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अस्तित्व का संकट

रोनाल्ड रीगन ने कहा था, “स्वतंत्रता के अस्तित्व को मिटने में एक पीढ़ी से अधिक का समय नहीं लगता| इसे हम अपने संतानों के रक्त में प्रवाहित नहीं करते| स्वतंत्रता के लिए लड़ना और इसे सुरक्षित कर भावी पीढ़ी को लड़ने के लिए देना पड़ता है|”

इंडिया को तो कभी स्वतंत्रता मिली ही नहीं! आक्रांता अंग्रेजों ने भारत को अपनी सम्पत्ति मानकर दो उपनिवेश इंडिया और पाकिस्तान बनाये. जिनका अंग्रेजों को न अधिकार था और न है. लेकिन उपनिवेश का आजतक किसी ने विरोध नहीं किया! क्या आप अपनी स्वतंत्रता के लिए मेरी गुप्त सहायता करेंगे?
हमारे पूर्वजों के ९० वर्षों के बलिदानों की परिणति है, उपनिवेश के पूर्व शब्द ‘स्वतंत्र’ का जोड़ा जाना. चुनाव द्वारा स्थितियों में कोई परिवर्तन सम्भव नहीं| आज़ादी धोखा है. इंडिया आज भी एलिजाबेथ का उपनिवेश और ब्रिटेन का दास है. आज भी सभी ब्रिटिश कानून ही देश पर लागू हैं.
२०वीं सदी के मीरजाफर सदाबहार झूठे, पाकपिता – राष्ट्रहंता बैरिस्टर मोहनदास करमचन्द गांधी ने कोई आजादी नहीं दिलाई. हमारे पूर्वजों के ९० वर्षों के बलिदानों की परिणति है, उपनिवेश के पूर्व शब्द ‘स्वतंत्र’ का जोड़ा जाना. चुनाव द्वारा स्थितियों में कोई परिवर्तन सम्भव नहीं| आज़ादी धोखा है. इंडिया आज भी एलिजाबेथ का उपनिवेश और ब्रिटेन का दास है. आज भी सभी ब्रिटिश कानून ही देश पर लागू हैं.
फिरभी सन १९४७ के सत्ता हस्तान्तरण के बाद से ही उपनिवेशवासी १५ अगस्त को स्वतंत्रता दिवस और २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाने के लिए विवश हैं. उपनिवेशवासियों के स्वतंत्रता के युद्ध का ही एलिजाबेथ ने अपहरण कर लिया है. एलिजाबेथ धोखा देना छोड़े. १५ अगस्त को स्वतंत्रता दिवस और २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस की नौटंकी के स्थान पर स्पष्ट घोषित करे कि उपनिवेशवासी उसके स्थायी बलिपशु हैं. उपनिवेशवासियों को कत्ल करना, उनका मांस खाना और लहू पीना उस का संवैधानिक असीमित मौलिक मजहबी अधिकार है.
इंडिया और पाकिस्तान सहित ५३ देश आतताई और गो-नरभक्षी (बाइबल, यूहन्ना ६:५३) एलिजाबेथ के उपनिवेश हैं. उपनिवेशवासी डायन जेसुइट एलिजाबेथ के दास हैं. दास के पास अधिकार नहीं होते. २०वीं सदी के मीरजाफर पाकपिता – राष्ट्रहंता बैरिस्टर मोहनदास करमचन्द (गांधी) और माउंटबेटन के बीच समझौते के अधीन इंडिया के मुसलमान व ईसाई सहित सभी उपनिवेशवासियों का सब कुछ एलिजाबेथ का ही है. उपनिवेशवासियों की स्थिति किसान के पशु की भांति है, जिसका कुछ भी नहीं होता! यदि इंडिया आगे भी एलिजाबेथ का उपनिवेश बना रहा तो एलिजाबेथ उपनिवेशवासियों को कत्ल करेगी (बाइबल, लूका १९:२७) उनका मांस खायेगी और रक्त पिएगी| (बाइबल, यूहन्ना ६:५३). उपनिवेशवासियों के नारियों का उनके पुरुषों के आँखों के सामने बलात्कार कराएगी (बाइबल, याशयाह १३:१६). वह भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) से प्राप्त अधिकार से. उपनिवेशवासी कुछ न कर पायेंगे! विवरण के लिए नीचे की लिंक क्लिक करें:-
मनुष्य अपने असली शत्रु को पहचानें
ईसाई व मुसलमान दया के पात्र हैं. दंड के पात्र तो मूसा, मुहम्मद, शासक व पुरोहित हैं. एलिजाबेथ भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) और (बाइबल, लूका १९:२७) के सहयोग से मानवजाति के विरुद्ध छद्म युद्ध लड़ रही है. उसने इंडिया सहित ५३ देशो को अपना उपनिवेश बना कर ईसा का राज्य स्थापित कर रखा है.  फिरभी संतुष्ट नहीं है, क्यों कि १० करोड़ से अधिक अमेरिकी लाल भारतीय और उनकी माया संस्कृति मिट गई, लेकिन वैदिक सनातन संस्कृति के अवशेष अभी भी बाकी हैं. विवरण के लिए नीचे की लिंक क्लिक करें:-
क्या ईसाईयों व मुसलमानों ने कभी सोचा?
पैगम्बरों द्वारा मानवजाति अपने शक्ति के मूल स्रोत से ही काट दी गई है.
