एक बात सबकी समझ में अब आ ही जाना चाहिए कि अब देश में हजारों करोड़ के घोटाले करने के बाद या गंभीर अपराधों को अंजाम देकर विदेशों में जाकर शरण लेने वाले अब जरूर नपेंगे। उनकी संपत्ति होगी जब्त। यानी शराब कारोबारी विजय माल्या से लेकर, आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी और दाऊद इब्राहिम से लेकर नदीम तक, कोई अपराधी बचेंगा नहीं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में स्पस्ट किया कि देश छोड़कर भागने वाले भगोड़ों पर नकेल कसने के लिए सरकार सख्त और नए कानून लाने पर विचार कर रही है।
माल्या से दाऊद
हालांकि उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन साफ है कि उनका इशारा माल्या, ललित मोदी और दाउद जैसों पर ही था। पैसे और राजनीतिक रसूख के बल पर कुछ धनपशुओं को लगने लगा था कि उन्हें कोई छेड़ ही नहीं सकता। बैंकों का करीब 9 हजार करोड़ रुपये माल्या के पास बकाया है। देर से ही भले, परन्तु सरकार का ऐसे लोगों के खिलाफ नया कानून लाना देश और आम जनता के हित में है। इसका एक संदेश पूरे विश्व में अब यह जाएगा कि अब भारत में अपराध करने वाले बचेंगे नहीं। नए कानून के तहत माल्या सरीखे अपराधियों की देश में फैली संपत्तियों को जब्त करेगी सरकार जो देश में कहीं भी होगी।
लंबी प्रक्रिया
बेशक, अभी भगोड़े अपराधियों की संपत्ति जब्त करने के मामले में अभियोजन करने वाली एजेंसियों को कई लम्बी कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना होता है और कई औपचारिकताएं करनी होती हैं। इस कारण अपराधी उससे बच निकलते हैं या कानूनी पेंच फंसा देते हैं। इसलिए जरूरत इस बात की थी कि भगोड़ों को कसने के लिए तमाम कानून प्रकिया को अति सरल बना दिया जाए। निश्चित रूप से नए प्रस्तावित कानून से ईडी और अन्य अभियोजन एजेंसियों को आसानी हो जायेगी और ऐसे अपराधियों की भारत की फैली संपंतियों को जब्त करने में सहूलियत होगी।
दरअसल सरकार पहले से ही विजय माल्या केस से सबक लेते हुए बड़े घपले या अपराध को अंजाम देकर देश छोड़कर भाग जाने वाले अपराधियों पर नकेल कसने की तैयारी कर रही थी। वर्तमान कानून के तहत अगर अपराधी विदेश भाग जाते हैं तो उसे वहां से भारत लाने में बेहद मुश्किल प्रक्रिया से गुजरना होता है। प्रत्यार्पण संधि के जरिए अपराधियों को देश वापस लाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है। अधिकतर मामलों में प्रत्यार्पण विफल ही हो जाता है। ऐसे में जांच एजेंसियों के लिए जांच का काम और मुश्किल हो जाता है।
नहीं बचेगा नदीम भी
सरकार के उपर्युक्त इरादे से अब नदीम सैफी जैसे अपराधियों की भी खैर नहीं है। करोलबाग दिल्ली में पहले जूस का काउन्टर चलाने वाले और बाद में म्यूजिक कैसेट कंपनी से शुरू करके म्यूजिक की दुनिया में तहलका मचाने वाले गुलशन कुमार की 12 अगस्त 1997 को निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या का षडयंत्र रचने के मामले में संगीत निर्देशक नदीम सैफी का नाम आया था। नदीम सैफी मामले में अपना नाम आते ही देश से ब्रिटेन के लिए भाग गया। इसी तरह से 1992 में मुंबई धमाकों का गुनाहगार दाऊद इब्राहीम और उसका छोटा भाई शकील पाकिस्तान में मौज कर रहे हैं। पर यह तो सारी दुनिया को पता है कि इनकी अकूत अचल संपतियां भारत में भी हैं। पाकिस्तान जाने से पहले मुंबई पुलिस के एक अदने से सब इंस्पेक्टर का बेटा दाऊद इब्राहीम बंबई से दुबई तक में अपने काले कारोबार के धंधे को चला रहा था।
दरअसल, देखने में यह आ रहा है पिछले पचासों साल से भारत में भांति-भांति के अपराध करने के बाद कथित सफेदपोश से लेकर शातिर अपराधी देश से बाहर निकल लेते रहे हैं। इस तरह के भगोड़ों का आंकड़ा तेजी से बढा़ है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मसले पर नाराजगी जताते हुए बीती 25 नवंबर को केंद्र सरकार पर तंज कसा। कहा, “आजकल कोई भी भारत से भाग जाता है।” सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि ऐसे लोगों को कार्यवाही के लिए विदेश से जल्द भारत लाया जाना चाहिए। जस्टिस जी एस केहर और जस्टिस अरुण मिश्रा ने इस बात को लेकर चिंता व्यक्त की कि लोग देष में अपराध करके आसानी से देश छोड़कर भाग जाते हैं। केंद्र को न्याय के लिए उन लोगों को वापस लाना ही चाहिए।
