लोकसभा चुनाव की तारीख नजदीक आते ही ईवीएम यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन की विश्वसनीयता पर तरह-तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इस तरह की आशंका भी की जा रही थी कि आम चुनाव से पहले ईवीएम में मीने-मेख निकाली जाने की एक बार फिर मुहीम चलने लगेगी। जो इन मशीनों में छेड़छाड़ या गड़बड़ी के दावे कर रहे हैं, वे देश के महान वैज्ञानिकों का सीधे तौर पर घोर अपमान भी कर रहे हैं। वे जाने-अनजाने में यह भूल रहे हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत करके दिन रत खून-पसीना बहाकर ही इस ईवीएम मशीन को ईजाद किया था, ताकि चुनावों में होने वाली धांधलियों और गड़बड़ियों को रोका जा सके। इन मशीनों का सीधे ही इस्तेमाल लोकसभा या विधान सभा चुनावों में नहीं किया गया । पहले ईवीएम मशीनों से मजदूर संघों के सफल चुनाव संपन्न कराए गए। वहां पर इनके सफल प्रदर्शन के बाद ही चुनाव आयोग ने बीईएल से आग्रह किया कि वो लोकसभा चुनाव के आलोक में ईवीएम मशीनों को तैयार करे। ये वास्तव में अत्यंत ही शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि जब सिंगापुर, मलेशिया और अमेरिका जैसे देश बीईएल से ई.बी.एम. मशीनों को खरीद कर आयात करने की बातचीत कर रहे हैं ताकि उन्हें ईवीएम मशीनों की जल्द सप्लाई हो जाए तब हमारे अपने देश में ही इन मशीनों पर कुछ नेता और दल सियासत करने से बाज नहीं आ रहे हैं। क्या यह अपने देश के सार्वजानिक उपक्रम के एक लाभकारी निर्यात के प्रयासों में छुरा भोंकने जैसी राष्ट्र विरोधी हरकत नहीं है?
दरअसल दिक्कत यह हो रही है कि बहुत से सियासी दल ईवीएम पर तब ही सवाल खड़े करते हैं, जब उन्हें चुनावों में जनता नकार देती है।चुनावों में सकारात्मक नतीजे आने की स्थिति में इन्हें ईवीएम में कोई खराबी नजर नहीं आती। ये इनके दोहरे मापदंड हैं। इन्हें याद रखना होगा कि विजय-पराजय चुनावों का अभिन्न अंग हैं। इसमें सिर्फ एक ही उम्मीदवार जीत सकता है। शेष को पराजय ही मिलती है। इसलिए पराजित होने की स्थिति में ईवीएम में कमियां निकालना बंद होना चाहिए। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने सही ही कहा है कि वो लोगों की आंख में आंख डाल कर कह सकते हैं कि ईवीएम मशीन के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हो सकती। कौन सा राजनीतिक दल चुनाव जीतता है कौन हारता है इसमें चुनाव आयोग की कोई भूमिका नहीं होती। साल 2104 के लोकसभा चुनाव परिणाम आये।उसके बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। दोनों में अलग-अलग दल जीते। यदि आपके अनुसार परिणाम नहीं आएं तो ईवीएम में गड़बड़ी है, ऐसा नहीं है।दरअसल सच्चाई यह है कि ईवीएम मशीनों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकता है, क्योंकि ईवीएम का इंटरनेट से कोई कनेक्शन ही नहीं होता है। इसके चलते उसे ऑनलाइन हैक करना नामुमकिनहै।
यह भी समझना होगा कि ईवीएम में छेड़छाड़ और तकनीकी खराबी में अंतर है। आप एक टीवी खरीदकर लेकर आइए, उसमें भी अगले ही दिन खराबी हो सकती है। लेकिन, कोई जरूरी नहीं कि उससे छेड़छाड़ की गई है। सन 2006 में ही ईवीएमके लिए टेक्निकल कमेटी बनी थी।वर्तमान टेक्निकल कमेटी 2010 से है। इस कमेटी में आईआईटी के प्रोफेसर हैं जो ईवीएमबनाने वाली कंपनी बीईएल से तालमेल और निगरानी करके अपना दायित्वों का निर्वाह करते हैं। इस कमेटी के गठन के वक्त कांग्रेस की ही सरकार थी। इसलिए कहा जा सकता कि इस मशीन के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकता है।