परब्रह्म मानवमात्र को हिंदू, यहूदी, ईसाई और मुसलमान में नहीं बाँटता. वेदों के अनुसार प्रत्येक मनुष्य ब्रह्म है|
जहाँ भारतीय संविधान का अनुच्छेद २९(१) सम्प्रभु मनुष्य को वीर्यहीन कर अधीन करने वाले इन संस्कृतियों को बनाये रखने का संवैधानिक असीमित मौलिक मजहबी अधिकार देता है, वहीं राष्ट्रपति और राज्यपाल वैदिक सनातन संस्कृति को समूल नष्ट करने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) व दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ द्वारा अब्रह्मी संस्कृतियों का परिरक्षण {भारतीय संविधान का अनुच्छेद २९(१) व दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६}, संरक्षण {अल्पसंख्यक आयोग, मुस्लिम निजी कानून व वक्फ} और प्रतिरक्षण {अज़ान और मस्जिद की प्रतिरक्षा, मदरसों, उर्दू शिक्षकों,मस्जिदों से अज़ान द्वारा ईशनिंदा व अविश्वासियों को कत्ल करने की शिक्षा देने के बदले वेतन और हज अनुदान} करने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद ६० व १५९ के अधीन विवश कर दिए गये हैं|
प्रत्येक व्यक्ति को परब्रह्म द्वारा, उसके जन्म के साथ ही दिया गया ईश्वरीय उर्जा का अनंत स्रोत, स्वतंत्रता, परमानंद, आरोग्य, ओज, तेज और स्मृति का जनक, अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों का दाता, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्व-व्याप्त, वीर्य का सूक्ष्म अंश ब्रह्म, वह शक्ति है, जिससे सब कुछ, यहाँ तक कि ईश्वर भी उत्पन्न होते हैं। वीर्यवान को पराजित या अधीन नहीं किया जा सकता है| मनुष्य की छोड़िये, वीर्यवान सांड़ को भी अधीन नहीं किया जा सकता और न बांधा ही जा सकता है| वीर्यहीन व्यक्ति अपनी इन्द्रियों और शक्तिवान का दास ही बन सकता है, स्वतन्त्र नहीं रह सकता| वीर्य का जितना अधिक संचय होगा – मनुष्य उतना ही अधिक शक्तिशाली होगा| विवरण के लिए नीचे की लिंक क्लिक करें:-
 अब्रह्मी संस्कृतियों के तथाकथित धूर्त पैगम्बरों मूसा और मोहम्मद ने, जेहोवा और अल्लाह के आड़ में मनुष्य के शक्ति पुंज इसी वीर्य को एन केन प्रकारेण नष्ट कर, वह भी विश्वास के आधार पर, मजहब का अपरिहार्य कर्म बना कर, मनुष्य को किसान के बैल की भांति, दास बनाने का घृणित अपराध किया है. ईसाई व मुसलमान दया के पात्र हैं. दंड के पात्र तो जेहोवा व अल्लाह को गढ़ने वाले पैगम्बर और उनके उत्तराधिकारी शासक और पुरोहित हैं.
सत्ता के हस्तानान्तरण की पहली शर्त ही इस्लाम का दोहन है. इंडिया में ईसाइयों की संख्या नगण्य ही रही| इसी कारण वैदिक सनातन संस्कृति के अनुयायियों से ईसाई स्वयं नहीं लड़ सकते| इसलिए ईसाई अपने ही शत्रु मुसलमानों व उनके इस्लाम का शोषण करके वैदिक सनातन संस्कृति के अनुयायियों को मिटा रहे हैं| हिंदू मरे या मुसलमान – अंततः ईसा का शत्रु मारा जा रहा है|
मुसलमान तभी तक जीवित हैं – जब तक वैदिक सनातन संस्कृति जीवित है|जिस दिन वैदिक सनातन संस्कृति मिटी, तुर्की के खलीफा,  ईराक के सद्दाम और अफगानिस्तान के भांति इस्लाम मिट जायेगा और अल्लाह कुछ नहीं कर पायेगा| लड़ाई यहीं समाप्त नहीं होगी| तब मानवजाति को मिटाने के लिए कथोलिक और प्रोटेस्टेन्ट आदि के बीच युद्ध होगा| हिम्मत हो तो वे उपनिवेश से मुक्ति हेतु आर्यावर्त सरकार का सहयोग करें|
वस्तुतः वैदिक सनातन संस्कृति को मिटा कर मुसलमान अपना ही अहित करेंगे| उनका हज अनुदान, मुअज्जिनों, इमामों व मौलवियों का वेतन बंद हो जायेगा| स्कूलों के उर्दू शिक्षकों का पद समाप्त हो जायेगा. मकतबों का अनुदान समाप्त हो जायेगा. उनका वक्फ बोर्ड, अल्पसंख्यक आयोग और मुस्लिम निजी कानून भी बेमानी हो जायेगा| उनको फिरभी एलिजाबेथ के उपनिवेश से मुक्ति नहीं मिलेगी| जब मुसलमानों की कवच वैदिक सनातन संस्कृति मिट जायेगी – तब ईसाई व मुसलमान भी मिटा दिए जायेंगे. न अल्लाह मिलेगा और न विशाले सनम| बेचारे मुसलमान (कुरान २:३५).
