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कोरोना से जंग- क्यों भारत पर भरोसा करते सार्क मुल्क

कहते ही हैं कि कष्ट और संकट में पड़ोसियों को एक-दूसरे के साथ खड़ा हो ही जाना चाहिए। संकट की स्थिति में पुराने गिले-शिकवे भुला ही देने चाहिए। दुनिया में आतंक और भय का पर्याय बन चुके “कोरोना वायरस” ने सार्क देशों को भी एक बार फिर साथ खड़ा कर दिया है। चलो, कम से कम इसी कोरोना के बहाने साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (सार्क)के सदस्य देश भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्री लंका, नेपाल, भूटान और मालदीव साथ-साथ तो आ गए हैं।
कोरोना की चुनौती का मुकाबला करने के लिए अब सभी सार्क देश मिल- जुलकर एक एक्शन प्लान बनाने जा रहे हैं। अच्छी बात यह है कि यह पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही की है। इसका सार्क के सभी देशों ने स्वागत भी किया। वे भारत के साथ इसलिए खड़ा होना चाहते हैं क्योंकि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए भारत सरकार ने अभूतपूर्व कदम उठाकर पूरे विश्व के समक्ष यह सिद्ध कर दिया है कि देश इससे लड़ने को पूरी तरह से तैयार है। हां, सरकार ने जनता को आग्रह जरूर किया है कि सभी प्रकार की एहतियाती सावधानी बरतें और अगर बेहद जरूरी न हो तो कोरोना प्रभावित देशों की यात्रा से सख्त परहेज करें। कोरोना वायरस को लेकर घबराने की कतई जरूरत नहीं है। सावधानी बरतने की जरूरत है I जब चीन में फैले कोरोना वायरस को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ग्लोबल इमरजेंसी घोषित की, उससे पहले ही भारत अलर्ट मोड पर आ गया था। केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर कोरोना वायरस से दिन-रात लड़ रही है। हर अस्पताल की चौबीसों घंटे मॉनिटरिंग की जा रही है। देश के 21 एयरपोर्टों पर 17 जनवरी के बाद से 5,89,438 यात्रियों की स्क्रीनिंग पिछले घंटे हो चुकी थी और चौबीसों घंटे जारी है। देश के अंदर करीब 65 छोटे और 12 बड़े बंदरगाह हैं, जहां 15,415 यात्रियों की स्क्रीनिंग भी पिछले शनिवार तक हो चुकी है।
जाहिर है कि कोरोना के खतरों से भारत जिस तरह से लड़ रहा है, उसे सार्क देश गौर से देख रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि वे भारत के नेतृत्व में सुरक्षित हैं। जिस दिन पहला केस नेपाल में सामने आया था, तभी यूपी और उत्तराखंड, बिहार, सिक्किम और नेपाल सीमा से सटे जगहों पर 10 लाख से ज्यादा लोगों की स्क्रीनिंग हो चुकी है। कोरोना वायरस को लेकर ग्रामसभाओं में भी जागरूकता अभियान भारत सरकार ने चलाया है। देश के अंदर 15 बड़े लैब स्थापित किए गए हैं,जिन्हें बढ़ाकर 19 किया जा रहा है।
यद्पि पूरी दुनिया के देश अपने पड़ोसियों के साथ परस्पर सहयोग के महत्व को समझ रहे थे, पर इस मोर्चे पर दक्षिण एशियाई देश सुधरते नजर नहीं आ रहे थे। बहरहाल, कोरोना ने इन्हें एक साथ खड़े होने का अवसर दे दिया है। अभी तक सार्क देशों में यह निराशाजनक स्थिति के लिए अकेला पाकिस्तान मुख्य रूप से दोषी रहा है। पाकिस्तान की आतंकवाद को खाद-पानी देने की नीति के कारण ही उससे भारत, ईरान और अफगानिस्तान नाराज बने रहते हैं।
बहरहाल, पाकिस्तान ने प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्ताव पर सराकारात्मक प्रतिक्रिया देकर एक बेहतर संदेश तो ही दिया है। भारत ने इसके लिए एक फण्ड बनाकर दस मिलियन अमरीकी डालर भी उसमें अपनी तरफ से दान कर दिया I सभी सार्क देशों ने माना कि घातक कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न खतरे को कम करने के लिए समन्वित प्रयासों की जरूरत है। बहरहाल, सार्क देशों को कोरोना से मिलकर ल़ड़ने के क्रम में सबसे पहले देश की जनता को इस बीमारी से बचने के बारे में जागरूक करना होगा, क्योंकि अभी तो इससे बचाव में ही भलाई है। अब भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव को अपने यहां सरकारी अस्पतालों