पिछली 31 अगस्त को साल 2018-19 के लिए आयकर रिटर्न भरने की बढ़ी हुई समय सीमा समाप्त हो गई। सरकार ने इस समय सीमा को एक माह के लिए बढ़ाया था। शुरूआती जानकारी से साफ है कि आयकर रिटर्न भरने वालों की संख्या में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 70 फीसद की वृद्धि दर्ज हुई है। इस बार 5.42 करोड़ लोगों ने 31 अगस्त तक अपनी आयकर रिटर्न भरी। यह देश की विकास यात्रा के लिए एक सुखद समाचार है। वैसे सबसे अधिक आयकर रिटर्न भरने वालों में नौकरीपेशा लोग ही हैं।
आयकर रिटर्न भरने के अंतिम दिन सुनामी सी आ गई। उस दिन लगभग 35 लाख लोगों ने अपना आयकर रिटर्न भरा। यह भी कोई सही स्थिति तो नहीं मानी जा सकती। देखा जाए तो जिम्मेदार नागरिकों को आयकर रिटर्न भरने में इतना वक्त नहीं लगाना चाहिए। उन्हें यह काम वक्त रहते ही कर लेना चाहिए।आपको अपने आसपास अनेक लोग मिलेंगे जो आयकर भरने के स्तर पर बेहद आलसी और गैर-जिम्मेदराना रवैया अपनाते हैं। ये आयकर को बोझ समझ कर भरते हैं न कि इसलिए कि यह एक जरूरी दायित्व है। यह दृश्य इस बार भी देखने में आया।यह याद रखा जाना चाहिए कि आयकर रिटर्न भरने से आपको भी अनेकों लाभ होते हैं। इसमें इनकम टैक्स विभाग की कार्रवाई से बचना तो मुख्य रूप से शामिल हैं। इसके साथ ही आपको किसी विदेश यात्रा में वीजा आवेदन में सुविधा होती है तथाबैंक आदि से लोन लेना भी आसान होता है। केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने 2017-18 के अपने बजट भाषण में साफ कहा था कि ‘हमारा समाज व्यापकरूप से कर अनुपालन नहीं करने वाला समाज है।’ यह टिप्पणी भारतीय समाज के आयकर भरने के प्रति उदासीन रवैये की ओर इशारा करती है।
यह बात सही है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में आयकर रिटर्न भऱने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। पर आप गौर करें कि इनमें लगभग तीन करोड़ से अधिक तो सरकारी कर्मी ही हैं। यह केन्द्र और राज्य सरकारों के हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त अब हजारों पेंशनधारी सरकारी कर्मी भी आयकर रिटर्न भरते होंगे क्योंकि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद सरकारी कर्मियों की पगार में तगड़ा उछाला आया है। इसी तरह से अब रिटायर सरकारीकर्मी पेंशन भी भारी-भरकम उठा रहे हैं। वे भी फिर से आयकर रिटर्न भरने लगे हैं। दरअसल आयकर रिटर्न अदा करने के मामले में सिर्फ नौकरीपेशा वर्ग ही ईमानदारी दिखाता है। शायद कंपनियों द्वारा वेतानसे टैक्स काटकर सीधा जमा करने के नियम के कारण नौकरी पेशा लोगों की मजबूरी भी है। दरअसल टीडीएस की अनिवार्यता की वजह से उनके नियोक्ता ही उनके लिए यह काम कर देने के लिए कानूनन बाध्य हैं। यह जगजाहिर है कि कर न देने वालों में ज्यादातर मोटा कमाने वाले दूकानदार,ज्वेलर, रेस्तरां वाले, आढ़तिया,ट्रांसपोर्टर, मालकर किसान, वकील, डॉक्टर, किराना स्टोर के मालिक और हर तरह के काम धंधा करने वाले शामिल हैं। इन्हें हर रोज अच्छी-खासी कमाई करने पर भी आयकर देने में शर्म आती है। इनका खाता भी सही नहीं होता और ये नगद कर्रोबर में ही विश्वास रखते आये हैं। ऐसे टैक्स चोरों को अब परेशानी हो अहि है इसीलिए यह अफवाह फैलाई जा रही है कि मोदी सरकार ससे व्यापारी वर्ग नाराज है।
