विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम वैश्विक ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) रिपोर्ट के अनुसार, टीबी दवा प्रतिरोधकता (ड्रग रेजिस्टेंस) अत्यंत चिंताजनक रूप से बढ़ोतरी पर है । यदि किसी दवा से रोगी को प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाए तो वह दवा रोगी के उपचार के लिए निष्फल रहेगी। टीबी के इलाज के लिए प्रभावकारी दवाएँ सीमित हैं। यदि सभी टीबी दवाओं से प्रतिरोधकता उत्पन्न हो जाए तो टीबी लाइलाज तक हो सकती है। हर साल टीबी के 6 लाख नए रोगी टीबी की सबसे प्रभावकारी दवा ‘रिफ़ेमपिसिन’ से प्रतिरोधक हो जाते हैं और इनमें से 4.9 लाख लोगों को एमडीआर-टीबी होती है (एमडीआर-टीबी यानि कि ‘रिफ़ेमपिसिन’ और ‘आइसोनीयजिड’ दोनों दवाओं से प्रतिरोधकता)।
दवाएं असरकारी होंगी तभी तो पक्का इलाज होगा!
टीबी का पक्का इलाज तो है यदि ऐसी दवाओं से इलाज हो जिनसे प्रतिरोधकता नहीं उत्पन्न हुई हो. स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ता और सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) के नीति निदेशक बॉबी रमाकांत ने कहा कि “ज़ाहिर बात है कि दवाएं असरकारी होंगी तभी तो रोग का पक्का इलाज होगा! दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न होने से जिन दवाओं से इलाज हो सकता है उनकी संख्या कम होती जाती है. इलाज अवधि 6 माह से बढ़ कर 2 साaल से अधिक भी हो सकती है एवं इलाज 1000 गुना महँगा होता है हालाँकि सरकारी टीबी कार्यक्रम में दवा प्रतिरोधक टीबी की जांच और इलाज सब नि:शुल्क है।”
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि दवा प्रतिरोधक टीबी का इलाज जिन दवाओं से होता है उनसे रोगी को गम्भीर क़िस्म के दुष्प्रभाव भी होते हैं। इसीलिए दवा प्रतिरोधक टीबी का इलाज सफलतापूर्वक पूरा किये हुए लोग, टीबी से तो निजात पा लेते हैं पर अक्सर, टीबी दवाओं के दुष्प्रभाव ताउम्र झेलते हैं। यह भी समझना ज़रूरी है कि दवा प्रतिरोधक टीबी से इलाज की सफलता दर भी 100% नहीं है, अक्सर यह इलाज सफलता दर 50% – 70% तक देखने को मिलता है. इससे भी अधिक कष्टदायक बात यह है कि हर ज़रूरतमंद को (जिसे दवा प्रतिरोधक टीबी हो) यह दुर्लभ इलाज नसीब भी नहीं होता।आंकड़ों को देखें तो ज्ञात होगा कि दवा प्रतिरोधक टीबी से जूझ रहे हर 5 जरूरतमंद लोगों में से सिर्फ 1 को यह इलाज मिल पाता है.
शोध में उद्यमता से हो सकती है नयी पहल
टीबी अलायन्स (TB Alliance) द्वारा किये जा रहे शोध कार्य एक ऐसी उपचार प्रणाली पर शोध कर रहे हैं जिससे हर प्रकार की टीबी का 6 माह में पक्का इलाज हो सकेगा – भले ही रोगी को टीबी की दवाओं से प्रतिरोधकता हो या न हो. यदि ऐसा हो जाए तो टीबी उन्मूलन के लिए हो रहे प्रयासों में पथप्रवर्तक बदलाव आ सकता है.
“सिम्प्लिसिटीबी” शोध सफल हो गया तो?
