संसद ने देश में ऐतिहासिक कर सुधार व्यवस्था जीएसटीÓ को लागू करने का मार्ग प्रशस्त करते हुए वस्तु एवं सेवा कर से जुड़े चार विधेयकों को मंजूरी दे दी। साथ ही सरकार ने आश्वस्त किया कि नयी कर प्रणाली में उपभोक्ताओं और राज्यों के हितों को पूरी तरह से सुरक्षित रखा जाएगा तथा कृषि पर कर नहीं लगाया जाएगा। राज्यसभा ने केंद्रीय माल एवं सेवा कर विधेयक 2017 (सी जीएसटी विधेयक), एकीकृत माल एवं सेवा कर विधेयक 2017 (आई जीएसटी विधेयक), संघ राज्य क्षेत्र माल एवं सेवाकर विधेयक 2017 (यूटी जीएसटी विधेयक) और माल एवं सेवाकर (राज्यों को प्रतिकर) विधेयक 2017 को सम्मिलित चर्चा के बाद लोकसभा को ध्वनिमत से लौटा दिया। इन विधेयकों पर लाये गये विपक्ष के संशोधनों को उच्च सदन ने खारिज कर दिया।
धन विधेयक होने के कारण इन चारों विधेयकों पर राज्यसभा में केवल चर्चा करने का अधिकार था। लोकसभा 29 मार्च को इन विधेयकों को मंजूरी दे चुकी है। वस्तु एवं सेवा कर संबंधी विधेयकों पर चर्चा का जवाब देते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विपक्ष की इन आशंकाओं को निर्मूल बताया कि इन विधेयकों के जरिये कराधान के मामले में संसद के अधिकारों के साथ समझौता किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पहली बात तो यह है कि इसी संसद ने संविधान में संशोधन कर जीएसटी परिषद को करों की दर की सिफारिश करने का अधिकार दिया है।
जेटली ने कहा कि जीएसटी परिषद पहली संघीय निर्णय करने वाली संस्था है। संविधान संशोधन के आधार पर जीएसटी परिषद को मॉडल कानून बनाने का अधिकार दिया गया। जहां तक कानून बनाने की बात है तो यह संघीय ढांचे के आधार पर होगा, वहीं संसद और राज्य विधानसभाओं की सर्वोच्चता बनी रहेगी। हालांकि इन सिफारिशों पर ध्यान रखना होगा क्योंकि अलग-अलग राज्य अगर अलग दर तय करेंगे तो अराजक स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। यह इसकी सौहाद्र्रपूर्ण व्याख्या है और इसका कोई दूसरा अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संविधान में संशोधन कर यह सुनिश्चित किया गया है कि यह देश का एकमात्र ऐसा कर होगा जिसे राज्य एवं केन्द्र एक साथ एकत्र करेंगे।
एक समान कर बनाने की बजाए कई कर दर होने के बारे में आपत्तियों पर स्थिति स्पष्ट करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि कई खाद्य उत्पाद हैं जिनपर अभी शून्य कर लगता है और जीएसटी प्रणाली लागू होने के बाद भी कोई कर नहीं लगेगा। कई चीजें ऐसी होती हैं जिन पर एक समान दर से कर नहीं लगाया जा सकता। जैसे तंबाकू, शराब आदि की दरें ऊंची होती हैं जबकि कपड़ों पर सामान्य दर होती है। जेटली ने कहा कि जीएसटी परिषद में चर्चा के दौरान यह तय हुआ कि आरंभ में कई कर लगाना ज्यादा सरल होगा। वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी परिषद ने विचार विमर्श के बाद जीएसटी व्यवस्था में 0, 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत की दरें तय की हैं। लक्जरी कारों, बोतल बंद वातित पेयों, तंबाकू उत्पाद जैसी अहितकर वस्तुओं एवं कोयला जैसी पर्यावरण से जुड़ी सामग्री पर इसके ऊपर अतिरिक्त उपकर भी लगाने की बात कही है।
उन्होंने कहा कि 28 प्रतिशत से अधिक लगने वाला उपकर (सेस) मुआवजा कोष में जायेगा और जिन राज्यों को नुकसान हो रहा है, उन्हें इसमें से राशि दी जायेगी। ऐसा भी सुझाव आया कि इसे कर के रूप में लगाया जाए। लेकिन कर के रूप में लगाने से उपभोक्ताओं पर प्रभाव पड़ता। बहरहाल, उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त कर नहीं लगाया जायेगा।
