युवाओं में स्वरोजगार का भाव और मूल्य आधारित
शिक्षा से ही होगा ‘न्यू इंडिया’ का निर्माण
डायलॉग इंडिया अकेडमिया अवॉर्ड -2018 में सम्मानित हुए दो दर्जन से अधिक उच्च शिक्षा संस्थान
देश मे जमीनी बदलाव में लगे लब्ध प्रतिष्ठित विद्वतजनों का संबोधन देश के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा संस्थानों के संचालकों की भागीदारी, उच्च स्तरीय संवाद, मंथन और क्रांतिकारी सुझाव व निष्कर्ष, यह लब्बोलुआब है डायलॉग इंडिया अकेडमिया कॉन्क्लेव एवं अवार्ड फंक्शन- 2018 के पुणे में आयोजित दूसरे सत्र का। डायलॉग इंडिया प्रकाशन समूह द्वारा अपने सहयोगी एफएमए डिजिटल के साथ मिलकर पुणे के होटल नोवेटल में प्रधानमंत्री मोदी के विजन ‘यूथ फ़ॉर न्यू इंडिया’ के व्यावहारिक क्रियान्वयन के मार्ग खोजने व देश के शिक्षा संस्थानों को इससे जोडऩे के लिए मई में आईआईटी दिल्ली में (जिसमें उत्तर, पूर्व व उत्तरपूर्व के निजी क्षेत्र के श्रेष्ठ उच्च शिक्षा संस्थानों ने भाग लिया) और जून में पुणे में (जिसमें मध्य, पश्चिमी व दक्षिणी भारत के निजी क्षेत्र के श्रेष्ठ उच्च शिक्षा संस्थानों ने भाग लिया) यह महामंथन आयोजित किया। श्रेष्ठ संस्थानों का चयन डायलॉग इंडिया अकेडमिया रैंकिंग- 2018 के सर्वे के आधार पर किया गया और निम्न संस्थानों को इस अपेक्षा के साथ सम्मानित भी किया गया कि ये संस्थान देश मे व्यापक राष्ट्रपरक जमीनी बदलावों के ब्रांड अम्बेसडर बन ‘न्यू इंडिया’ के निर्माण के इंजन बनेंगे।
अमृता विश्व विद्यापीठम, निरमा यूनिवर्सिटी, भारतीय विद्यापीठ, एमआईटी यूनिवर्सिटी, सिम्बोइसिस यूनिवर्सिटी, एमिटी यूनिवर्सिटी (ग्वालियर), बन्नरी अम्मान इंजीनियरिंग कॉलेज, सीएमआर इंजीनियरिंग कॉलेज, कोंगु इंजीनियरिंग कॉलेज, सार्वजनिक कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एन्ड टेक्नोलॉजी, मातोश्री प्रतिष्ठान ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट, एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एन्ड टेक्नोलॉजी, एम्स इंस्टीट्यूट, , थांगई कुंजू मुस्लर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, कैम्ब्रिज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, चिरायु मेडिकल कॉलेज, बापूजी डेंटल कॉलेज, ममता डेंटल कॉलेज, कर्णावती कॉलेज ऑफ डेन्टिस्ट्री, सिम्बोइसिस इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस मैनजमेंट, एएसएम इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट, सूर्यदत्ता ग्रुप ऑफ मैनेजमेंट, जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनजमेंट, डॉ डी वाई पाटिल इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, एम आई टी स्कूल ऑफ मैनेजमेंट सहित लगभग 30 संस्थान।