टीबी अलायन्स के अध्यक्ष डॉ मेल स्पीजेलमेन ने कहा कि चूँकि मौजूदा टीबी दवाओं से प्रतिरोधकता बढ़ती ही जा रही है, यह ज़रूरी होता जा रहा है कि जल्द-से-जल्द हमारे पास ऐसे इलाज का विकल्प हो जिसमें केवल सहजता से खाने वाली दवाएं हों (इंजेक्शन आदि न हो), दवा के दुष्प्रभाव न हों, और टीबी इलाज की अवधि 6 माह या उससे कम हो, भले ही रोगी को दवा प्रतिरोधकता हो या न हो. यदि “सिम्प्लिसिटीबी” नामक शोध सफल हो गया तो “बीपिएएमजेड” दवाओं से टीबी उपचार में क्रांति आ जाएगी क्योंकि अधिकाँश टीबी रोगियों के लिए इलाज अवधि 3-4 महीने हो जाएगी, और दवा प्रतिरोधकता के बावजूद भी रोगी, इन्हीं दवाओं से इलाज सफलतापूर्वक पूरा कर सकेगा. वर्त्तमान में दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज की असफलता दर भी अत्यंत चिंताजनक है.
“सिम्प्लिसिटीबी” और एनसी-005 शोध में क्या है सम्बन्ध?
एनसी-005 शोध के अभूतपूर्व नतीजों को मद्देनज़र रखते हुए, “सिम्प्लिसिटीबी” शोध एक कदम और आगे बढ़ने की चेष्ठा है. “सिम्प्लिसिटीबी” शोध में टीबी अलायन्स 4 दवाओं से हर प्रकार की टीबी का सफल उपचार 3-4 महीने में करने का प्रयास कर रहा है (शोधरत है). इस शोध के नतीजे यदि उम्मीद के अनुरूप निकले, तो रोगी को दवा प्रतिरोधक टीबी हो या न हो, हर प्रकार की टीबी का सफलतापूर्वक इलाज, इस “सिम्प्लिसिटीबी” दवाओं से संभव हो सकेगा.
“सिम्प्लिसिटीबी” शोध में जो “बीपिएएमजेड” उपचार है उसमें 4 दवाएं शामिल हैं: बिदाक्विलीन (Bedaquiline), प्रेटोमेनिद (Pretomanid), मोक्सिफ्लोक्सासिन (Moxifloxacin) और पिराजिनामाइड (Pyrazinamide). यदि रोगी को दवा प्रतिरोधकता नहीं है तो यह “बीपिएएमजेड” उपचार उसको 3-4 माह शोध में दिया जा रहा है. यदि रोगी को एमडीआर-टीबी यानि कि ‘रिफ़ेमपिसिन’ और ‘आइसोनीयजिड’ दोनों दवाओं से प्रतिरोधकता है, तो यह “बीपिएएमजेड” उपचार उसको 6 माह तक दिया जा रहा है.
“सिम्प्लिसिटीबी” शोध के “बीपिएएमजेड” उपचार से मिलती है आशा
स्वास्थ्य कार्यकर्ता बॉबी रमाकांत कहते हैं कि “वर्त्तमान स्वास्थ्य प्रणाली दवा प्रतिरोधकता पर अंकुश लगाने में असमर्थ रही हैं. दवाएं बेअसर होती जा रही हैं और जन-स्वास्थ्य के लिए वह रोग भी एक भीषण चुनौती बनते जा रहे हैं और उनके लाइलाज होने की सम्भावना गहरा रही है, जिनका पहले पक्का इलाज मुमकिन था. यदि “सिम्प्लिसिटीबी” शोध के नतीजे उम्मीद के अनुरूप निकले, तो ऐसा उपचार जो सभी टीबी रोगियों को दिया जा सके (भले ही वे पुरानी टीबी दवाओं से प्रतिरोधक हों), जन-स्वास्थ्य प्रणाली के लिए सरल विकल्प होगा. रोगी के लिए भी यह आशापूर्ण है क्योंकि 6 माह से 2 साल का लम्बा जटिल उपचार मुश्किल है, विशेषकर दवाओं के दुष्प्रभावों के कारण.
193 देशों ने सतत विकास लक्ष्य को 2030 तक पूरा करने का वादा किया है जिनमें टीबी उन्मूलन भी शामिल है. परन्तु टीबी दर जिस गति से गिर रही है वह पर्याप्त नहीं है. दवा प्रतिरोधक टीबी एक पहाड़नुमा चुनौती बनी हुई है. ऐसे में यदि “सिम्प्लिसिटीबी” शोध सफल हुआ तो 2030 तक टीबी उन्मूलन की दिशा में कार्य अधिक गति पकड़ सकता है. पर फिलहाल “सिम्प्लिसिटीबी” शोध चल रहा है और हम सबको इसके नतीजों का उम्मीद के साथ इंतज़ार रहेगा.
शोभा शुक्ला