अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आगामी सप्ताह शुरू हो रही भारत यात्रा के दौरान उनकी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य भारतीय नेताओं के साथ आपसी और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बेबाकी से बात तो होगी ही। तब दोनों देशों को इस्लामिक आतंकवाद से एकजुट होकर लड़ने की रणनीति भी बना लेनी चाहिए। भारत के तो पड़ोस पाकिस्तान में ही आतंकवाद की फैक्ट्री धड़ल्ले से चल रही है। पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के इशारों पर मुंबई हमले से लेकर पुलवामा तक का हादसा हुआ था। इसी तरह से अमेरिका भी इस्लामिक आतंकवाद से ही बुरी तरह का मारा हुआ है। डोनाल्ड ट्रंप भी अब यह मानते हैं कि नरेंद्र मोदी आतंकवाद से निपटने में पूरी तरह सक्षम हैं।
पिछले साल अमेरिका के शहर ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी‘ इवेंट में मंच साझा करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आतंकवाद के बढते खतरों से निपटने के मसले पर विषद चर्चा की थी। बातचीत के दौरान जब पत्रकारों ने अमेरिकी राष्ट्रपति से अलकायदा और पाकिस्तान पोषित आतंकवाद पर सवाल किया तो उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस्लामिक आतंकवाद से निपटने में सक्षम हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस अहम टिप्पणी से दुनिया को पता चल गया कि मोदी लड़ सकते हैं। इस्लामिक आतंकवाद तो बेशक सारी दुनिया को ही खा रहा है। ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति पद की कैंपेन के समय भी इस्लामिक आतंकवाद पर हल्ला बोल रहे थे। उन्होंने यह तक कहा था कि 11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद दुनिया भर के मुसलमान जश्न मनाने के लिए‘सड़कों पर उतर‘ आए थे। यह इस्लामिक आतंकवाद की गंभीरता को ही दर्शाता है।
बेशक, भारत- अमेरिका को इस्लामिक आतंकवाद को कुचलने के क्रम में समान विचारधारा वाले मुल्कों को भी जोड़ लेना चाहिए। इस लिहाज से इजराईल का उल्लेख करना समीचिन रहेगा। जर्मनी, फ़्रांस और ग्रेट ब्रिटेन भी कम तबाह नहीं हुए। तब ही इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को बेहतर तरीके से चलाया जा सकेगा।
ट्रंप कई बार भारत के साथ मिलकर इस्लामिक आतंकवाद से लड़ने का आहवान कर चुके हैं। इस लिहाज से ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ अब सारी दुनिया देख रही है। दोनों नेताओं की आपसी कैंमेस्ट्री भी शानदार है। दोनों में घनिष्ठ संबंध हैं। ट्रंप की तरह नरेंद्र मोदी भी कहते रहे हैं कि समय आ गया है कि आतंक के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी जाए। वे ट्रंप के संबंध में पहले ही कह चुके हैं कि ट्रंप आतंक के खिलाफ मजबूती से खड़े हैं।
कुचलो आतंकवाद को
निश्चित रूप से आतंकवाद जैसी विकराल और सृष्टि नाशक चुनौती पर विजय पाया जाना जरूरी है। दुनिया के दो बड़े और असरदार लोकतांत्रिक देशों के नेताओं में आतंकवाद के खात्मे को लेकर इस तरह की सहमति बनना सम्पूर्ण मानवता के लिए सुखद होगा।
इस्लामिक आतंकवाद से सारी दुनिया त्राहि-त्राहि कर रही है। इसके बावजूद अभी तक इन खून के प्यासों से सही तरह से लड़ा नहीं जा रहा। जहां तक भारत का प्रश्न है, तो यहां कश्मीर से लेकर केरल तक में इस्लामिक आतंकवाद अपनी जड़ें ही जमा रहा है। कुछ समय पहले ही जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी के छात्र शरजील इमाम को पुलिस ने गिरफ्तार किया। वह असम को भारत से अलग करने के ख्वाब देख रहा था। अब उसके खिलाफ राजद्रोह का चार्जशीट भी दाखिल हो चुका है। उसके साथ उसके 18 अन्य शातिर सहयोगी भी इस चार्जशीट में अपराधी बनाये गए हैं। जिन्होंने जामिया में दंगा कराया था और आगजनी करवाई थी। भारत इस्लामिक आतंकवाद से लड़ रहा है और जीत भी रहा है। अब इस्लामिक आतंकवाद से बेहतर तरीके से लड़ा जा सकेगा क्योंकि अब भारत को अमेरिका का साथ भी मिल रहा है।