इस विशिष्ट अवसर पर खुलकर शिक्षा व्यवस्था की उपलब्धियों व कमियों पर चर्चा की गई और आगे का रोड मैप बनाने का चिन्तन भी हुआ जिसमें विविध क्षेत्र के गणमान्य लोगों ने भाग लिया, जिनमें प्रमुख हैं पुणे के सांसद अनिल शिरोले, भारत सरकार के पूर्व सचिव डॉ कमल टावरी, मोटिवेशनल स्पीकर व प्रगति फाउंडेशन के संस्थापक अरुण बाकलु, रूरल रिलेशन के संस्थापक व प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप लोखंडे, महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाचारपत्र समूह ‘आज का आनंद’ के एमडी आनंद अग्रवाल, डायलॉग इंडिया के संपादक अनुज अग्रवाल, प्रबंध संपादक डॉ सारिका अग्रवाल, एफ एम ए डिजिटल के फाउंडर डायरेक्टर राहुल जैन के साथ ही एमिटी यूनिवर्सिटी ग्वालियर के वाइस चांसलर ले. जनरल वी के शर्मा, कर्णावती यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ दीपक शिशु, अजनकया दी वाई पाटिल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ ई बी खेड़कर, डॉ सायली गनाकर, डीन व डायरेक्ट एम आई टी यूनिवर्सिटी, सिम्बायोसिस हैदराबाद के डायरेक्टर डॉ रवि कुमार जैन, आईएम आर की डायरेक्टर डॉ मंजू पुनिया चोपड़ा, प्रो. अरुणा कटारा, डॉ पंडित माली, डॉ ललित खतपालिया, डॉ केरेन जे रेड्डी, डॉ अर्चना पाटिल, गोपाल गुप्ता, डॉ संपदा थिगले, डॉ श्रेया शेट्टी आदि ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
दिन भर चार सत्रों में चले विमर्श का सार निम्न बिंदुओं में केंद्रित है
- देश मे व्यापक बदलाव तभी लाए जा सकते हैं जब देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- युवाओं को सरकारी नौकरी व अनुदान के आकर्षण से निकाल कर उनमें उद्यमिता का विकास करना जरूरी है।
3 देश के उच्च शिक्षा संस्थानों की शैक्षणिक पद्धति में व्यापक बदलाव की जरूरत है जिससे रट्टू तोता व नौकरी के लिए लालायित पीढ़ी की जगह मौलिक सोच व रचनात्मकता युक्त आत्मविश्वास से भरपूर उद्यमिता युक्त संस्कारी, राष्ट्र से प्रेम करने वाली जमीन से जुड़ी युवा पीढ़ी का निर्माण हो सके।
- शिक्षा संस्थानों में ‘रचनात्मक अराजकता’ का माहौल बने और स्वायत्ता के साथ जवाबदेही की अवधारणा का विकास हो सके।
- भारत का भारतीयकरण, स्वदेशी, उद्यमिता का विकास, शोध, कृषि व ग्रामीण विकास पर जोर, अनुसंधान व स्टार्ट अप पर जोर देने से ही बनेगा नव भारत।
कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताते हुए डायलॉग इंडिया के संपादक अनुज अग्रवाल ने बताया कि दक्षिण, पश्चिमी व मध्य भारत में उनके प्रकाशन की यह धमाकेदार दस्तक है जिसमें देश के इस भाग के 100 से अधिक संस्थानों ने भाग लिया और कार्यक्रम के अंत में यह कहते हुए विदा ली कि लंबे समय बाद किसी विमर्श से इतना कुछ सार्थक व नयी दृष्टि लेकर जा रहे हैं। सुदूर प्रदेश से आकर कार्यक्रम की भागीदारी अत्यंत सार्थक रही।
