महोदय
यह बहुत खेदजनक है कि तमिलनाडु में केंद्रीय सरकार द्वारा “जवाहर नवोदय विद्यालय” की वर्षो से स्थापना केवल इसलिये नही हो रही है क्योंकि वहां बच्चों को हिन्दी व संस्कृत भाषा भी पढ़ाई जा सकेगी ? जबकि इन विद्यालयों में दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई निशुल्क है और 11 वीं व 12 वीं की कक्षाओं का शुल्क भी न्यूनतम है।यह भी समझना चाहिये की इस योजना द्वारा पब्लिक स्कूलों के समान उत्तम शिक्षा का प्रावधान निर्धन व ग्रामीण बच्चों के लिये पूरे देश में किया जाता आ रहा है। इस प्रकार की दूषित राजनीति करके सत्ता प्राप्त करने वाले क्षेत्रीय दल डीएमके व एआईएडीएमके क्या भारत की आध्यात्मिक व धार्मिक शक्ति को नकार सकते है ? उन्हें यह भय क्यों है कि इन भाषाओं के अध्ययन से वहां वेद व उपनिषद आदि धार्मिक ग्रंथों से तमिलनाडु में रहने वाले भारतीय नागरिकों को भारतीय अध्यात्म व धर्म के विराट स्वरुप का ज्ञान होने से वे अपनी प्रदेशीय राजनीति में असफल हो जायेंगे ?
जब सम्पूर्ण राष्ट्र आध्यात्मिक व धार्मिक दृष्टि से एक ही सूत्र में बंधा हुआ है तो वेद व उपनिषद आदि धार्मिक ग्रंथों के ज्ञान के प्रति दुराभाव क्यों ? क्या तमिलनाडु के क्षेत्रीय दल इतने सक्षम है कि वे भारतीयता के मूल तत्व ज्ञान को मिटा सकें ? इन क्षेत्रीय राजनेताओं को स्मरण होना चाहिये कि “वैदिक सनातन धर्म व संस्कृति” को संस्कृत व हिंदी भाषा या किसी भी अन्य उपाय से अवरुद्ध नही किया जा सकता ? वैसे भी तमिलनाडु में अनेक राष्ट्रभक्त संस्कृत व हिंदी के प्रबल समर्थक होने के साथ साथ वेद व उपनिषद के अच्छे ज्ञाता भी है। आज यह कहना भी अनुचित नही होगा कि असंवैधानिक रुप से इन भाषाओं के साथ साथ हिंदुत्व का विरोध करके सत्ता प्राप्त करने वाले उपरोक्त दोनों दलों का अब अस्तित्व ही संकटमय होता जा रहा है। वैसे तमिलनाडु में आज भी हिन्दू धर्माचार्यों का अभाव नही है फिर भी वहां हिंदुत्व और राष्ट्रीयत्व को सुरक्षित रखने के लिये “जवाहर नवोदय विद्यालयों” की स्थापना करवानी ही होगी। अन्यथा तमिलनाडु व कुछ अन्य राज्यों में भी सक्रिय क्षेत्रीय राजनैतिक दलों से राष्ट्रीय एकता और अखंडता पर अप्रत्क्ष आघात का संकट बढ़ सकता है।