तमाम विपरीत परिस्थितियों, आशंकाओं और आपत्तियों के बीच भारत में लागू हुआ लॉकडाउन का चैथा चरण अब अधिक चुनौतीभरा एवं गंभीर है। देश में कोरोना संक्रमितों और इससे मरने वालों की संख्या जिस तेजी से बढ़ रही है, वह बहुत चिन्ताजनक एवं भयावह तस्वीर प्रस्तुत कर रही है। इस बात के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में इस महामारी का कहर थमने वाला नहीं है। तीन चरणों के लाॅकडाउन पीरियड़ में इस महामारी को फैलने से रोकने में जो सफलताएं मिली, वे अब धराशायी हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं है। कोरोना मुक्ति की सीढ़ियों पर चढ़ते कदमों को नीचे खींचना हमारी ऐसी विवशता बन रही है, जो जीवन के उजाले से अधिक मौत का अंधेरा अपने साथ लिये है। लेकिन यह भी बड़ा सत्य है कि जीने के लिये गतिशीलता जरूरी है, रुक जाना अच्छा नहीं, क्योंकि वहां विकास की सारी संभावनाएं खत्म हो जाती है।
केंद्र सरकार ने विकास को गति देने की दृष्टि से अपनी तरफ से कई छूटें घोषित की हैं, साथ ही आगे की छूटों के बारे में फैसला राज्य सरकारों और जिला प्रशासन पर छोड़ा है। रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन तय करने का अधिकार राज्यों को और कंटेनमेंट जोन तथा बफर जोन तय करने का जिम्मा जिला प्रशासन को सौंप दिया गया है। राज्य सरकारें जमीनी स्थितियों से बेहतर ढंग से वाकिफ होती हैं, इसलिए प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में बीमारी के फैलाव के खतरों और आबादी की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त एवं प्रभावी फैसला वे ज्यादा आसानी से कर सकती हैं। लेकिन उनके फैसलों में सही दिशा एवं सही मुकाम कैसे मिलेगा, यह एक ज्वलंत प्रश्न है। यह चिंता की बात इसलिए भी है कि महामारी विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि अगले कुछ महीनों में देश के राज्यों में कोरोना संक्रमण अलग-अलग समय पर अपने चरम पर होगा। इससे एक बात यह भी स्पष्ट हो गई है कि अगले कई महीने तक देश को इस महामारी से मुक्ति नहीं मिलने वाली। कोरोना से लड़ने के लिये जरूरी संयम एवं सोशल डिस्टेंसिंग बहुत जरूरी है। इनमें छूट के नाम पर फैलती गलत परम्परा, जीने की गलत शैली, शुद्ध साध्य तक पहुंचने के गलत साधन, सोच का गलत दिशाओं में बढ़ना हमारी लिये बड़े खतरे का सबब बन सकता है।
ऐसे विकट स्थितियों में राज्य सरकारों को अब अपने यहां ढील के साथ ही इस तरह के कड़े उपाय भी करने होंगे जो कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने में कारगर साबित हो सकें। इनमें संक्रमितों की पहचान और बेहद खतरनाक क्षेत्रों को बंद रखने जैसे कदम भी शामिल हों। इसके अलावा कोरोना जांच को अधिक तीव्रता से गति देना होगा। नई तकनीक एवं तीव्रता को अपनाना होगा। सरकारों के लिए यह काम पहले के मुकाबले अब ज्यादा चुनौतीभरा इसलिए भी होगा, क्योंकि अब पूर्णबंदी में चरणबद्ध तरीके से काफी ढील दी जाने लगी है और लोगों की आवाजाही तेजी से बढ़ने लगी है। अभी प्रवासी मजदूरों का भी बेरोकटोक आना-जाना जारी है। ऐसे में कौन कहां अपने साथ संक्रमण ले जा रहा होगा, यह पता लगा पाना असंभव है।
यह वक्त आम आदमी के अधिक सर्तक एवं सावधान होने का भी है। हर इंसान को इस बात के लिये संकल्पित होना होगा कि वह कोरोना महामारी को पनपने का कारण नहीं बनेगा, जब भी गहराई तक इस तरह की प्रेरणा मन को छू लेती है, तो रास्ते के पत्थर भी सफर में मील के पत्थर बन जाते हैं। आत्म विश्लेषण एवं आत्म-जागरूकता कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने की पहली शर्त है। ऐसे कहर से मुक्ति तभी संभव है जब उनके गलत परिणामों का सही ज्ञान होता है। कोरोना मुक्ति जीवन में तभी स्थायित्व पा सकती है जब उनके साथ निष्ठा, संयम, संकल्प एवं प्रयत्न की गतिशीलता और निरन्तरता जुड़ जाती है। बिना किसी को मिटाये एवं नुकसान पहुंचाये विकास को गति दे एवं नई सीमा रेखाएं खींचे। यही साहसी एवं विवेकी सफर कोरोना मुक्ति के संकल्प को सार्थकता दे सकेगा।