शिक्षा को लेकर हम भारतीय जनमानस में एक स्थायी निराशा का भाव बना रहता है। युवाओं के भविष्य को लेकर इस तरह चिन्ता अभिभावकों के मन में रहती ही है। यही वजह है कि जो भी सक्षम परिवार हैं, वे अपने बच्चों को पढऩे के लिए देश से बाहर भेजने के विकल्प को ही सबसे बेहतर मानते हैं। उनका विश्वास भारतीय शिक्षा पर जमता नहीं है। इस देश से गांधी और नेहरू ने भी अच्छी शिक्षा के लिए ही पलायन किया था। अब देश को आजाद हुए भी 70 साल हो गए लेकिन लगता नहीं की कोई बड़ा परिवर्तन आया है। वैसे देश में डायलॉग इंडिया जैसी संस्थाएं भी काम कर रही हैं, जो देश भर में ऐसे शिक्षा के केन्द्रों की तलाश प्रत्येक साल करती है, जो संस्थाएं भारत में मौजूद शिक्षण संस्थानों में कुछ बेहतर काम कर रही हो। ऐसे ही शिक्षण संस्थानों को सम्मानित करने के उद्देश्य से पुणे में डायलॉग इंडिया ने 9वां डायलॉग इंडिया अकेडमिक कॉन्क्लेेव आयोजित किया जिसमें भारतीय निजी शिक्षण संस्थानों की रैंकिंग जारी की गई और प्रशंसनीय प्रदर्शन करने वाले संस्थानों को सम्मानित भी किया गया। इस कॉन्क्लेव में दक्षिण, पश्चिम और मध्य भारत के शिक्षण संस्थान शामिल हुए।
कॉन्क्लेव की शुरूआत दीप प्रज्ज्वलन और निशिगंधा की शानदार एंकरिंग से हुई। एफएमए डिजिटल के निदेशक और सम्मान समारोह के आयोजकों में से एक राहुल जैन ने कॉन्क्लेव में आए डेलिगेट्स का स्वागत किया। आयोजन को दिल्ली से पुणे लाने पर जैन ने कहा कि सारे अवॉर्ड फंक्शन दिल्ली में होते हैं, पुणे में क्यों नहीं हो सकते? स्थान के बाद राहुल जैन परिचर्चा के विषय पर आए। प्रधानमंत्री मोदी की दृष्टि और नए भारत के युवा। इस विषय में प्रधानमंत्री का नाम आया था, राहुल कहते हैं, यह कॉन्क्लेव मोदी के साथ या विरोध में नहीं है। यह देश के लिए है। गरीबी से मुक्त—समृद्धि से युक्त। भेदभाव से मुक्त, समानता से युक्त। अन्याय से मुक्त—न्याय से युक्त। गंदगी से मुक्त— स्वच्छता से युक्त। ऐसे भारत की कल्पना यदि मोदी करते हैं, तो मुझे लगता है कि यहां मौजूद हर एक भारतीय ऐसा ही देश चाहेगा। इस विचार से वह सहमत होगा।
इस पूरे आयोजन की परिकल्पना अनुज अग्रवाल की है। अनुज अग्रवाल डायलॉग इंडिया के संपादक हैं। उनका वक्तव्य सर्वेक्षण पर केन्द्रित रहा। अनुज अग्रवाल ने मंच से कहा —पहली बार देश में इतना कॉम्परीहेन्सिव सर्वेक्षण हुआ है। जिसमें शिक्षा के सभी पक्षों को कवर किया गया है। यह इस सर्वेक्षण की एक्सक्लूसिवनेस है। जनवरी से अप्रैल तक के चार महीनों में यह सर्वेक्षण सम्पन्न किया गया। हमने अपने सर्वेक्षण के दौरान पाया कि आज के समय में वही शिक्षण संस्थान खुद को बचाए रख सकता है, जिसमें दम हो। जिसकी शिक्षा गुणवत्ता से भरी हो। जिनके पास बताने को और पढ़ाने को कुछ नया हो। सरकार भी दिन प्रतिदिन शिक्षा संबंधी अपनी नीतियों में सुधार ला रही है।
सुधार शिक्षा के क्षेत्र में जितना भी आ रहा हो, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि चार कदम चले हैं और अभी 16 कदम चलना शेष है। वैसे मोदी सरकार को अभी चार साल हुए हैं। 125 करोड़ के देश में चार सालों में पूरा देश बदल जाए, इस बात की अपेक्षा रखना भी सरकार के साथ ज्यादती होगी।
