भारतीय वैज्ञानिकों के ताजा अध्ययन में पंजाब के मालवा क्षेत्र के भूजल में यूरेनियम का गंभीर स्तर पाया गया है। पेयजल के 24 प्रतिशत नमूनों में यूरेनियम की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के निर्धारित मापदंड से अधिक पायी गई है, वहीं नौ प्रतिशत नमूनों में यूरेनियम का स्तर परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एईआरबी) के मानकों से अधिक पाया गया है।
पंजाब के फजिल्का जिले में किए गए इस अध्ययन के दौरान निहालखेड़ा, डांगेरखेड़ा, खुईखेड़ा, चूड़ीवाला, पंजकोसी, किल्लियांवाली, गोबिंदगढ़, कुंदाल, मामूखेड़ा और दानेवाला समेत कुल 20 गांवों के भूमिगत जल के नमूनों का लेजर-फ्लुरोमेट्री तकनीक से परीक्षण किया गया है। वेवलेन्थ डिस्पर्सिव एक्स-रे फ्लूरोसेंस तकनीक की मदद से इन गांवों की मिट्टी का परीक्षण भी किया गया है।
विभिन्न क्षेत्रों के प्रति लीटर भूजल में यूरेनियम की औसत मात्रा 26.51 माइक्रोग्राम पायी गई है। इस इलाके के प्रति लीटर भूमिगत जल में यूरेनियम का स्तर 4.32 से 83.99 माइक्रोग्राम के बीच पाया गया है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रति लीटर पेयजल में 30 माइक्रोग्राम तक यूरेनियम की मात्रा को सुरक्षित माना गया है। वहीं, भारत का परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड पेयजल में 60 माइक्रोग्राम यूरेनियम को सुरक्षित मानता है।
इन परीक्षणों में मिट्टी के अधिकतर नमूनों में तो यूरेनियम का सुरक्षित स्तर मिला है। पर, पानी के नमूनों में इसकी मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक पायी गई है। खुईखेड़ा, चूड़ीवाला और पंजकोसी गांवों में यूरेनियम की प्रभावी डोज का स्तर अधिक पाया गया है। इन तीनों गांवों को छोड़कर अन्य स्थानों पर वार्षिक प्रभावी डोज का स्तर रेडियोलॉजिकल संरक्षण पर अंतरराष्ट्रीय आयोग (आईसीआरपी) द्वारा संस्तुत सीमा के भीतर पाया गया है।
पंजाब के तलवंडी साबो स्थित गुरू काशी विश्वविद्यालय के अनुप्रयुक्त विज्ञान विभाग और अमृतसर स्थित डीएवी कॉलेज के भौतिक विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किए गए हैं।
शोधकर्ताओं में शामिल डॉ अजय कुमार शर्मा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “इस अध्ययन में यूरेनियम के सेवन के कारण कैंसरकारी और गैर-कैंसरकारी जोखिम का आकलन करने के लिए वार्षिक प्रभावी डोज (Annual effective dose), अतिरिक्त कैंसर जोखिम (Excess cancer risk) और जीवनकाल दैनिक डोज (Life time daily dose) जैसे स्वास्थ्य जोखिम से जुड़े कारकों की गणना भी की गई है।”
डॉ शर्मा के अनुसार, “अतिरिक्त कैंसर जोखिम से जुड़े 10 प्रतिशत मूल्यों के साथ-साथ जीवनकाल में दैनिक डोज का स्तर एईआरबी द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से अधिक पाया गया है। विभिन्न सांख्यिकीय मापदंडों से यह संकेत भी मिलता है कि भूजल में रासायनिक विषाक्तता अधिक होने से उसका उपयोग पीने के लिए उपयुक्त नहीं है। यह भी एक ध्यान देने योग्य तथ्य है कि अध्ययन क्षेत्र के भूजल में यूरेनियम की सांद्रता की वजह से रेडियोलॉजिकल जोखिम की बजाय रासायनिक जोखिम अधिक हो सकता है।”
यहां प्रभावी डोज से तात्पर्य मानव शरीर के सभी निर्दिष्ट ऊतकों और अंगों में रेडियोधर्मी तत्वों की समान डोज की ऊतक-भारित राशि से है। वहीं, किसी व्यक्ति के जीवनकाल में किसी विषाक्त पदार्थ के संपर्क में आने से कैंसर का अतिरिक्त खतरा कैंसर के विकास का अतिरिक्त जोखिम माना गया है।
जलमंडल, स्थलमंडल और जीवमंडल में यूरेनियम का अलग-अलग स्तर प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। इसके अलावा, विभिन्न मानवीय कारक भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। यूरेनियम न्यूक्लाइड्स आयनीकरण की उच्च क्षमता वाली अल्फा किरणों का उत्सर्जन करते हैं और सांस, पेयजल अथवा भोजन के जरिये शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। यूरेनियम में रासायनिक और रेडियोलॉजिकल विषाक्तता होती है, जो गुर्दे तथा फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकती है। इससे कैंसर तथा किडनी से संबंधित गंभीर रोग हो सकते हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन में कुछ स्थानों पर उच्च यूरेनियम स्तर पाए जाने के पीछे इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति प्रमुख कारण हो सकती है। इसके अलावा, खेती में अधिक फॉस्फेट का उपयोग और उद्योगों से होने वाले उत्सर्जन जैसे मानवजनित कारकों के दखल को भी खारिज नहीं किया गया है।
इससे पहले, हाल ही में पंजाब के कई हिस्सों के भूमिगत जल में आर्सेनिक का गंभीर स्तर होने के बारे में पता चला है और अब भूजल में यूरेनियम की अत्यधिक मात्रा का पाया जाना एक नयी चुनौती के रूप में उभर सकती है। (इंडिया साइंस वायर)