अब फिर से कुंभ मेला का शंखनाद हो गया है। प्रयागराज में एक बार फिर आस्था का ऐसा जमघट लगने जा रहा है जिसमें संगम की त्रिवेणी में डुबकी लगाने जहाँ करोड़ों भक्त देशभर के कोने-कोने से इकट्ठे होंगें वहीं महाकुम्भ के अद्भुत और विहंगम नज़ारे को कैमरे में कैद करने और नजारे को नजदीकी से देखने के लिए सारे संसार से करोड़ों पर्यटक भी आएंगे। ये सब प्रयाग के संगम में आस्था की डुबकी भी लगाएंगे। इस दौरान घंटा-घड़ियालों के साथ गूंजते वैदिक मंत्र और धूप-दीप की सुगंध से सारा शहर ही नहीं पूरा प्रयाग मंडल महकेगा। हिंदू धर्म में मान्यता है कि किसी भी कुंभ मेले में गंगा-यमुना और भूगर्भ सरस्वती के संगम पर पवित्र मन से तीन डुबकी लगाने से मनुष्य को जन्म-पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति होती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। पर इसके साथ यह भी उतना ही सच है कि इतने विशाल स्तर पर कुंभ मेले के आयोजन की व्यवस्थाएं करना किसी सरकार और प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती होता है। इसकी सफलता के लिए वर्षों पहले से योजनाएं बननी चालू हो जाती हैं। आश्चर्य की बात यह है कि कुम्भ मेले का न तो कोई वृहद् प्रचार होता है, न ही विज्ञापन प्रकाशित होते हैं, फिर भी अपार भीड़ I अब जबकि कुंभ मेले के प्रारंभ होने में कुछ ही दिन शेष है, तब इसके आयोजन से जुड़े तमाम अधिकारियो और कर्मियों को सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती होगी कि मेले के दौरान कोई अप्रिय घटना ना हो। आमतौर पर अप्रिय घटना की नौबत तब ही आती है जब किसी न किसी कारण प्रशासन का भीड़ पर नियंत्रण ढीला प़ड़ने लगता है। इसलिए सारा फोकस भीड़ पर काबू रखने पर होना ही चाहिए।
ऐसी ही दुर्घटना 1956 के प्रयाग कुम्भ में हुई जब पंडित जवाहर लाल नेहरु के लिए भीड़ रोकी गई और 1980 में हरिद्वार कुम्भ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के लिए भीड़ को रोककर भगदड़ में कुचलने पर मजबूर कर दिया गया I लाख कोशिशों के करने के बाद भी दुर्भाग्यवश हमारे यहां धार्मिक अनुष्ठानों और कार्यक्रमों के दौरान हादसे हो ही जाते हैं। यानी कहीं न कहीं चूक रह ही जाती है। इसके चलते जान-माल का भारी नुकसान हो जाता है। इन्हें बखूबी रोका जा सकता है यदि हम भीड़ पर प्रभावी नियंत्रण करना सीख लें। बड़े आयोजनों में कई बार एकत्र भीड़ को निकलने के पर्याप्त मार्ग न मिलने के कारण ही भगदड़ मच जाती है। कहना नहीं होगा कि हमें भीड़ को तो संभालना ही होगा। कुंभ सरीखे मेलों के प्रबंधन से जुड़े लोगों को भीड़ प्रबंधन को लेकर लिए ठोस योजना बनानी ही होगी। होता यह है कि भीड़भाड़ वाले इलाके आतंकियों या गड़बड़ फैलाने वालों के लिए बेहद उत्तम स्थान होते हैं। वे अफवाह फैलाकर भगदड़ मचाने वाले हालात पैदा कर देते हैं। इसलिए इन तत्वों पर भी सख्त पैनी नजर रखने की जरूरत है।
वैसे, मुख्यमंत्री योगी जी के अनुसार कुंभ के दौरान आपदा की हर स्थिति से निपटने की तैयारी की गई है। पुलिस, प्रशासन और चिकित्सा विभाग ने मिलकर एक योजना बनाई है, जिससे कि भगदड़ से लेकर अन्य किसी भी तरह के हमलों की स्थिति से निपटा जा सके। इसके अलावा, सेना और वायुसेना भी तैयार रहेगी। मतलब यह कि इस बार कुंभ को यादगार बनाने की पूरी तैयारी है।
आस्था के इस महासागर में कुछ खास तिथियों पर ही शाही स्नान और अन्य तमाम आयोजन होंगें जिनमें करोड़ों लोग एक साथ स्नान करने वाले हैं। प्रयागराज में कुंभ आगामी 14 जनवरी से शुरू होकर मार्च 2019 तक चलेगा। कुंभ में 8 प्रमुख स्नान तिथियां पड़ेंगी। कुम्भ का श्रीगणेश मकर संक्रान्ति से शुरू हो कर 4 मार्च महा शिवरात्रि तक चलेगा। कुंभ की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन पहले महा स्नान से होगी। इसे शाही स्नान और राजयोगी स्नान के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद 21 फरवरी को पौष पूर्णिमा का स्नान आयेगा । उस दिन कुंभ में दूसरा बड़ा आयोजन होने जा रहा है। पौष पूर्णिमा के दिन से ही माघ महीने की शुरुआत होती है। फिर 31 जनवरी को पौष एकादशी है। उसी दिन महाकुंभ का तीसरा बड़ा शाही स्नान होगा। कुंभ मेले में चौथा शाही स्नान 4 फरवरी को मौनी अमावस्या को होगा। 