रूरल रिलेशन के संस्थापक प्रदीप लोखंडे पूरी बातचीत को गांव की तरफ ले गए। वक्तव्य देश की सबसे बड़ी समस्या की पहचान से प्रारंभ हुआ। लोखंडे साहब के अनुसार देश की सबसे बड़ी समस्या देश के नागरिकों की सोच में धंसी हुई नकारात्मकता है। देश में बहुमत यह मानता है कि पूरा देश चोर है। भ्रष्ट है। इस देश का कुछ नहीं हो सकता है। गांव के बदलाव के लिए कुछ बड़े बदलाव की आवश्यकता है। पहला परिवर्तन शिक्षा के संदर्भ में हो। हमें देश के विकास के संबंध में विचार करते हुए यह नहीं भूलना चाहिए कि हम विकसित नहीं विकासशील देश हैं। इस तरह बात—बात में हमें विकसित देशों से अपनी तुलना से बचना चाहिए। विकासशील होने के बावजूद देश विकसित होने की तरफ धीरे—धीरे कदम बढ़ा रहा है। देश के 81 प्रतिशत गांव सड़कों से जुड़ गए हैं। अब हमें थोड़ा सकारात्मक होकर सोचने की जरूरत है। गांव—गांव तक सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधा पहुंच रही है। अब एक बड़े परिवर्तन की आवश्यकता ग्राम पंचायत को लेकर है। ग्राम पंचायतों को यदि मजबूत करते हैं तो निश्चित तौर पर इससे देश मजबूत होगा। यदि हम देश के संबंध में हर बात नकारात्मक होकर सोचने की जगह थोड़ा सकारात्मक होकर सोचना शुरू करें तो 2030 तक भारत देश एक महान देश बनकर उभरेगा।
प्रगति फाउंडेशन के अध्यक्ष अरूण बागरू के अनुभवों का लाभ वक्ता के तौर पर और संचालक के नाते कॉन्क्लेव को मिला। श्री बागरू ने कहा कि देश का नेतृत्व और अकादेमिक समाज दोनों मिलकर देश के विकास के संबंध में विचार करें तो ये दोनों इतने क्षमतावान हैं कि देश का भविष्य बना सकते हैं। ये देश के नौजवानों की सोच बदल सकते हैं।
यदि इस एक दिवसीय अकादेमिया कॉन्क्लेव में एक दिवसीय क्रिकेट की तरह मैन ऑफ द मैच दिए जान का कोई प्रावधान होता तो पूरे दिन जिस एक व्यक्ति पर श्रोताओं की नजर बनी रही, ऐसे कमल टावरी को यह अवॉर्ड जाता। कमल टावरी मेंटर और मोटीवेटर के तौर पर अपना परिचय कराते हैं। वे अनमार्केटेड की मार्केटिंग के पक्ष में दिखते हैं और उनका परिचय यह भी है कि वे सेवानिवृत्त होने से पूर्व भारत सरकार की सेवा सचिव के रूप में कर रहे थे। बकौल श्री टावरी— मैंने अपने जीवन में जाना कि हमारी समस्या की जड़ में कन्फ्यूजन है। हमें पता नहीं है कि हमें पैसा चाहिए, पद चाहिए, काम चाहिए या क्या चाहिए? श्री टावरी के अनुसार जीवन में आगे बढऩे से पहले हमें यह तय कर लेना चाहिए कि पहुंचना कहा है। देश के विकास और नए प्रयोग, इनोवेशन की बात आई तो श्री टावरी ने उन एक करोड़ रूपयों की तरफ श्रोताओं का ध्यान आकृष्ट किया जो देश भर के प्रत्येक जिलाधिकारी को सरकार की तरफ से प्रत्येक साल दिया जा रहा है। यदि इन पैसों का देश का एक एक जिलाधिकारी ईमानदारी से इस्तेमाल करें तो वास्तव में देश में इनोवेशन को बल मिलेगा। नए—नए प्रयोग होंगे। अब बड़ा सवाल है कि इस देश में कितने जिलाधिकारी होंगे जो एक करोड़ रूपए के सही इस्तेमाल को चिन्तनशील हो।
