दक्षिण एशिया में जो भूमिका भारत को अदा करनी चाहिए, वह अब चीन करने लगा है। पाकिस्तान तो पिछले कई दशकों से उसका पक्का दोस्त है ही, अब वह भूटान में अपना राजदूतावास खोलने की तैयारी में है और उधर वह पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मनमुटाव को खत्म करने पर कमर कसे हुआ है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी पाकिस्तान के बाद अब अफगानिस्तान में हैं। यदि चीन की मध्यस्थता के कारण इन दोनों पड़ौसी देशों में सद्भाव कायम हो जाए तो क्या कहने ? दोनों पड़ौसी हैं और दोनों सुन्नी मुस्लिम देश हैं लेकिन दोनों के बीच तनाव इतना बढ़ जाता है कि पिछले 70 साल में तीन बार युद्ध होते-होते बच गया है। दोनों देशों के बीच
लगभग सवा सौ साल पुरानी डूरेंड सीमा-रेखा खिंची हुई है लेकिन अफगानिस्तान उसे नहीं मानता। दोनों तरफ के पठान कबीलों के लिए वह रेखा-मुक्त सीमांत है। पाकिस्तान यह मानता है कि अफगानिस्तान उसका पिछवाड़ा है। फिर भी वह भारत के इतने नजदीक क्यों हैं ? अभी-अभी जो भारत-अफगान हवाई बरामदा बना है, उस पर चीन और पाकिस्तान दोनों झल्लाएं हुए हैं। पाकिस्तान इसलिए नाराज़ है कि भारत ने पाकिस्तान के इस दांव का तोड़ निकाल लिया है कि वह भारत का माल अपनी थल-सीमा में से नहीं जाने देगा। चीन इसलिए नाराज है कि उसकी महत्वाकांक्षी ‘ओबोरÓ योजना धरी की धरी रह गई और भारत ने
अफगानिस्तान पहुंचने का अपना नया सुरक्षित रास्ता खोज निकाला। उधर ईरान में चाहबहार का बंदरगाह तैयार हो रहा है। इन दोनों रास्तों से भारत पूरे मध्य एशिया के पांचों राष्ट्रों और तुर्की तक आसानी से पहुंच सकेगा। चीन के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्सÓ ने इसे भारत की हठधर्मी कहा है और इसे उसने चीन-विरोधी कदम बताया है। यदि ऐसा है तो मैं चीनी सरकार को यह सुझाव दूंगा कि वह पाकिस्तान की समझाए कि भारत को यदि वह रास्ता दे देगा तो उसे घर बैठे ही कितना जबर्दस्त फायदा होगा। स्व. प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और मियां नवाज शरीफ को जब मैंने ये फायदे गिनाए तो वे मौन रह गए थे। इस मौन को चीन ही भंग कर सकता है।