आप किसी को नया जीवन दे सकते हैं, आप किसी के चेहरे पर फिर से मुस्कान ला सकते हैं। आप किसी को फिर से ये दुनिया दिखा सकते हैं। अंगदान करके आप फिर किसी की जिंदगी को नई उम्मीद से भर सकते हैं। इस तरह अंगदान करने से एक महान् शक्ति पैदा होती है, वह अद्भुत होती है। इस तरह की उदारता मन की महानता की द्योतक है, जो न केवल आपको बल्कि दूसरे को भी खुशी देती है। किसी व्यक्ति के जीवन में अंगदान के महत्व को समझने के साथ ही अंगदान करने के लिये आम इंसान को प्रोत्साहित करने के लिये 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की उपयोगिता अंगों की अनुपलब्धता के कारण बढ़ती जा रही है।
भारत में ही हर साल लगभग 5 लाख लोग अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। प्रत्यारोपण की संख्या और अंग उपलब्ध होने की संख्या के बीच एक बड़ा फासला है। अंग दान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अंग दाता अंग ग्राही को अंगदान करता है। दाता जीवित या मृत हो सकता है। दान किए जा सकने वाले अंग गुर्दे, फेफड़े, दिल, आंख, यकृत, पैनक्रिया, कॉर्निया, छोटी आंत, त्वचा के ऊतक, हड्डी के ऊतक, हृदय वाल्व और नस हैं। अंगदान जीवन के लिए अमूल्य उपहार है। अंगदान उन व्यक्तियों को किया जाता है, जिनकी बीमारियाँ अंतिम अवस्था में होती है तथा जिन्हें अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है।
भारत में संपन्न एक सर्वेक्षण के अनुसार, किसी भी समय किसी व्यक्ति के मुख्य क्रियाशील अंग के खराब हो जाने की वजह से प्रतिवर्ष कम से कम लगभग पांच लाख व्यक्तियों की मृत्यु अंगों की अनुपलब्धता के कारण हो जाती है, जिनमें से दो लाख व्यक्ति लीवर (यकृत) की बीमारी और पचास हजार व्यक्ति हृदय की बीमारी के कारण मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। इसके अलावा, लगभग एक लाख पचास हजार व्यक्ति गुर्दा प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा करते हैं, जिनमें से केवल पांच हजार व्यक्तियों को ही गुर्दा प्रत्यारोपण का लाभ प्राप्त होता है। अंगदान की बड़ी संख्या में जरूरत होते हुए भी भारत में हर दस लाख में सिर्फ 0.08 डोनर ही अपना अंगदान करते हंै। वहीं भारत के मुकाबले अमेरिका, यूके, जर्मनी में 10 लाख में 30 डोनर और सिंगापुर, स्पेन में हर 10 लाख में 40 डोनर अंगदान करते हैं। इस मामले में दुनिया के कई मुल्कों के मुकाबले भारत काफी पीछे है। आकार और आबादी के हिसाब से स्पेन, क्रोएशिया, इटली और ऑस्ट्रिया जैसे छोटे देश भारत से काफी आगे हैं। जानकारों का कहना है कि भारत में सरकारी स्तर पर उपेक्षा इसकी बड़ी वजह है। जागरूकता भी काफी कम है। यही वजह है कि भारत में बड़ी संख्या में मरीज अंग प्रतिरोपण के लिए इंतजार करते-करते दम तोड़ देते हैं। भारत में उत्तरी और पूर्वोत्तर राज्यों में स्थिति बहुत खराब है जबकि दक्षिण भारत अंगदान के मामले में जागरूक प्रतीत होता है। खासतौर पर तमिलनाडु जहाँ प्रति दस लाख लोगों पर अंगदान करने वालों की संख्या 136 है।
लाखों व्यक्ति अपने शरीर के किसी अंग के खराब हो जाने पर उसकी जगह किसी के दान किये अंग की बाट जोहते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति अभी भी जीना चाहते हैं, लेकिन उनके शरीर का कोई अंग अवरूद्ध हो जाने से उनकी जिन्दगी खतरे में आ जाती है। शरीर के किसी अंग के काम न करने की वजह से वे निराश हो जाते हैं, उनकी जीवन सांसें गिनती की रह जाती है, उसके संकट में पड़े जीवन में जीने की उम्मीद को बढ़ाने में अंग प्रतिरोपण एक बड़ी भूमिका अदा कर सकता है। अंग प्रतिरोपित व्यक्ति के जीवन में अंग दान करने वाला व्यक्ति एक ईश्वर की भूमिका निभाता है। अपने अच्छे क्रियाशील अंगों को दान करने के द्वारा कोई अंग दाता 8 से ज्यादा जीवन को बचा सकता है। इस तरह एक जीवन से अनेक जीवन बचाने की प्रेरणा देने का अंगदान दिवस एक बेहतरीन मौका देता है, हर एक के जीवन में कि वह आगे बढ़े और अपने बहुमूल्य अंगों को दान देने का संकल्प लें।
