सुरेन्द्र प्रभात खुर्दिया
कलर्स टीवी चैनल पर रात 9 बजे ”शनै:-शनै: कर्म फल दाता शनिÓÓ का धरावाहिक-कई सीरियलों में से एक अलग ही प्रकार की अनूठी छाप छोडने वाला टीवी सीरियल हैं। हालांकि उक्त कथा पूर्णतया काल्पनिक कथा यात्रा पर टिकी हुई है। फिर भी उक्त कहानी के माध्यम से नियति एवं कर्मों का फल देने वाला न्याय प्रिय ग्रह और कर्म फल एवं कर्म सन्तुलन का देवता शनि नागरिक समाज में एक जिज्ञासु प्रवृति और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के कारण इस सीरियल को दर्शक देखे बिना नहीं रह सकते हैं। वर्तमान में यह अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है कि कैसे नियति को कर्म के माध्यम से बदला जा सकता है। धीरे – धीरे शनि ने क्योंकि शनि, देवों के देव महादेव का सृजन मात्र ही नहीं था, बल्कि यूं कहिए कि कर्म – ज्ञान और चेतना ना केवल ज्ञान प्राप्त करने तक सीमित था और हैं। उसके माध्य से व्यवहारिकता में उतानरने को प्रेरित करने वाला कर्म फल है। किस तरह शनि ने कर्म के जरिए उसने अपनी मां छाया और दोस्त कॉकोल को पुन: जीवित कराने में शनि अपनी बुद्धि और चात्तुर्य बल से कर्म के सहारे सफल ही नहीं होता हैं, परन्तु वह सार्थकता तक पंहुच कर ही दम लेता है। आखिर में महादेव को वह सब करना पड.ता जो नियति में कही नहीं था। उसी का नाम कर्म फल दाता शनि आगे जा कर कहलाता है। वह यंू ही नहीं कहलवाया कर्म फल दाता शनि। वर्तमान परिवेश में हमारे देश में कर्म करने का सन्देश देने का रिवाज छोड़ दिया गया हैं और उसका स्थान लोभ, लालच और लालसा और जल्दबाजी और उतावलेपन की एक संस्कृति मौजूदा दौर में निर्मित हो गई है। ऐसी स्थिति में शनि काल्पनिक अद्भुत रोमांचकारी कथा यात्रा बहुत मायने रखती हैं। तभी हमारा युवा देश होने के बावजूद अमेरिका जैसे देश का हमें पिछलग्गू बना दिया है। हमारे देश की प्रतिभा अपनी महत्वाकांक्षा और लालसा की पूर्ति के लिए अमेरिका की ओर देखता जा रहा हैं। ऐसी विषमपरिस्थिति में शनि कर्म के माध्यम से कैसे नियति तक को घूल चटा सकता है और वह हमारे खोएं हुए कर्म की ओर पुन: लौट आने का प्ररेणदायी संदेश भी साथ में देता हैं। वह हमें स्व का भी ज्ञान कराता है। हम देश समाज के लिए कैसे व्यवहारिक रूप से कर्म की और अग्रसर हो सकते हैं।
इसी के साथ ही पवित्र दृष्टि को लेकर कैसे महादेव ने इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी शनि ने अपनी यात्रा जारी रखे हुए है। शनि को वक्र दृष्टि प्रदान ही नहीं करते है बल्कि उसको स्वयं महादेव अपने पर प्रयोग करने की अनुमति तक दे देते हैं। एक बालक से महादेव बुरी तरह फस जाते है और लाख काेिशशों के बावजूद उनकी कोशिश यह रहती है कि सुर्यास्त होने वाला हैं। अब शनि क्या और कैसे खोज पाएंगा और आखिर में शनि अपनी पवित्र दृष्टि का नारायण के कहने पर विस्तार करता है। और सूर्यास्त से पूर्व ही खोजने में कामयाब हो जाता है। महादेव एक बालक शनि से भयभीत हो कर कहां – कहां नहीं छिपते है। अब कैसे वह मुझे ढ.ूढ. पाएंगा। पवित्र दृष्टि-वृक्र दृष्टि की अद्भुत यात्रा रोमांचकारी दृश्य का नारायण आनन्द लेते हैं। उसका सुन्दर ढंग से शनि के माध्यम से संवाद प्रेरित करने वाला होता है। जब महादेव ने उसे कर्म फल दाता के लिए ही उस का सृजर्न किया है। मार्ग पर लाने के लिए दृष्टि की शुद्धता के महत्व पर बल दिया गया है। यम्मी पर भी छायापुत्र शनि प्रयोगकर्ता हैं। उस की पवित्र दृष्टि के कारण कुछ भी महसूस नहीं होने पर शनि कैसे सुन्दर शब्दों में उसका वर्णन करते हुए न्याय पर जोर देते हुए कहता है कि बुरे कर्म का हश्र बुरा और अच्छे कर्म का अच्छा फल मिलता हैं। उक्त घटनाक्रम के माध्यम से यही संन्देश आज भी वर्तमान परिवेश में एक दम सटीक बैठता है।
शनै:-शनै: कर्म फल दाता शनि के धारावाहिक एपिसोड में ऊर्जापुंज पर जोर दिया गया हैं, शक्तिपुंज नही ंतो सकारात्मकता लिए होता है और नहीं नकारात्मकता लिए होता है। बस, सिर्फ वह केवल मात्र ऊर्जापुंज होता जिसकी क्या आस्तिक और नास्तिक अपने – अपने तरीके से व्याख्या करते है। कहने का अभिपा्रर्य यह कि आध्यात्मिक दृष्टि से उसे देखने का अपना – अपना नजरिया होता है। आस्तिक उसे अध्यात्म में खोजता हैं और नास्तिक ऊर्जापुंज के रूप में खोजता है। बस, उस एनर्जी का प्रयोग नकारात्मक और सकारात्मक व्यक्ति पर निर्भर करता है। मनुष्य या नागरिक समाज उस शक्तिपुंज को दोनो ही स्वीकार करते हैं। जिस एंगल से देखा जाता है। उसी एंगल में ढल जाता है। वही चीज आगे जा कर सकरात्मकता और नकारात्मकता में तब्दील हो जाती है।
प्रसिद्ध लेखक और दार्शनिक टॉलटॉय के उस मन्तव्य को भुलाया नहीं जा सकता है कि वर्षों पूर्व उन्होने कहा है कि ”योग्यता, ईमानदारी और नेकनीयति और सच्चरित्रता आदि सद्गुण अधिकतर नास्तिक लोगों में पाए जाते है। ”वह आज की तारीख में एकदम कसोटी पर खरे उतर रहें हैं। क्योकि नास्तिकों द्वारा विवेक जन-जागरण और हर कार्य एवं कारण और भाव पर आधारित होने के कारण उसकी पड़ताल और प्रयोग द्वारा अनुभूति पर टिके होने के कारण सटीक परिणाम तक पहुंचा देते है।
नियति को कर्म से बदलने की अद्भुत यात्रा के अन्तर्गत शनि कैसे अपनी मां और दोस्त कॉकोल का जीवन वापस प्राप्त करते हैं । इसके अलावा वृक्र दृष्टि और ऊर्जापुंज आदि इत्यादि इन तीनों तथ्यों के ईद – गिर्द पूरा धारावाहिक देश और समाज को कैसे व्यवहारिक जीवन में उसे अपनाकर दृढ़ इच्छाशक्ति और मनोबल के जरिए कर्म से बदलने का माद्दा रखने का शानदार कोलाज नई ऊर्जा – स्फूर्ति प्रदान करता है।