जेटली ने कहा कि मुआवजा उन राज्यों को दिया जायेगा जिन्हें जीएसटी प्रणाली लागू होने से नुकसान हो रहा हो। यह आरंभ के पांच वर्षों के लिए होगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के दौरान इसलिए जीएसटी पर आमसहमति नहीं बन सकी क्योंकि नुकसान वाले राज्यों को मुआवजे के लिए कोई पेशकश नहीं की गई थी। जीएसटी में मुआवजे का प्रावधान डील करने में सहायकÓ हुआ और राज्य साथ आए।
जीएसटी में रीयल इस्टेट क्षेत्र को शामिल नहीं किये जाने पर कई सदस्यों की आपत्ति पर स्पष्टीकरण देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें राज्यों को काफी राजस्व मिलता है। इसमें रजिस्ट्री तथा अन्य शुल्कों से राज्यों की आय होती है इसलिए राज्यों की राय के आधार पर इसे जीएसटी में शामिल नहीं किया गया है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जीएसटी परिषद में कोई भी फैसला लेने में केंद्र का वोट केवल एक तिहाई है जबकि दो तिहाई वोट राज्यों को है। इसलिए कोई भी फैसला करते समय केंद्र अपनी राय थोपने के पक्ष में नहीं है।
वस्तु एवं सेवा कर को संवैधानिक मंजूरी प्राप्त पहला संघीय अनुबंध करार देते हुए जेटली ने कहा कि उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त कर का भार नहीं डालते हुए जीएसटी के माध्यम से देश में एक राष्ट्र, एक करÓ की प्रणाली लागू करने का मार्ग प्रशस्त होगा। वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी परिषद कर ढांचे को सर्वसम्मति से तय कर रही है और इस बारे में अब तक 12 बैठकें हो चुकी हैं। यह विधेयक केंद्र और राज्य सरकारों के बीच साझी संप्रभुता के सिद्धांत पर आधारित है और यह ऐसी पहली पहल है। जीएसटी के लागू होने पर केन्द्रीय स्तर पर लगने वाले उत्पाद शुल्क, सेवाकर और राज्यों में लगने वाले मूल्य वर्धित कर (वैट) सहित कई अन्य कर इसमें समाहित हो जायेंगे।
जेटली ने विधेयकों को स्पष्ट करते हुए कहा कि केंद्रीय जीएसटी संबंधी विधेयक के माध्यम से उत्पाद, सेवा कर और अतिरिक्त सीमा शुल्क समाप्त हो जाने की स्थिति में केंद्र को कर लगाने का अधिकार होगा। समन्वित जीएसटी या आईजीएसटी के जरिये वस्तु और सेवाओं की राज्यों में आवाजाही पर केंद्र को कर लगाने का अधिकार होगा।
कर छूट के संबंध में मुनाफे कमाने से रोकने के उपबंध के बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि अगर 4.5 प्रतिशत कर छूट दी जाती है तब इसका अर्थ यह नहीं कि उसे निजी मुनाफा माना जाए बल्कि इसका लाभ उपभोक्ताओं को भी दिया जाए। इस उपबंध का आशय यही है।
वित्त मंत्री ने कहा कि रियल इस्टेट की तरह ही स्थिति शराब और पेट्रोलियम उत्पादों के संबंध में भी थी। राज्यों के साथ चर्चा के बाद पेट्रोलियम पदार्थों को इसके दायरे में लाया गया है लेकिन इसे अभी शून्य दर के तहत रखा गया है। इस पर जीएसटी परिषद विचार करेगी। शराब अभी भी इसके दायरे से बाहर है।
