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गांधी जी के नमक कानून तोड़ो आंदोलन में महिलाओं की सहभागिता

 

दिसंबर 1929 लाहौर में रावी नदी के तट पर हुए कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन  में पूर्ण स्वराज राष्ट्रीय आंदोलन का लक्ष्य रखा गया । 26 जनवरी 1930 को सम्पूर्ण देश में स्वतंत्रता दिवस भी मनाया गया। पूर्ण स्वराज्य प्राप्ति के उद्देश्य से नमक कानून तोड़ो आंदोलन आरम्भ करने का निश्चय किया गया। गांधी जी का विचार था नमक प्रकृति में हवा, पानी के समान मुफ्त में उपलब्ध है, इसे समुद्र के किनारे पानी को इकठ्ठा करके, नमक के पहाड़ से तथा मिट्टी से बनाया जा सकता है। सरकार सिर्फ कर प्राप्त करने के लिये इसको बनाने पर रोक लगाती है, जिससे गरीबों को पर्याप्त मात्रा में नमक नहीं मिल पाता, अत: इस कर को समाप्त किया जाना चाहिये। सविनय अवज्ञा आंदोलन आरम्भ करने से पूर्व गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार से  2 मार्च 1930 को वायसराय को पत्र लिखकर समझौता करने का भी प्रयास किया। परंतु उनका प्रयास असफल रहा। इसके पूर्व 30 जनवरी 1930 को अपने पत्र में ‘यंग इंडिया’ द्वारा पूर्ण शराबबंदी, राजनैतिक बंदियों की मुक्ति, सैन्य व्यय में 50 प्रतिशत की कमी, सिविल सेवा के अधिकारियों के वेतन में कमी, शस्त्र कानून में सुधार, गुप्तचर व्यवस्था में परिवर्तन, रुपया स्टर्लिंग की दरों में कमी, विदेशी वस्त्र आयात पर प्रतिबंध, भारतीय समुद्र तट सिर्फ भारतीयों के लिए सुरक्षित, भूराजस्व में कमी तथा नमक कर की समाप्ति जैसी 11 मांगें वायसराय इरविन के समक्ष रखी। उक्त सभी मांगें अस्वीकार किये जाने के बाद 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने विद्यापीठ सहित 76 सहयोगियों के साथ साबरमती आश्रम से 200 किलोमीटर दूर दांडी नामक स्थान तक 24 दिन तक पदयात्रा करके 6 अप्रैल को समुद्र तट पर नमक बनाकर कानून की अवहेलना की। स्वयं नमक बनाकर कानून का उल्लंघन करने वाली इस पदयात्रा में एक भी महिला शामिल न होने से राष्ट्रवादी नारियां आक्रोशित थी। ‘स्त्री धर्म’ पत्रिका की संपादक मारग्रेट कुंजिस ने अपनी पत्रिका में इसका विरोध भी किया। दादा भाई नौरोजी की पौत्री खुरशीद ने गांधी जी को नाराजगी भरा पत्र भी लिखा। अन्तत: कमला देवी चटोपाध्याय की अपील पर गांधी जी एवं कांग्रेस समिति ने स्त्रियों को इस अभियान में सम्मिलित किया।

इस ऐतिहासिक यात्रा के अंतिम दिन सरोजिनी नायडू ने इसमें शामिल होकर गिरफ्तारी दी । वह इस अभियान में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला थी। तदनन्तर लाडो रानी जुत्शी, कमला नेहरू, हंसा मेहता, सत्यवती, अवंतिका बाई गोखले, पार्वती बाई, रुकमणी देवी, लक्ष्मीपति, लीलावती मुंशी, दुर्गाबाई देशमुख सहित 1600 महिलायें पर्दा त्याग कर उत्साहपूर्वक नमक सत्याग्रह की सहभागी बनी व बड़ी संख्या में गिरफ्तारी देकर इस अभियान को सुदृढ़ता प्रदान की। उन्होंने अपने पृथक संगठनों का निर्माण भी किया। नारी सत्या गृह समिति, देश सेविका संघ, महिला राष्ट्रीय संघ, स्त्री स्वराज्य संघ, पिकेटिंग बोर्ड आदि संगठनों के माध्यम से न सिर्फ सत्याग्रह किया अपितु चरखा चलाने का प्रशिक्षण, खादी बेचने तथा उसका प्रचार करने का काम भी किया।

कमला देवी चटोपाध्याय के शब्दों में स्त्रियां घर की दहलीज लांघकर, गर्वीले सैनिकों के समान लंबे लंबे कदम उठाती हुई समुद्र में कूद पड़ी। उन्होंने हथियारों की जगह मिट्टी, तांबे तथा पीतल की गगरियां एवं वर्दी के स्थान पर साधारण भारतीय ग्रामीण साड़ी पहन रखी थी। हजारों की संख्या में जवान, बूढ़ी, अमीर, गरीब महिलाएं अपने सामाजिक बन्धनों को त्यागकर नमक सत्याग्रह में शामिल हुईं।  वो बिना किसी डर के ‘नमक कर’ का उल्लंघन करने वाले आंदोलन को सफल बनाने में संयोजित हो गयी। वो नमक के पैकेट हाथ मे लेकर गलियों में गर्व से आवाज लगाती ‘हमने नमक कानून तोड़ दिया है और हम आजाद है’, है कोई आज़ादी का नमक खरीदने वाला? उनकी आवाज सुनकर आसपास से गुजरने वाला हर राहगीर उनके हाथ में सिक्का थमाकर नमक का पैकेट ले लेता और स्वाभिमान से आगे बढ़ जाता।

