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ड्रोन से पहली बार होगी पूरे देश की डिजिटल मैपिंग

बदलते वक्त के साथ भारत में बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता बढ़ रही है, जिसके लिए सटीक मानचित्रों की जरूरत पड़ती है। इस मांग को पूरा करने के लिए भारत का 252 साल पुराना वैज्ञानिक संस्थान सर्वे ऑफ इंडिया पहली बार ड्रोन्स की मदद से देश का डिजिटल मानचित्र बनाने जा रहा है। 

अभी उपलब्ध मानचित्रों में वास्तविक और दर्शायी गई दूरी का अनुपात दस लाख से पचास लाख तक होता है। नए डिजिटल मानचित्रों में यह अनुपात 1:500 होगा। इसका मतलब है कि मानचित्र पर एक सेंटीमीटर दूरी 500 सेंटीमीटर को दर्शाएगी। डिजिटल मैपिंग परियोजना के तहत बनाए जाने वाले ये उच्च-रिजॉल्यूशन के 3डी मानचित्र होंगे, जिन्हें अगले दो वर्षों में तैयार किया जाना है। इस परियोजना में करीब 300 ड्रोन्स का उपयोग किया जाएगा और भारत के कुल 32 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से 24 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की मैपिंग की जाएगी। 

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने बताया कि “यह परियोजना ‘नेटवर्क ऑफ कन्टिन्यूअस्ली ऑपरेटेड रेफरेंस स्टेशन्स’ (कोर्स) नामक कंप्यूटर प्रोग्राम पर आधारित है। कोर्स कुछ सेंटीमीटर के पैमाने पर भी ऑनलाइन 3डी पॉजिशनिंग आंकड़े उपलब्ध करा सकता है। मैपिंग के लिए उपयोग होने वाले ड्रोन्स में कोर्स प्रोग्राम से लैस सेंसर लगे होंगे। करीब 200 से 300 मीटर की ऊंचाई पर उड़ने वाले ये ड्रोन जब जमीन की तस्वीरें लेंगे, तो उस स्थान के सटीक देशांतर और अक्षांश का पता लगाया जा सकेगा।”

प्रोफेसर शर्मा ने बताया कि “ड्रोन मैपिंग से प्राप्त आंकड़ों की वैधता का परीक्षण भौगोलिक सूचनाओं की मदद से किया जाएगा। सर्वे ऑफ इंडिया के देशभर में करीब 2500 भू-नियंत्रण केंद्र हैं, जिन्हें उनके मानकीकृत समन्वय के लिए जाना जाता है। फिलहाल, तीन राज्यों- महाराष्ट्र, कर्नाटक और हरियाणा में मैपिंग का कार्य शुरू हो चुका है और धीरे-धीरे इस परियोजना का विस्तार देश के अन्य हिस्सों में भी किया जाएग।”

वर्ष 1767 में स्थापित सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा संचालित डिजिटल मैपिंग परियोजना में ‘नमामि गंगे’ मिशन को भी शामिल किया गया है। इसके तहत गंगा नदी के दोनों किनारों के 25 किलोमीटर के दायरे में बाढ़ प्रभावित मैदानों की मैपिंग की जाएगी। इसका उद्देश्य गंगा में अपशिष्ट प्रवाहित करने वाले स्रोतों, किनारों के कटाव और उनकी ऊंचाई का पता लगाना है। यह जानकारी बाढ़ से निपटने में भी मददगार हो सकती है। ड्रोन-आधारित मैपिंग से एक प्रमुख लाभ यह होगा कि इसकी मदद से ग्रामीण आबादी क्षेत्रों का डिजिटल मानचित्रण हो सकेगा। 

प्रोफेसर शर्मा ने कहा- “वर्तमान में, हमारे पास भारत के उच्च रिजॉल्यूशन वाले डिजिटल मानचित्र नहीं हैं। उपग्रह-आधारित नेविगेशन प्रणाली ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) या फिर गूगल मैप्स के विपरीत इस परियोजना में बनने वाले मानचित्र अधिक सटीक होंगे। इनके उपयोग से सरकार बेहतर योजनाएं बना सकेगी। ये डिजिटल मानचित्र सभी सरकारी विभागों के लिए निशुल्क उपलब्ध होंगे। हालांकि, मानचित्रों का उपयोग करने वाली व्यावसायिक परियोजनाओं को अपने लाभ का एक हिस्सा सर्वे ऑफ इंडिया को देना होगा।”

परियोजना से जुड़े अधिकारियों ने बताया- अब तक, हवाई फोटोग्राफी की मदद से मैपिंग की जाती रही है, जिसमें हवाई जहाज पर कैमरा लगाकर तस्वीरें ली जाती हैं। शुरुआती दौर में तो नक्शे बनाने के लिए सर्वेक्षकों को दुर्गम इलाकों एवं घने जंगलों में अपनी जान जोखिम में डालकर जाना पड़ता था। डिजिटल मैपिंग परियोजना के तहत मानचित्रों के निर्माण में यह ध्यान रखा गया है कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में न पड़े और विकास एवं सुरक्षा में संतुलन बना रहे। (इंडिया साइंस वायर)

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