नोटबंदी के बाद देश के विभिन्न बैंकों के खातों में जमा अघोषित धनराशि से काला धन के हिस्से निकालने के लिए वित्त मंत्रालय ने एक नायाब तरीका अपनाया है। इसके तहत कर अधिकारी को किसी के दरवाजे पर जाने की जरूरत नहीं है और अघोषित आय रखने वाला खुद ब खुद टैक्स डिपार्टमेंट के ऑनलाइन फॉर्म को भरते हुए स्वेच्छा से अघोषित आय को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में जमा कर देगा।
इस प्रक्रिया के तहत जिस किसी ने भी नोटबंदी के बाद बैंकों में चलन से हटाए गए नोटों में बेहिसाब पैसा जमा कराया है, वैसे लोगों की छंटनी कर आयकर अधिकारी उन्हें एक ऑनलाइन फॉर्म भरने को कहेंगे।
यह फॉर्म एक तरह का नोटिस है जो है तो बेहद छोटा लेकिन इसमें बहुत ही कुशलता से प्रश्न पूछे गए हैं। इन प्रश्नों के पूरे जवाब देने की प्रक्रिया में एक करवंचक स्वयं अपने काले धन का खुलासा करने को मजबूर हो जाएगा। आयकर अधिकारी अभी तक करीब 18 लाख ऐसे लोगों को इस तरह के मेल या एसएमएस भेज चुके हैं जबकि अन्य लोगों को भी भेजे जाने की तैयारी है।
आयकर प्रश्नावली का सारांश
नोटबंदी के दौरान बेहिसाब रकम जमा करने वालों से आयकर विभाग बड़ा ही साधारण सा प्रश्न पूछ रहा है। मसलन, जितना पैसा आपके खाते में दिखाया जा रहा है क्या यह सही है? क्या यह आपका अपना पैसा है? अगर यह आपका पैसा है तो किस बैंक से निकाला गया है?
यदि यह रकम कहीं और से आई है तो इसका स्रोत क्या है? यदि इन प्रश्नों का जवाब आपके पास नहीं है तो क्या यह पैसा किसी दूसरे का है? यदि किसी दूसरे का है तो उनकी विस्तृत जानकारी दें। यदि संबंधित व्यक्ति इस बारे में जानकारी नहीं दे पाते हैं तो उनसे एक बेहद सम्मानजनक सवाल पूछा जाता है कि क्या आप इस राशि पर प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का लाभ लेना चाहेंगे?
मकसद है लोगों से स्वेच्छा से खुलासा करवाना
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि प्रश्नावली ऐसी हो जिसको पढ़कर काला धन रखने वाले स्वेच्छा से अपने धन का खुलासा करें और आने वाले संकट से बचे रहें।
जिनके पास काला धन है, उन्हें नोटिस मिलने से आभास होता है कि आयकर विभाग को उनके करतूतों की जानकारी मिल गई है और अब इसे छुपाने की कोशिश करना बेकार है।
स्वेच्छा से घोषणा करने में फायदे ही फायदे
अधिकारियों का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से काले धन की घोषणा करता है तो उन्हें घोषित रकम का 50 फीसदी हिस्सा ही कर के रूप में चुकाना होगा जबकि 25 फीसदी हिस्सा किसी बैंक में चार साल के लिए मियादी जमा योजना में जमा करना होगा, जिस पर कोई ब्याज नहीं मिलेगा।
मतलब घोषित रकम का 50 फीसदी हिस्सा उसके पास रहेगा। यदि आयकर विभाग के अधिकारी किसी का काला धन पकड़ते हैं तो उनसे पकड़ी गई रकम पर 75 फीसदी कर और दस फीसदी जुर्माना तो वसूलेंगे ही, आयकर कानून के मुताबिक कार्रवाई भी होगी। पकड़े जाने पर समाज में मान घटेगा, वह अलग।
अभी और लोगों को भेजा जाएगा ईमेल
सीबीडीटी के एक अधिकारी का कहना है कि अभी पांच लाख रुपये से ज्यादा रकम जमा करने वालों को नोटिस भेजा गया है। इसके बाद इससे कम रकम वालों को भी छांटा जाएगा ताकि उन्हें भी नोटिस भेजा सके।
इसमें न सिर्फ साधारण बचत खातों और चालू खातों को शामिल किया जाएगा बल्कि बच्चों के खाते, जन धन योजना के तहत खुलवाए गए खाते आदि भी शामिल किए जाएंगे।
9 लाख बैंक खातों पर है आयकर विभाग की टेढ़ी नजर
ऑपरेशन क्लीन मनी के दायरे में आए 18 लाख बैंक खातों में से 9 लाख बैंक खातों पर आयकर विभाग की टेढ़ी नजर है। आयकर विभाग ने इन खातों को संदिग्ध कैटेगरी में डाल दिया है। इस बात की जानकारी सीबीडीटी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को दी है।
