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चीन द्वारा 10 दिन में अस्पताल खड़ा करना क्रूरता, बर्बरता व धूर्तता पूर्ण सामाजिक-धोखा

 

चीन में प्रतिदिन कई-कई हजार लाशें क्रेमेशन सेंटर्स (शवदाह गृहों) में लाद-लाद कर पहुंचाई जा रहीं थीं। लेकिन चीन दुनिया के सामने फर्जी दावा ठोंक रहा था कि पूरे कोरोना-काल में केवल कुछ हजार ही मौतें हुईं हैं। (जितनी कुल मौतें चीन ने बताई, उतनी तो लाशें हर रोज क्रेमेशन सेटर्स पहुंच रहीं थीं)।

चीन ने दुनिया को धोखे में रखा, दुनिया के अनेक देशों ने कोरोना को हल्के में लिया, गंभीरता से नहीं लिया, जिसके कारण देशों को भारी व अकल्पनीय क्षतियां उठानी पड़ीं।

चीन में लाखों लोग बीमार थे। डाक्टरों के पास साधारण मास्क तक नहीं थे। मरीजों के लिए बिस्तर तक नहीं थे। अस्पताल कोरोना मरीजों को भर्ती नहीं कर रहे थे। लोग अपने माता-पिता, रिश्तेदारों व मित्रों को अपनी आंखों के सामने तड़प-तड़प कर मरता देख रहे थे।

लाखों लोग छोटे-छोटे माचिस के डब्बेनुमा घरों में कोरोना संक्रमित लोगों के साथ रहने को बाध्य थे। बहुत सारे ऐसे लोग जो चीन की सरकार यदि लोगों के प्रति ईमानदार व जिम्मेदार होती तो कोरोना संक्रमित होने व संक्रमित होकर मरने से बच सकते थे, नहीं बच पाए।

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लोगों को छोटी-छोटी कारों में अपने परिवार के कोरोना संक्रमित लोगों को कई-कई दिनों तक बोरी की तरह ठूंस कर रखना पड़ रहा था। लोग तड़प रहे थे, लेकिन सरकार की वीभत्स क्रूरता का आलम यह कि स्वास्थ्य विभाग व अन्य विभागों ने रिस्पांस तक देना बंद कर दिया था।

स्थिति इतनी वीभत्स कि घर के अंदर हो या बाहर कोरोना संक्रमित होने का भयंकर खतरा।

यह सब लुकाछिपी का खेल नवंबर से चल रहा था। लोग समझना शुरू कर चुके थे लेकिन कुछ कह नहीं सकते थे। जिन्होंने हिम्मत दिखाई उनकी सरकार ने हत्या करवा दी।

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लेकिन चीन की सरकार ने अपनी नाकामी, अपनी क्रूरता, अपनी बर्बरता, अपनी धूर्तता को छुपाने के लिए 10 दिन में अस्पताल खड़ा करने की बेशर्मी पेश कर दी। दुनिया के कई देश, जहां का समाज अजागरूक है, कुंठित है या चीन को महान देश मानता है। वहां के लोगों ने 10 दिन में अस्पताल खड़ा करने की टुच्ची शोशेबाजी को अपने-अपने देश के सोशल-मीडिया में खूब घुमाया।

दुनिया के अनेक देशों के लोगों के दिलोदिमाग में यह बैठ गया कि कोरोना कुछ नहीं है, 10 दिन में सामान को रखने वाले कंटेनर्स को जोड़कर पास-पास बिस्तर रख देने या कार-पार्किंग में कारों की जगह बिस्तर रख देने से बनाए गए अस्पतालों को बनाने से कोरोना से लोग ठीक हो जाते हैं।

गंभीर व महत्वपूर्ण सवालों के लिए दूर-दूर तक संभावना ही नहीं बची कि लाखों कोरोना संक्रमित लोगों के लिए हजार दो-हजार बिस्तरों वाले अस्पताल पर्याप्त हैं क्या, क्या अस्पताल का मतलब सिर्फ माचिस के डब्बों में बिस्तर लाकर पटक देना है। अस्पताल बहुत गंभीर ईकाई होती है, बहुत कुछ होता है अस्पताल में, ऊपर से कोरोना संक्रमित के लिए तो अस्पताल में बिस्तर के अतिरिक्त भी काफी कुछ चाहिए होता है।