अंग दान-दाता कोई भी हो सकता है, जिसका अंग किसी अत्यधिक जरूरतमंद मरीज को दिया जा सकता है। मरीज में प्रतिरोपण करने के लिये आम इंसान द्वारा दिया गया अंग ठीक ढंग से सुरक्षित रखा जाता है, जिससे समय पर उसका इस्तेमाल हो सके। अंगदान की इस प्रक्रिया में अंग का दान दिल, लीवर, किडनी, आंत, पैनक्रियास, फेफड़े, ब्रैन डेड की स्थिति में ही संभव होता है। वहीं आंख, हार्ट वॉल्व, त्वचा, हड्डियां, स्वाभाविक मृत्यु की स्थिति में दान कर सकते हंै। कोई भी व्यक्ति चाहे, वह किसी भी उम्र, जाति, धर्म और समुदाय का हों, वह अंगदान कर सकता है। अगर परिवार की अनुमति हो तो बच्चे भी अंगदान कर सकते हैं। यह धारणा भी लोगों में देखने को मिलती है कि बुजुर्ग अंगदान नहीं कर सकते। लेकिन सच यह है कि 18 साल के बाद का कोई भी नागरिक अंगदान कर सकता है। अंगदान में उम्र मायने नहीं रखती बशर्ते आप चिकित्सा शर्तों को पूरा करते हों। हालांकि कंैसर, एचआईवी से पीड़ित और हेपेटाइटिस से पीड़ित व्यक्ति अंगदान नहीं कर सकते।
किसी के द्वारा दिये गये अंग से किसी को नया जीवन मिल सकता है। इस तरह अंगदान से कोई भी व्यक्ति किसी का नाथ बन सकता है। संसार में मनुष्य जन्म से श्रेष्ठ और कुछ भी नहीं है, मनुष्य को ही संसार में ईश्वर का प्रतिनिधि माना गया है, वहीं दया, संवेदना एवं धर्म का मूर्तिमान रूप है और इस धरती का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, क्योंकि वहीं एक जीवन एवं मृत्यु के संघर्ष में जूझ रहे व्यक्ति को अपने अंगदान से नया जीवन देने की सामथ्र्य रखता है।
अंगदान को महादान कहा गया है। कोई भी इंसान दुनिया से जाने के वक्त कई लोगों को जिंदगी दे सकता है। लेकिन इस महादान को लेकर कई मिथ्या धारणाएं प्रचलित हैं जिन्हें दूर करना जरूरी है। अंगदान को लेकर लोगों के मन में क्या भ्रांतियां होती हैं और सच्चाई क्या है? जानना विश्व अंगदान दिवस मनाने को सार्थक कर सकता है। जैसे कि एक मिथ है कि किसी भी बीमारी से पीड़ित व्यक्ति अंगदान नहीं कर सकता! जबकि सच्चाई यह है कि कुछ बीमारियां ही ऐसी होती हैं जिनमें आप अंगदान नहीं कर सकते। आप कुछ चिकित्सीय शर्तों व मानदंडों को पूरा करते हैं तो अंगदान कर सकते हैं। कई बार किसी बीमारी से कुछ अंग प्रभावित हो जाते हैं ऐसे में उन प्रभावित अंगों को दान नहीं किया जा सकता बल्कि दूसरे अंगों का दान किया जा सकता है। एक और गलत धारणा है कि सिर्फ परिवार के लोगों को ही अंगदान किया जाता है! जबकि सच यह है कि कोई भी किसी को भी अंगदान कर सकता है। लेकिन लिविंग डोनर होने पर कोशिश की जाती है कि अंगदान करने वाला कोई निकट संबंधी ही हो। लेकिन आप किसी दूसरे को किडनी या कोई अंगदान करना चाहते हैं तो आपकी जांच पड़ताल के बाद अंगदान की अनुमति दी जा सकती है।
फिओना मिशेल ने अंगदान के लिये व्यापक वातावरण का निर्माण किया। उन्होंने कहा है कि बिना ये देखे कि क्या मेरे अंग किसी और के काम आ सकते हैं, मेरे अवशेषों को जलाने या दफनाने का क्या फायदा? अगर कोई और जिन्दगी बचायी या सुधारी जा सकती थी तो ये कितनी भयानक बर्बादी होगी।’ इसलिये अंगदान की दयालुता ऐसी भाषा है जिसे बहरे सुन सकते हैं और अंधे देख सकते हैं। आप जो अंगदान करते हैं वह किसी और को जिन्दगी में एक और जीने मौका देता है। वह कोई आपका करीबी रिश्तेदार हो सकता है, एक दोस्त हो सकता है, कोई आपका प्यारा हो सकता है- या आप खुद हो सकते हैं। इसलिये हर व्यक्ति को अंगदान का संकल्प लेना चाहिए, तभी विश्व अंगदान दिवस मनाने की सार्थकता एवं उपयोगिता है।
(ललित गर्ग)