तो बड़ा सवाल यही है कि क्या इतने बड़े अपने भारत में सिर्फ दो-ढाई करोड़ ही अन्य लोगों (गैर-सरकारी नौकरियां करने वाले) ने ही अपनी आयकर रिटर्न क्यों भरा? इस लिहाज से देखाजाए तो अभी भी लाखों-करोड़ों लोग आयकर जमा नहीं करा रहे। यह वास्तव में गंभीर मसला है। आयकर रिटर्न भरना ही पर्याप्त नहीं है। इसे पूरी ईमानदारी के साथ भी भरा जाना जा चाहिए। दुर्भाग्यवश यह नहीं होता। अनेक लोग सांकेतिक तरीके से आयकर रिटर्न भरते हैं। ये देश के साथ घोर अन्याय और अपराध करने वाले हैं। हमारे 125 करोड़ की आबादी वाले देश में जहाँ 40 पतिशत आबादी वाले देश की 40 प्रतिशत आबादी या यूँ कहें कि लगभग 50 करोड़ लोग संपन्न माध्यम वर्ग और अमीरों की श्रेणी में आते हैं, वहां मात्र 6 करोड़ ही टैक्स भरें यह कहाँ तक जायज माना जायेगा।
निश्चित रूप से यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि भारत में साढ़े पांच करोड़ से भी कम लोग आयकर रिटर्न भरते हैं। 30 सितम्बर के बाद इनमें कुछ लाख और बढ़ जायेंगे क्योंकि, ऐसे सभी कंपनियों और व्यक्ति जिनकी आय एक करोड़ से ज्यादा है उनके रिटर्न भरने की तारीख 30 सितम्बर है । अगर हम अपनी तुलना विकसित देशों से करें तो यह आंकड़ा बेहद कम है। कई विकासशील देशों की तुलना में भी हमारे यहां आयकर देने वाले काफी कम हैं। आयकर चोरी से देश को हर साल अरबों रुपये की चपत लग रही है। आखिर आयकर देने के स्तर पर भारतीय क्यों अब तक गंभीर नहीं हैं? एक राय यह भी है कि दरअसल आयकर चोरी करने वालों के खिलाफ पकड़े जाने पर जुर्माने की राशि कम होना, कठोर दंड न होना आदि वजहों से बहुत से लोगों में यह धारणा घर कर गई है कि अभी आयकर क्यों भरें,जब मामला पकड़ में आयेगा तब देखेंगे। पकड़ में आने पर भी ले-देकर मामला निपटने से भी इस प्रवृत्ति ने जोर पकड़ा है। यह मानकर चलिए कि कर के दायरे में ज्यादा से ज्यादा लोग तभी आ पायेंगे जब उन्हें भारी जुर्माने या कठोर दंड का भय होगा। टैक्स न भरने वालों में जब यह संदेश जायेगा कि अब जेल की हवा खानी होगी तो वे आगे न तो कोई नौकरी पा सकेंगें, न ही उन्हें किसी प्रकार के नए घंधे में कोई सुविधा मिलेगी तब वे लाइन पर आ जाएँगे। यह डर तो कर चोरों को होना ही चाहिए कि कर छिपाया तो फंसना तय है। इसके साथ ही ईमानदारी से टैक्स देने वालों को यथोचित रूप से सम्मानित करने की भी जरूरत है। इस दिशा में आयकर महकमा प्रयासरत भी रहता है लेकिन, वह कतई पर्याप्त नहीं है ।