येहोवा और अल्लाह मूसा और मुहम्मद की छलरचनायें हैं| इनका अस्तित्व नहीं है. येहोवा और अल्लाह कीं रचना मनुष्य को खतना अथवा यौनाचार की छूट द्वारा वीर्यहीन कर दास बनाने के लिए की गई है. जहाँ वैदिक सनातन संस्कृति के गुरुकुलों में निःशुल्क वीर्यरक्षा की शिक्षा दी जाती है, वहीं मैकाले के स्कूल महंगी यौनशिक्षा देते हैं और मकतब कत्ल करने और नारी बलात्कार की| जीवन, धन और सुख की मृग मरीचिका में मनुष्य विरोध नहीं करते. मनुष्य की मुक्ति का मार्ग, गुरुकुलों का पुनर्जीवन है|
मूसा (बाइबल, उत्पत्ति १७:११) और मुहम्मद ने वीर्य हीनता को मानवजाति के सर्वनाश के स्तर तक महिमामंडित कर दिया है. अनैतिक पुत्र ईसा को जन्म देने वाली मरियम पूजनीय है और ईसा यहोवा का घोषित एकलौता पुत्र है| मानवमात्र को पापी घोषित कर रखा है. स्वयं शूली पर चढ़ने से न बचा सका फिर भी सबका मुक्तिदाता है|
जिसके आराध्यदेव ईसा के बाप का ही पता नहीं है, जिसके मजहब के घर-घर में कुमारी माताएं मिलती हैं और जो स्वयं जार्ज यानी जारज (जिसके बाप का पता नहीं होता, उसे जारज कहते है) है – वह आप के संतों को रोज यौन शोषण में प्रताड़ित करा रही है| आइये आतताई मजहबों अब्रह्मी संस्कृतियों के संरक्षक भारतीय संविधान को मिटायें|
महामूर्ख यहूदी (बाइबल, उत्पत्ति २:१७) या मुसलमान (कुरान २:३५) किसको पसंद करेंगे? ईश्वर को, जो उस के रग रग में सदा उस के साथ है, या जेहोवा अथवा अल्लाह को, जो सातवें आसमान पर बैठा है और अपने अनुयायियों से मिल ही नहीं सकता?  ईश्वर को, जो उस को आरोग्य, ओज, तेज, ८ सिद्धि, ९ निधि और स्मृति का स्वामी बनाता है या जेहोवा अथवा अल्लाह को, जो उनका खतना करा कर दास बनाते हैं? ईश्वर को, जो उन को किसी भी देवता के उपासना की स्वतंत्रता देता है अथवा जेहोवा अथवा अल्लाह को, जो उन के उपासना की स्वतंत्रता छीनते हैं?
धूर्त मुहम्मद रचित लुटेरों, हत्यारों और बलात्कारियों की संहिता कुरान के महामूर्ख अल्लाह का कथन है कि पृथ्वी चपटी है| (७९:३०) सूर्य कीचड़ युक्त जलस्रोत में डूब रहा था| (कुरान १८:८६). इसके अतिरिक्त ७३:१४ व १८ के कथन भी पढ़ें| अल्लाह महान व सर्वज्ञ कैसे है? मुसलमान बताएं|
अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या|
तस्यां हिरण्ययः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः||
अथर्ववेद;१०.२.३१.
अर्थ – (अष्टचक्रा, नव द्वारा अयोध्या देवानां पूः) आठ चक्र और नौ द्वारों वाली अयोध्या देवों की पुरी है, (तस्यां हिरण्ययः कोशः) उसमें प्रकाश वाला कोष है , (स्वर्गः ज्योतिषा आवृतः) जो आनन्द और प्रकाश से युक्त है|
२०वीं सदी के मीरजाफर पाकपिता – राष्ट्रहंता बैरिस्टर मोहनदास करमचन्द गांधी, पाकिस्तान जिसकी लाश पर बन सकता था, ने हमारे पूर्वजों के ९० वर्षों के स्वातन्त्रय युद्ध का अपहरण कर लिया. मात्र हम ही नहीं! ५३ देशों के उपनिवेशवासी आज भी ब्रिटिश उपनिवेश की प्रजा हैं. विवरण के लिए नीचे की लिंक क्लिक करें:-
ब्रिटिश नागरिकता अधिनियम १९४८ के अंतर्गत हर उपनिवेशवासी, चाहे मुसलमान या ईसाई ही क्यों न हो, नागरिकता विहीन बर्तानियों की प्रजा है| क्योंकि उपनिवेशवासी बिना पारपत्र एवं वीसा के ब्रिटेन में नहीं घुस सकता.
उपनिवेश किसे कहते हैं?
उपनिवेश (कालोनी) किसी राज्य के बाहर की उस दूरस्थ बस्ती को कहते हैं जहाँ उस राज्य की जनता निवास करती है।
उपनिवेश का विरोध भारतीय दंड संहिता की धारा १२१ के अधीन फांसी का अपराध है. यानी कि आप की मृत्यु पक्की.
मैंने आर्यावर्त सरकार का गठन किया है. उपनिवेश से मुक्ति के लिए युद्धरत हूँ. इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा १२१ का अपराधी हूँ.
विवरण के लिए नीचे की लिंक क्लिक करें:-
विवरण के लिए नीचे धारा का उल्लेख है:-
121. भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना–जो कोई 1[भारत सरकार] के विरुद्ध युद्ध करेगा, या ऐसा युद्ध करने का प्रयत्न करेगा या ऐसा युद्ध करने का दुष्प्रेरण करेगा, वह मॄत्यु या 2[आजीवन कारावास] से दंडित किया जाएगा 3[और जुर्माने से भी दंडनीय होगा] ।
पद, प्रभुता व पेट के लोभमें राष्ट्रपति व राज्यपाल,  भारतीय संविधान और कानूनों को संरक्षण, पोषण व संवर्धन देनेकेलिए, संविधान के अनुच्छेदों ६० व १५९ के अंतर्गत, शपथ द्वारा विवश कर दिए गए हैं|
जिस मूसा के मानसपुत्र(छल रचना) जेहोवा ने अपने अनुयायियों को मूर्ख बनाया (बाइबल, उत्पत्ति २:१७) और वीर्यहीन कर दिया, (बाइबल, उत्पत्ति १७:११), वह एलिजाबेथ का सेकुलर यानी पंथनिरपेक्ष भगवान है! जो ऐसा नहीं मानता उसे लोकसेवक नष्ट करते हैं.
सन १९४७ के सत्ता के हस्तान्तरण के उपरांत ईसाई व मुसलमान सहित इंडिया का हर उपनिवेशवासी एलिजाबेथ का दास बलिपशु है. किसी के पास जीवित रहने व सम्पत्ति और पूँजी रखने का अधिकार ही नहीं है| नमो के नेतृत्व में एलिजाबेथ ने लोकसेवकों की एक सेना बना रखी है, जो दिए की लौ पर मरने वाले पतिंगों की भांति पद, प्रभुता और पेट के लोभ में अपना जीवन, सम्पत्ति, नारियां, वैदिक सनातन संस्कृति और धरती गवाने के लिए विवश हैं. इनको किसी शत्रु की आवश्यकता नहीं है.