आपको बताते चले कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के चेयरमैन सुशील चंद्रा ने बताया कि 1 फरवरी को बताया था कि 18 लाख लोगों की तरफ से बैंकों में जमा किए गए 4.17 लाख करोड़ रुपयों पर सरकार की नजर है और इसकी जांच की जा रही है। उन्होंने बताया था कि ऑपरेशन क्लीन मनी के तहत 18 लाख लोगों को सीबीडीटी ने ईमेल और एसएमएस के जरिए मैसेज भेज कर इस बाबत जानकारी जुटाना शुरु किया है।
उन्होंने बताया था कि अभी हमारी जांच में 18 लाख लोगों के बारे में जानकारी जुटाई गई है जिन्होंने बैंकों में 4.17 लाख करोड़ रुपए नोटबंदी के बाद बैंकों में जमा किए थे। उन्होंने कहा था कि 10 लाख और लोगों के डाटा को जुटाया जा रहा है। इस क्रम में 13 लाख लोगों को 1 फरवरी को ही मैसेज और ईमेल भेजकर जानकारी मांगी गई थी। उन्होंने बताया था कि बाकी बचे 5 लाख लोगों को ऑपरेशन क्लीन मनी के तहत मैसेज और ईमेल मिल जाएंगे। उन्होंने कहा कि सीबीडीटी इस काम में जुटा हुआ है कि वो उन लोगों को टैक्स के दायरे में जल्द से जल्द ला सके, जो लोग टैक्स नहीं देते हैं। उन्होंने कहा कि स्वच्छ धन अभियान (ऑपरेशन क्लीन मनी) के तहत इन 18 लाख लोगों की तरफ से बैंक में जमा किए गए रुपयों पर टैक्स वसूल किया जा सके। इससे पहले सुशील चंद्रा ने बताया था कि लोगों को 10 दिन का समय दिया जाएगा कि वो इस बाबत अपना जवाब दे सकें। इसके लिए इन लोगों को ई फाइलिंग पोर्टल पर जानकारी देनी होगी।
आधार से जोड़ी जाएंगी कंपनियां, शेल कंपनियों पर लगेगी लगाम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी द्वारा कालेधन के खिलाफ मुहिम, 50 दिनों तक आम जनता का खामोशी से घंटों लाइनों में खड़े रहकर 1,000 और 500 रुपये के पुराने नोटों को बदलवाना भाजपा की राजनीतिक साख को बढ़ाएगा या नहीं, इसका फैसला 11 मार्च को पांच प्रदेशों की जनता करेगी। लेकिन, नोटबंदी की अभूतपूर्व घटना से दो बातें बिल्कुल साफ हैं।
पहली बात यह कि जनता कालेधन पर मोदी के साथ है और दूसरी, नोटबंदी कालेधन पर प्रधानमंत्री की आखिरी कार्रवाई नहीं थी। हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यालय ने राजस्व और कारपोरेट अफेयर्स मंत्रालय के सचिवों की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स बनाई है। यह टास्क फोर्स नोटबंदी के दौरान शरारती तत्वों द्वारा शेल कंपनियों के जरिए बड़े पैमाने पर कालेधन को सफेद करने के खेल की छानबीन करेगी।
शेल कंपनियां वैसी कागजी कंपनियां होती हैं, जिनके अधिकतर निदेशक बेनामी होते हैं और कई बार एक ही पते पर सैंकड़ों शेल कंपनियां पंजीकृत होती हैं। ये कंपनियां टैक्स बचाने और कालेधन को सफेद करने के लिए खोली जाती हैं। टैक्स से बचने के लिए ऐसी कंपनियां रिटर्न भी फाइल नहीं करती हैं। देश की डेढ़ करोड़ कंपनियों में से सिर्फ 4 फीसदी यानी लगभग 6 लाख कंपनियां ही रिटर्न भरती हैं।
जाहिर है कि बाकी की 96 फीसदी में से अधिकतर कंपनियां शेल अथवा छद्म कंपनियां होंगी। कथित तौर पर ये कंपनियां राजनीतिक संरक्षण और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से फलती फूलती हैं। अगर सरकार चाहे तो सभी कंपनियों के प्रवर्तकों और निदेशकों के नामों को आधार से जोड़कर शेल कंपनियों पर बहुत हद तक लगाम लगा सकती है। आधार का प्रयोग बेनामी संपत्तियों को भी खंगालने में किया जा सकता है। जाहिर है अब मोदी की कालेधन के खिलाफ मुहिम का अगला लक्ष्य बेनामी संपत्ति हो सकता है।
फर्जी कंपनियों पर शिकंजा कसने को पीएमओ को करनी पड़ी पहल
