उत्तरप्रदेश सरकार अधीन Hon’ble स्टेट पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल इंदिरा भवन में सरकारी धन और सरकारी समय के सार्वजानिक दुरुपयोग पर माननीय मुख्यमंत्रीजी से संज्ञान लेने की अपील
विषय : वित्तवर्ष 2017 -18 के बजट में सरकारी धन के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने का माननीय मुख्यमंत्रीजी का विचार प्रशंसनीय एवं सराहनीय तो है लेकिन व्यवहारिक स्वरुप वास्तविकता से भिन्न है इसी सन्दर्भ में माननीय मुख्यमंत्रीजी यूपी सरकार और माननीय अध्यक्ष यूपी स्टेट मानवाधिकार आयोग लखनऊ ,दोनों की ही सेवा में निम्न पत्र विचारार्थ प्रस्तुत है और अपेक्षा है कि दोनों माननीय महोदय अवश्य संज्ञान लेंगे
सेवा में
माननीय मुख्यमंत्रीजी
आदरणीय श्री योगी आदित्यनाथ जी
मुख्यमंत्री कार्यालय ,उत्तरप्रदेश सरकार ,लखनऊ वाया ईमेल
प्रेषक
श्रीमती रचना दुबलिश
दिनांक 13 जुलाई 2017
माननीय महोदय ,
यूपी स्टेट पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल इंदिरा भवन लखनऊ में स्थित एक आधिकारिक माननीय न्यायिक प्राधिकरण है और माननीय ट्रिब्यूनल के निर्णंय मानने के लिए सरकार बाध्य है /और माननीय स्टेट ट्रिब्यूनल में सरकारी कर्मचारी और शासन के ही बीच विवादों पर निर्णय होता है और चूंकि सारे मुक़दमे शासन यानि सरकार के ही विरुद्ध होते हैं तो जिस भी विभाग के खिलाफ मुकदमा दर्ज होता है तो बहस वाली तारीख़ को सरकार के सम्बंधित विभाग का एक राजपत्रित अधिकारी बहस वाली तारीख़ पर माननीय स्टेट ट्रिब्यूनल इंदिरा भवन लखनऊ में उपस्थित होता है और हाजिरी का प्रमाण लेकर सम्बंधित विभाग से उस दिन का अपने मूल तैनाती स्थान से लखनऊ आने जाने का पूरा किराया और रहने खाने का पूरा पैसा वसूलता है जो सरकार को दो चार सौ रूपया नहीं बल्कि हजारों रुपियों में पड़ता है /यूपी में अस्सी जिले हैं और यूपी में सैकड़ों सरकारी विभाग हैं और माननीय स्टेट ट्रिब्यूनल में कुल 9 कोर्ट हैं जिनमे प्रत्येक कोर्ट में औसतन चालीस केस प्रतिदिन दिन सुनवाई के लिए सूचीबद्ध और सोमवार से शुक्रवार तक प्रति सप्ताह यही प्रक्रिया चलती है /वादी और सरकार दोनों के पक्ष से वकील मुकदमों की पैरवीं करते हैं /वादी अपने वकील की फीस भरता है और कोर्ट में सरकारी पक्ष की बात रखने के लिए सरकार एक निश्चित वेतन और समय आधार पर पीओ तैनात करती है लेकिन केवल इतना ही काफी नहीं है /विपक्ष पक्ष सम्बंधित सरकारी विभाग का भी एक प्रतिनिधि माननीय स्टेट ट्रिब्यूनल में उपस्थित होता है जो तिथि पर उपस्थित होने का टीए डीए नियमनुसार वसूलता है और जब तक केस का फैसला नहीं हो जाता ,सम्बंधित विभाग का एक प्रतिनिधि तारिख पर उपस्थित होता रहेगा और इस प्रकार यदि हर सरकारी विभाग का आँकड़ा देखेंगे तो यह राशि करोड़ों रूपया मासिक निकलेगी /जो शहर लखनऊ से जितना दूर होगा उतना