देश की राजधानी दिल्ली के एक भीड़भाड़ वाले इलाके में दो समुदाय किसी छोटी सी बात पर भिड़े तो आनन-फानन में एक मंदिर पर हमला कर दिया गया। पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में 100 साल पुराने दुर्गा मंदिर को बुरी तरफ से ध्वस्त किया गया। मंदिर पर लगे शीशे तोड़ डाले गए और देवी-देवताओं की मूर्तियों को भी खंडित किया गया। अब मंदिर को क्षति पहुंचाने वाले तत्वों की धरपकड़ तो चालू हो गई है। कुछ आरोपी पक़ड़े भी जा चुके हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के दफ्तर में बुलाकर अपनी नाराजगी जताई है । इससे लगता तो यही है कि शेष अपराधी भी पकड़े जाएंगे। ऐसी आशा तो की जाती है। पर इस बेहद दुखद विवाद का एक सकारात्मक पहलू यह रहा है की सन 1650 में निर्मित फतेहपुरी मस्जिद के इमाम डा. मुफ्ती मुकर्रम ने मुसलमानों से अपील की कि वे ही मंदिर की मरम्मत करवाएं। एक तरह से उन्होंने साफतौर पर संकेत दे दिए हैं कि किसने मंदिर को नुकसान पहुंचाया है। इमाम साहब ने सेक्युलरवादियों के सामने भी उदाहरण रखा कि किस तरह से सच के साथ खड़ा हुआ जाता है। चंद मॉब लिचिंग पर देश में और विदेशों में भी हंगामा करने वाले सेक्युलरवादी और मानवाधिकारवादी पुरानी दिल्ली में दुर्गा मंदिर तोड़े जाने पर अज्ञातवास में चले गए हैं। इनकी जुबानें सिल गई हैं। इन्हें मंदिर के नुकसान पर कहीं कोई असामान्य नजर नहीं आ रहा है। क्या किसी मंदिर को तोड़ा जाना स्वीकार कर लिया जाएगा? जब छोटे-छोटे मामलों में चर्चों और मस्जिदों में कुछ हो जाये तो देखिए सेक्यूलरवादियों के मोमबत्ती जुलूस? लेकिन, पचासी फीसद हिन्दुओं, सिखों, जैनियों, बौद्धों की इन्हें कोई परवाह नहीं है ।
फिलहाल संसद का बजट सत्र चल रहा है तो ममता बनर्जी की पार्टी की महुआ मोइत्रा क्यों नहीं पुरानी दिल्ली के दुर्गा मंदिर में जाती, जहां देश के लादेन-पूजक शांतिदूतों ने देवी मूर्तियों को क्षति पहुंचाई है। वो संसद में खूब बोली थीं, अब उन्हें मंदिर में जाना चाहिए, तब ही उन्हें असली हिंदुस्तान का मर्म कुछ हद तक समझ में आएगा।
हैरानी तो इस बात की है कि तबरेज की मौत पर विदेशों तक गुहार पहुँचा दी गई। पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ तक से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग उठा दी । पर पुरानी दिल्ली में मंदिर को तोड़े जाने पर कुछ सेक्युलरवादी सलाह दे रहे हैं कि इसकी कहीं चर्चा तक न करें वरना देश का साम्प्रदायिक माहौल खराब हो जायेगा। यही लोग तबरेज की मृत्यु पर पूरे हिन्दू समाज को दुर्दांत साबित करने पर तुले थे। सोशल मीडिया पर कुछ प्रगतिशील मित्र कह रहे हैं कि मंदिर को तोडने वाले गुंडे लोग थे, उन्हें मुसलमान ना कहें। पर क्या तबरेज को पीटने वाला शख्स शंकराचार्य था? उसे भी गुंडा या असामाजिक तत्व कहने में फिर शर्म क्यों ? क्यों कर रहे हो हिन्दुओं से भेदभाव ? दरअसल उस रात को पुरानी दिल्ली में स्कूटर की पार्किंग को लेकर दो लोगों में झगड़ा हो गया था, जिसे जबरन सांप्रदायिक रंग दे दिया गया था। पर पुरानी दिल्ली में ऐसा दंगा कोई पहली बार नहीं हुआ। आजादी के दशकों पहले शहीद भगत सिंह संभवत: पहली बार दिल्ली में एक सांप्रदायिक दंगा कवर करने आए थे। वे तब कानपुर से छपने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी जी के अखबार ‘प्रताप‘ में नौकरी करते थे। यह बात सन 1923 की है। दंगा दरियागंज इलाके में हुआ था। वे दिल्ली में सीताराम बाजार की एक धर्मशाला में ठहरे थे। पुरानी दिल्ली में इसतरह दंगों का पुराना इतिहास है। इसके बावजूद वहां पर अबतक कभी किसी मस्जिद या मंदिर को निशाना नहीं बनाया गया। तो इस बार उपद्रवियों ने मंदिर पर हमला क्यों बोल दिया? क्या यह बिना