यह सब जानते हैं कि आर्थिक उदारीकरण के बाद नौकरी से लेकर अपने बिजनेस में अच्छी-खासी कमाई करने वालों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। मेट्रो और बड़े शहर तो छोड़िए, अब छोटे शहरों में लग्जरी फ्लैट्स,शॉपिंग मॉल्स तथा सड़कों पर दौड़ती कारें सिद्ध करती हैं कि भारत बदल चुका है। हर साल देश के भीतर करोड़ों लोग हवाई जहाज से सफर कर रहे हैं। आपको लाखों भारतीय दुनिया के कोने-कोने में घूमतेहुए मिल जाएंगे।आप कभी राजधानी के इंदिरागांधी इंटरनेशनलएयरपोर्ट(आईजीआई) जाइये। इधर ट्रमिनल थ्री से अन्य देशों के लिए विमान उड़ते हैं। यहां पर आने वाली कारों की माडल और उनकी संख्या को देखिए। इन्हें देखकर समझ आ जाता है कि कितना घूमने का मन बना चुका है देश। ये कारें छोड़ने आती हैं देश से बाहर जाने वाले यात्रियों को। यहां से जितने यात्री बाहर जा रहे होते हैं,उतने ही वापस भी आ रहे हैं। सारे माहौल में एक तरह का उत्साह होता है। ये नए और विश्वास से लबरेज भारत का एक चेहरा है।इन्हें तो कमाना और घूमना है। ये स्कूलों की समर वेकेशन पर अपने बच्चों के साथ पांच-सात दिनों के लिए लंदन, सिडनी, यूरोप, सिंगापुर और अमेरिका वगैरह चले जाते हैं।
लेकिन, क्या सभी विदेश यात्रा करने वाले कर-दाता भी हैं? बिलकुल नहीं। इनके पास कहाँ से आया पिया? जाँच करिए। अब कार बाजार की भी सुन लीजिए। लग्जरी कार बाजार भी छोटे शहरों में तेजी से फैल रहा है। कार बनाने वाली कंपनियों ने अब मेट्रो और अन्य बड़े शहरों के बाद टियर टू और थ्री शहरों पर फोकस करना चालू कर दिया है। जर्मनी की महंगी लग्जरी कार ब्रांड ऑडी रांची, उदयपुर और गुवाहाटी जैसे शहरों में शो-रूम खोल रही है। मर्सिडीज ने मैसूर, गुवाहाटी, त्रिचूर और जमशेदपुर समेत कई कमोबेश छोटे शहरों में अपनी पहुंच बना ली है। इन्हें छोटे शहरों में बड़ा ग्राहक भरपूर मात्रा में दिखाई दे रहा है। भारत के लग्जरी कार बाजार की वास्तविक संभावनाएं इन्हीं शहरों में छिपी बताई जाती हैं। तो अब यह साफ है कि छोटे शहरों के भी बड़े ख्वाब हैं। यहाँ तक कोई दिक्कत नहीं । पर वहां से पर्याप्त कर देने वाले क्यों नहीं सामने आ रहे? पिछले डेढ़-दो दशक में देश में मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग का तेज विस्तार हुआ है,लेकिन आयकरदाताओं की संख्या उस अनुपात में बढ़ती नहीं दिखती।
इसी तरह से भारत मेंकरोड़पतियोंकी संख्या2,45,000 तक पहुंचगई है।क्रेडिट सुईस की पिछले वर्ष आईएक रिपोर्टकेअनुसार वर्ष2022 तक देश में करोड़पतियों की यहसंख्या3,72,000 तक पहुंचने की उम्मीद है। तो देश में तमाम अवरोधों के बाद भी मोटा पैसा कमाने वाला एक वर्ग पैदा हो चुका है। इस वर्ग का लाइफ स्टाइल भी राजाओं जैसा शानदार है। यदि ये आयकर देते हैं तभी तो इन्हें शानदार जिंदगी जीने का हक है। पर देखने में आ रहा है कि मोटा कमाने वालों का आयकर देने में दिल बेहद छोटा हो जाता है। इस मानसिकता पर चोट करने की जरूरत है।
आर.के. सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)