यह जानते हुए भी कि बलिपशु को कत्ल होना है, वह अपनी रक्षा नहीं कर सकता. बलि देने, दिलाने और देखने वालों को बलिपशु के प्रति सहानुभूति नहीं होती. किसी को भी पाप अथवा अपराध बोध नहीं होता. अपितु सभी को बलि देना एक अत्यंत पवित्र धार्मिक कृत्य प्रतीत होता है.
दासता से मुक्ति हेतु युद्ध.
मैकाले ने निःशुल्क ब्रह्मचर्य के शिक्षा केंद्र गुरुकुलों को मिटाकर, किसान द्वारा सांड़ को बैल बनाकर दास के रूप में उपयोग करने की भांति, महँगी वीर्यहीन करने वाली यौनशिक्षा थोपकर मानवमात्र को अशक्त तो सन १८३५ के बाद ही कर दिया|
२६ जनवरी, १९५० से, माउन्टबेटन ने, इंद्र के मेनका की भांति, अपनी पत्नी एडविना को नेहरू व जिन्ना को सौंप कर, ब्रिटिश उपनिवेश इंडिया पर मृत्यु के फंदे व परभक्षी भारतीय संविधान को लादकर आप को अशक्त और पराजित कर रखा है|
माउन्टबेटन ने मानवमात्र से उन की अपनी ही धरती छीन कर ब्रिटिश उपनिवेश बना लिया| मजहब के आधार पर पुनः दो भाग कर इंडिया और पाकिस्तान बना दिया| (भारतीय स्वतंत्रता (उपनिवेश) अधिनियम, १९४७). माउन्टबेटन को इससे भी संतुष्टि नहीं हुई| उसने मौत के फंदे व परभक्षी भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) का संकलन करा कर, मानवमात्र को कत्ल होने के लिए, सदा सदा के लिए इंडिया के मानवमात्र की धरती और सम्पत्ति छीन कर, कुटिलता पूर्वक संयुक्त रूप से मुसलमानों और ईसाइयों को सौंप दिया| लेकिन अंततोगत्वा उपनिवेशवासी के पास कुछ नहीं छोड़ा. भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३९(ग) उपनिवेशवासी को धन व उत्पादन के साधन रखने का अधिकार नहीं देता| “३९(ग)- आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले कि जिससे धन व उत्पादन के साधनों का सर्वसाधारण के लिए अहितकारी संकेंद्रण न हो;” ईशनिंदा और कत्ल करने की शिक्षा देने का अधिकार ईसाइयों/मुसलमानों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) से प्राप्त है और राष्ट्रपति और राज्यपाल को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ के अधीन ईशनिन्दकों को संरक्षण देने का उत्तरदायित्व सौंपा गया है.
राष्ट्रपति और राज्यपाल वैदिक सनातन संस्कृति को समूल नष्ट करने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) व दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ द्वारा ईसाइयत और इस्लाम का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद ६० व १५९ के अधीन विवश कर दिए गये हैं|
जहाँ भारतीय संविधान का अनुच्छेद २९(१) मनुष्य को वीर्यहीन करने वाले इन संस्कृतियों को बनाये रखने का असीमित मौलिक अधिकार देता है, वहीं ब्रिटिश उपनिवेशवासी इंडिया के प्रथम दास प्रणब और राज्यपालों का मनोनयन वैदिक सनातन धर्म को समूल नष्ट करने के लिए स्थापित ईसाइयत और इस्लाम का परिरक्षण {भारतीय संविधान का अनुच्छेद २९(१) व दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६}, संरक्षण {अल्पसंख्यक आयोग, मुस्लिम निजी कानून व वक्फ} और प्रतिरक्षण {अज़ान और मस्जिद की प्रतिरक्षा, मदरसों, उर्दू शिक्षकों, मस्जिदों से अज़ान द्वारा ईशनिंदा व काफिरों को कत्ल करने की शिक्षा देने के बदले वेतन और हज अनुदान} करने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद ६० व १५९ के अधीन विवश कर दिए गये हैं| अतएव अपनी नारियों को ईसाइयत और इस्लाम को सौंप चुके हैं| अपनी सम्पत्ति और पूँजी से अपना अधिकार गवां चुके हैं| एलिजाबेथ ने प्रणब दा का मनोनयन इंडिया के सारे नागरिकों को एलिजाबेथ की भेंड़ बनाने के लिए किया है| इंडिया के संत और कथावाचक वीर्यहीन करने वाली इन संस्कृतियों को ईश्वर तक पहुंचने के अलग अलग मार्ग बताते हैं| पादरी और ईमाम अपने चर्च और मस्जिदों से ईश्वर की निंदा करते हैं और वैदिक सनातन संस्कृति के अनुयायियों के हत्या की खुल्लमखुल्ला घोषणा करते हैं, उनके विरुद्ध राष्ट्रपति और राज्यपाल कोई कार्यवाही नहीं करते, लेकिन जो भी चर्चों और मस्जिदों का विरोध करता है, उसे पद, प्रभुता और पेट के लिये हर लोकसेवक संरक्षण देने के लिये विवश है| चर्च, बाइबल, मस्जिद और कुरान का विरोध करने के कारण आर्यावर्त सरकार के ९ अधिकारी २००८ से जेलों में बंद हैं| मेरे विरुद्ध अब तक ५० अभियोग चले, जिनमे से ५ आज भी लम्बित हैं.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) से प्राप्त अधिकार से अपने मजहब कापालन करते हुए ईसाई Inquisition और बपतिस्मा में लिप्त है और मुसलमान अज़ान और खुत्बों में.