10 फरवरी को बसंत पंचमी को भी एक बड़ा और महत्वपूर्ण स्नान होगा। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान को उत्तम माना गया है। इन तिथियों में खासतौर पर यह देखना जरूरी होगा कि कुंभ मेला स्थल के आसपास कहीं ज्यादा भीड़ जमा न हो जाये क्योंकि; भीड़ के किसी एक जगह जमा होते ही भगदड़ की आशंका भी बन ही जाती है। भीड़ की निकासी की हमेशा बेहतर और वैकल्पिक व्यवस्था होनी चाहिए। कुंभ मेले में जाने वाले यात्रियों को भी भीड़भाड़ वाले इलाकों से बचना होगा। वे अपनी लापरवाहियों की सारी जिम्मेदारी प्रशासान पर ही नहीं डाल सकते।
यह भी जान लेना आवश्यक है कि भीड़ के बेकाब होने के कारण हादसे भारत में ही नहीं विश्व भर के अन्य देशों में भी होते रहे हैं। कुछेक साल मक्का में भगदड़ हो जाने के कारण एक दुखद हादसा हुआ था। वहां सन 2004 और फिर सन 2006 में भी शैतान को मारने की होड़ में बड़े हादसे हुए हैं।
जाहिर है, प्रयागराज में आयोजित होने वाले कुंभ मेले पर देश और मानवता के दुश्मनों की भी गिद्ध दृष्टि होगी। इनके इरादों को निरस्त करना होगा। पुलिस को इस तरह के तत्वों की कमर तोड़नी ही होगा। अच्छी बात तो यह है कि राज्य सरकार ने कुंभ मेले में तैनात होने वाले पुलिसकर्मियों को नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स यानी एनएसजी और सेना से ट्रेनिंग दिलवाई है। यानी अब ये भीड़ में ही घुसे रहेंगें और पलक झपकते ही आतंकियों का काम तमाम कर देंगे। सेना से आर्मी से प्रशिक्षित राज्य पुलिस की टीम कुंभ की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालेगी।
हो सकता है कि मौजूदा पीढ़ी को सन 1954 में प्रयागराज ( अब इलाहाबाद) में कुंभ मेले में मची भारी भगदड़ के जानकारी न हो। उसमें सैकड़ों लोगों की जानें गईं थीं। प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु के स्नान के लिए रोकी गयी भीड़ में मची भगदड़ के कारण दुर्घटना हुई थी। जांच की रिपोर्ट में आया कि नेहरु जी ने अखाड़ों से पहले स्नान करने का फैसला किया। इससे साधु खफा हो गए थे। इसी से वहां हंगामा हो गया। वहां मौजूद हाथी भी भड़क गए। उन्होंने भी दर्जनों लोगों को कुचल डाला । इस बात को दबा दिया गया I यह बात समझ से परे है कि नेहरु जी तब ही स्नान करने के लिए इतने अधीर क्यों हुए जिससे इतना दुखद हादसा पेश हो आया। नेहरु जी या अन्य सभी नेताओं और अभिनेताओं को सोचना चाहिए कि वे हर जगह तो कतार नहीं तोड़ सकते। उन्हें तो वी.आई.पी. होने के अहम में कतार तोड़ने की आदत पड़ जाती है। निश्चित रूप से इस तरह के आयोजनों में किसी नेता, अभिनेता या लोकप्रिय शख्सियत के आने से भगदड़ के हालात पैदा हो जाते हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने प्रमुख स्नान तिथियों पर वी.आई.पी. के आगमन पर प्रतिबन्ध लगा रखा है I लेकिन, दशकों से अपने वी.आई.पी. मान बैठे प्राणी मानते कहाँ हैं ? कुछ तो यह मान बैठे हैं कि वे वी.वी.आई.पी. ही पैदा हुए हैं और वी.वी.आई.पी. रहते ही मरेंगें भी I ये इस बार भी कुंभ में आम-खास डुबकी लगाने आएंगे ही । इन्हें रोकना होगा I सामान्य बन कर आयें तो कोई बात नहीं I इस लिए प्रशासन ने साऱी व्यवस्थाएं कर ही ली होंगी। उसने पुराने कटु अनुभवों से बहुत कुछ सीख ले ली होगी। ये ही प्रयास होने चाहिए कि खास और नामवर शख्सियतों के मेला स्थल पर आने के संबंध में कम से कम लोगों को पता ही चले। ये शख्सियतें भी सामान्य जन की तरह ही डुबकी लगाने आएं। इनके दिखावा करने के कारण कभी-कभी हालात बदत्तर हो जाते हैं। भीड़ उग्र और बेकाबू हो जाती है I इसलिए अगर शासन में इच्छाशक्ति हो तो ये मुमकिन है कि कुंभ जैसे मेले शांति पूर्ण तरीके से आयोजित हो सकते हैं।
आर.के.सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सांसद एवं हिन्दुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी के अध्यक्ष हैं )