एक बात साफ है कि सरकार अब इन भगोड़ों को देश में वापस लाने से पहले इनकी अचल संपत्ति को तो बेच सकती है। आजतक ऐसा तो हुआ नहीं! बेशक, अगर अब भगोड़ों की संपत्ति की नीलामी चालू हो गई, तो इनके पसीने छूट जाएंगे और आगे ऐसा करने वालों के लिए यह एक सख्त चेतावनी का काम करेगा। यदि ऐसा शुरू हुआ तो सरकार माल्या, दाऊद, नदीम, ललित मोदी सरीखे आरोपियों और अपराधियों को देश वापस लाने की कार्यवाही को गति प्रदान कर सकती है।
निर्विवाद रूप से इन भगोड़ों को पकड़ना जरूरी इसलिए भी है ताकि देश में यह सख्त संदेश जाए कि कानून चाहे तो किसी को, भी कहीं से भी पकड़ कर कानूनी शिकंजा कस सकता है। भारत ने 37 देशों के साथ प्रत्यार्पण संधि की है और आठ देशों के साथ प्रत्यार्पण समझौता किया है। इसमें उन बातों का ब्योरा भी दिया गया है, जिसे जांच एजेंसियों को विदेशी अदालतों को आरोपियों के प्रत्यार्पण का आग्रह करते वक्त अनुसरण करना चाहिए। भारत ने परस्पर कानून सहयोग समझौता भी 39 देशों के साथ किया है। ऐसे समझौते में शामिल देश वांछित अपराधी पर मुकदमा चलाने के लिए एक-दूसरे के साथ कानूनी सहयोग करते हैं, जिसमें शरण देने वाले देश में मौजूद उस व्यक्ति की संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान भी होता है।
मौज में भगोडे
दाऊद इब्राहिम से लेकर माल्या के मामलों में यह देखने में आया है कि ये देश से बाहर मौज करते हैं। दाऊद दुबई में बैठकर बॉलीवुड के सितारों के लिए अपने घर में दावतें आयोजित करवाता था। इसी तरह से लंदन में भाग जाने के बाद से विजय माल्या वहां पर टी0 वी0 इंटरव्यू देता फिर रहा है । ललित मोदी भी लंदन की पेज थ्री पार्टीज में सक्रिय हैं। उन्हें कई बार किसी भारतीय टीवी चैनल को भी इंटरव्यू देते हुए देखा जाता है। वे पूरे ठसके के साथ इंटरव्यू दे रहे होते हैं। गुलशन कुमार का गुनाहगार नदीम जैदी भी लंदन के एक शानदार अपार्टमेंट में ठाठ से रहता है। वहां पर ही रहकर वह कई फिल्मों का म्युजिक भी तैयार करता है। यानी उसकी जिंदगी की गाड़ी पहले की तरह से ही मौज में चल रही है।
अब छोटा शकील का हाल भी सुन लीजिए। उसे दाऊद इब्राहिम का सबसे खासमखास माना जाता है। अफसोस कि छोटा शकील को भी भारत लाने में सरकार को अबतक कोई कामयाबी नहीं मिली है। अपराध का पर्यायवाची बन गया छोटा शकील खुल्लम-खुल्ला देश के एक चोटी के अंग्रेजी के अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया तक को इंटरव्यू देता रहता है। और, हमारे अखबार ऐसे इंटरव्यू प्रमुखता से छापते भी रहते हैं। इंटरव्यू में छोटा शकील कहता है, “अब वह छोटा राजन को छोड़ेंगा नहीं।” हालांकि सारा संसार जानता है कि वह मैच फिक्सिंग का धंधा करता है। पर शकील इंटरव्यू में दावा करता है कि वह मैच फिक्सिंग में किसी तरह से लिप्त नहीं है। “ऊपरवाले का दिया बहुत कुछ है।” दाऊद-शकील पर मैच फिक्सिंग के आरोप बरसों से लगते रहे हैं। ये अरबों रुपये का सट्टा खिलवाते रहे हैं। जानने वाले जानते हैं कि अब दाऊद के सारे काम छोटा शकील ही करता है। यानी सभी के सभी भगौड़े देश से बाहर जाकर मौज में हैं। अब तो सरकार को इनकी भारत की संपत्ति जब्त कर उनपर बहुमंजिली इमारतें बनाकर एक बी एच के के सेट बनाकर उन गरीबों को बसा देना चाहिए, जो पुश्तों से झुग्गियों में बदतर जिन्दगी झेलने को मजबूर है।
जैसा कि सबको पता है कि मौजूदा कानूनों के तहत तो यह नहीं लगता है कि भारतीय जांच एजेंसियां जल्द ही देश में उद्योगपति विजय माल्या या दाऊद इंब्राहिम को वापस ला पाएंगी। इसलिए ये विकल्प भी बुरा नहीं है कि इन भगोड़ों की संपत्ति जब्त कर ली जाए और ‘‘गरीब कल्याण वर्ष’’ में गरीबों को समर्पित कर दी जाये।
दाऊद का भाई इकबाल कसकर साऊथ मुंबई के मुसाफिरखाना नाम के इलाके में सपरिवार रहता है। उसके घर के पास ही उसकी बहन का परिवार भी रहता है। बहन हसीना का कुछ समय पहले निधन हो गया था। ये नामुमकिन है कि उन्हें दाऊद के मौजूदा ठिकाने के संबंध में कोई जानकारी न हो। क्या वे 1993 के मुंबई धमाकों के मास्टरमाइंड से बात नहीं करते होंगे? अब दाऊद के परिवार वालों से उसकी भारत में बेनामी संपतियों को जब्त करना ही होगा। मुझे लगता है कि आने वाले समय में ‘‘माल्या-दाउद संप्रदाय’’ के तमाम अपराधियों का वाजिब हिसाब होने ही वाला है।
आर.के.सिन्हा
(लेखक राज्यसभा सांसद एवं हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषीय समाचार सेवा के अध्यक्ष हैं)