ही अधिक टीए डीए देय होगा /अगर माननीय स्टेट ट्रिब्यूनल के किसी भी एक दिन का एक ही कोर्ट का शिडूल देखेंगे तो औसतन पच्चीस तीस केस तो फ़ाइनल हियरिंग के लिए लिस्टिड होते हैं जिनमे सामान्यतः कोई बहस यानि प्रगति न होकर केवल डेट ले ली जाती है और अगर इसी अनुपात को पूरी 9 कोर्ट के गणित पर आंकलन करें तो पूरा सिस्टम समझ में आ जाता है कि हर केस में एक डेट पड़ने पर सरकार को हजारों रूपया का चूना लग जाता है जबकि सरकार माननीय ट्रिब्यूनल के माननीय चेयरमैन से स्पष्ट कह सकती है कि फ़ाइनल हियरिंग डेट में अकारण और बिना किसी खास बात पर डेट न देकर जज बेंच उसी दिन बहस पूरी कराये और जजमेंट की तारिख भी तय करे /क्योंकि अक्सर यह देखा जा रहा है कि दस दस सालों से केस फ़ाइनल हियरिंग के हर तीसरे हफ्ते सूचीबद्ध होते रहते हैं और सरकारी धन का निरंतर ह्रास होता रहता है तथा जो कर्मचारी सरकारी पक्ष से कोर्ट में उपस्थित होता है उस दिन विभाग के काम की भी हानि होती है /यानि सरकारी धन और सरकारी समय का व्यापक दुरुपयोग का सबसे बड़ा कोष्ठक तो स्वयं माननीय स्टेट सर्विस ट्रिब्यूनल ही है और यह यूपी सरकार के ही अधीन लेकिन न्याय हेतु पूर्ण स्वायत्त संस्था भी है /अगर माननीय मुख्यमंत्री जी इस विषय को संज्ञान लेते हैं तो रोजाना बेवजह लाखों रूपया खर्च होते सरकारी धन का रोका जा सकता है जिसके लिए महोदय को माननीय स्टेट ट्रिब्यूनल के माननीय चेयरमैन को फ़ाइनल हियरिंग बहसों को एक या दो डेट में ही पूरा करना अनिवार्य बनाना होगा ताकि समय और पैसा दोनों का क्षय बंद हो सके /
आशा करती हूँ कि माननीय मुखयमंत्रीजी अवश्य संज्ञान लेंगे और सकारात्मक सुझाव को अवश्य ध्यान देंगे /
निवेदिका
श्रीमती रचना दुबलिश
मेरठ
प्रतिलिपि ,
माननीय अध्यक्ष
मानवाधिकार आयोग ,उत्तरप्रदेश ,लखनऊ वाया ईमेल
माननीय अध्यक्ष महोदय ,आपको यह प्रतिलिपि इस आशय से प्रस्तुत की गयी है कि फ़ाइनल हियरिंग तिथियों को अकारण और बेमतलब और काम टालने की इच्छा से ही आगे खिसकाना मानवाधिकार उलंघन है क्योंकि सरकारी पक्ष के सम्बंधित विभाग का एक मनुष्य यानि कर्मचारी पूरे दिन कोर्ट में सशरीर बैठता है और शाम को रजिस्ट्रार से हाजिरी सर्टिफिकेट लेकर अपने सम्बंधित विभाग को प्रस्तुत करके टीए डीए तो वसूलता ही है लेकिन अपनी सीट का आवश्यक काम काज त्यागकर लखनऊ स्टेट ट्रिब्यूनल में समय गुजार देता है और यही हाल वादी पक्ष का भी है जिसमे वकील तो वादी का पक्ष स्टेट ट्रिब्यूनल में रखता ही है बल्कि वादी स्वयं भी कोर्ट में उपस्थित होकर अपने केस में फैसले की आशा रखता है और जब अकारण डेट लग जाती है तो वादी का भी पैसा और समय बर्बाद होता है /माननीय अध्यक्ष महोदय से अपील है कि इस मार्मिक विषय को भी मानवाधिकार उलंघन मानकर स्वयं संज्ञान लेकर कोई निर्णय लेने की कृपा करें /
निवेदिका
श्रीमती रचना दुबलिश