Shadow

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हथियार, विरोधाभास और जोखिम में संसार

 इन हथियारों के प्रयोग में नैतिक विरोधाभास है, एआई हथियार प्रणालियों के नियंत्रण, सुरक्षा और जवाबदेही से समझौता करता है; यह नेटवर्क सिस्टम के बीच साझा दायित्व के जोखिम को भी बढ़ाता है, खासकर जब हथियार विदेशों से मंगाए जाते हैं। नीति निर्माण के लिए चुनौती है क्योंकि सैन्य सिद्धांत संघर्ष की पारंपरिक समझ पर आधारित है। उदा. यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि क्या मानव रहित समुद्री प्रणाली समुद्र के कानूनों के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के तहत “जहाजों” की स्थिति का आनंद लेती है।

-प्रियंका सौरभ

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उन कार्यों को पूरा करने वाली मशीनों की क्रिया का वर्णन करता है जिनके लिए ऐतिहासिक रूप से मानव बुद्धि की आवश्यकता होती है। इसमें मशीन लर्निंग, पैटर्न रिकग्निशन, बिग डेटा, न्यूरल नेटवर्क, सेल्फ एल्गोरिदम आदि जैसी तकनीकें शामिल हैं। डीप लर्निंग, डेटा एनालिटिक्स और क्लाउड कंप्यूटिंग द्वारा संचालित एआई, समुद्री युद्धक्षेत्र को बदलने के लिए तैयार है, जो संभावित रूप से भारत में सैन्य मामलों में क्रांति ला रहा है। .

मगर सदी के महान वैज्ञानिक रहे स्टीफन हॉकिंग ने भी एआई के विकास से होने वाले खतरों को लेकर हमें आगाह किया था। वहीं एलन मस्क का मानना है कि “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानवता के लिए सबसे बढ़िया और सबसे बुरी दोनों चीजें साबित हो सकती है।” आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से अभिप्राय एक ऐसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता से है जो खुद सोचने, समझने और चीजों को अंजाम देने में सक्षम होती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की टर्म को सर्वप्रथम 1955 में जॉन मैकार्थी ने उछाला था। आज इन्हें ही फादर ऑफ एआई कहा जाता है। एआई इंसानी दिमाग के तरह खुद से फैसले लेता है और काम करता है, हालांकि इसके लिए पहले कोडिंग की जरूरत होती है।

 एआई-समर्थित प्रणालियां दक्षता बढ़ाने, अपव्यय को कम करने और सेना के रसद प्रबंधन में समग्र लागत को कम करने में एक लंबा रास्ता तय कर सकती हैं। जैसे-जैसे साइबर युद्ध तेज, अधिक परिष्कृत और अधिक खतरनाक होता जाता है, सेना की अपनी संपत्ति और संचार लिंक की रक्षा के लिए और विरोधी सेनाओं की समान संपत्ति पर हमला करने के लिए आक्रामक और रक्षात्मक साइबर-युद्ध दोनों क्षमताओं को विकसित करना आवश्यक हो जाता है।

खुफिया, निगरानी और टोही में  “बुद्धिमान” मानव रहित सिस्टम का उपयोग कठोर इलाकों और मौसम की स्थिति में गश्त के लिए किया जा सकता है, बंदरगाह सुरक्षा प्रदान करता है, और मानव सैनिकों को बिना किसी खतरे के युद्ध के मैदान या संघर्ष क्षेत्र को स्काउट करने की अनुमति देता है।
यदि युद्ध मशीनों द्वारा लड़े जाते हैं तो ये हथियार सैनिकों की जान बचा सकते हैं। इसके अलावा, एक जिम्मेदार सेना के हाथों में, वे सैनिकों को केवल लड़ाकों को निशाना बनाने में मदद कर सकते हैं और अनजाने में दोस्ताना बलों, बच्चों और नागरिकों को मारने से बचा सकते हैं।

मगर इन हथियारों के प्रयोग में नैतिक विरोधाभास है, एआई हथियार प्रणालियों के नियंत्रण, सुरक्षा और जवाबदेही से समझौता करता है; यह नेटवर्क सिस्टम के बीच साझा दायित्व के जोखिम को भी बढ़ाता है, खासकर जब हथियार विदेशों से मंगाए जाते हैं। नीति निर्माण के लिए चुनौती है क्योंकि सैन्य सिद्धांत संघर्ष की पारंपरिक समझ पर आधारित है। उदा. यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि क्या मानव रहित समुद्री प्रणाली समुद्र के कानूनों के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के तहत “जहाजों” की स्थिति का आनंद लेती है।

दुनिया के किसी भी हथियार के मुकाबले रासायनिक हथियारों को ज्यादा खतरनाक माना जाता है। रासायनिक हथियार, डायनामाइट, टीएनटी या न्यूक्लियर हथियार से भी घातक हैं, क्योंकि इनकी मारक क्षमता सबसे अधिक होती है और ये हथियार आम जनता को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। केमिकल हथियार से किसी खास को टारगेट नहीं किया जा सकता, बल्कि यह पूरे शहर को तबाह कर सकता है। रासायनिक हथियार नजर नहीं आते लेकिन पूरे इलाके को खत्म कर सकते हैं। इनका प्रभाव सदियों तक रहता है। रासायनिक हथियार सस्ते भी होते हैं।

दुनियाभर में टर्मिनेटर स्टाइल में बनाए जा रहे स्मॉर्ट हथियारों को लेकर विशेषज्ञों ने चेतावनी जारी की है। अमेरिका के प्रसिद्ध कंप्यूटर विशेषज्ञ और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक स्टुअर्ट रसेल ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस किलिंग मशीनों से जोखिम इतना बड़ा है कि वह चाहते हैं कि उन पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। ये हथियार एक बार अपने टॉरगेट को लॉक करने के बाद उसे खुद के कंप्यूटर के जरिए खोजकर मार सकते हैं। अमेरिका, चीन, रूस और इजरायल समेत कई देशों के वैज्ञानिक ऐसे हथियारों पर काम कर रहे हैं।

 बता दें कि क्लोरीन दुनिया का पहला रासायनिक हथियार था। क्लोरीन को सिर्फ लोगों को बेबस करने के मकसद से तैयार किया था, क्योंकि यह दम घोंटता है, हालांकि इससे मौतें भी होती हैं। इसका पहली बार 1915 में यह इस्तेमाल हुआ। महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के विकास में एक बड़ा अंतर अभी भी मौजूद है, जो सिस्टम इंजीनियरिंग, हवाई और पानी के नीचे के सेंसर, हथियार प्रणाली और हाई-टेक घटक हैं। एआई को कुछ प्रकार के डेटा के लिए एक प्रवृत्ति की विशेषता है। यह तर्कसंगत निर्णय लेने को प्रभावित कर सकता है, स्वचालित मुकाबला समाधानों में विश्वास को कम कर सकता है। उदा. ऐसा प्रतीत होता है कि एआई हथियार प्रणालियों को उन तरीकों से स्वचालित करता है जो युद्ध के नियमों के साथ असंगत हैं।

हालांकि, अपनी क्षमता का पूरी तरह से दोहन करने के लिए, भारतीय सेना को भारत में जीवंत निजी प्रौद्योगिकी क्षेत्र के साथ घनिष्ठ कामकाजी संबंध बनाने की जरूरत है, और विशेष रूप से एआई स्पेस में रोमांचक काम करने वाले स्टार्ट-अप्स के साथ।

-प्रियंका सौरभ 

ReplyReply allForward

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *