रामस्वरूप रावतसरे
जस्थान में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के लिए पार्टी आलाकमान प्रदेष में संगठन स्तर पर बड़ा आमूलचूल परिवर्तन करने जा रही है जिससे प्रदेश के नेताओं में आपसी समन्वय हो।
प्रदेश में डेढ़ साल बाद विधानसभा चुनाव हैं और उसके छह महीने बाद लोकसभा चुनाव होंगे। प्रदेश के बड़े नेताओं की आपसी कलह और गुटबाजी के चलते पार्टी आलाकमान को अंदेशा है कि पार्टी कहीं इन चुनावों में शिकस्त ना खा जाए। इसके लिए वह पूरी तैयारियां और सभी नेताओं को साथ लेकर कदम उठा रही है। पूर्व प्रभारी गुरुदास कामत के इस्तीफे के बाद अब उस टीम को राजस्थान के प्रभार की जिम्मेदारी दी गई है, जिसने 2008 के चुनाव से पहले भी राजस्थान का मोर्चा संभाला था और पार्टी को विजय दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।
कांग्रेस आलाकमान ने पूर्व सांसद अविनाश पांडे को राजस्थान प्रभारी बनाया है, साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेता विवेक बंसल, विवेक कुमार, देवेन्द्र यादव और काजी निजामुद्दीन को सह प्रभारी लगाया है। अविनाश पांडे तथा बंसल पहले भी राजस्थान का कार्यभार देख चुके हैं। वर्तमान पीसीसी अध्यक्ष सचिन पायलट वैसे तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के भरोसेमंद बताये जा रहे है और गत तीन साल से पार्टी को खड़ा करने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं। लेकिन लगता है कि पार्टी के बड़े नेताओं का साथ उन्हें मिल नहीं पा रहा और ना ही प्रदेश की बड़ी जातियों को वे साध पा रहे हैं। खासकर जाट, एसटी, एससी जातियों में सचिन पायलट सर्वमान्य नेता नहीं बन पाए हैं। ये जातियां ही प्रदेश की सत्ता में वापसी का जरिया भी है।
पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जाट, एसटी-एससी वर्ग के मतदाताओं ने कांग्रेस को छोड़कर भाजपा को भरपूर समर्थन दिया था। यही कारण रहा कि कांग्रेस एससी कोटे में एक भी सीट जीत नहीं पाई। जाट व एसटी में नाम-मात्र की सीटें जीती। वैसे 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। उसके मात्र 21 विधायक ही जीत पाए। कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक जाट, एस टी, एससी वर्ग का छिटकर भाजपा से जुडऩा माना जा रहा है।
प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी इतनी है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व पीसीसी चीफ सी.पी.जोशी समेत अन्य एक्टिव गुटों का साथ पीसीसी प्रदेष अध्यक्ष सचिन पायलट को नहीं मिल पाया। पायलट का विरोधी खेमा उन्हें हटाकर खुद या अपने समर्थकों को पीसीसी चीफ बनाने की कवायद में लगा है। हालांकि पायलट की स्वच्छ छवि और कार्य निष्ठा को देखते हुए आलाकमान उन पर भरोसा जमाए हुए हैं, लेकिन उन्हें यह भी डर है कि अगर सभी गुट मिलकर नहीं चलें तो पार्टी डेढ़ साल बाद होने वाले चुनाव में वापसी नहीं कर पाएगी। पार्टी आलाकमान की सोच है कि राजस्थान में कांग्रेस का कैडर मजबूत है। अगर सही नेतृत्व और कार्यक्रमों के साथ पार्टी चलें तो भाजपा सरकार को विधानसभा चुनाव में पटखनी दे सकती है। वैसे भी पार्टी का मानना है कि राजस्थान की भाजपा सरकार की छवि जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं में ठीक नहीं है। ऐसे माहौल को पार्टी भुनाना चाहेगी। ऐसे में अब पार्टी की नजर प्रदेश नेतृत्व ऐसे हाथ में देना चाहती है, जिससे पार्टी मजबूती से आगे बढ़े सके और खोये हुए जनाधार और वोट बैंक को फिर से जोड़ सके।
जानकार सूत्रों का कहना है कि राजस्थान की सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस आलाकमान जाट नेताओं पर दांव खेल सकती हैं। प्रदेश कांग्रेस की कमान किसी अनुभवी और सर्वमान्य जाट नेता को दे सकती हैं, ताकि इस कौम को फिर से पार्टी से जोड़ा जा सके। जानकारी के अनुसार राजस्थान के 33 जिलों में से करीब पन्द्रह जिलों में जाट समुदाय का अच्छा प्रभाव है। 200 विधानसभा सीटों की 80 सीटों पर सीधा प्रभाव रखते हैं। ऐसे में इस किसान कौम को साधने के लिए राजस्थान के वरिष्ठ जाट नेताओं से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी मिल रहे हैं। उप नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी, पूर्व मंत्री हरेन्द्र मिर्धा, पूर्व सांसद हरीश चौधरी, लालचंद कटारिया, राज्यसभा सांसद नरेन्द्र बुढ़ानिया से राहुल गांधी मिल चुके बताये जा रहे हैं। ऐसे संकेत हैं कि इन जाट नेताओं में से किसी को राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष पद की अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। राजस्थान के बड़े नेताओं का समर्थन भी इन्हें मिला हुआ है। वे अंदरखाने अपने अपने नेताओं को पीसीसी चीफ बनाने की कवायद में लगे हैं। ये बड़े नेता इसलिए इनके साथ लगे हैं कि आपसी गुटबाजी के चलते संभवतया उन्हें जिम्मेदारी नहीं मिल पाए, ऐसे में पार्टी में पूरा दखल रखने के लिए अपने समर्थकों का नाम आगे बढ़ा रहे हैं। वहीं पार्टी सभी वर्गों को साधकर सत्ता में वापसी की राह देख रही है, जो बड़ी जातियां हैं और कांग्रेस की वोट बैंक रही हैं, उन्हें अहम जिम्मेदारी देने के मूड है। भविष्य में राजस्थान कांग्रेस में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। देखना है कि इस बदलाव में कौनसा गुट हावी रहता है। उसके प्रभाव का लाभ पार्टी को मिल पाता है या नहीं । ठ्ठ