अब पाकिस्तान कर रहा है सार्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आमंत्रित। मज़े की बात यह है उसे यह सब करते हुए शर्म भी नहीं आ रही। इसे कहते हैं बेशर्मी की हद! आतंकवाद की फैक्ट्री बन चुके पाकिस्तान को भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कायदे से समझा दिया कि करतारपुर कॉरिडोर के खोले जाने का यह कतई अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए कि भारत अपने पड़ोसी से बातचीत करने के लिए तैयार है। भारत तो तब ही उससे वार्ता के लिए राजी होगा जब वहां पर आतंकवादी संगठनों का सफाया कर दिया जाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी को पाकिस्तान यात्रा का न्योता देने वाला पाकिस्तान शायद भूल गया जब उसने गृहमंत्री राजनाथ सिंह का सन 2016 में इस्लामाबाद में सार्क देशों के गृहमंत्रियों के सम्मेलन में ठंडा स्वागत किया था। अपनी वाकपटुता के लिए विख्यात राजनाथ सिंह ने भी वहां पर इशारों ही इशारों में मेजबान पाकिस्तान की आतंकवाद को खाद-पानी देने के लिए कसकर आलोचना की थी। तब कश्मीर में मारे गए हिज्बुल आतंकी बुरहान वानी की ओर इशारा करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा था कि आतंकवादियों का महिमामंडन बंद होना चाहिए और आतंकियों को शहीद का दर्जा देना सरासर गलत है। आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता है। आतंकवाद तो आतंकवाद होता है।
दरअसल लगभग सभी सार्क देश लंबे समय से आतंकवाद के शिकार होते रहे हैं। बेहतर होता कि इस अहम मसले पर सार्क देश मिलकर जुलकर एक रणनीति बनाते। पर पाकिस्तान के रहते सार्क आतंकवाद के बिन्दु पर भी किसी सर्वानुमति पर पहुंच नहीं सका है। पाकिस्तान ने अपने नकारात्मक रवैये के चलते बांग्लादेश को भी अपने से दूर ही कर लिया। हालांकि, वो उसी की तरह से एक इस्लामिक मुल्क है और कभी उसका अंग भी था।
सार्क सदस्यों में आपसी तालमेल को गति देने के लिए भारत ने पाकिस्तान को सन 2012 में सर्वाधिक तरजीही देश (मोस्ट फेवरड नेशन) को दर्जा तक दिया था। उसने ये पहल करके ठोस संकेत दे दिया था कि वो अपने पड़ोसी से कारोबारी संबंध मजबूत करना चाह रहा है। मोस्ट फेवर्ड नेशन विश्व व्यापार संगठन और इंटरनेशनल ट्रेड नियमों के आधार पर व्यापार में सर्वाधिक तरजीह वाला देश बन जाता है। ये दर्जा मिलने के बाद उस देश को ये भरोसा मिल जाता है कि उसे कारोबार में नुकसान नहीं होगा। पर भारत की इस एक तरफा पहल का पाकिस्तान ने कभी भी कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया। उसने भारत को मोस्ट फेवर्ड नेशन तक का दर्जा नहीं दिया। भारत का सदैव यकीन रहा है कि यदि दोनों पड़ोसी देश अपने कारोबारी रिश्तों को गति दें तो दिपक्षीय व्यापार मौजूदा सालाना 5 अरब डॉलर से 30 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। इससे दोनों देशों के लाखों बेरोजगारों को रोजगार मिल सकता है। पर पाकिस्तान को इतनी छोटी सी बात समझ नहीं आई। हालांकि पाकिस्तान दुनिया के सभी देशों से आपसी व्यापार को करने के लिए तैयार रहता है, पर उसे भारत से आपसी व्यापार को बढ़ाने में पता नहीं क्यों कठिनाई होती है। पाकिस्तान में एक मजबूत भारत विरोधी लॉबी काम करती रहती है। ये मुख्य रूप से पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है। ये भारत से संबंधों को बेहतर बनाना ही नहीं चाहती। इसके साथ ही पाकिस्तान के कुढ़मगज कारोबारी बिरादरी को लगता है कि अगर दोनों देश आपसी व्यापार करने लगे तो पाकिस्तान के घरेलू उद्योग नष्ट हो जाएंगे। उनकी यह शंका निर्मूल है। क्या भारत के अन्य पड़ोसी देशों के उद्योग-धंधे भारत से माल का आयात करने के कारण तबाह हो गए? नहीं। भारत से माल का आयात करके पाकिस्तान का भाढ़े का खर्चा भी कम हो सकता है। अभी पाकिस्तान को यूरोप के देशों, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका वगैरह से बहुत सी चीजों का आयात करने से उसे भारी भाढे का खर्च भी झेलना पड़ता है। पर वो भारत से कारोबारी संबंधों को सुधारने का नाम नहीं लेता। उसे तो राग कश्मीर अलापना ही पसंद है। वो चाहे कितना भी सिर पटक ले कश्मीर तो सदैव भारत का अभिन्न अंग ही रहेगा।
पाकिस्तान करतारपुर के बहाने भारत से बातचीत के प्रति अतिरिक्त उत्सुक लग रहा है। पर वो भारत से किस मसले पर बात करना चाहेगा? कम से कम यह तो बता दे? इमरान खान को याद होगा कि बीते सितंबर महीने में उनके सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने कहा था , ‘मैं भारत के कब्जे वाले कश्मीर के लोगों को सलाम करता हूं, जो मजबूती से खड़े हैं और पूरी बहादुरी से लड़ रहे हैं।‘ बाजवा ने उस दिन यह भी कहा था कि हम सीमा ( कश्मीर) में बह रहे खून का बदला लेंगे।
तो इमरान खान साहब जब आपके सेना प्रमुख इस तरह के भड़कीले भाषण देंगे, तब आप भारत से मैत्री की आशा क्यों कर रहे हैं? बता तो दीजिए कि आप बात करना क्यों चाहते हैं? इमरान खान तो इतिहास के छात्र रहे हैं। उन्हें मालूम होगा कि पाकिस्तान ने ही भारत के खिलाफ 1948,1965,1971 और करगिल में युद्ध छेड़ा था। हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी थी।
पाकिस्तान में नई सरकार बनने के बाद करतारपुर कॉरिडोर को खोलने को लेकर बहुत जल्दी दिखाई जा रही है। क्यों?पाकिस्तान को इस सवाल का जवाब भी तो देना होगा। पाकिस्तान से यह सवाल इसलिए किया जा रहा है क्योंकि उसने खालिस्तान आंदोलन को हर तरह का सहयोग दिया था। इसलिए ये संकेत जा रहे हैं कि वो करतारपुर कॉरिडोर के बहाने पंजाब में फिर से आतंकवाद को जिंदा करना चाहता है। ये समझने की आवश्यकता है कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास कार्यक्रम को लेकर पाकिस्तान के न्योते को क्यों ठुकराया?
कैप्टन ने इस कार्यक्रम अपने शामिल न होने के दो कारण बताए। पहला, भारत-पाकिस्तान सीमा पर भारतीय जवानों का लगातार मारा जाना। दूसरा, पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई लगातार पंजाब को अस्थिर करने की चेष्टा कर रही है।
गौर कीजिए कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के दोनों आरोपों पर पाकिस्तान चुप रहा। अगर उस पर लगे आरोप बेबुनियाद थे,तब उसे जवाब देना चाहिए था। पर आरोप तो सहीं हैं। दरअसल पंजाब में अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के मार्च2017 में बनने के बाद आईएसआई से जुड़े लगभग दो दर्जन मॉड्यूल का पता चले, दर्जनों आतंकवादी पकड़े गए और उनके पास से जो हथियार मिले हैं वे पाकिस्तान में बने हैं। यानी करतारपुर की आड़ में उसके इरादे बेहद नापाक हैं। भारत को अब अतिरिक्त रूप से सतर्क होना होगा। भारत ने 1980 और 1990 के दशकों में पंजाब में पाकिस्तान पोषित आतंकवाद को देखा है। अब उस भयानक दौर की वापसी से हर हालत में बचना होगा।
आर.के.सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)