आदित्यनाथ की सरकार फिलहाल संभावनाओं और उम्मीदों की सरकार-सी लग रही है. समाज में शासन की साख और प्रशासन की चुस्ती का जो भयानक संकट लंबे समय से चल रहा था, उसकी बहाली की आहट-सी है. यह ठीक है कि अभी कुछ भी कहना बीज देखकर पैदावार का अनुमान लगाना है, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक संस्कार को बदलने की कोशिशों से आनेवाले दिनों में हालात के बदलने की उम्मीद की जा सकती है. जो खतरे और चिंता है उनकी भी बात होनी चाहिए मगर अभी जो दिख रहा है उसको समझने के बाद. आदित्यनाथ को 19 मार्च को जब मुख्यमंत्री बनाने का एलान किया गया तो मैंने इस बात का यह कहते हुए विरोध किया कि उनकी छवि और मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दोनों एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं. आदित्यनाथ के चेहरे के जरिए बीजेपी ने देश में राजनीति की नीति और नीयत- दोनों के संकेत दिए हैं. योगी को कमान का मतलब ये है कि संघ और प्रधानमंत्री मोदी दोनों यह मान रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में प्रचंड जनादेश विकास के वादे और भ्रष्टाचार के खिलाफ आसमानी नारों से नहीं बल्कि बहुसंख्यक समाज की गोलबंदी ( पोलराइजेशन ) के चलते मिला है. पूरे चुनाव में जिस तरीके से योगी आदित्यनाथ को राज्य में घुमाया गया उसके पीछे भी मंशा यही रही कि अल्पसंख्यकों की आंख मूंदकर तरफदारी और उनकी नाराजगी से थरथर कांपनेवाली पिछली सरकारों की धज्जियां योगी उड़ाएंगे. इससे हिंदू समाज (खासकर मुस्लिम बहुल जिलों में) आंदोलित होगा. योगी ने ऐसा किया भी. उनके पुराने बयान और बर्ताव – धौंस, धमकी, धाकड़पन और दबंगई के आसपास ही रहे हैं. खासकर मुस्लिम समाज को लेकर. इसीलिए मैंने मुख्यमंत्री के रुप में उनके नाम के एलान के विरोध में अपनी बात रखी.
लेकिन पिछले हफ्ते भर में योगी ने अपने, अपने साथ काम करनेवालों, सरकारी व्यवस्था में काम करते रहे लोगों और जनता के लिये कुछ संदेश दिए हैं, सपाटबयानी की है. इनसे अनुमान होता है कि एक कल्याणकारी सरकार को खड़ा करने की उद्देश्यपूर्ण और अथक कोशिश में योगी लग गए हैं. कुर्सी संभालते ही अपने मंत्रियों से ये कहना कि 15 दिनों के अंदर अपनी जायदाद का ब्योरा दे दें और अगले दिन अधिकारियों से भी यही बात कहने के पीछे योगी ये संकेत देना चाह रहे होंगे कि मेरे साथ वही लोग काम करेंगे जिन्होंने ईमानदारी का जीवन जिया है. गोरखपुर यात्रा के अपने दूसरे दिन उन्होंने कह दिया कि हम १८-२० घंटा काम करने आए हैं और जो लोग काम कर सकते हैं वे अपना रास्ता देख लें. महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जो उनका संकल्प और संदेश है या फिर भय, भ्रष्टाचार और अपराध मुक्त राज्य बनाने के लिये जो छटपटाहट दिख रही है – इससे लोगों में एक उम्मीद-सी बंधने लगी है. शायद कुछ ऐसा देखें जिसकी आस दूर दूर तक नहीं थी. कुछ नया और अच्छा होने जा रहा है- यह चर्चा आम आदमी करने लगा है. जब मुख्यमंत्री कहता है कि कहीं कुछ गलत दिखे तो मुझे मैसेज कर दें और फिर देखें क्या होता है या वो ये कहे कि यूपी को लूटनेवाले प्रदेश छोड़ दें वर्ना जेल जाना पड़ सकता है या फिर राज्य में कोई भूखा नहीं सोएगा तो जनता को ये बातें गुदगुदाएंगी. लंबे समय से लूट और अंधेरगर्दी के शिकंजे में रहनेवाले देश के सबसे बड़े प्रदेश में बेहतरी की कोई रोशनी दिखेगी तो जनता रोशनी दिखानेवाले उस आदमी के साथ खड़ा हो जाएगी. ऐसा योगी की अबतक वाली कट्टर, दंबग और धौंसबाज महंत की छवि के चलते नहीं होगा, बल्कि डेडिकेशन और डिलिवरी की नई राजनीति के कारण होगा. ऊपर से वह ये भी कह रहे हैं कि विकास का मतलब सबका विकास. यानी इमेज में बदलाव. संकेत यही है.
