सरकारी गाड़ियों से लालबत्ती और हूटर उतारने से वीआईपी कल्चर ख़त्म नहीं होता बल्कि स्वयं को देश सा सर्वेसर्वा मानने की मानसिकता हटाने से वीआईपी कल्चर ख़त्म होगा /पीएम सीएम मंत्री राज्यपाल राष्ट्रपति सांसद विधायक ये अपने को भाषणों में तो जनसेवक कहते हैं लेकिन व्यवहार और बर्ताव में तो खुद को खुदा ही मानते हैं / कोई कहता है कि उसने बचपन में चाय बेचीं तो कोई कहता है कि उसने दैनिक मजदूरी करी तो कोई कहता है कि उसने एक नेता की रसोई में चाय बनाई तो कोई कहता है उसने जयप्रकाश आंदोलन में जेल की रोटी खायी तो कोई कहता है कि मिटटी के घर में बड़ा हुआ और पेड़ की छांव में पढ़ा लेकिन यह उसका अतीत हुआ लेकिन अब जब बीसियों सालों से पक्ष विपक्ष में रहकर या संवैधानिक पदों का लाभ लेकर लाखों करोड़ों रुपियों चल अचल संपत्ति मालिक बना हुआ है तो उसने अपने खुद के पैसे से अपने समाज और देश के लिए क्या किया ?कितने गरीबों दलितों शोषितों पीड़ितों वंचितों के आंसू अपने गमछे तौलिये से पौंछे ?देश का हर आदमी गरीब अमीर दलित मुसलमान ईसाई सिक्ख सब प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष टेक्स देकर खजाना भरता है जिसे वीआईपी खाली करता है खुद को जनसेवक कहता है ?ताजमहल को दुनिया का आठवाँ अजूबा कहा जाता है और शाहजहाँ नूरजहाँ की मोहब्बत का ताबूत कहा जाता है लेकिन इस मोहब्बत के ताबूत को बनाने में जिन बीस हजार मजदूरों के हाथ कटे उसे कोई याद नहीं करता और जिस खजाने को बर्बाद किया गया वहां किसकी दौलत थी ?अगर वीआईपी कल्चर ख़त्म करना ही है तो खुद ये जनसेवक आयकर क्यों नहीं देते ?खुद की सुरक्षा में इतना भारी भरकम खर्च का बोझ खुद क्यों नहीं वहन करते ?क्यों देशवासियों के दिए टैक्स पर आजीवन सुखसुविधा का भोग करते हैं ?जिन सरकारी अस्तपतालों में देश का आम आदमी लाइन में लगकर इलाज कराता है तो खुद क्यों नहीं लाइन में लगकर अपने नंबर का इंतजार करते ?टैक्स देकर भी हर साल हजारों आदमी लू और ठण्ड लगने से मर जाते हैं लेकिन नेता एक भी नहीं मरता ? दो हजार का बिजली बिल बकाया न चुकाने पर आम आदमी का कनेक्शन कट जाता है लेकिन जनसेवकों पर बिजली बिजली टेलीफोन का अरबों रूपया बकाया होने के बाबजूद उनको वीआईपी का दर्जा देना लोकतंत्र का सबसे बड़ा पाप है /आम आदमी तो लोअर कोर्ट तक के वकीलों की फीस नहीं भर सकता लेकिन ये जनसेवक करोड़ों रुपियों के वकील खड़े कर देते हैं और ये करोड़ों रूपया वहीँ हैं जो आम आदमी के ही दिए टैक्स से इनकी तिजोरी में पहुंचे हैं और ये अरबों रुपयों के मालिक वकील राज्यसभा में पहुंचकर इन्ही जनसेवकों की पार्टियों की नुमाइन्दगी करते हैं लेकिन वहां भी ये अपने को जनसेवक ही कहते हैं और मुफ्त का माल डकारकर वीआईपी कल्चर ख़त्म करने का उपदेश करते हैं /