वित्त मंत्री ने कहा कि पहले एक व्यक्ति को व्यवसाय के लिए कई मूल्यांकन एजेंसियों के पास जाना पड़ता था। आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए उत्पाद शुल्क, सेवा कर, राज्य वैट, मनारंजन कर, प्रवेश शुल्क, लक्जरी टैक्स एवं कई अन्य कर से गुजरना पड़ता था। वित्त मंत्री कहा कि वस्तुओं और सेवरआ का देर्श म सुगम प्रवाह नहीं था। ऐसे में जीएसटी प्रणाली को आगे बढ़ाया गया। एक ऐसा कर जहां एक मूल्यांकन अधिकारी हो। अधिकतर स्व मूल्यांकन हो और ऑडिट मामलों को छोड़कर केवल सीमित मूल्यांकन हो। जेटली ने कहा कि कर के ऊपर कर लगता है जिससे मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति बढ़ती है। इसलिए सारे देश को एक बाजार बनाने का विचार आया। यह बात आई कि सरल व्यवस्था देश के अंदर लाई जाए।
कृषि को जीएसटी के दायरे में लाने को निर्मूल बताते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि कृषि एवं कृषक को पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती है। धारा 23 के तहत कृषक एवं कृषि को छूट मिली हुई है। इसलिए इस छूट की व्याख्या के लिए परिभाषा में इसे रखा गया है। इस बारे में कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। जेटली ने कहा कि कृषि उत्पाद जब शून्य दर वाले हैं तब इस बारे में कोई भ्रम की स्थिति नहीं होनी चाहिए।
इस बारे में कांग्रेस की आपत्तियों को खारिज करते हुए जेटली ने कहा कि 29 राज्य, दो केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्र ने इस पर विचार किया जिसमें कांग्रेस शासित प्रदेश के आठ वित्त मंत्री शामिल थे। तब क्या इन सभी ने मिलकर एक खास वर्ग के खिलाफ साजिश की?ÓÓ जीएसटी लागू होने के बाद वस्तु एवं जिंस की कीमतों में वृद्धि की आशंकाओं को खारिज करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि कर की दर वर्तमान स्तर पर रखी जायेगी ताकि इसका मुद्रास्फीति संबंधी प्रभाव नहीं पड़े। जेटली ने कहा कि जम्मू कश्मीर विधानसभा जीएसटी के बारे में अपना एक विधान लाएगी। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर के वित्त मंत्री ने जीएसटी परिषद की सभी बैठकों ने भाग लिया है।
लागू हुआ तो 18 फीसदी देना होगा सर्विस टैक्स, जेब ढीली करने के लिए रहें तैयार
राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने कहा कि सर्विस टैक्स की दर 18 फीसदी तक बढ़ सकती है…
• जीएसटी लागू होने के बाद सेवा क्षेत्र के करों में बढ़ोतरी की संभावना
• वर्तमान में लिया जा रहा 15 फीसदी सर्विस टैक्स
• वर्तमान में 60 सेवाओं को सेवा कर से छूट मिली है
राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने एक साक्षात्कार में कहा, Óहां, सेवा क्षेत्र के लिए करों की मानक दर 18 फीसदी तक बढ़ सकती है.Ó हालांकि वर्तमान में जिन क्षेत्रों को इससे छूट मिली है वह जारी रह सकती है, जिसमें स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और कृषि क्षेत्र शामिल हैं. उन्होंने कहा, Óवर्तमान में जिन क्षेत्रों को छूट मिली है, हम उन्हें जारी रखने की कोशिश करेंगे. हमने परिषद के समक्ष इसकी सिफारिश की है जो इस पर फैसला करेगी. संभावना है कि वे इसे स्वीकार करेंगे.Ó
वर्तमान में सेवा क्षेत्र पर 14 फीसदी कर के साथ दो अलग-अलग सेस, स्वच्छ भारत सेस और कृषि कल्याण सेस, लगाया जाता है जिनकी दरें आधा-आधा फीसदी हैं. इस तरह सेवा क्षेत्र को 15 फीसदी कर चुकाना होता है. अधिया ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि हालांकि जिनकी आय 20 लाख रुपये सालाना से कम है, वे जीएसटी के तहत नहीं आएंगे और उन्हें कोई सर्विस टैक्स नहीं देना होगा. जीएसटी कानून के अंतर्गत किसानों को, जो खुद व परिवारवालों के साथ खेती