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चीन में कोरोना से कितने लाख लोग संक्रमित हुए, कितने हजार लोग कोरोना संक्रमण से प्रतिदिन मरे। कितने हजार लोगों की हत्याएं चीन की सरकार ने कोरोना की असलियत दबाने के लिए करवा दी।

इन सब सवालों की जवाबदेही की जगह, चीन ने 10 दिन में अस्पताल तैयार कर देने का कम्यूटराइज्ड-ग्रैफिक वीडियो जारी करके खुद को सामाजिक जिम्मेदार घोषित व साबित कर दिया।

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दुनिया में ऐसे कई योरपियन देश हैं जहां 10 दिन से बहुत कम समय में, कुछेक जगह में एक या दो दिन में चीन के बेहूदा अस्पतालों की तुलना में बहुत गुना बेहतर अस्पताल कोरोना के लोगों के लिए खड़े कर दिए।

लेकिन इन देशों का नाम तक नहीं आता। कारण सिर्फ एक ही है कि ये देश चीन की तरह अपने लोगों को धोखा नहीं देते, अपने लोगों के लिए बर्बर नहीं हैं, अपने लोगों के साथ धूर्तता नहीं करते। बेशर्म नहीं है।

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**चलते-चलते**
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यदि चीन की सरकार व माओवाद (चीनी-साम्यवाद) इतना ही अधिक आम आदमी के प्रति ईमानदार व जिम्मेदार है, तो क्यों लाखों सोशल मीडिया अकाउंट डिलीट करवाए।

क्यों केवल महीने दो-महीने के अंदर ही उन हजारों लोगों की हत्याएं करवाईं, जो लोग कोरोना से संबंधित मुद्दों पर आवाज उठा रहे थे, सरकार की पोल खोल रहे थे, दुनिया को भयानक खतरे से आगाह करना चाह रहे थे।

जिस तरह का देश, चीन है। वहां तो इन हजारों त्यागी व निहायत बहादुर महापुरुष लोगों को इतिहास में भी जगह नहीं मिलनी है। इनकी अपनी खुद की पीढ़ियां भी नहीं जान पाएंगी कि उनके पूर्वजों ने मानवता के लिए अपनी जान दे दी थी। उनके ही देश की सरकार ने सिर्फ सच बोलने के अपराध में हत्या कर दी थी।

कोरोना जैसी ऐतिहासिक घटनाएं लोगों, समाज व देश का असली चरित्र दिखातीं हैं। ऐसी घटनाएं न हों तो तो ढोंग, ढकोसला, दिखावा इत्यादि को ही जीवन मान लिया जाए।

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वैसे तो पाश्चात्य देशों के राजनेता लोग राजनयिक-विनम्रता के कारण, वह भी विशेषकर उन देशों की जिनके समाज की सोच सामंती होती है या लोग अजागरूक होते हैं, उन देशों की कभी-कभार दो चार लाइनों में प्रशंसा करते रहते हैं ताकि उन देशों के समाज के लोग खुश रहें और पाश्चात्य देशों का बाजार बने रहने में जीवन की उपलब्धि महसूस करते रहें।

लेकिन कोरोना के मामले में सबसे बढ़िया व यथार्थ बयान फ्रांस के राष्ट्रपति ने दिया। दुनिया के जो विकसित देश हैं, उनको चीन की असलियत मालूम है। चीन का ढोंग, दिखावटी भ्रम, ढकोसला काम नहीं करता। लेकिन चूंकि चीन एक सार्वभौम देश है तो किसी देश को क्या पड़ी है कि वह कुछ बोले। ऊपर से चीन ने खुद को दुनिया के विकसित देशों की कंपनियों के लिए बाजार व फैक्ट्री बना रखा है। दुनिया के विकसित देशों की कंपनियों के लिए अपने प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करने की छूट दे रखी है।

लेकिन मामला चूंकि दुनिया के देशों के लोगों के जीवन का है। चीन में जो हुआ उसका सीधा असर दुनिया के देशों के लोगों पर पड़ रहा है। देशों की इकोनोमी पर सीधा असर पड़ रहा है। शायद यही कारण है कि फ्रांस के राष्ट्रपति खुद को नियंत्रित नहीं रख पाए और असलियत बोल ही गए।

“फ्रांस के राष्ट्रपति ने जो कहा उसका सीधा सपाट मतलब यह था कि चीन की औकात ही नहीं है कि वह कोरोना से लड़ पाए, इसलिए चीन के द्वारा कोरोना को नियंत्रित कर लिए जाने के दावे फर्जी हैं”

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सामाजिक यायावर

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