कुछ अफसरशाहों और राजनीतिक दलालों के अति प्रभावशाली गुट ने नोटबंदी के बाद काले धन को सफेद करने वाली फर्जी (शेल) कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई में लगातार रोड़े अटका रखे थे। बड़े पैमाने पर इन फर्जी कंपनियों के जरिए काले-सफेद के गोरखधंधे की जानकारी वित्त मंत्रालय और सरकार को नवंबर-दिसंबर में ही मिल चुकी थी। लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हो पा रही थी। आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद इस मामले में फैसला लेना पड़ा।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में हुई समीक्षा बैठक में इन कंपनियों के खिलाफ टास्क फोर्स गठित करने का निर्देश जारी किया गया है। इस फैसले से जुड़े उच्चपदस्थ सूत्रों ने बताया कि 8 नवंबर को प्रधानमंत्री के नोटबंदी के अचानक ऐलान के बाद इसी गुट के जरिए अफसरशाही और राजनीति से जुड़े चुनिंदा लोगों के काले पैसे फर्जी कंपनियों में लगाए गए। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस मामले की गंभीरता के बारे में सीधा पीएमओ को बताया था। ईडी के शीर्षस्थ सूत्र ने बताया कि नोटबंदी के बाद करीब 70 से 80 फीसदी काला धन फर्जी कंपनियों में लगाए गए। हालांकि सरकार नोटबंदी के बाद काले धन की उगाही को लेकर अब तक कोई ठोस आंकड़ा नहीं दे पाई है। ईडी सूत्र के मुताबिक सरकार शुरू में ही इन फर्जी कंपनियों के खिलाफ सख्ती बरतती तो कई सनसनीखेज खुलासे होते।
सीरियस फ्रॉड इनवेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) ने अब तक 49 फर्जी कंपनियों की पहचान कर उनके खिलाफ मामला दर्ज किया है। अब तक की जांच के मुताबिक इन कंपनियों के जरिए 3900 करोड़ रुपए के काले धन को सफेद किया गया है। एसएफआईओ ने 560 लोगों की पहचान भी की है।
जीएसटी के जुलाई से लागू होने की संभावना कम
एक दशक पहले देश ने जो एकीकृत भारतीय बाजार का सपना देखा था, उसके लागू होने की संभावना प्रबल हो गई है, लेकिन आगामी जुलाई से इसका लागू हो पाना संभव नहीं दिखता। राज्यों ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को अपनाने से होने वाले राजस्व नुकसान की भरपाई संबधित अहम कानूनी मसौदे को मंजूरी देकर इसके लागू होने के आसार को और पुख्ता कर दिया। यह कदम अप्रत्यक्ष कर सुधार के प्रति केंद्र और राज्यों के संकल्प का द्योतक है। जाहिर है कि नई व्यवस्था में होने वाले नुकसान को लेकर राज्यों में घबराहट थी। ऐसी ही घबराहट वैल्यू एडेड (वैट) व्यवस्था के लागू होने के समय भी हुई थीं, जो बाद में निराधार साबित हुई।
इसी तरह, जीएसटी के आने से कर चोरी रूकेगी और टैक्स आधार का विस्तार होगा तथा व्यापारियों व उपभोक्ताओं को मल्टीपल टैक्सेशन के जंजाल से मुक्ति मिल जाएगी। जाहिर है कि जीएसटी देश का अब तक का सबसे बड़ा कर सुधार है। लेकिन, इसके लागू होने से पहले अभी भी कई पड़ाव हैं, जिन्हें तेजी से पार करना होगा। अगले महीने की शुरूआत में जीएसटी काउंसिल की बैठक में कई राज्यों द्वारा उठाए मुद्दों को सुलझाना, विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं को कर की चार दरों में बांटना और फिर जीएसटी से संबंधित महत्वपूर्ण सुधारों को संसद से पास कराना बड़ी चुनौतियां हैं। इनमें अभी वक्त लगेगा। अत: वित्त मंत्री इस व्यवस्था को शायद जुलाई से लागू नहीं कर सकेंगे। लेकिन जीएसटी मामले में अभी तक की गति और विकास को देखते हुए ऐसा लगा है कि वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली सितंबर तक देश में लागू हो सकती है। दु:ख की बात यह है कि राजनीतिक कारणों से इस व्यवस्था में भी मल्टीपल टैक्स की दरें रखी गईं हैं, जो जीएसटी की मूल भावना से मेल नहीं खाती। उम्मीद है कि धीरे-धीरे वस्तु एवं सेवा कर के स्लैब चार की जगह दो की संख्या में सिमट जाएंगे।