सारी दुनिया ने “इस्लामिक स्टेट” नामक क्रूर और खूँखार आतंकी संगठन के चर्चे हैं। कुछ वर्ष पहले जब तक ओसामा जीवित था, तब“अल-कायदा” का डंका बजता था।और उससे भी पहले जब अफगानिस्तान में बुद्ध की प्रतिमा को उड़ाया गया था, तब “तालिबान” का नाम चलता था। अब “ इस्लामिक स्टेट” ने आतंकवाद की कमान संभाल रखी है।
इस बीच, ट्रंप की भारत यात्रा को लेकर पाकिस्तान ख़ासा परेशान है। पाकिस्तान की इणरान खान सरकार ट्रंप की यात्रा के परिणामों का बेसब्री से इंतजार कर रही है। भारत को ट्रंप की यात्रा के समय इमरान खान को सही तरह से एकसपोज करना चाहिए। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में झूठ का पुलिंदा रखा। इसकी भी ढंग से भर्त्सना हो।
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35 ए समाप्त करने के बाद भारत को परमाणु जंग की धमकी देने वाले पाकिस्तान के इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र में नफरत से भरी हुई तकरीर दी थी। इमरान खान नियाज़ी का रोना-पीटना भी दुनिया ने देख लिया।पहले उन्होंने किसी मंजे हुए इस्लामी जानकार की तरह इस्लाम की शिक्षाओं के बारे में बताया। यहां तक तो ठीक था,मगर फिर जब उन्होंने कश्मीर को लेकर शोर मचाना शुरू किया तो उनका झूठ दुनिया के सामने आ गया। कश्मीर के लोगों से हमदर्दी रखने वाले इमरान गिलगिट-बलूचिस्तान,पश्तूनों, सिंधियों और मोहाज़िरों और अपने शहद से भी ज़्यादा मीठे दोस्त चीन में उईगरों मुसलमानों पर अत्याचार के बारे में भी बोलते तो ज़्यादा अच्छा होता। पर वे तो भारतीय प्रधानमंत्री मोदी पर ही हल्ला बोलते रहे थे। इमरान खान संयुक्त राष्ट्र को डराने वाले अंदाज में एटमी जंग की ओर इशारा कर रहे थे। भारत सरकार को ट्रंप को बताना चाहिए कि किस तरह से इमरान खान दुनिया को एटम बम के नाम पर ब्लैकमेल कर रहे हैं।
भारत यात्रा पर आ रहे ट्रंप ने पाकिस्तान न जाकर उसे एक कड़ा संदेश दिया है। उसे एक तरह से बता दिय गया है कि वह आतंकवाद की फैक्ट्री है इसीलिए वे परहेज कर रहे हैं। इमरान खान को समझ लेना चाहिए कि न तो ट्रंप और न ही विश्व बिरादरी उन पर कोई यकीन करती है। दुनिया में कहीं भी कोई आतंकवाद की घटना हो, उसमें किसी न किसी पाकिस्तानी का हाथ अवश्य होता है। जिस देश से ओसामा बिन लादेन निकले उस देश पर दुनिया यकीन किस आधार पर करेगी?
जैसा कि पहले कहा गया कि भारत और अमेरिका को आतंकवाद से लड़ते हुए इजराईल को अपने साथ रखना होगा। इजराईल भी इस्लामिक आतंकवाद का दशकों से शिकार होता रहा है। एक दौर में भारत खुलकर इजराईल के साथ संबंधों को नई दिशा देने से बचता था। केन्द्र में कांग्रेस सरकारों के दौर में अल्पसंख्यक तुष्टीकरण नीति के तहत भारत के कूटनीतिक हितों की घोर अनदेखी हुई। माना जाता रहा कि इजराईल से संबंध रखने से देश के मुसलमान खफा हो जाएंगे। पर अब भारतकी कूटनीति में इजराईल एक अहम देश है। ताजा स्थिति यह है कि इजराईल की तरफ से भारत को कई क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग प्राप्त हो रहा है। अगर यह सहयोग भी आतंकवाद को कुचलने में भी हो जाए तो बेहतर होगा।
आर.के. सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)