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कोरोना वायरस नहीं तीसरे विश्वयुद्ध का सूर्यग्रहण  

यह मेरी समझ से बाहर है कि क्यों अभी तक नाटो देशों ने औपचारिक रूप से नहीं घोषित किया कि तीसरा विश्वयुद्ध प्रारंभ हो चुका है। जबकि इसका आरंभ तो अमेरिका द्वारा उत्तरी कोरिया व ईरान के विरूद्ध उठाए गए कदमों के साथ ही हो चुका था। बुरी तरह उलझे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में वस्तुतः एक ही बार मे यह समझ पाना मुश्किल होता है कि कौन सा देश किसके खेमे में है। किंतु कोरोना वायरस के विश्वव्यापी संक्रमण के खतरनाक रूप से  शिकार विश्व में विभिन्न राष्ट्रों की  प्रतिक्रिया व उठाए जा रहे कदमों से स्पष्ट हो चुका है कि दुनिया फिर से दो खेमों में बंटने जा रही है अमेरिकी व चीनी।
  सन 1989 तक विश्व जिसमें बाज़ारबादी अमेरिका व साम्यवादी सोवियत संघ के दो खेमें थे , वे 1989 में अमेरिका द्वारा सोवियत संघ के बिखराब व अवसान के बाद समाप्त हो चुके थे व सन 1990 से सन 2019 तक अमेरिका दुनिया की एक मात्र महाशक्ति था। किंतु अब यह समीकरण बदल चुका है व चीन ने सोवियत संघ की जगह ले ली है और रूस , उत्तरी कोरिया व ईरान उसके साथ हैं।
पूरी दुनिया के निर्माण की फैक्ट्री चीन ने अब दुनिया की एक मात्र महाशक्ति बनने की ठानी है और इसके लिए उसने अपनी लेबोरेट्री में कृत्रिम रूप से म्यूटेशन की प्रक्रिया द्वारा ( जेनेटिकली मोडीफाईड।)  विकसित कोरोना वायरस का सोची समझी रणनीति बना पूरी दुनिया में प्रसार कर दिया जिसके कारण रोजाना हजारों मौत हो रही है  व वायरस के कुचक्र से घबराई हुई दुनिया लॉकडॉउन हो गयी है। अमेरिका, इंग्लैंड, इटली व स्पेन जैसी महाशक्तियां व बड़ी अर्थव्यवस्थाएं असहाय व बर्बादी के कगार पर हैं तो बाकी दुनिया की क्या बिसात। इस अत्याधुनिक तकनीक से सुसज्जित जैविक, आर्थिक व मानसिक महायुद्ध से चीन ने नाटो देशों की कमर तोड़ दी है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद कि विश्व व्यवस्था जिसको अमेरिका के नेतृत्व में बना  संगठन नार्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन ( नाटो) अब बिखरने के कगार पर है। दुनिया भर के शेयर बाजार क्रेश हो चुके है , बड़ी बड़ी कंपनिया दिवालियेपन की ओर है। पूरी दुनिया के उद्योग व व्यापार ठप्प हैं। कोई दवा, उपाय व तकनीक काम नहीं आ रही। अगले 60 दिनों तक इस स्थिति में कोई बड़ा बदलाव होने की उम्मीद भी कम ही है।
चीन जिसके वुहान शहर से यह वायरस पूरी दुनिया मे फैला अब सामान्य होता जा रहा है व अप्रैल तक पूरा चीन पुनः व्यवस्थित होकर पुराने स्वरूप में आ जाएगा व बड़ी मात्रा में उत्पादन शुरू कर देगा। एक ओर जहाँ कहीं पूरी दुनिया के कोरोना से त्रस्त देशों को इलाज, तकनीकी, आर्थिक सहायता, व वैक्सीन आदि  देकर मदद पहुंचा अपने पाले में करने की कोशिश करेगा वहीं फार्च्यून 500 कंपनियों पर अपने कब्जे करता जाएगा। आने वाला अप्रैल का महीना ढहते हुए अमेरिकी वर्चस्व व बिखरते हुए नाटो संगठन की कहानी सुनाएगा, वही तेल के धरातल पर आए दामो के बीच अरब व इस्लामिक राष्ट्रों के धराशायी होने की भी। ऐसे में अंततः अमेरिका अपने वर्चस्व की वापसी के लिए  अपने परमाणु व जैविक हथियारों, युद्धक विमानों, पोतों व अंतरिक्ष मे स्थित सेटेलाईटस को भी मैदान में उतारेगा और पूरी पृथ्वी भीषण तबाही की गवाह बन सकती है।
 याद रखो मित्रों, पहला विश्वयुद्ध 4 बर्ष चला था और दूसरा 6 बर्ष , किंतु तीसरा कुछ ही महीनों में सब कुछ बर्बाद कर देगा। इतनी बर्बादी कि मानव जाति का अंत न हो जाए कहीं।
 भारत की इस पूरे खेल में वहुत विचित्र स्थिति है। वह औपचारिक रूप से नाटो संगठन का एसोसिएट मेंबर है और अमेरिका का पिट्ठू है , किंतु चीन से बड़ी मात्रा में आयात करता है। रूस से भी भारत के संबंध संतुलित है और वीटो पावर वाले अन्य दो देशों इंग्लैंड व फ्रांस से भी।  शीत युद्ध तक भारत व 100 से अधिक देश अमेरिका व सोवियत खेमों से बराबर की दूरी बना ” गुटनिरपेक्ष”  बने रहे किंतु अब ऐसा करना बहुत ही मुश्किल है। टैब यह भी यक्ष प्रश्न होगा कि हम किसके साथ खड़े होंगे अमेरिका के या चीन के?
  टूटती, बिखरती व आत्मघाती इस वर्चस्व की जंग में कोई बड़ी व निर्णायक भूमिका निभा पाना भारत के लिए मुश्किल ही है। अपने लोगों व हितों की कम से कम हानि वो करवा पाया तो यही अपने आप मे बड़ी बात होगी।हाँ, पाकिस्तान भारत के लिए कोई चुनौती शायद ही रह पाए इस महायुद्ध के बाद।किंतु इस सब के बीच भुखमरी, महामारी, बेरोजगारी, बेकारी, लूट, दंगे व बर्बादी के नित नए सूर्यग्रहणों से साक्षात्कार करने की नियति हमें शक्ति दे बस यही प्रार्थना है।
अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया

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