इनके विरोध को निष्फल करने के लिए भारतीय  दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ का संकलन किया गया है| इन धाराओं का नियंत्रण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ के अंतर्गत एलिजाबेथ के मातहतों राष्ट्रपति और राज्यपाल के एकाधिकार में है| राष्ट्रपति और राज्यपाल भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) व दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद ६० व १५९ के अधीन विवश हैं| अतएव दोनों आततायी हैं| अतएव जब तक भारतीय संविधान है, आप की हत्या होती रहेगी|
इंडिया एलिजाबेथ का उपनिवेश है| माननीय प्रधानमंत्री नमो सहित प्रत्येक उपनिवेश वासी एलिजाबेथ का दास है| एलिजाबेथ का उपनिवेश न तो ईसाई व मुसलमान सहित किसी उपनिवेशवासी को जीने का अधिकार देता है {भारतीय संविधान का अनुच्छेद २९(१)} और न सम्पत्ति और उत्पादन के साधन रखने का| {भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३९(ग)}. यदि उपनिवेशवासी दासता की बेड़ियों से मुक्ति चाहें तो भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, १९४७ व भारतीय संविधान के अनुच्छेद ६ (ब)(।।) को निरस्त करने में आर्यावर्त सरकार की सहायता करें| अगर उपनिवेशवासी उपनिवेश से मुक्ति के इस युद्ध में आर्यावर्त सरकार का साथ नहीं देंगे तो डायनासोर की भांति लुप्त हो जायेंगे. याद रखें नमो यह कार्य नहीं कर सकते|
भारतीय संविधान का अनुच्छेद २९(१) मानवजाति के अस्तित्व को मिटाने के लिए संकलित किया गया है. उपनिवेशवासियों की समस्या अब्रह्मी संस्कृतियाँ हैं. पैगम्बरों के आदेश और अब्रह्मी संस्कृतियों के विश्वास के अनुसार दास विश्वासियों द्वारा अविश्वासियों को कत्ल कर देना ही अविश्वासियों पर दया करना और स्वर्ग, जहाँ विलासिता की सभी वस्तुएं प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, प्राप्ति का पक्का उपाय है.
कौन हैं वे, जिन्हें गांधी ने इंडिया में रोका? उनका लक्ष्य और उनकी उपलब्धियां क्या हैं? उनको पन्थनिरपेक्ष यानी सेकुलर, सर्वधर्मसमभाववादी व गंगा जमुनी संस्कृति का अंग मानने का आधार क्या है? विवरण के लिए नीचे की लिंक क्लिक करें:-
गांधी वध के बाद भारतीय संविधान का संकलन कर हम पर थोपा गया. जिसका अनुच्छेद २९(१) मानवजाति को लुप्त करने के लिए संकलित किया गया है. वह भी अत्यंत धूर्तता से. यह अनुच्छेद इस कठोर सच्चाई को सीधे नहीं कहता. अपितु इंडिया में रहने वाले अल्पसंख्यक वर्गों के संस्कृति भाषा व लिपि को बनाये रखने का असीमित मौलिक मजहबी अधिकार देता है. वे अल्पसंख्यक ईसाई व मुसलमान हैं, जो विश्व में प्रथम एंड द्वितीय जनसंख्या वाले लोग हैं. मानवमात्र की लूट, हत्या, धर्मान्तरण और नारी बलात्कार जिनकी संस्कृति है. हमारा साम्राज्य पूरे विश्व में था, आज हमारा कोई देश नहीं है.
अनुच्छेद २९(१) इस कठोर सच्चाई को सीधे नहीं कहता. अपितु इंडिया में रहने वाले, जिन अल्पसंख्यक वर्गों के संस्कृति भाषा व लिपि को बनाये रखने का असीमित मौलिक मजहबी अधिकार देता है, वे अल्पसंख्यक ईसाई व मुसलमान हैं, वे विश्व में प्रथम एंड द्वितीय जनसंख्या वाले लोग हैं. मानवमात्र की लूट, हत्या, धर्मान्तरण और नारी बलात्कार उनकी संस्कृति है.
आप के प्राइवेट प्रतिरक्षा (भारतीय दंड संहिता की धाराएँ ९७, १०२ व १०५) के अधिकार को राष्ट्रपति और राज्यपालों ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ के अधिकार से आप से छीन लिया है| राष्ट्रपति व राज्यपाल दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ के अधीन अजान द्वारा आप को गाली दिलवाने के लिए विवश हैं| आप को अपने वैदिक सनातन धर्म की रक्षा का कोई अधिकार नहीं है|
१८६० से ही मस्जिदों और चर्चों से ईशनिंदा का प्रसारण और जातिहिंसक शिक्षायें भारतीय  दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ के अधीन राज्य के विरुद्ध अपराध नहीं मानी जाती| लेकिन भारतीय  दंड संहिता की धाराओं १०२ व १०५ के अधीन अपराधी संस्कृतियों ईसाइयत और इस्लाम का विरोध भारतीय  दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ के अधीन राज्य के विरुद्ध गैर जमानती संज्ञेय अपराध है|
लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा १०२ इंडिया के प्रत्येक उपनिवेशवासी को प्राइवेट प्रतिरक्षा का कानूनी अधिकार देती है और प्राइवेट प्रतिरक्षा में किया गया कोई कार्य भारतीय दंड संहिता की धारा ९६ के अनुसार अपराध नहीं है| फिर भी दंड का अधिकार राज्य के पास होता है| आर्यावर्त सरकार की स्थापना उपनिवेशवासी के जान-माल के रक्षा के लिए की गई है|
भारतीय दंड संहिता की धारा १०२ से प्राप्त कानूनी अधिकार से मैं सन १९९१ आज तक चर्च, बपतिस्मा, मस्जिद, अज़ान और खुत्बों का विरोध कर रहा हूँ.
 भारतीय संविधान का संकलन एक धोखा है| इसका संकलन वैदिक सनातन धर्म को मिटाने के लिए किया गया है| इंडिया आज भी ब्रिटिश उपनिवेश है{भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, १९४७ व भारतीय संविधान का अनुच्छेद६(ब)(||)} और राष्ट्रकुल का एक सदस्य भी| स्वतंत्र कोई नहीं| विवरण के लिए नीचे की लिंक क्लिक करें:-
क्या आप उपनिवेश और बाइबल, कुरान और भारतीय संविधान का विरोध कर सकते हैं?