करते हैं और उनका कारोबार 20 लाख रुपये अधिक है, तो भी उन्हें जीएसटी के अंतर्गत नहीं रखा जाएगा. वर्तमान में रेशम उत्पादन, फूलों की खेती, दुग्ध उत्पादन, बागवानी और मत्स्य पालन में बड़ी संख्या में बाहरी श्रमिकों की सेवाएं ली जाती है। फिलहाल उन्हें सेवा कर से छूट मिली है। क्या जीएसटी में भी उन्हें यह छूट दी जाए या नहीं, इस पर अभी विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा, Óहमने अभी तक छूट की सूची पर फैसला नहीं किया है। इस पर परिषद अलग से विचार करेगी। मैं नहीं समझता कि फिलहाल कृषि से जुड़े किसी क्षेत्र पर कर लगाया जाएगा।Ó
उन्होंने यह भी कहा कि जिन सेवाओं पर फिलहाल 15 फीसदी से कम सेवा कर लगाया जा रहा है, उसे जारी रखने की कोशिश की जाएगी। राजस्व सचिव ने यह भी कहा कि चूंकि पेट्रोल और पेट्रोलियम पदार्थो को जीएसटी के अंतर्गत शून्य शुल्क में रखा गया है, ऐसे में परिवहन पर 5 फीसदी कर लगाया जा सकता है। जीएसटी परिषद ने करों के चार स्लैब तय किए हैं, 5 फीसदी, 12 फीसदी, 18 फीसदी और 28 फीसदी। इसके अलावा एक शून्य फीसदी का स्लैब भी है। वर्तमान में 60 सेवाओं को सेवा कर से छूट मिली है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और धार्मिक यात्रा शामिल है।
नोटबंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था को मामूली झटका लगा है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के क्रियान्वयन से भारतीय अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी और चालू वित्त वर्ष 2017-18 में भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी। विश्व बैंक की दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्था पर रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है। विश्व बैंक का कहना है कि 2018-19 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर और बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो जाएगी। ठ्ठ
4 लाख कंपनियों का रजिस्ट्रेशन होगा रद्द
आयकर विभाग अब उन कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की योजना बना रहा है जिन्होंने रिटर्न नहीं भरा है। अब तक ऐसी 4 लाख कंपनियों को आयकर विभाग नोटिस भेज चुका है जिन्होंने वित्त वर्ष 2013-14 और 2014-15 का आयकर रिटर्न नहीं भरा है।
क्कक्कस्न की दर में कटौती के बाद भी निवेश के 6 अवसर मौजूद, जानें यहां करीब एक महीने से आयकर विभाग ऐसी कंपनियों को नोटिस भेज रहा है। इन कंपनियों ने वित्त वर्ष 2015-16 के लिए भी आयकर रिटर्न दाखिल नहीं किया है। हालांकि आयकर विभाग अभी भी इन कंपनियों को एक अंतिम अवसर दे रहा है।
आयकर विभाग इन कंपनियों को रिटर्न दाखिल करने के लिए 30 दिन की मोहलत दे रहा है। अगर ये कंपनियां इस दौरान भी रिटर्न दाखिल नहीं करती हैं तो इंकम टैक्स विभाग इन कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की तैयारी में है।
कंपनियों से संबंधित जानकारी भी होगी सार्वजनिक
इसी के साथ कंपनी मामलों का मंत्रालय ऐसा न करने वाली कंपनियों से संबंधित जानकारी भी सार्वजनिक कर देगा। इसके अलावा मंत्रालय ऐसी कंपनियों के डायरेक्टर्स के नाम और कंपनी से जुड़ी अन्य जानकारियां भी इंकम टैक्स डिपार्टमेंट, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और बैंकों को दे देगा।
स्मार्टफोन बाजार: भारत के ‘संरक्षणवादÓ पर कार्रवाई कर सकता है चीन
