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जंग-ए-आज़ादी का दूसरा सबसे बड़ा बलिदान था तारापुर गोलीकांड

 

 

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा आते ही हमें याद आता है ‘बलिदान’ | मूछों पर ताव देते पंडित चंद्रशेखर आज़ाद, पगड़ी पहने सरदार भगत सिंह, जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की गोलियों से गिरते लोग ये सभी दृश्य कौंधने लगते हैं मन में |

एक ऐसा ही रोमांचित कर देने वाला घटनाक्रम आज आपसे साझा करना चाहता हूँ | इतिहास की स्मृति में धुंधला से गए कुछ पन्नों का पुनर्पाठ करना चाहता हूँ ताकि भारत की आन-बान-शान के लिए कुर्बान हो गए उन वीरों का ऋण चूकाने की कोशिश कर सकें |

यह कहानी है बिहार के मुंगेर जिला अंतर्गत “ तारापुर थाना “ की, जहाँ 15 फरवरी 1932 की दोपहर सैकड़ों आजादी के दीवाने तिरंगा लहराने निकल पड़े | ब्रिटिश साम्राज्य के  यूनियन जैक की जगह राष्ट्रीय ध्वज “तिरंगा “ फहराने के उन्माद में तारापुर के अमर सेनानियों का दल हाथों में झंडा और होठों पर वंदे मातरम की गूंज लिए आगे बढ़ रहा था और  उनका मनोबल बढ़ाने के लिए जनता खड़ी होकर भारतमाता की जय, वंदे मातरम् आदि का जयघोष कर रही थी । मौके पर थाना में मौजूद अंग्रेज कलक्टर ई ओ ली एवं एसपी डब्ल्यू फ्लैग के नेतृत्व में गोलियां दागी गयी । गोली चल रही थी लेकिन कोई भाग नहीं रहा था । लोग डटे हुए थे क्योंकि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जलियांवाला बाग के बाद सबसे बड़े गोलीकांड में देशभक्त पहले से लाठी-गोली खाने को तैयार हो कर घर से निकले थे । 34 वीर सपूतों की शहादत के बीच धावक दल के मदन गोपाल सिंह ने तारापुर के ब्रिटिश थाना भवन पर तिरंगा लहराया |

 

  • तारापुर का क्रांतिकारी इतिहास और गतिविधियां

मातृभूमि को स्वतंत्र कराने की बलबती इच्छा रखने वाले नौजवानों की भूमि ‘तारापुर’ (मुंगेर,बिहार) में क्रांति का बीज सन 57 के ग़दर  के दौरान ही पड़ गया था जो बंगाल से बिहार के विभाजन के बाद से ही अपना आकार लेने लगा | वक्त के साथ तारापुर बिहार में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और क्रांतिकारियों का गढ़ बन गया था | मातृभूमि की रक्षा के लिए जान लेने वाले और जान देने वाले दोनों तरह के सेनानियों ने अंग्रेज सरकार की नाक में दम कर रखा था ।

तारापुर के उत्तर में ढोल पहाड़ी और दक्षिण में देवघरा पहाड़ क्रांतिकारी गतिविधियों के बड़े केंद्र थे और ऐसा लगता था जैसे प्रकृति ने इन्हें क्रांतिकारियों की सुरक्षा के लिए ही बनाया हो | थाना बिहपुर से लेकर गंगा के इस पार बांका – देवघर के जंगलों-पहाड़ों तक क्रांतिकारियों का व्यापक प्रभाव हुआ करता था ।

चीनी यात्री हवेनसांग फाईयांग ने भी इस पहाड़ी के दर्शन कर इसकी चमत्कारी शक्ति का वर्णन अपनी यात्रा वृत्तांत में किया हैं तथा फ्रांसिस बुकानन ने भी इस पहाड़ी और मंदिर के संबंध में जर्नल आंफ फ्रांसिस बुकानन में पृष्ठ संख्या 154 एवं 155 में काफी-कुछ लिखा है।

वर्तमान में बांका जिला अंतर्गत शंभुगंज प्रखंड का छत्रहार गाँव भी तत्कालीन ब्रिटिश हुकुमत के विरुद्ध जन-जागरण का एक बड़ा केन्द्र था | छत्रहार के महेंद्र मिश्र, जोगेन्द्र नारायण साह ,नरसिंह प्रसाद साह जैसे क्रांतिधर्मी लोग गुप्त रूप से प्रेस चलाकर ब्रितानिया हुकूमत  के खिलाफ पर्चे प्रकाशित किया करते थे |