के स्तरों में सुधार लेने की दिशा में भी तत्काल अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। इन देशों में प्रशिक्षित डॉक्टरों की भी भारी कमी है। नर्सों की भारी कमी है। अस्पतालों की भारी कमी है। इलाज के लिए जरूरी उपकरणों की कमी है। दवाओं की कमी तो नहीं है I लेकिन, दवाएं महंगी इतनी हैं कि आम आबादी की पहुंच से बाहर हैं। क्या यह सच नहीं है कि नवउदारीकरण की आंधी ने तो हर अन्य सेक्टरों की तरह हेल्थ सेक्टर की भी कमर ही तोड़ कर रख दी है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव में कॉर्पोरेट और प्राइवेट अस्पताल हैं I लेकिन, इनमें इलाज इतना महंगा है कि गरीब तो क्या आम मिडिल क्लास आदमी भी इलाज से पहले कई बार सोचता है।
फिलहाल तो कोरोना वायरस से लोग घबराए हुए हैं, हल्की खांसी और छींक आने पर भी लोग परेशान नजर आने लगते हैं कि कहीं उन्हें कोरोना वायरस ने तो नहीं घेर लिया। दिक्कत यही है कि नोवल कोरोना वायरस के लिए अभी तक कोई दवाई ही नहीं बनी है। ऐसे में इसका कोई इलाज भी नहीं मिला है। हालांकि भारत इस वायरस को रोकने में आबादी के अनुपात में काफी हद तक सफल हुआ है। इसलिए भारत में यूरोप, चीन, इटली, ईरान, स्पेन और अमेरिका की तुलना में कोरोना पीड़ितों के केस बहुत कम हैं। अतः इससे घबराने की जरूरत नहीं है। अगर आप चीन का ही आकड़ा देखें तो 80 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन्हें कोरोना वायरस इंफेक्शन या हल्का इंफेक्शन होता है, जो आम दवाई लेने से और घर में बंद हो जाने से ठीक हो जाते हैं। इसके साथ यह भी समझने की जरूरत है कि ये इतनी खतरनाक बीमारी नहीं है, पर सतर्क रहने की जरूरत है। अगर हम भारत की बात करें तो यहां कोरोना वायरस के केस बढ़ रहे हैं, पर आहिस्ता- आहिस्ता। लगभग सारे केस विदेश से आये हुए लापरवाह लोगों के कारण ही हुए हैं, जिन्होंने भारत आते ही आपनी जाँच नहीं कराई I इस बीच, सार्क देशों के चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों को यह भी विचार करना होगा कि क्यों कोरोना वायरस को खत्म करने में दिक्कत हो रही है? कैसे इस तरह की महामारियों को रोका जा सकता है? खैर, कोरोना को मात देने के बाद दक्षिण एशिया के देशों को मिलकर गरीबी,निरक्षरता रुढ़िवादी जैसी और अपने अन्य मसलों को हल करना होगा। सार्क देशों को आतंकवाद से भी मिलकर लड़ना होगा। ये तो अबतक अपने देश में आतंकवाद को कुचलने के सवाल पर भी एक साथ नहीं खड़े हुए हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई तथा इसे कुचलने के सवाल पर सार्क बैठकों में रस्मी तौर पर प्रस्ताव तो पारित होते रहे हैं पर कारवाई लगभग शून्य । इसमें कमोबेश यही कहा जाता है कि सभी दक्षेस (सार्क) देश आतंकी गतिविधियों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी, उन पर अभियोजन और उनके प्रत्यर्पण में सहयोग करेंगे। इसमें हर तरह के आतंकवाद के सफाए और उससे निपटने के लिए सहयोग को मजबूत करने पर जोर दिया जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि ये मुल्क अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों में नहीं होने देंगे। प्रस्ताव में आतंकवाद, हथियारों की तस्करी, जाली नोट, मानव तस्करी आदि चुनौतियों से निपटने में क्षेत्रीय सहयोग की बात कही जाती है। हालांकि कुल मिलाकर बात प्रस्ताव से आगे नहीं बढ़ती। इनमें व्यापार के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की सख्त जरूरत है। दक्षिण एशिया में आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने में व्यापार सबसे महत्वपूर्ण औजार होगा। कुल मिलाकर यह तो कहा ही जा सकता है कि दक्षिण एशिया में कोरोना से लेकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ी जाने वाली जंग का नेतृत्व भारत ही करेगा।
आर.के. सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सांसद हैं )

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