कॉन्क्लेव में एक सत्र युवाओं की प्रेरणा को लेकर रखा गया था। जिसमें सवाल यह रखा गया कि नए भारत के निर्माण में युवा अपनी भूमिका कैसे निभा सकता है? इस सत्र का संचालन अरूण बागरू ने किया।
सत्र के पहले वक्ता के नाते हैदराबाद एसआईपीएम से आए संस्था के निदेशक डॉ. रवि कुमार जैन ने मंच संभाला। उन्होंने बताया कि देश के युवाओं को हम समुचित अवसर उपलब्ध कराने में नाकाम साबित हो रहे हैं। डॉ जैन ने स्पष्ट शब्दों में कहा— यदि हम देश के युवाओं को समुचित अवसर और सही माहौल उपलब्ध नहीं कराएंगे तो संभव है कि इसका परिणाम युवाओं की सामाजिक अराजकता के तौर पर सामने आए। युवा गलत रास्ते पर भटक जाएं। वे चरमपंथी समूह या उग्रवादी संगठनों के जाल में फंस जाएं। ऐसा होते हुए हमने पहले भी देखा है।
वैसे डॉ जैन जिस तरह की स्थितियों की बात मंच से कर रहे थे, वैसी या उससे मिलती—जुलती स्थिति हम सबने कश्मीर में देखी है। वहां के युवा हाथ में पत्थर लेकर सड़क पर उतर गए क्योंकि देश की सरकार ने ध्यान नहीं दिया और वे गलत लोगों के हाथों मोटिवेट होते रहे। केन्द्र की वर्तमान सरकार कश्मीर और जम्मू की इन स्थितियों को लेकर गम्भीर है और हालात बदलने के लिए लगातार प्रयास कर रही है।
डॉ रवि कुमार जैन ने अपने वक्तव्य में यह भी कहा कि यदि हम अपने छात्रों को विकास के लिए सही माहौल उपलब्ध करा पाएं तो वहां से हमें रचनात्मक सोच वाले और समस्याओं को सुलझाने वाले युवा विचारक मिलेंगे। वह समस्या का नहीं समाधान का हिस्सा बनेंगे। जैसाकि मेरे एक मित्र ने कहा— वे कुछ करके दिखाएंगे।
एमआईटी स्कूल ऑफ मैनेजमेन्ट की निदेशक सायली गणकर ने प्रेरक वक्तव्य दिया। वह युवाओं की समस्या पर प्रबंधन गुरू के साथ साथ एक अच्छे मनोचिकित्सक की तरह रोशनी डाल रही थी। गणकर ने बताया कि बच्चे जो चाहते हैं, उसे अभिभावक पूरा नहीं कर पा रहे। इस तरह एक गहरी खाई पैदा हुई है। इस खाई को भरने के लिए कई स्तर पर हस्तक्षेप की आवश्यकता है। यह हस्तक्षेप युवाओं के निर्माण में सहायक साबित होगा। गणकर ने हस्तक्षेप की राह की प्रक्रिया पर वक्तव्य के दौरान सुझाव दिया— सरकार, शैक्षणिक संस्थाएं और सामाजिक संस्थाएं एक साथ मिलकर इस विषय में काम करें। साथ ही उनका सुझाव यह भी था कि तकनीक, सामाजिक भागीदारी और क्रिटिकल थिंकिंग के लिए हमें अपने बच्चों को प्रेरित करना चाहिए।
सायली गणकर के ठीक बाद इंटरनेशनल स्कूल ऑफ मैनेजमेन्ट की निदेशक डॉ मंजू पुनिया चोपड़ा ने युवाओं को एनर्जी से भर देने वाला वक्तव्य दिया। डॉ मंजू पुनिया के अनुसार— यूथ सिर्फ एक नाम नहीं है। यह ऊर्जा है। जिसका हमें देशहित में उपयोग करना चाहिए। डॉ मंजू पुनिया ने कहा कि ”मैने महसूस किया है, भारत का यूथ अन—एक्सप्लोर, अन—यूटिलाइज्ड और समाज का मोस्ट अंडर स्टीमेट हिस्सा है।’’ डॉ मंजू पुनिया ने यह भी कहा कि भारत के पास युवाओं की एनर्जी है। यदि हमने इस एनर्जी को चैनलाइज नहीं किया और इसका सही प्रकार से उपयोग नहीं किया तो यह आपदा भी बन सकता है।