गुरुकुल, गौ, गंगा और गायत्री वैदिक सनातन संस्कृति के चार स्तंभ हैं.
क्या आप अपने बेटे को निःशुल्क गुरुकुल में शिक्षा दिला सकते हैं?
क्या किसान बैल से खेती कर सकता है?
क्या आप गंगा में गंदे नालों को जोड़ने से रोक सकते हैं?
क्या आप वेदों की माता गायत्री का जप करते हैं?
उपरोक्त में से आप एक भी कार्य कर सकें, तो अब्रह्मी संस्कृतियों के विरोध का साहस करें, अन्यथा मिटने के लिए तैयार रहें.
चरित्र के नए मानदंड
वस्तुतः हम वैदिक पंथियों ने ज्ञान के वृक्ष का फल खा लिया है| (बाइबल,उत्पत्ति २:१७) व (कुरान २:३५). हमारे लिए मूर्खों के स्वर्ग का दरवाजा सदा के लिए बंद हो गया है|
वैदिक सनातन संस्कृति की मान्यता है कि यदि आप का धन गया तो कुछ नहीं गया| यदि आप का स्वास्थ्य गया तो आधा चला गया| लेकिन यदि आप का चरित्र गया तो सब कुछ चला गया| इसके विपरीत भारतीय संविधान से पोषित इस्लाम, समाजवाद व लोक लूट तंत्र ने मानव मूल्यों व चरित्र की परिभाषाएं बदल दी हैं। इस्लाम, समाजवाद और प्रजातंत्र अपने अनुयायियों में अपराध बोध को मिटा देते हैं। ज्यों ही कोई व्यक्ति इन मजहबों या कार्लमार्क्स के समाजवाद अथवा प्रजातंत्र में परिवर्तित हो जाता है, उसके लिए लूट, हत्या, बलात्कार, दूसरों को दास बनाना, गाय खाना, आदमी खाना आदि अपराध नहीँ रह जाता, अपितु वह जीविका, मुक्ति, स्वर्ग व गाजी की उपाधि का सरल उपाय बन जाता है।
सम्पति पर व्यक्ति का अधिकार नहीं रहा।  जिसकी भी चाहें सम्पत्ति लूटिये [(बाइबल ब्यवस्था विवरण २०:१३-१४), (कुरान ८:१, ४१ व ६९) व [भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३१ (अब २०.६.१९७९ से लुप्त) व अनुच्छेद ३९ग]. अब्रह्मी संस्कृतियों में आस्था व्यक्त (दासता स्वीकार) कीजिए| दार-उल-हर्ब इंडिया को दार-उल-इस्लाम बनाइए| (कुरान ८:३९). किसी भी नारी का बलात्कार कीजिए| (बाइबल, याशयाह १३:१६) व (कुरान २३:६). इतना ही नहीं – बेटी (बाइबल १, कोरिन्थिंस ७:३६) से विवाह व पुत्रवधू (कुरान,३३:३७-३८) से निकाह कीजिए| अल्लाह तो ५२ वर्ष के मुसलमान का ६ वर्ष की कन्या से निकाह कर देता है| किसी का भी उपासना स्थल तोड़िये| [(बाइबल, व्यवस्था विवरण १२:१-३) व (कुरान, बनी इस्राएल १७:८१ व कुरान, सूरह अल-अम्बिया २१:५८)]. वह भी भारतीय संविधान, कुरान, बाइबल और न्यायपालिका के संरक्षण में! कोई जज बाइबल और कुरान के विरुद्ध सुनवाई नहीं कर सकता. (एआईआर, कलकत्ता, १९८५, प१०४).
भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) का संकलन कर वैदिक सनातन धर्म के अनुयायियों की आर्थिक व धार्मिक स्वतंत्रता, धरती, देश, सम्पत्ति व नारियों उनसे चुरा कर संयुक्त रूप से ईसाइयों व मुसलमानों को सौँप दिया गया है| हम वैदिक सनातन संस्कृति के अनुयायी पंक्ति बना कर अपनी नारियां और सम्पत्तियां विजेता को सौंपने के लिए विवश हैं| दास मुसलमान और ईसाई लोगों को लड़ कर यह निर्णय कर लेना चाहिए कि अभागे वैदिक सनातन संस्कृति के अनुयायियों की नारियां और सम्पत्तियां ईसाई ले जायेंगे अथवा मुसलमान?
अंग्रेजों की कांग्रेस ने भारतीय संविधान, जिसने राज्यपालों, जजों वलोकसेवकों की पद, प्रभुता और पेट को वैदिक सनातन धर्म के समूल नाशसे जोड़ दिया है, का संकलन कर जिन अनुच्छेदों २९(१), ६० व १५९ और भारतीय दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ व दंड प्रक्रिया संहिता कीधारा १९६ द्वारा अब्रह्मी संस्कृतियों को उनकी हत्या, लूट और बलात्कार की संस्कृतियों को बनाये रखने का मौलिक अधिकार दे कर इंडिया में रोकाहै और विकल्पहीन दया के पात्र जजों, सांसदों, विधायकों और लोक सेवकों ने जिस भारतीय संविधान में आस्था व निष्ठा की शपथ ली है (भारतीयसंविधान, तीसरी अनुसूची), उन्होंने जहां भी आक्रमण या घुसपैठ की, वहाँकी मूल संस्कृति को नष्ट कर दिया| लक्ष्य प्राप्ति में भले ही शताब्दियाँ लगजाएँ, अब्रह्मी संस्कृतियां आज तक विफल नहीं हुईं|
अब्रह्मी संस्कृतियाँ रहेंगी तो मानवजाति बचेगी नहीं| ईसाई मुसलमान को कत्ल करेगा व मुसलमान ईसाई को| अंततः एलिजाबेथ अपने ही प्रोटेस्टेंट व अन्य समुदाय को कत्ल करेगी| मानवजाति को बचाने के लिए अब्रह्मी संस्कृतियों का समूल नाश जरूरी है|
मस्जिदों से अज़ान और खुत्बों द्वारा अविश्वासियों के विरुद्ध जो भी कहा जाता है, वह सब कुछ भारतीय दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ के अंतर्गत अपराध ही है, जो सन १८६० ई० में इनके अस्तित्व में आने के बाद से आज तक, मस्जिदों या ईमामों पर कभी भी लागू नहीं की गईं| षड्यंत्र स्पष्ट है| वैदिक सनातन संस्कृति को नष्ट करना है|
किसी का जीवन सुरक्षित नहीं है। (बाइबल, लूका १९:२७) व (कुरआन ८:१७) – जिसके विरुद्ध कोई जज सुनवाई ही नहीं कर सकता| मस्जिद, अज़ान और खुत्बे भारतीय दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ के अपराध से मुक्त हैं| भारतीय  दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ का नियंत्रण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ के अंतर्गत एलिजाबेथ के दासों राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास है| – लेकिन मस्जिद, अज़ान और खुत्बों का विरोध भारतीय दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ के अधीन संज्ञेय गैर जमानती अपराध है यानी मानवता को मिटाने के लिए अज़ान, धर्मान्तरण, मस्जिद और चर्च लोक लूट तंत्र के चारो स्तम्भों द्वारा प्रायोजित व संरक्षित है|  (एआईआर, कलकत्ता, १९८५, प१०४).
