नरेंद्र मोदी का सेंट्रल हॉल में दिया गया भाषण एक ऐतिहासिक भाषण है। इसमें एक ओर बड़े बुज़ुर्गों के लिए सम्मान का भाव है तो दूसरी तरफ साथियों के लिए सुझाव हैं। इसमें एक स्वयंसेवक का अनुशासन है तो एक राजनेता नेता की चतुराई है। नए सदस्यों के लिए मार्गदर्शन है तो देश के निर्माण का रोड मैप भी है। यह एक नया परिपक्व नरेंद्र मोदी है जो नयी पारी खेलने को पूरी तरह तैयार है।
अमित त्यागी
जब व्यक्ति स्वयं के अंदर गहरा उतर जाता है तब उसे बाह्य शक्तियों का प्रभाव नहीं पड़ता है। वह अपने अंदर अंतर्निहित शक्तियों के द्वारा विश्वविजय पर निकल पड़ता है। नरेंद्र मोदी के द्वारा सेंट्रल हाल में दिया गया भाषण आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर एवं आत्मिक चिंतन से परिपूर्ण भाषण था। केदारनाथ में चिंतन और ध्यान करने के बाद यह एक नए नरेंद्र मोदी का उदय है। जिस पर भगवान शिव की कृपा दिखाई देती है। केदारनाथ में ध्यान के बाद जैसे नरेंद्र मोदी के दिव्य ज्ञान के चक्षु खुल गए हैं। वह एक ‘स्टेट्समैन’ की तरह इस तरह नजऱ आ रहे हैं जैसे विश्व को संदेश दे रहे हैं। सबसे पहले भाजपा के जोशी और आडवाणी को सम्मान देना उनकी छवि में निखार लाता है। इसके बाद अटल जी के चित्र को देखकर कहना कि वह हमें आशीर्वाद दे रहे हैं उनको महानता की ओर ले जाता है। इसके बाद वह चुनावों की बातों पर नजऱ गढ़ाते हैं और एक नया नारा देश के सामने रखते हैं। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास। इसके द्वारा वह अपनी अल्पसंख्यक विरोधी छवि को सुधारने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ जाते हैं। दिलों को जीतने की कोशिश के क्रम में नारा शब्द की एक नयी व्याख्या देश के सामने रखते हैं। नेशनल एंबिशन रीजऩल एसपिरेशन। मोदी एक नये भारत की रूपरेखा रखते दिख रहे हैं। इसमें वह सबको साथ लेकर चलने की न सिर्फ बात कर रहे हैं बल्कि मुस्लिम समाज के अंदर उनको लेकर फैलाई जा रही भ्रांतियों को दूर करने का भी उनका लक्ष्य साफ दिखता है। यह नए भारत का अभ्युदय है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम ने किताब लिखी थी ‘विजन 2020’। इसमें 2020 तक विकसित भारत की एक रूपरेखा दी गयी है। मोदी अब विकासशील से विकसित भारत बनाने की तरफ हिंदुस्तान को लेकर बढ़ चले हैं।
नये भारत का अभ्युदय
सेंट्रल हॉल के अपने ऐतिहासिक भाषण में नरेंद्र मोदी कहते हैं कि कुरान में अल्लाह शब्द के बाद सबसे ज़्यादा जिस शब्द का प्रयोग हुआ है वह शब्द इल्म है। कुरान में 800 बार इल्म का जि़क्र है। इस तरह से मोदी ने सीधे मुस्लिम समाज की अशिक्षा पर हमला बोल दिया। इसके पहले भी पठानकोट हमले के समय मोदी पाकिस्तान को संदर्भित करते हुये ऐसी बात कह चुके हैं। तब उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान हमसे शिक्षा के क्षेत्र में क्यों मुकाबला नहीं करता। आइये हम लोग अपने नागरिकों को शिक्षित करने में एक दूसरे की होड़ करें।