सम्पूर्ण देश में नमक बनाकर कानून का खुलकर उल्लंघन किया गया, नमक बनाने की कई विधियां इजाद की गई। बम्बई, कलकत्ता सहित देश के अनेक स्थानों पर हड़ताल हुई। जलूस निकाले गए, जन सभाएं की गईं। असेम्बली और काउन्सिल के सदस्यों ने अपने पदों को त्याग दिया। त्याग पत्र देने वालों में मुथुलक्ष्मी रेड्डी तथा हंसा मेहता भी शामिल थीं। नवयुवकों ने राजकीय कॉलेज और नौकरियां छोड़ दीं। तथा विदेशी वस्त्रों को जला दिया गया। लगभग 2500 सत्याग्रहियों ने धरसाना के नमक गोदाम पर कब्जा कर लिया। प्रतिक्रिया स्वरूप अंग्रेजी हुकूमत ने बर्बरतापूर्ण कार्यवाही की। गांधी जी सहित 60,000 से अधिक स्त्री पुरुषों को गिरफ्तार करके कारागार में डाल दिया गया। सरकारी दमनचक्र के ‘अमानुषिक कृत्य’ का प्रत्यक्ष देखा हुआ वर्णन ‘न्यूयार्क टेलीग्राम’ के अमरीकी संवाददाता बेब मिलर ने  किया है-

’22 देशों में 18 अखबारों के लिए रिपोर्टिंग करते हुए मैंने अनगिनत नागरिक झगड़े,  दंगे फसाद, सड़कों पर लड़ाईयां व विद्रोह देखें लेकिन धरसाना जैसा ह्रदयविदारक दृश्य नहीं देखा। कई बार दृश्य इतना दर्दनाक हो जाता था कि मुझे अपनी आंखें हटा लेनी पड़ती थी। स्वयंसेवकों का अनुशासन आश्चर्यजनक था, पुलिस द्वारा सैकड़ों प्रहार किए जाने पर भी स्वयं सेवकों ने एक बार भी प्रतिउत्तर नहीं किया।’

द राइज एंड फाल हिटलर के लेखक विलियम एल. शिरर ने अपने संस्मरण में लिखा है ‘यह बड़ा ही त्रासदीपूर्ण दृश्य था, मैं अहिंसा के उस शानदार अनुशासन पर चकित था जो गांधी जी की प्रतिभा ने उन्हें सिखाया था, उन्होंने जवाबी वार नहीं किया, अपने चेहरों और सिरों को लाठी के प्रहारों से बचाने की कोशिश के सिवाय उन्होंने अपना कोई बचाव नहीं किया।’

सरोजनी नायडू के नेतृत्व में महिला संगठन पर पुलिस ने बर्बरतापूर्ण कार्रवाई की। एक अप्रैल 1930 को स्वरूप रानी नेहरू की अगुवाई में महिला प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठियां बरसाई गयीं जिससे स्वरूप रानी के सिर में गंभीर चोट लगने से बेहोश होकर गिर गयी। दिल्ली में महिलाओं के जलूस पर हुए लाठीचार्ज में दस महिलाएं बुरी तरह घायल हुई, बलसाड़ में सत्याग्रह कर रही डेढ़ हजार महिलाओं पर लाठियां चलायी गयी जिसमें नेतृत्व कर रही महिला का सिर फट गया फिर भी वह बेहोश होकर गिरने तक आंदोलनकत्र्रियों का उत्साहवर्धन करती रही।

देशभर में लाखों महिलाओं ने गांधी जी के नमक कानून तोड़ो आंदोलन में सम्मिलित होकर सक्रिय सहभागिता निभाते हुए व्यापकता प्रदान की। इस राष्ट्रीय आंदोलन में न सिर्फ महिलाएं शामिल हुईं अपितु पुलिस की नृशंसतापूर्ण कार्यवाही का दृढ़तापूर्वक सामना भी किया। उन्होंने सिद्ध कर दिया वो कोमल जरूर है परंतु कमजोर नहीं। कोमल है कमजोर नहीं, शक्ति का नाम ही नारी है। मां, बहन, पत्नी, प्रेयसी के रूप में जहां वह पुरुष को भावनात्मक सम्बल प्रदान करने वाली है वहीं आवश्यकता पडऩे पर लाठियों का प्रहार सहन करके राष्ट्र को सदृढ़ता प्रदान करने में भी सक्षम है।

फूल नही चिंगारी है, यह भारत की नारी है

द्य डॉ. कामिनी वर्मा

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