाय उनकी गलतियों को भी ‘पिद्दी’ की तरह दुम हिलाकर बढ़ावा देते हैं। तभी आज राहुल इस गढ्ढे में गिरे हैं।
अमेठी के एक निर्दलीय प्रत्याशी की आपत्ति है कि राहुल गांधी द्वारा अमेठी में अपने नामांकन पत्र के साथ जो कैम्ब्रिज की एम फिल का जो प्रमाण पत्र लगाया गया है, न सिफऱ् उसमें राहुल गांधी का नाम राउल विंची है, बल्कि उनके द्वारा ब्रिटिश ऑथोरिटी द्वारा जारी एक कंपनी का रजिस्ट्रेशन भी दाखिल किया गया है, जिसमें राहुल गांधी निदेशक हैं और वे लंदन के निवासी और ब्रिटिश नागरिक हैं।
ये तो आपको पता ही होगा कि नेशनल हेराल्ड मामले में अपनी विदेशी मूल की माताजी के साथ जमानत पर छूटे हुए इन महाशय की इस मामले में कानूनी स्थिति का अंदाजा इसी से लगाइए कि कोर्ट ने इनसे दिल्ली-स्थित हेराल्ड हाउस खाली करवा लिया है।
क्या एक राष्ट्रीय पार्टी का अध्यक्ष इतना मूर्ख हो सकता है?
क्या एक राष्ट्रीय पार्टी का अध्यक्ष इतना चारसौबीस हो सकता है?
और हां, इन्हें भारत का प्रधानमंत्री भी बनना है!