भारती मरांडे ने कहा— देश में तकनीक बहुत तेजी से बदल रही है। लेकिन पाठ्यक्रम के बदलाव की गति वह नहीं है। वह अपनी गति से बदलती है। अब पाठ्यक्रम को भी तकनीक की गति से बदलने की जरूरत है क्योंकि पाठ्यक्रम सिर्फ सैद्धान्तिक नहीं होना चाहिए। उसे व्यावहारिक बनाए जाने की आवश्यकता है।
मैने पहले ही लिखा है कि पूरे आयोजन में कमल टावरी ‘मैन ऑफ द मैच’ की तर्ज पर मैन ऑफ द कॉन्क्लेव रहे। पूरे आयोजन में मंच से लेकर श्रोताओं तक सबकी नजर उनकी तरफ रही। पूरे आयोजन में सबसे अधिक प्रेम और तालियां उनके हिस्से में ही आई। एक सत्र के दौरान कमल टावरी ने यह बेहद जरूरी टिप्पणी की— यदि आपको देश के लिए कुछ करना है तो आपको समझना होगा कि इस देश के ज्वाइंट सेक्रेटरी कैसे काम करते हैं? राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के 550 ज्वाइंट सेक्रेटरी और उनके अंदर चलने वाले 110 विभागों से देश चलता है।
नगरपालिका परिषद के सदस्यता से पुणे के सांसद तक सफर तय करने वाले पद्माकर गुलाब राव शिरोले को पुणे वाले प्यार से अनिल शिरोले नाम से पुकारते हैं। श्री शिरोले प्रभावित करने वाले व्यक्तित्व के मालिक हैं। उनसे बातचीत करके कोई भी उनका प्रशंसक हो सकता है। श्री शिरोले के वक्तव्य से लग रहा था कि वे देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से प्रभावित हैं। श्री शिरोले ने कहा कि ”हम देख रहे हैं कि जो देश में पहले नहीं हुआ, वह 2014 से हो रहा है। यह सब इसलिए संभव हो पा रहा है क्योंकि हमें ऐसी एक लीडरशिप मिली है, माननयी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी की।’’
अवार्ड फंक्शन में एसआईईएस प्रबंधन स्कूल के प्रतिनिधियों ने सबका ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट किया। उनके एक प्रतिनिधि ने जब कहा कि आप हमारे नवी मुम्बई स्थित स्कूल कैम्पस में आइए, आपको देखकर समझने में मुश्किल होगी कि स्कूल मंदिर के अंदर है या मंदिर स्कूल के अंदर! हम गौ रक्षक हैं। हमने 12 गांवों के गायों की देखभाल की जिम्मेवारी अपने ऊपर ले रखी है। हम वेद की पाठशाला चलाते हैं, हमारे शिक्षक संस्कृत की कक्षा भी लेते हैं। वास्तव में एसआईईएस की प्रस्तुति काबिले गौर ही नहीं काबिले तारिफ भी थी।
कॉन्क्लेव में संपदा ठेंगड़े, अर्चना पाटिल, गोपाल गुप्ता, ललित काठपरिया, किरण रेड्डी और ईवी खेडकर का वक्तव्य भी महत्वपूर्ण रहा। सवाल जवाब के सत्र में कई महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे गए।
डायलॉग इंडिया अकादेमिक कॉन्क्लेव का यह जो सिलसिला 09 तक पहुंचा है, यह यूं ही बढ़ता रहे। शिक्षा के क्षेत्र यंू भी काम करने की अभी बहुत जरूरत है। इसकी दिशा तय करने के लिए डायलॉग इंडिया जैसे समीक्षकों की समाज को बहुत जरूरत है।
आशीष कुमार ‘अंशु’