विशेष सुरक्षा समूह यानी स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रूप -एसपीजी- संशोधन बिल को लोकसभा ने हरी झंडी देकर एकदम सही काम को अंजाम दिया है । नये प्रावधानों के तहत अब यह सुरक्षा कवर सिर्फ प्रधानमंत्री और उनके साथ रह रहे उनके परिजनों को ही मिलेगी। यानि नरेन्द्र मोदी के साथ उनके परिवार का कोई सदस्य नहीं रहता तो उन्हें नहीं मिलेगी I नये प्रावधानों के तहत पूर्व प्रधानमंत्रियों को भी पद छोड़ने के बाद 5 साल तक ही एसपीजी की सुरक्षा कवर दी जाएगी। पिछले दिनों इस संशोधन मसौदे पर जब केंद्रीय कैबिनेट ने मुहर लगाई तो तभी से इसको लेकर हंगामा शुरू हो गया था । मैं तो पिछले कई वर्षों से इस विषय पर अनेकों लेख लिखता ही रहा था I अब कहीं जाकर मेरी बात सुनी गई I एक ओर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आरोप लगाते रहे कि यह सब राजनीति से प्रेरित है, दूसरी ओर उससे जुड़े संगठन विरोध प्रदर्शन भी करते रहे। एक गलत धारणा बनाने की कोशिश भी की गयी कि गांधी परिवार की सुरक्षा ही हटाई जा रही है जबकि, यह झूठा प्रचार था । कांग्रेस ने लोकसभा में इसके संशोधन चर्चा में तीखा विरोध भी प्रदर्शित किया। असल में यह सब, सच पर पर्दा डालने की राजनीतिक चतुराई ही ज्यादा थी। जनता को समझने और समझाने की जरूरत यह है कि एसपीजी संशोधन बिल लाने की आवश्यकता ही क्यों पड़ी। इससे पहले यह भी जिक्र करना भी उचित रहेगा कि स्वयं कांग्रेस ने इसके प्रावधानों में कई संशोधन किए और सभी में अपनी सुविधा और गाँधी परिवार की सुविधा के हिसाब से चीजों को बदला और जोड़ा-तोड़ा। अब जहां तक ताजा संशोधन की बात है उसमें गौर करने वाली बात यह है कि स्वयं गांधी परिवार के लोगों ने पिछले चार सालों में करीब 6 हजार बार बिना एसपीजी को बताये ही यात्राएं कीं और एसपीजी की सुरक्षा नियमों की धज्जियां उडायीं । केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह सवाल भी उठाया कि आखिर गाँधी परिवार के पास क्या राज था जो सुरक्षा एजेंसियों से छिपाया जा रहा था। इसके अलावा चर्चा के दौरान गृह मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि गाँधी परिवार के सुरक्षा घेरे में कोई कटौती नहीं की जा रही है, बस एसपीजी का दुरूपयोग रोका जा रहा है।
असल में जैसा कांग्रेस प्रचारित कर रही है, वैसा है ही नहीं। गांधी परिवार हो या फिर पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, उनका एसपीजी कवर वापसी का निर्णय कोई रातोंरात नहीं लिया गया। केंद्र सरकार ने यह कदम सुरक्षा विशेषज्ञों की समिति द्वारा गहन समीक्षा के बाद ही उठाया है। केंद्र सरकार का यह भी दावा है कि स्वयं गांधी परिवार ने ही अनेक बार एसपीजी नियमों का उल्लंघन किया।
एसपीजी अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार ही पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवार को उपलब्ध कराई गई एसपीजी सुरक्षा की वार्षिक समीक्षा अनिवार्य है। सरकार के इस फैसले के बाद अब एसपीजी सुरक्षा घेरा केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनकी संतानों राहुल गांधी और प्रियंका के कुनबे के लिए उपलब्ध थीं I इनमें से प्रियंका गांधी वाड्रा किसी भी स्तर की निर्वाचित प्रतिनिधि तक भी नहीं हैं। वैसे भी एसपीजी एक्ट में पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवार की जो परिभाषा दी गई है, उसमें “दामाद” तो कहीं भी नहीं है। परिवार की परिभाषा में पति-पत्नी, नाबालिग बच्चे और निर्भर माता-पिता मात्र हैं। भारतीय कानूनों के मुताबिक बच्चों से मतलब नाबालिग पुत्र और अविवाहित पुत्री से ही होता है। अब सवाल यह है कि जब राहुल नाबालिग नहीं हैं और प्रियंका भी विवाहित हैं तो इनकी एसपीजी की सुरक्षा पर जनता के जो सैकड़ों करोड़ अब तक खर्च कर दिए गये उसे अब कौन भरेगा?