हालांकि कंपनी अधिनियम अभी भी कंपनियों को ‘निष्क्रियÓ टैग का विकल्प चुनने का अवसर मुहैया करवाता है लेकिन बहुत कम कंपनियां इस विकल्प का चुनाव करती हैं। मार्च 2015 में वित्त वर्ष समाप्ति पर 14.6 लाख कंपनियों में से 10.2 लाख कंपनियों को एक्टिव घोषित किया गया था जबकि कुल 214 कंपनियां निष्क्रिय घोषित की गई थीं। सूत्रों के मुताबिक नाम रद्द करने की धमकी मात्र से ही कई कंपनियों ने आयकर रिटर्न दाखिल करना शुरू कर दिया है।
11 लाख भारतीय शैल कंपनियां भी विभाग के राडार पर
कंपनी मामलों के मंत्रालय से जुड़े एक सूत्र ने कहा,”हम नहीं जानते कि ऐसी कंपनियां सच में कारोबार कर रही हैं या फिर बस पेपर पर चल रही हैं। पहले हमें उनकी स्थिति की जांच करनी होगी। आयकर रिटर्न दाखिल न करने वाली करीब 11 लाख भारतीय शैल कंपनियां भी विभाग के राडार पर हैं।
दो लाख से ज्यादा कंपनियों का पंजीकरण तुरंत रद्द करने की तैयारी
कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की ओर से यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब मुखौटा कंपनियों के खिलाफ सरकारी एजेंसियों की मुहिम ने रफ्तार पकड़ रखी है।
सरकार दो लाख से ज्यादा कंपनियों का पंजीकरण रद करने की तैयारी में है। इन कंपनियों में लंबे समय से कारोबार नहीं हो रहा हैं। काले धन पर अंकुश लगाने की चौतरफा कोशिशों के बीच इस दिशा में विचार हो रहा है। इस तरह की कंपनियों का इस्तेमाल मनी लांड्रिंग में किए जाने की आशंका रहती है।
विभिन्न राज्यों में फैली दो लाख से ज्यादा कंपनियों को कारण बताओ नोटिस भेजा गया है। इन कंपनियों से पूछा गया है कि क्यों लंबे समय से उनमें कोई ऑपरेशन या व्यावसायिक गतिविधि नहीं हो रही है। कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की ओर से यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब मुखौटा कंपनियों के खिलाफ सरकारी एजेंसियों की मुहिम ने रफ्तार पकड़ रखी है।
मंत्रालय के पास उपलब्ध सूचना के अनुसार, विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कंपनी रजिस्ट्रार (आरओसी) ने कंपनी एक्ट, 2013 के तहत दो लाख से ज्यादा नोटिस जारी किए हैं। कंपनियों को ये नोटिस एक्ट की धारा 248 के तहत जारी किए गए हैं। इसका क्रियान्वयन मंत्रालय करता है। यह धारा कुछ खास कारणों के आधार पर कंपनियों का पंजीकरण रद करने से जुड़ी है।
नोटिस के साथ संबंधित कंपनियों को अपनी स्थिति का विवरण देने को कहा गया है। अगर जवाब संतोषजनक नहीं हुआ, तो उनके नाम मंत्रालय हटा देगा। डाटा से पता चलता है कि आरओसी मुंबई ने 71,000 से अधिक कंपनियों को नोटिस जारी किए हैं। जबकि आरओसी दिल्ली ने 53,000 से ज्यादा फर्मो को नोटिस भेजे हैं।
नियमों के मुताबिक, आरओसी एक कंपनी से पूछ सकता है कि क्या उसने पंजीकृत होने के एक वर्ष के भीतर व्यवसाय शुरू किया। ऐसी कंपनियों को भी नोटिस जारी किया जाता है जिन्होंने निरंतर दो वित्तीय वर्षो तक कारोबार नहीं किया। न ही निष्क्रिय दर्जे के लिए आवेदन किया। कंपनियों को अपनी आपत्ति दर्ज करने के लिए 30 दिन का समय दिया जाता है।
अगर प्रतिक्रि या संतोषजनक नहीं है तो मंत्रालय के पास कंपनियों के रजिस्टर से ऐसे संस्थान का नाम हटाने का अधिकार है। इस महीने के शुरू में मंत्रालय ने कंपनी (कंपनियों के रजिस्टर से कंपनियों का नाम हटाना) नियमों में बदलाव किया था। देश में 15 लाख से ज्यादा पंजीकृत कंपनियां हैं