इसी तरह अपने भाषण में मोदी सांसदों को एक गुरु की तरह ज्ञान देते हुये कहते हैं कि दिल्ली में पहले जब आते होंगे तो कोई ऑटो वाला भी आपको नहीं पहचानता होगा। अब बहुत से अंजान लोग हाथों में गुलदस्ता लिए आपके इंतज़ार में खड़े होंगे। ये लोग मीठी बातें करेंगे और आपकी आंखों में अपने लिए शर्म पैदा कर लेंगे। अगर आपने इन लोगों के चंगुल में खुद को फांस लिया तो यह लोग साल दो साल में आपको खत्म कर देंगे। इनसे बचिए। अब यह बात एक अभिभावक ही अपने बच्चों को समझा जा सकता है जो किसी बड़ी रूपरेखा पर काम कर रहा हो। जो यह नहीं चाहता हो कि छोटी मोटी बाधाएं भी उसके रास्ते में आकर उसका समय नष्ट करे। इसके साथ ही बड़बोले सांसदों को उन्होंने स्पष्ट नसीहत भी दी जब उन्होंने कहा कि आडवाणी जी ने मुझे समझाया था कि छपास और दिखास से बच कर चलना। हमारे बहुत से सहयोगी छपास और दिखास के चक्कर में बड़े बयान दे देते हैं। अखबार और टीवी से देश नहीं चलता। न ही मंत्री तय होते हैं। आपके पास जब फोन आए कि आप मंत्री बन गए हैं उसके बाद भी एक बार पहले कन्फ़र्म कर लेना तब सच मानना।
शायद किसी प्रधानमंत्री का यह अपनी तरह का पहला भाषण होगा जिसमें वह अपने सांसदों को एक विद्यार्थी की तरह एक बड़ी लड़ाई के लिए तैयार कर रहा है। लोकतन्त्र की खूबसूरती में भारत की सनातन संस्कृति का यह अनुपम रूप जितना मोहक है उतना ही यह मोदी के विराट स्वरूप का परिचायक भी है।
भविष्य के भारत की रूपरेखा
भारत का भविष्य उज्जवल है इसमें कोई संदेह नहीं है। किन्तु इस भारत का स्वरूप क्या होना चाहिए इस पर विमर्श की आवश्यकता है। भारत की सनातन परंपरा में गौ, गंगा और गांव भारत की अर्थव्यवस्था का आधार रहे हैं। आज इन तीनों को अर्थव्यवस्था के मानक जीडीपी से दूर कर दिया गया। इसका ही परिणाम है कि हम उधार लेकर घी पीने वाली अर्थव्यवस्था के चंगुल में फंस गए हैं। यदि गांव में रोजगार उपलब्ध होगा तो शहरी क्षेत्रों में पलायन रुकेगा। शहरों पर बोझ घटेगा तो नदियां एवं पर्यावरण शुद्ध रहेगा। गांव में रोजगार मिलने से ही किसानों की आय भी दुगुनी होगी। किसानों की आय दुगुनी करने के लिए आवश्यक है कि गाय की उपयोगिता सिर्फ किताबों तक सीमित न होकर ज़मीन पर दिखाई दे। जैसे जैसे लोगों को गाय की उपयोगिता का एहसास होता जायेगा वह प्राथमिकता से गौपालन करेंगे। कृषि में आजकल सबसे ज़्यादा लागत आती है फर्टिलाइजर एवं कीटनाशकों पर किये जाने वाले खर्चे पर। इसका उपाय शून्य लागत कृषि पद्वति में मिलता है जिसमें रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता है। यह खर्च बच जाता है। पानी की खपत भी कम हो जाती है। प्राकृतिक तरीके से खेती होने के कारण लागत शून्य हो जाती है। देशी गाय का गोबर एवं गौमूत्र इस खेती के लिये प्रमुख आवश्यकताएं हैं। देशी गाय के एक ग्राम गोबर मे असंख्य सूक्ष्म जीव होते हैं। ये जीव फसल के लिये आवश्यक 16 तत्वों की पूर्ति करते हैं। इस विधि मे खास बात यह है कि फसलों को बाहर से भोजन देने के स्थान पर भोजन का निर्माण करने वाले सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ा दी जाती है।