संविधान के अनु० ३१ प्रदत्त सम्पत्ति के जिस अधिकार को अँगरेज़ व संविधान सभा के लोग न लूट पाए, उसे सांसदों और जजों ने मिल कर लूट लिया (एआईआर, १९५१, एससी ४५८) व अब तो इस अनुच्छेद को २०-६-१९७९ से भारतीय संविधान से ही मिटा दिया गया है| अज़ान और खुत्बों द्वारा जो सबके गरिमा का हनन करते हैं, उन ईमामों के गरिमा और जीविका की रक्षा के लिए,भारतीय संविधान के अनुच्छेद २७ का उल्लंघन कर वेतन देने का आदेश न्यायपालिका ने ही पारित किया है| (एआईआर, एससी, १९९३, प० २०८६). हज अनुदान को भी सर्वोच्च न्यायलय कानूनी मान्यता दे चुकी है| (प्रफुल्ल गोरोडिया बनाम संघ सरकार,http://indiankanoon.org/doc/709044/).
बिना प्रमाण तो जज व क़ाज़ी भी निर्णय नहीं करता! फिरभी आप खूनी, लुटेरे और बलात्कारी जेहोवा और अल्लाह को बिना प्रमाण ईश्वर मानने के लिए विवश कर दिए गए हैं? मूसा द्वारा गढे जेहोवा और मोहम्मद द्वारा गढे अल्लाह ने मानवमात्र को एक दूसरे का जानी शत्रु बना दिया है.जिस स्वतंत्रता के लिए हमारे पूर्वजों ने ९० वर्षों तक संघर्ष किया, वह किसी व्यक्ति को कभी मिली ही नहीं और न ईसाइयत और इस्लाम के अस्तित्व में रहते कभी मिल ही सकती है| क्यों कि,
ईसाई सहित केवल उन्हें ही जीवित रहने का अधिकार है, जो ईसा का दास बने. (बाइबल, लूका १९:२७) और अल्लाह व उसके इस्लाम ने मानव जाति को दो हिस्सों मोमिन और काफ़िर में बाँट रखा है. धरती को भी दो हिस्सों दार उल हर्ब और दार उल इस्लाम में बाँट रखा है. (कुरान ८:३९) काफ़िर को कत्ल करना व दार उल हर्ब धरती को दार उल इस्लाम में बदलना मुसलमानों का मजहबी अधिकार है. (एआईआर, कलकत्ता, १९८५, प१०४). चुनाव द्वारा इनमें कोई परिवर्तन सम्भव नहीं|
देश की  छाती पर सवार जेसुइट आतताई और गो-नरभक्षी (बाइबल, यूहन्ना ६:५३) मल्लिका एलिजाबेथ ने निम्नलिखित शपथ ली हुई है:-
“… मै यह भी प्रतिज्ञा करती हूँ कि जब भी अवसर आएगा, मै खुले रूप में पंथद्रोहियों से, फिर वे प्रोटेस्टैंट हों या उदारवादी, पोप के आदेश के अनुसार, युद्ध करूंगी और विश्व से उनका सफाया करूंगी और इस मामले में मै न उनकी आयु का विचार करूंगी, न लिंग का, न परिस्थिति का| मै उन्हें फांसी पर लटकाऊंगी, उन्हें बर्बाद करूंगी, उबालूंगी, तलूंगी और (उनका) गला घोटूंगी| इन दुष्ट पंथ द्रोहियों को जिन्दा गाडून्गी| उनकी स्त्रियों के पेट और गर्भाशय चीर कर उनके बच्चों के सिर दीवार पर टकराऊँगी, जिससे इन अभिशप्त लोगों की जाति का समूलोच्छेद हो जाये| और जब खुले रूप से ऐसा करना सम्भव न हो तो मै गुप्त रूप से विष के प्याले, गला घोटने की रस्सी, कटार या सीसे की गोलियों का प्रयोग कर इन लोगों को नष्ट करूंगी| ऐसा करते समय मै सम्बन्धित व्यक्ति या व्यक्तियों के पद, प्रतिष्ठा, अधिकार या निजी या सार्वजनिक स्थिति का कोई विचार नहीं करूंगी| पोप, उसके एजेंट या जीसस में विश्वास करने वाली बिरादरी के किसी वरिष्ठ का जब भी, जैसा भी निर्देश होगा, उसका मै पालन करूंगी|” विशेष विवरण नीचे की लिंक पर पढ़ें,
ईसा १० करोड़ से अधिक अमेरिकी लाल भारतीयों और उनकी माया संस्कृति को निगल गया. अब ईसा की भेंड़ एलिजाबेथ काले भारतीयों और उनकी वैदिक संस्कृति को निगल रही है| एलिजाबेथ के सहयोग से अर्मगेद्दन के पश्चात ईसा जेरूसलम को अपनी अंतर्राष्ट्रीय राजधानी बनाएगा| मुलायम के प्रिय इस्लाम सहित सभी मजहबों और संस्कृतियों को निषिद्ध कर देगा| केवल ईसा और उसके चित्र की पूजा हो सकेगी| बाइबल के अनुसार ईसा यहूदियों के मंदिर में ईश्वर बन कर बैठेगा और मात्र अपनी पूजा कराएगा| हिरण्यकश्यप की दैत्य संस्कृति न बची और केवल उसी की पूजा तो हो न सकी, अब ईसा की बारी है| विशेष विवरण नीचे की लिंक पर पढ़ें,