कोरोना को लेकर गलतफहमियां पनपनी नहीं चाहिए, क्योंकि वे जल्दी ही कहर बन जाती है। ऐसा कहर महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, दिल्ली, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और राजस्थान जैसे राज्यों में चिन्ता का कारण बना है, जहां संक्रमण बढ़ने की रफ्तार काफी ज्यादा है। हर दिन आंकड़े नया रिकार्ड बना रहे हैं। कभी लगता है कि किसी राज्य में संक्रमण फैलने की दर में अचानक कमी आ गई है, लेकिन उसी राज्य में दो-तीन दिन बाद एकदम से नए मामलों का उभरना हैरान करने वाला है। जैसे कर्नाटक के तीन जिलों- दावणगेरे, चित्रदुर्ग और शिमोगा में कुछ दिन पहले तक एक भी मामला नहीं था, लेकिन अब ये तीनों जिले बेहद संक्रमित हैं। हालांकि इसका एक कारण कुछ राज्यों में जांच की रफ्तार तेज होना है, तो कुछ में काफी धीमी गति से यह काम चल रहा है। भले सरकारें यह दावा करें कि उनके राज्य में इसके सामुदायिक स्तर पर फैलने का खतरा नहीं है, लेकिन हालात बता रहे हैं कि हम इस खतरे से बहुत दूर भी नहीं है। कोरोना से जुड़े वास्तविक तथ्यों का उजागर न करना या उजागर न करने की स्थितियां का बने रहना हमारी सरकारों की विवशता है। इसलिये यह तो स्वीकार करना ही होगा कि कोरोना से जुड़े तथ्य जितने सामने हैं, उससे बहुत अधिक है।
पूर्णबंदी के चैथे चरण में प्रतिबंधों और ढील के लिए नियम-कायदे तय करने से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से गहन विचार-विमर्श किया, उसके बाद ही इसके लिए दिशानिर्देश जारी किए। जाहिर है, केंद्र ने पूर्णबंदी को और अधिक सफल बनाने के लिए राज्यों को स्थानीय स्तर पर फैसले लेने के अधिकार दे दिए हैं। अब राज्य सरकारों को ही तय करना है कि वे ऐसे कौन से कदम उठाएं, जिससे न सिर्फ कोरोना संक्रमण का फैलाव रूके, बल्कि आर्थिक गतिविधियों को भी रफ्तार मिले एवं आमजीवन गतिशील बने। दिल्ली काफी ढ़ील दे दी गयी है, सरकारी एवं गैर सरकारी कार्यालय काम करने लगे हैं, यातायात के साधन कुछ प्रतिबंधों के साथ खोल दिये गये हैं, एम्स अस्पताल ने इसी सप्ताह ओपीडी खोलने का फैसला करते हुए इसकी तैयारी शुरू कर दी है, जबकि पंजाब सरकार ने अन्य राज्यों से कैब और निजी वाहनों के आने की मंजूरी दे दी है। कर्नाटक सरकार ने राज्य के अंदर बस, ऑटो और निजी वाहनों के चलने की इजाजत दे दी है, साथ ही उन्हें पैसेंजरों की संख्या कम रखने और अन्य सावधानियां बरतने के सख्त निर्देश भी दिए हैं। राज्यों पर फैसला छोड़ने का एक मतलब यह भी है कि इस चरण में सबके बीच सामंजस्य बनाना पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण होने वाला है। लेकिन राज्यों को अब ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि प्रवासी मजदूरों का पलायन अभी रूका नहीं है और ग्रामीण इलाकों में महामारी फैलने की आशंका गहराती जा रही है। ऐसे में राज्यों को अपने यहां हर आने वाले ही गहन जांच करनी होगी। हमें परिस्थितियों एवं हालातों को दोषी ठहराने की आदत से बचना होगा, प्रतिकूलताओं से लड़ने के लिये ईमानदार प्रयत्न करने होंगे। यूं तो कोरोना को परास्त करने नाम पर सरकार, उसकी नीतियां, योजनाएं, उम्मीदें सब सकारात्मक रही है, लेकिन अब कोरोना महासंकट को देखते हुए जीने की आदत को बदल डालने की मानसिकता आम आदमी में विकसित करनी होगी क्यों सर्द हवाओं को झेलने के लिये ठण्डी आग पर्याप्त नहीं होती। राजस्थान का भीलवाड़ा जिला हो या केरल एवं सिक्किम राज्यों के उदाहरण, जिन्होंने अपने यहां बेहतर स्वास्थ्य सेवा और निगरानी के बूते कोरोना को फैलने नहीं दिया। हमें अभी आगामी कुछ महीनों तक युद्धस्तर पर कोरोना से लड़ना होगा, अस्पतालों को तैयार रखना होगा, दवा की खोज करनी होगा ताकि संक्रमितों की संख्या बढ़ने पर हालात बेकाबू न हों। अब असली चुनौती राज्यों की है, महामारी से निपटने के लिए राज्यों को तो कमर कसनी ही होगी, साथ ही अब नागरिकों को भी ज्यादा जिम्मेदार बनना होगा, तभी हम इस संकट से निकल पाएंगे।
(ललित गर्ग)