तारापुर क्षेत्र में क्रांति और आंदोलन का दूसरा प्रमुख केन्द्र था संग्रामपुर प्रखंड के सुपौरजमुआ गाँव  का ‘श्रीभवन’ | जहां उस दौर के बड़े -बड़े कांग्रेसी नेता और क्रांतिकारियों का आना जाना होता था | तारापुर “ तरंग “ और “ विप्लव “ जैसी क्रांतिधर्मी पत्रिकाएं इसी गुप्त केन्द्र से प्रकाशित होती थी |

स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख सिपाही और बाद में बिहार के मुख्यमंत्री बने श्रीकृष्ण सिंह और  तारापुर के प्रथम विधायक सेनानी बासुकी नाथ राय की कर्मभूमि भी तारापुर थी | जयमंगल सिंह शास्त्री , दीनानाथ सहाय ,हितलाल राजहंश , नंदकुमार सिंह , सुरेश्वर पाठक , भैरव पासवान ,सूचि सिंह  जैसे  स्थानीय कांग्रेसी नेताओं के सहयोग और समर्थन से श्री बाबु और राय जी अपने मंसूबों को अंजाम देते थे |

 

बिहार में देश के अन्य हिस्सों की भांति गुलामी को तोड़ने के सतत प्रयास चल रहे थे | जब भी कोई चिंगारी देश के किसी कोने में लगती तो उसकी प्रतिध्वनि बिहार में जरुर सुनाई पड़ती और बिहार में ‘ विप्लव ‘ की आग सुलगने लगती | ऐसा ही हुआ जब गाँधी-इरविन समझौता भंग हुआ  |

 

सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने का संकल्प –पत्र जारी

गाँधी–इरविन समझौता भंग होने के बाद जब महात्मा गाँधी ने पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रारंभ कर दिया तो ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को अवैध संगठन घोषित कर सभी कांग्रेस कार्यालय पर भारत का झंडा (तत्कालीन कांग्रेस का झंडा) उतार कर ब्रिटिश झंडा यूनियन जैक लहरा दिया | महात्मा गांधी, सरदार पटेल और राजेंद्र बाबू जैसे दिग्गज नेताओं सहित हर प्रान्त के प्रमुख लोगोंको गिरफ्तार कर लिया गया | अंग्रेजी हुकुमत इस दमनात्मक कार्यवाई और भारत पर उनकी नाजायज हुकुमत के खिलाफ देशभर में एक आक्रोश पनपने लगा था | ऐसे वातावरण में अंग्रेजों के क्रिया की प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी | बिहार में तो युद्धक समिति के प्रधान सरदार शार्दुल सिंह कवीश्वर द्वारा जारी संकल्प पत्र कांग्रेसियों और क्रांतिकारियों में आजादी का उन्माद पैदा कर गया |

सरदार शार्दुल सिंह के द्वारा प्रेषित संकल्प पत्र में स्पष्ट आह्वान था कि 15 फ़रवरी सन 1932 को सभी सरकारी भवनों पर तिरंगा झंडा लहराया जाए | उनका निर्देश था कि प्रत्येक थाना क्षेत्र में पांच ध्वजवाहकों का जत्था राष्ट्रीय झंडा लेकर अंग्रेज सरकार के भवनों पर धावा बोलेगा और शेष कार्यकर्त्ता 200 गज की दूरी पर खड़े होकर सत्याग्रहियों का मनोबल बढ़ाएंगे |

 

संकल्प-पत्र के आलोक में संग्रामपुर प्रखंड के सुपोर-जमुआ गाँव के ‘श्री भवन‘ में बैठक हुई जिसमें इलाके भर के क्रांतिकारियों, कांग्रेसियों और अन्य देशभक्तों ने हिस्सा लिया | बैठक में  मदन गोपाल सिंह (ग्राम – सुपोर-जमुआ), त्रिपुरारी कुमार सिंह (ग्राम-सुपोर-जमुआ), महावीर प्रसाद सिंह(ग्राम-महेशपुर), कार्तिक मंडल(ग्राम-चनकी)और परमानन्द झा (ग्राम-पसराहा) सहित 500 सदस्यों का धावक दल चयनित किया गया |

 

15 फरवरी 1932 का वह बलिदानी दिन

 

15 फ़रवरी सन 1932 को तारापुर थाना भवन पर राष्ट्रीय झंडा तिरंगा फहराने के कार्यक्रम की सूचना पुलिस को पूर्व में ही मिल गयी थी | इसी को लेकर ब्रिटिश कलेक्टर मिस्टर ई० ओ० ली० और एसपी ए० डब्ल्यू० फ्लैग सशस्त्र बल के साथ थाना परिसर में मौजूद थे |