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की हत्या के बाद से उनके परिजनों को जिस तरह की सुरक्षा व्यवस्था मिली हुई है वह अभूतपूर्व है। मनमोहन सिंह ही नहीं, अतीत में पीवी नरसिंहराव, इंद्र कुमार गुजराल, एचडी देवगौड़ा और चंद्रशेखर से भी एसपीजी सुरक्षा वापस ले ली गई थी I उनके परिवारों के किसी सदस्य को भी यह सुरक्षा कभी भी नहीं दी गई I लेकिन, गांधी परिवार के चारों ओर से यह सुरक्षा चक्र अभी तक कम नहीं किया गया था ।
उल्लेखनीय है कि कई पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिजनों ने कई अवसरों पर यह सुरक्षा स्वेच्छा से भी वापस कर दी थी तो अनेक मामलों में यह सुरक्षा पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिजनों को मिला ही नहीं या उन्होंने कभी लिया ही नहीं। ऐसे उदाहरणों में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव के पुत्र पीवी राजेश्वरराव की चर्चा की जा सकती है जिनका निधन कुछ ही समय पहले हुआ था। वे 70 वर्ष के थे। श्रीराव कांग्रेस के पूर्व सांसद भी थे और उन्होंने तेलंगाना में कुछ शिक्षा संस्थानों की शुरुआत भी की थी। उन्हें कभी कोई स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप से सुरक्षा नहीं मिली। उनके बाकी भाई-बहनों को भी कभी एसपीजी सुरक्षा नहीं प्राप्त हुई। वे लगभग अनाम-अज्ञात इस संसार से कूच कर गए। राव की तरह से बाकी भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवार के सदस्य भी सामान्य नागरिक की तरह से ही जीवन बिता रहे हैं। इनमें उनके पत्नी और बच्चे भी शामिल हैं। डा.मनमोहन सिंह की पुत्री दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास पढ़ाती हैं। उन्होंने यह सुरक्षा सुविधा स्वेच्छा से लौटा दी थी। वह पहले सेंट स्टीफंस कालेज से भी जुड़ी थीं। एक अन्य पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के दोनों पुत्र भी बिना किसी खास सुरक्षा व्यवस्था के जीवन यापन कर रहे हैं। एक पुत्र नीरजशेखर तो अभी तक सपा सांसद थे और राज्यसभा से इस्तीफा देकर अब भाजपा से राज्य सभा में पुनर्निर्वाचित हुये हैं। यहाँ तक कि वर्तमान प्रघानमंत्री का पूरा परिवार भी आम नागरिक कीजिंदगी ही जी रहा है। उनकी माताजी भी एक सामान्य वृद्धा की तरह ही रह रही हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के परिवार को ही सबसे ज्यादा खर्चीली एसपीजी सुरक्षा का औचित्यक्या है? क्या बाकी प्रधानमंत्रियों के परिवार के सदस्यों की जान को किसी से कोई खतरा नहीं है? क्या वे पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं?
एसपीजी का गठन 1985 में बीरबल नाथ समिति की सिफारिश पर हुआ था। इसके पीछे कारण था तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के राजघाट जाने के दौरान झाड़ियों में छिपा बैठा एक सिरफिरा नौजवान, जो बाद में डाक्टरी जांच में पागल निकला। 8 अप्रैल, 1985 को आनन फानन में एक नए अत्याधुनिक सुरक्षा दस्ते एसपीजी का गठन हुआ। तत्कालीन स्थितियां भी गंभीर थीं। प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की निर्मम हत्या के बाद सुरक्षा व्यवस्था चौकन्ना थीI अब बात करते है एसपीजी एक्ट में बदलाव की साल 2002 में एक बड़ा संशोधन किया गया। इसमें व्यवस्था कर दी गई कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके परिवार (राहुल गांधी और प्रियंका गांधी और उनके कुनबे) को भी प्रधानमंत्री के स्तर की सुरक्षा मिलेगी। यानी सभी को सुरक्षा मिली जो संभवतः गैर जरूरी और खर्चीली थी। बता दें कि एसपीजी देश की सबसे पेशेवर एवं आधुनिकतम सुरक्षा बलों में से एक है। इसका मुख्यालय नयी दिल्ली में है। एसपीजी देश के पीएम के साथ भारत दौरे पर आए अति विशिष्ट अतिथि की सुरक्षा का जिम्मा संभालती है। इसके जवानों का चयन पुलिस, पैरामिलिट्री फोर्स से किया जाता है। आधुनिक हथियारों से लैस इसके कमांडों विशेषतौर पर प्रशिक्षित होते हैं।
वर्ष 2019-20 के बजट में एसपीजी के लिए 535 करोड़ की व्यवस्था की गई है। यह तो सिर्फ एसपीजी पर होने वाला सीधा खर्च है। लेकिन, ये एसपीजी कवर प्राप्त वीवीआईपी जहां भी जाते हैं उन राज्यों में पूरी कानून-व्यवस्था, बैरिकेडिंग, लम्बे-चौड़े कारवां आदि का खर्च इस बजट से भी कई गुना अधिक है। इस खर्च के मद्देनजर नेहरू-गांधी परिवार को इस सुरक्षा व्यवस्था के औचित्य पर सार्वजनिक बहस तो होनी ही चाहिए।
एसपीजी कवर हटाने संबंधी संशोधन प्रावधानों का जो लोग विरोध कर रहे हैं, उनकी जानकारी के लिए बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी लगातार देश से वीआईपी कल्चर को खत्म करने की बात करते रहे हैं। इसकी शुरूआत उन्होंने अपने ही मंत्रियों और नेताओं की गाड़ी से लाल बत्ती व हूटर हटवाकर की थी। वीआईपी कल्चर को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार लगातार वीआईपी लोगों की सुरक्षा में भी कटौती कर रही है। यही होना भी चाहिए I
आर.के. सिन्हा
(लेखक राज्यसभा सदस्य हैं)