सरकारी दफ्तर एक खास तरह की इमेज के साथ लोगों के दिमाग में रहते हैं. पुरानी कुर्सी मेजें, जंग खाए लंगड़े पंखे, धूल-सनी फाइलों का अंबार, सीढियों में पान-खैनी के पीक से रंगे कोने सीलनदार-बदबूदार कमरे और टूटे फूटे सिंक ट्वायलेट. योगी जब अचानक सचिवालय गए और कमरा कमरा टहलने लगे तो गंदगी देखकर दंग रह गए. ऐसा नहीं है कि उन्हें इसका अनुमान नहीं रहा होगा, फिर भी तुरंत साफ सफाई रखने औऱ गुटखा-खैनी ना खाने का आदेश काम करने के माहौल का संस्कार जरुर गढेगा. आधुनिकता और तकनीक के मौजूदा दौर में सरकारी दफ्तरों की तस्वीर और तमीज़ दोनों का बदलना बेहद ज़रुरी है. योगी सरकार अब इस बात पर भी जोर दे रही है कि फाइलों को डिजिटलाइज किया जाए और उनसे मुक्ति पाई जाए. तमाम दस्तावेजों का कंप्यूटर में कैद होना, काम करने और काम करने की जगह दोनों को बदल देगा. सरकारी बाबू और अधिकारी एक अजीब सी जड़ता का शिकार होते हैं और श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास राग दरबारी में जो तस्वीर दफ्तर की खींची गई उसमें बहुत हेरफेर आजतक नहीं हुआ है. अगर ब्लॉक और थानों में आपका जाना हुआ हो तो आपको इसका अंदाजा होगा. अब लगता है कि सरकारी दफ्तरों की तस्वीर उत्तर प्रदेश में बदले.
बूचड़खानों पर हल्लाबोल योगी का वो पत्ता है जिसके जरिए वे दो मतलब साधना चाह रहे हैं. पहला तो ये कि लोगों में ये मैसेज जाए कि मुसलमानों को पिछली सरकारों ने खुली छूट दे रखी थी, जिसका नतीजा ये हुआ कि कुकुरमुत्तों की तरह गैर लाइसेंसी बूचड़खाने खुल गए. मांस कारोबार के नाम पर नेताओं-अधिकारियों और बूचड़खाना मालिकों के बीच खाने-खिलाने, पाने-कमाने का धंधा चल पड़ा. और दूसरा ये कि हिंदू समाज को लगे कि गाय बछड़ों को काटने का धंधा करनेवालों को सरकार ने ठोक-बजा दिया. अब ये दीगर बात है कि लोगों को ये कम पता है कि बूचड़खाने सिर्फ मुसलमानों के ही नहीं हैं बल्कि कई हिंदुओं और खासकर नेताओं के भी हैं. हां ये जरुर है कि उनलोगों के बूचड़खाने ज्यादातर लाइसेंसी हैं. नाम पता करना चाहें तो पता कर लें. खैर, योगी सरकार का गैरकानूनी बूचड़खानों पर हमला संघ और भाजपा के उस एजेंडे का हिस्सा है जिसके जरिए वो हिंदुत्व और हिंदू अस्मिता से जुड़े रहना चाहते हैं. योगी की अगुआई में यह काम कुछ ज्यादा ही मतलब का साबित होगा.
योगी के अभीतक के जितने फैसले और फरमान है वो सिर्फ इमेज बिल्डिंग प्रोसेस का हिस्सा है. इनसे जनता में ये संदेश जाएगा कि यह सोच-संवेदना-संवाद के लिहाज से नई सरकार है जो हर हाल में “जनता का राज” वाली व्यवस्था बहाल करना चाहती है. ऐसा नहीं है कि इससे विकास का कोई नया दरवाज खुल रहा है या फिर यूपी के डेवलपमेंट का कोई नया रोड मैप आ गया है. विकास तो योजनाओं और उनके अमल के जरिए ही आता है. लेकिन कल्याणकारी राज्य में विकास की जितनी अहमियत होती है उतनी ही कमजोर आदमी के भय और भूख मुक्त होने की. योगी अभी दूसरे वाले हिस्से पर जोर डाल रहे हैं. साथ में वे कर्मठ, ईमानदार और नतीजा देनेवाले लोगों को अपने साथ जोड़ने की अपील कर रहे हैं. इससे बेहतर योजनाएं तैयार करने और उनको जमीन पर उतारनेवाली व्यवस्था खड़ा करने में मदद मिलेगी. लूटखसोट, कमीशनखोरी, हफ्तावसूली और दलाली जैसी सड़ांध सिस्टम से खत्म होगी.
अब सवाल ये है कि योगी ऐसा कैसे कर रहे हैं? वो जो कह रहे हैं उसको क्या पूरा कर पाएंगे? ऐसे वादे हर आनेवाली सरकार करती है. कुछ लोग ऐसी ही तत्परता दिखाते है, कूद फांद करते हैं और फिर बाद में चादर तानकर सो जाते हैं. इस देश में नंबूदरनीपाद, माणिक सरकार और मनोहर पारिकर जैसे कई ईमानदार और कर्मठ सीएम रहे हैं. इनलोगों ने जनता के लिये काफी बेहतर काम भी किए हैं. हां वे क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं ला सके. तो क्या योगी ला देंगे? कुछ हद तक हां कहा जा सकता है और इसके लिये योगी को मोदी से जोड़कर देखना होगा. अरविंद केजरीवाल को सबक के तौर पर सामने रखकर समझना होगा. पिछले चार पांच वर्षों में जनता के प्रति जवाबदेही की राजनीति शुरु हुई है और काम के जरिए सत्ता को साबित करने की होड़ चली है उसने नेताओं के लिये सांचे तय करना शुरु कर दिए हैं. ऊपर से विपक्ष और मीडिया का कमजोरियों-खामियों पर तेज नजर रखने से हर पार्टी और हर नेता के सामने सजग-सतर्क रहने की मजबूरी आन पड़ी है. आज की तारीख में यूपी का आदमी जिन हालात से जूझता रहा है और जिस तरह की नेतागीरी का शिकार रहा है, उसमें बदलाव ही योगी की तस्वीर को चमका देगी.
अब वह बात जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया कि योगी को समझने के लिये आपको उन्हें मोदी से जोड़कर देखना होगा. ( यह अगली पोस्ट में)
राणा यशवंत