मस्जिदों से ईमाम और मौलवी  मुसलमानों को शिक्षा देते हैं कि गैर-मुसलमानों को कत्ल कर दो| इतना ही नहीं, मस्जिद से इस्लामी सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए पाकिस्तानी मौलिक धर्मतंत्री सैयद अबुल आला मौदूदी घोषित करता है कि इस्लाम विश्व की पूरी धरती चाहता है – उसका कोई भूभाग नहीं, बल्कि पूरा ग्रह – इसलिए नहीं कि ग्रह पर इस्लाम की सार्वभौमिकता के लिए तमाम देशों को आक्रमण कर छीन लिया जाये बल्कि इसलिए कि मानव जाति को  इस्लाम  से, जो कि मानव मात्र के सुख-समृद्धि(?) का कार्यक्रम है, लाभ हो|
मौदूदी जोर दे कर कहता है कि यद्यपि गैर-मुसलमान झूठे मानव निर्मित मजहबों को मानने के लिए स्वतन्त्र हैं, तथापि उनके पास अल्लाह के  धरती के किसी भाग पर अपनी मनुष्य निर्मित गलत धारणा की हुकूमत चलाने का कोई अधिकार नहीं| यदि वे (काफ़िर) ऐसा करते हैं, तो मुसलमानों की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वे काफिरों की राजनैतिक शक्ति छीन लें और उनको (काफिरों को) इस्लामी तौर तरीके से जीने के लिए विवश करें|
उपरोक्त संस्कृतियों को बनाये रखने का भारतीय संविधान का अनुच्छेद २९(१) हर ईसाई व मुसलमान को असीमित मौलिक अधिकार देता है| यानी कि आप ईसाई या मुसलमान सहित जो भी हों, एलिजाबेथ या हामिद अंसारी आप को कत्ल करेंगे.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद ६० के अधीन प्रत्येक राष्ट्रपति और अनुच्छेद १५९ के अधीन राज्यपाल शपथ/प्रतिज्ञान लेता है, “मैं … पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूँगा|”
जो सबके गरिमा का हनन करते हैं, उन ईमामों के गरिमा और जीविका की रक्षा के लिए, भारतीय संविधान के अनुच्छेद २७ का उल्लंघन कर वेतन देने का आदेश न्यायपालिका ने ही पारित किया है| (एआईआर, एससी, १९९३, प० २०८६) भारतीय संविधान, कुरान और बाइबल को संरक्षण न्यायपालिका (एआईआर, कलकत्ता, १९८५,  प१०४) ने ही दिया है| यानी मानवता को मिटाने के लिए अजान, धर्मान्तरण, मस्जिद और चर्च प्रायोजित व संरक्षित है| आप को बचाने वाला कोई नहीं!
१४३६ वर्ष पूर्व मुसलमान नहीं थे. सभी मुसलमान स्वधर्म त्यागी हैं. इस्लामी हठधर्म स्वधर्मत्यागी को कत्ल करता है. (कुरान ४:८९). हमारे पूर्वजों से भूल हुई है. उन्होंने इस्लाम की हठधर्मी को मुसलमानों पर लागू नहीं किया. हर काफ़िर आर्यावर्त सरकार को सहयोग दे. आर्यावर्त सरकार मुसलमानों की हठधर्मी मुसलमानों पर लागू करेगी. मुसलमान या तो इस्लाम छोड़ें या इंडिया.
यानी एलिजाबेथ ने इन खूंखार आतताई संस्कृतियों ईसाइयत और इस्लाम से मिल कर मानव जाति के अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया है|
अमेरिका आज भी है, लेकिन अमेरिकी लाल भारतीय और उनकी संस्कृति मिट गई| इंडिया तो रहेगा लेकिन पाठक – उनकी वैदिक सनातन संस्कृति न रहेगी| इसका प्रबंध तो भारतीय संविधान का अनुच्छेद २९(१) बनाकर कर दिया गया है| ईसाइयत और इस्लाम को आप को मिटाने में अड़चन न आये – इसीलिए भारतीय  दंड संहिता की धाराएं १५३ व २९५ बना कर उनको दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ के अधीन राष्ट्रपति और राज्यपाल के नियंत्रण में रखा गया है|
तबके न्यायिक जांच और अल्लाह के (इल्हाम) संदेश ने आज ईशनिंदा और राज्य के विरुद्ध अपराध ने ले लिया है| ईसाई और मुसलमान ईशनिंदा के अपराध में आत्मरक्षा के लिए विरोध करने वालों को कत्ल कर रहे हैं और राष्ट्रपति और राज्यपाल भारतीय दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ के अपराध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ के अधीन संस्तुति देकर ईसाइयत और इस्लाम को संरक्षण देने के लिये विवश हैं|
फिर भी आप लज्जित नहीं और न कुछ कर सकते हैं| फिर भी भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, १९४७ और भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) का १९४७ से आज तक एक भी विरोधी का किसी को ज्ञान नहीं है! जानते हैं क्यों? क्यों कि ईसाइयत और इस्लाम का एक भी आलोचक जीवित नहीं छोड़ा जाता| गैलेलियो हों या आस्मा बिन्त मरवान| सबके विरोध को दबा दिया गया| विशेष विवरण नीचे की लिंक पर पढ़ें,

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