दोपहर 2 बजे धावक दल ने थाना भवन पर धावा बोला और अंग्रेजी सिपाहियों की लाठी और बेत खाते हुए अंततः ध्वज वाहक दल के मदन गोपाल सिंह ने तारापुर थाना पर तिरंगा फहरा दिया | उधर दूर खड़े होकर मनोबल बढ़ा रहे समर्थक धावक दल पर बरसती लाठियों से आक्रोशित हो उठे | गुस्से से उबलते समर्थकों ने पुलिस बल पर पथराव शुरू कर दिया जिसमें कलेक्टर ई० ओ० ली० घायल हो गये और उसने पुलिस बल को निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया | इस गोली काण्ड में पुलिस बल द्वारा कुल 75 चक्र गोलियाँ चली जिसमें कुल 34 क्रान्तिकारी शहीद हुए एवं सैंकडों क्रान्तिकारी घायल हुए |

 

तिरंगे की आन पर जो हो गए बलिदान

 

तिरंगे की आन पर खुद को बलिदान कर देने वाले 34 वीर शहीदों में से मात्र 13 की ही पहचान हो पाई थी , वो थे शहीद विश्वनाथ सिंह (छत्रहार), महिपाल सिंह (रामचुआ), शीतल (असरगंज), सुकुल सोनार (तारापुर), संता पासी (तारापुर), झोंटी झा (सतखरिया), सिंहेश्वर राजहंस (बिहमा), बदरी मंडल (धनपुरा), वसंत धानुक (लौढि़या), रामेश्वर मंडल (पड़भाड़ा), गैबी सिंह (महेशपुर), अशर्फी मंडल (कष्टीकरी) तथा चंडी महतो (चोरगांव)  । इसके अलावे 21 शव ऐसे मिले जिनकी पहचान नहीं हो पायी थी ।

तत्कालीन अंग्रेजी अख़बारों ने चिर-परिचित सरकारी अंदाज में खबर को दंगाई भीड़ द्वारा हथियारों से लैस होकर ब्रिटिश थाना पर हमला बताया और रिपोर्ट में कहीं पर 8 तो कहीं 5 लोगों के मारे जाने का जिक्र किया |

जबकि उस दौर के प्रत्यक्षदर्शियों की कही बाते बताते हुए स्थानीय लोग इस गोलोकांड में 60 से ज्यादा सेनानानियों के मारे जाने की बात कहते हैं | उनके मुताबिक पुलिस द्वारा बहुत से शव तो गंगा में बहा दिए गए थे |

 

उपरोक्त तथ्यों के आलोक में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक सुनहला पन्ना जो कालान्तर में भारतवासियों की स्मृति से बिसरता चला गया आज भी उसका गवाह वो अंग्रेजों का थाना भवन अपनी जगह खड़ा है | सरकार से मांग है कि उस भवन को राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा देकर संरक्षित करे |

 

तारापुर गोलीकांड के विषय में इतिहास की किताबों , इंटरनेट , उस दौर के अख़बारों आदि में खोज करने के दौरान अनेकों संदर्भ मिले उनमें से कुछ का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है |

पी०एन० चोपड़ा की पुस्तक  Who’s who of indian martyrs vol -1 में तारापुर गोलीकांड के 13 ज्ञात शहीद में से 7 की जानकारी वर्णित है |

Munger a land of tradition and dream किताब के पृष्ठ संख्या 50 पर तारापुर के बलिदान का उल्लेख मिलता है |

कांग्रेस अधिवेशन पर संकलित किताब Indian National Congress के पृष्ठ 147 में भी मुंगेर – तारापुर की घटना में शहीदों को श्रद्धांजली दिए जाने का जिक्र है |

इतिहासकार डी सी डीन्कर ने अपनी किताब “ स्वतंत्रता संग्राम में अछूतों का योगदान “ में भी तारापुर की इस घटना का जिक्र करते हुए विशेष रूप से संता पासी और शीतल चमार के योगदान का उल्लेख किया है ।

Bihar District Gazetteers ; Monghyr के पृष्ठ  60 , प्रथम राष्ट्रपति डा० राजेन्द्र प्रसाद की आत्मकथा में पृष्ठ 334 , मन्मथनाथ गुप्त की किताब भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास में पृष्ठ 373-74 में तारापुर के क्रांतिकारी इतिहास को दर्शाया गया है |

The Singapore Free Press and Mercantile Advertiser (1884-1942), 27 February 1932, The Straits Times, 18 February 1932, Page 11 ,The Sydney Morning Herald (NSW 1842 – 1954), Thursday 18 February 1932 page 9 ,The_Indianapolis_News_Tue__Feb_16__1932, The_Roswell_Daily_Record_Tue  16 Feb 1932 , आदि देश-विदेश से प्रकाशित होने वाले तत्कालीन अंग्रेजी अख़बारों में गोलीकांड की खबर छपी थी |

जयराम विप्लव

( लेखक इस घटना के ऐतिहासिक पक्ष पर शोध और थाना भवन को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कराने के लिए आंदोलन कर रहे हैं )

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