किसी बहकावे के हुआ होगा? इसके पीछे कोई बड़ी साजिश नजर आ रही है। किसने किया ऐसा साजिश । आशा की जाती है कि जब देश का गृह मंत्री अमित शाह जैसा सख्त शख्श है और दिल्ली की पुलिस सीधा उन्ही के नियंत्रण में काम करती है तो साजिश कर्ता अवश्य पकड़े जायेंगे। साफ है कि कुछ तत्व अब किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं। कम से कम इस बार मंदिर पर हमले के बाद तो यह साफ हो चुका है। यह एक साजिश है। अब यही पता लगाया जाना चाहिए कि मंदिर को नुकासने पहुंचाने वालों के तार किसके साथ जुड़े हुए हैं। उन्हें तो किसी भी स्थिति में छोड़ा नहीं जाना चाहिए। दुर्गा मंदिर के आसपास रहने वाले कुछ स्थानीय नागरिकों ने बताया कि मंदिर को 25-30 लोगों ने मिलकर नुकसान पहुंचाया। उन्होंने मंदिर पर पत्थर फेंके। स्पष्ट है कि मंदिर पर पत्थर फेंकने वालों के पास अचानक से पत्थर नहीं आ सकते। जाहिर है कि पत्थर फेंकने वाले किसी बेहतर समय का इंतजार कर रहे थे ताकि पुरानी दिल्ली की फिजाओं में जहर घोला जा सके। इन शातिर लोगों के इरादे सच में भयानक थे। उन्हें पता था कि उनके कृत्य से हिन्दू नाराज होंगे और माहौल बिगड़ेगा। वे अपने मकसद में कुछ हद तक सफल भी रहे।
दरअसल दुर्गा मंदिर में जो कुछ हुआ उसपर सेक्युलरवादियों के रुख पर गौर करने की जरूरत है। ये अपनी शर्तों पर देश के सामने गंभीर संकट लाते हैं। कर्नाटक में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या से तो ये इतने आहत हुए थे ये सोशल मीडिया में कुछ उसी तरह का माहौल बनाने लगे थे, जैसा तब बना था जब नोएडा के बिसहाड़ा गांव में मोहम्मद अखलाक को अपने घर में गौ-मांस रखने के आरोप में उग्र भीड़ ने मारा था। अखलाक के कत्ल के बाद सैकड़ों सेक्युलरवादी उसके घर में संवेदना व्यक्त करने पहुंचने लगे थे। ये तब कह रहे थे कि देश के समक्ष बड़ा संकट आ गया है। तब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी, पर अपने को धर्मनिरपेक्षता का प्रवक्ता बताने वाले सभी मिलकर मोदी सरकार को दोषी ठहरा रहे थे। जरा देख लीजिए इनकी ओछी मानसिकता को। तब अखलाक के घर राहुल गांधी भी गए थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी उनके घर जाने का मौका नहीं छोड़ा था। पर दुर्गा मंदिर पर हमले के बाद वहां पर न तो राहुल गांधी और न ही अरविंद केजरीवाल अभी तक स्थिति का जायजा लेने के लिए पहुंचे हैं। वहां जाने से उनके वोट थोड़े ही बढ़ने वाले हैं?
अगर अखलाक की जघन्य हत्या भारतीय संस्कृति पर धब्बा थी तो क्या दुर्गा मंदिर पर हमला एक सामान्य घटना है? यही हमला किसी मस्जिद या चर्च पर हुआ होता तब इनका रुख क्या होता । पर सच बोलने और उसे स्वीकार करने का साहस सब में कहां होता है? इसलिए ही तो इमाम डा. मुफ्ती मुकर्रम की प्रशंसा की जा रही है। उन्होंने सबसे पहले कहा कि मुसलमानों को दुर्गा मंदिर की मरम्मत करवानी चाहिए। आप बता दीजिए कि क्या उनके अतिरिक्त किसी मुसलमान नेता ने या फिर सेक्यलुरवादी ने मंदिर पर हमले की खुलकर भर्त्सना की? सब चुप हो गए।
अब सब यह कह रहे हैं कि पुरानी दिल्ली में जिंदगी की रफ्तार पहले की तरह से चलने लगी है। यह सवाल जरा उनके दिल से तो पूछिए जो दुर्गा मंदिर में रोज सुबह पूजा अर्चना करने के लिए जाते हैं। वे आपको सच बता देंगे। अभी तो गुप्त नवरात्र चल रहा है । विश्व भर में दुर्गा भक्तों के लिए यह रमजान से कम है क्या ? दुर्गा मंदिर में हमले के लिए सारे मुसलमानों को कोई दोषी नहीं मान रहा। पर यह तो मत कहिए कि मंदिर को बहुत मामूली सा नुकसान हुआ है। दिल्ली में पार्किंग विवाद अब रोज होते हैं। इसलिए राजधानी में जो कुछ घटा उसे मात्र पार्किंग विवाद कहना सही नहीं होगा।
आर.के.सिन्हा
(लेखक राज्यसभा सदस्य हैं)