इस तरह इस प्रक्रिया के द्वारा 90 प्रतिशत पानी एवं खाद की बचत हो जाती है। इसके विपरीत जैविक एवं रासायनिक खेती प्राकृतिक संसाधनो के लिये खतरा है। इनमें लागत भी ज़्यादा आती है। इनके द्वारा जहरीले पदार्थ का रिसाव होता है। यह दो तरह से नुकसान करता है। एक तो यह हमारे शरीर को प्रभावित करता है एवं दूसरा, इसके प्रयोग से ज़मीन धीरे धीरे बंजर होती चली जाती है। भारत की ही बात करें तो लगभग 40 लाख किसान शून्य लागत पालेकर कृषि पद्वति का प्रयोग कर रहे हैं। जैसे जैसे खेती में रसायनों का प्रयोग कम होता जाएगा भारत का स्वास्थ्य भी ठीक होता जाएगा। नदियों में रसायन कम जाएंगे तो नदियों में पवित्रता बढ़ेगी। चूंकि भारत की हर नदी स्वयं में गंगा की तरह पवित्र है इसलिए गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है। उत्तर भारत में बहने वाली लगभग प्रत्येक नदी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर गंगा में मिल जाती है। इसलिए जैसे जैसे सरकारी प्रयास और नागरिकों की जागरूकता से कोई भी नदी स्वच्छ होती जायेगी वैसे वैसे गंगा स्वत: ही स्वच्छ होती जायेगी। इसको समझने के लिए किसी रॉकेट साइन्स का जानकार होने की आवश्यकता नहीं है।
अब तीसरा सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है गांव का। गांधी जी ग्राम स्वराज का मॉडल दिया करते थे। भारत की सनातन परंपरा में भी ग्रामीण व्यवस्था मजबूत पायी जाती थी। पश्चिमी देशों के वाहक अंग्रेजों ने भारत में बड़ा बाज़ार पैदा करने के लिए पहले भारत की परंपरागत व्यवस्था को तोड़ा। फिर औद्योगीकरण के रास्ते पर भारत को आगे बढ़ा दिया। ग्रामीणों का रुख शहरों की तरफ होने लगा। इससे भारत का पूरा पर्यावरण चक्र, आर्थिक चक्र एवं सामाजिक संतुलन गड़बड़ा गया। पिछले 70 सालों की जनसंख्या औसत की तुलना करें तो 1951 में शहरों में रहने वाली जनसंख्या 17.3 प्रतिशत थी। 2011 में यह औसत 31.16 प्रतिशत तक पहुंच गया। अमेरिका एवं पश्चिम यूरोप के देशों में शहरी जनसंख्या अब गांव का रुख कर रही है वहीं भारत मे इसका उल्टा हो रहा है। ग्लोबल मैनेजमेंट कंसल्टेंसी फ़र्म ‘मेकंजी’ की रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2025 के बीच के दशक में विकसित देशों के 18 प्रतिशत बड़े शहरों में आबादी प्रतिवर्ष 0.5 प्रतिशत की दर से कम होने जा रही है। दुनिया में 8 प्रतिशत शहरों में प्रतिवर्ष 1-1.5 प्रतिशत शहरी जनसंख्या कम होने का रुझान होना संभावित है।
