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गांधी परिवार की हार…..

नेशनल हेराल्ड हाउस (national herald house) को खाली करने के मामले सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ एसोसिएट जनरल लिमिटेड (एजेएल) की अपील पर दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Corut) की डिविजन बेंच ने बृहस्पतिवार को अहम फैसला सुनाया है*।

इसके तहत अब एजेएल को हेराल्ड हाउस खाली करना ही होगा। इसे एजेएल के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी के लिए भी एक झटका माना जा रहा है।
सुनवाई के दौरान दिल्ली HC ने उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) को हेराल्ड हाउस खाली करने को कहा गया था, हालांकि कोर्ट ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि कितने समय में एजेएल को हेराल्ड भवन को खाली करना है? एक प्रकार से दिल्ली हाईकोर्ट के इस आदेश से कांग्रेस को भी बड़ा झटका लगा है।
दरअसल, पिछले साल हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने दो हफ्ते में हेराल्ड हाउस (Herald House) खाली करने का आदेश दिया था, जिसके बाद एजेएल ने सिंगल बेंच के आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट की डबल बेंच में इसी वर्ष जनवरी में चुनौती दी थी।
सुनवाई में डबल बेंच में लगाई गई एजेएल की याचिका पर 21 दिसंबर के फैसले पर तुरंत रोक लगाने की मांग की गई थी, इसके साथ ही याचिका में कहा गया था कि न्याय के हित में इमारत खाली करने के आदेश पर रोक लगाना जरूरी है। रोक नहीं लगी तो ये कभी न पूरा होने वाला नुकसान होग।

19 फरवरी, 2019 को दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और नेशनल हेराल्ड अखबार के प्रकाशक एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) के वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की दलील सुनने के बाद इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

इससे पहले हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने 21 दिसंबर को एजेएल की याचिका खारिज करते हुए नेशनल हेराल्ड की बिल्डिंग खाली करने आदेश दिया था। कोर्ट ने इसके लिए दो सप्ताह तक समय दिया था। दरअसल एजेएल ने केंद्र सरकार के उस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी थी जिसमें 56 साल पुरानी लीज खत्म करने का आदेश दिया गया था।
केंद्र सरकार का तर्क था कि दस साल से इस परिसर में कोई भी प्रेस संचालित नहीं हो रहा है और इसका उपयोग व्यापारिक उदेश्य के लिए किया जा रहा है जोकि लीज कानून का उल्लंघन है। इस मामले में हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। नेशनल हेराल्ड अखबार का मालिकाना हक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी के नाम पर है और यह बिल्डिंग करोड़ों की है।

यह है मामला 

एजेएल नेशनल हेराल्ड अखबार की मालिकाना कंपनी है। कांग्रेस ने 26 फरवरी 2011 को इसकी 90 करोड़ की देनदारी अपने जिम्मे ले ली थी। यानी कंपनी को 90 करोड़ का लोन दिया। इसके बाद पांच लाख में यंग इंडियन कंपनी बनाई गई, जिसमें सोनिया व राहुल की हिस्सेदारी 38-38} व शेष कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा व ऑस्कर फर्नाडीज के पास है। बाद में एजेएल के 10-10 रुपये के नौ करोड़ शेयर यंग इंडियन को दिए गए। बदले में यंग इंडियन को कांग्रेस का लोन चुकाना था। नौ करोड़ शेयर के साथ यंग इंडियन को कंपनी के 99} शेयर हासिल हो गए। इसके बाद कांग्रेस ने 90 करोड़ का लोन माफ कर दिया। यानी यंग इंडियन को मुफ्त में एजेएल का स्वामित्व मिल गया।
दिल्‍ली स्थित नेशनल हेराल्ड हाउस को खाली कराने से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट की डबल बेेंच ने  बृहस्पतिवार को अपना फैसला सुना दिया है। बेंच ने अपने फैसले में दो सप्ताह का समय देते हुए नेशनल हेराल्ड हाउस को खाली करने के लिए कहा है।
नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रही है। इससे पहले 10 सितंबर, 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट ने भी 2011-12 के टैक्स आकलन के मामले को दोबारा खोले जाने के मसले में दोनों नेताओं को राहत देने से साफ इनकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि टैक्स संबंधी पुराने मामलों की आयकर विभाग फिर से जांच कर सकता है।
हाई कोर्ट के इस फैसले को दोनों नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। दोनों ने नेशनल हेराल्ड और यंग इंडिया से जुड़े टैक्स एसेसमेंट की दोबारा जांच के आयकर विभाग के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। गौरतलब है कि राहुल और सोनिया के खिलाफ आयकर जांच का मुद्दा भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने उठाया था।क्या है नेशनल हेराल्ड

नेशनल हेराल्ड भी उन अखबारों की श्रेणी में है, जिसकी बुनियाद आजादी के पूर्व पड़ी। हेराल्‍ड दिल्ली एवं लखनऊ से प्रकाशित होने वाला अंग्रेजी अखबार था। 1938 में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नेशनल हेराल्‍ड अखबार की नींव रखी थी। इंदिरा गांधी के समय जब कांग्रेस में विभाजन हुआ तो इसका स्‍वामित्‍व इंदिरा कांग्रेस आई को मिला। नेशनल हेराल्ड को कांग्रेस का मुखपत्र माना जाता है। आर्थिक हालात के चलते 2008 में इसका प्रकाशन बंद हो गया। उस वक्‍त वह कांग्रेस की नीतियों के प्रचार प्रसार का मुख्‍य स्रोत था।

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