प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल में इस पर कुछ काम होने की संभावना बनी थी। दूसरे कार्यकाल में अब इस पर अमलीजामा पहनाने का समय आ गया है। भविष्य का भारत तभी समृद्ध बनेगा जब हम गाय, गंगा और गांव पर अपनी अर्थव्यवस्था को आधारित करने में कामयाब होंगे। भारत को टाई पहन कर टोपी पहनाने वाले कॉर्पोरेट की आवश्यकता नहीं है। धोती कुर्ता में रहने वाले भारतीय को अब मजबूत करने की आवश्यकता है। अंग्रेजी बोलने वाले समाज के साथ ही हिन्दी बोलने वाले गुणी लोगों में सामंजस्य की आवश्यकता है। भारत की जनता ने मोदी को भारी सीटें देकर विराट स्वरूप दिखाने का मौका तो दे दिया है। अब वह इंतज़ार कर रही है कि कब वह समय आयेगा जब मोदी भारत का समृद्ध और वृहद स्वरूप उनको भेंट करेंगे।
भारतीय संस्कृति आधारित भारत का हो निर्माण : मौलिक भारत
भारत के सांस्कृतिक ढांचे को बचाने के लिए बाज़ार के दुष्प्रभाव से हमें खुद को बचाना होगा। इसके लिए आम जीवन मे चलने वाले घटनाक्रम के माध्यम से संकेतों में स्थिति को समझने की कोशिश करते हैं। विज्ञापनों मे सिगरेट का धुआं उड़ाता नौजवान चुटकियों मे बड़े बड़े काम कर देता है। खूबसूरत लड़की उसके आस पास मंडराने लगती है। डीओ की खुशबू लड़की पटाने का माध्यम दिखाई जाती है। इसके बाद खूब जमता है रंग जब मिल बैठते हैं तीन यार। नशा और व्यसन को बढ़ावा देने वाला विज्ञापन उद्योग कुछ इस तरह से ताना बाना बुनता है कि दर्शकों पर इसका प्रभाव पड़ता ही है। यही दर्शक वर्ग जब इन उत्पादों के प्रयोग के बाद नशे की हालत मे पॉर्न को देखता है तो ये उसकी विकृत मानसिकता के लिए एक उत्प्रेरक का कार्य करती है। अब वो मानसिक रूप से अपराध करने के लिए तैयार हो चुका है। हालांकि, उसे खुद में अभी ज्ञान नहीं है कि उसके द्वारा किया जाने वाला कृत्य एक घिनौना अपराध है। कुछ समय बाद जब व्यक्ति को होश आता है तब तक घटना हो चुकी होती है। उसके द्वारा अपराध किया जा चुका होता है। उत्प्रेरक अपना दुष्प्रभाव दिखा चुका होता है। अब उसे समझ आता है कि विज्ञापन और पॉर्न मे दिखने वाली सुंदर कन्याएं तो विषकन्याएं थी जिन्होंने उसे अपराधी बना दिया है। अब समाज भी उसे धिक्कार रहा है और परिवार भी। जेल की सलाखों के पीछे वो तीन यार भी नदारद हैं जिनके साथ रंग जमाने का दावा किया गया था।
अब जब घटना हो चुकती है तब कुछ लोग महिलाओं पर अत्याचार के नाम पर झण्डा बुलंद करते हैं तो कुछ लोग कानून को कमजोर बता देते हैं। कुछ लोग भारतीय संस्कृति के नैतिक पतन पर व्याख्यान देते हैं तो कुछ बुद्धिजीवी टीवी चैनल पर प्राइम टाइम की शोभा बढ़ाते हैं। यानि कि हम सब कहीं न कहीं अपनी अपनी जिम्मेदारियों मे व्यस्त होते जाते हैं और कहीं दूर कोई अन्य धुआं, डिओ और तीन यार से प्रभावित होकर एक नयी घटना को अंजाम दे रहा होता है। आसान शब्दों में कहें तो गुनाह को प्रेरित करने वाले तत्वों को समाप्त करने से ज़्यादा चर्चा गुनहगार पर होने लगती है। आवश्यकता तत्व में बदलाव करने की है।