ईवीएम मशीनोंमें मीनमेख निकालने वाले यह याद रखें कि किस बूथ पर कौन सी ईवीएम मशीन को भेजा जाएगा, इसके लिए पहले लोकसभा क्षेत्र, फिर विधानसभा क्षेत्र और सबसे अंत में बूथ तय किया जाता है। यानी यह एक लंबी वैज्ञानिक प्रकिया है जिसका पूर्वानुमान किसी महान ज्योतिषी के लिए भी असंभव है । ईवीएम में दो मशीनें होती हैं, बैलट और कंट्रोल। अबइसमें एक तीसरी यूनिट वीवीपीएटी भी जोड़ दी गई है, जो मतदाता को एक पर्ची दिखाती है। इससे वह आश्वस्त हो जाता है कि उसका वोट सही ही पड़ा है। मतदान अधिकारी सुबह मतदान शुरू होने से पहले मतदान केंद्र पर सभी दलों के प्रत्याशियों के चुनाव अधिकारियों के सामने मॉक पोलिंग (कृत्रिम मतदान) करवा कर दिखाते है और सभी दलों के पोलिंग एजेंटों के आश्वस्त होने के बाद ही मतदान शुरू होता है। इतनी गहन जांच के बाद भी अगर कोई ईवीएम से नाखुश है तो उसे तो साक्षात् भगवान भी संतुष्ट नहीं कर सकता है।
गौर कीजिए कि विगत वर्ष के नंवबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में मतदान के लिए ईवीएम मशीन का विरोध करने वालों को बड़ा झटका दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने तब विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के लिए बैलेट पेपर के जरिए मतदान कराने की याचिका खारिज कर दी थी।देश की सबसे बड़ी अदालत में ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से मतदान की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा था कि हर मशीन में दुरुपयोग की संभावना तो बनी ही रहती है और हर सिस्टम पर संदेह भी जताया जा सकता है। लेकिन, मात्र संदेह की बीमारी के इलाज के लिए सिस्टम तो नहीं बदला जा सकता। तो चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट केसाफ फैसलों के बाद भी कुछ राजनीतिक दल बेशर्मी से ईवीएम के स्थान पर बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं। दरअसल ये एक खतरनाक ट्रेंड शुरू हो गया है कि अगर आपके मनमाफिक चुनाव नतीजे ना आएं या फिर कोर्ट मनमाफिक फैसला न सुनाए तो आप इन्हें कुछ भी बुरा-भला कहने लगें।
याद कीजिए कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने ईवीएम पर सवाल उठाया था। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अप्रैल, 2017 में दिल्ली नगर निगम चुनावों में ईवीएम के बजाए बैलेट पेपर के इस्तेमाल की मांग की थी। पर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ विधान सभा चुनावों में ईवीएम मशीनों के इस्तेमाल के बाद भी कांग्रेस विजयी रही। इन राज्यों में चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस चुप क्यों हो गई ?कुल मिलाकर ईवीएम में गड़बड़ी को लेकर अकारण और और आधारहीन ही आरोप लगते हैं।
ईवीएम का इस्तेमाल करने की आवश्यकता ही आख़िरकार क्यों महसूस हुई थी? ईवीएम का विरोध करने वाले याद कर लें जब बैलेट पेपर के माध्यम से चुनाव होते थे, तब चुनावों के दौरान खुल्लम-खुल्ला धोखाधड़ी और धांधली होती थी। बूथों को खुलेआम लूटा जाता था । गरीबों को वोट नहीं डालने दिया जाता था । ईवीएम मशीन ने समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को भी मताधिकार दे दिया है। अबकोई भी शख्स ईवीएम मशीन पर बटन दबाकर किसी नेता या पार्टी की किस्मत लिख देता है क्या। क्या यह सब ईवीएम के दौर से पहले होता था?तब तो मैंने एक पत्रकार के रूप में आँखों से देखा है और फोटो खींचकर अख़बारों में छापा भी है कि कैसे एक आदमी पूरे बण्डल पर ठप्पा मारता था।चुनाव आयोग ने 2006 में जब ईवीएम के इस्तेमाल पर सभी पार्टियों की बैठक बुलाई थी, तब तो किसी ने इसका विरोध नहीं किया था। सब ईवीएमके पक्ष में ही खड़े थे या निरुत्तर खड़े थे। सबकी तब तो बोलती बंद थी। अब वे जनता को फिर एकबार गुमराह करने का कैंपेन चला रहे हैं।
सभी दलों की शंका का समाधान करने के लिए एक बार चुनाव आयोग ने ईवीएमचैलेंज कराया था। तब कोई भी दल इसमें गड़बड़ी नहीं निकाल सका था। चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो लोकसभा चुनाव से पहले फिर से सभी दलों को एक बार फिर दिखा देंगे कि किस तरह से ईवीएम मशीन सही काम करती है। निश्चित रूप से ईवीएम मशीन पर सवाल खड़े करने वालों पर अब लगाम लगनी ही चाहिए नहीं तो जनता ऐसे गुमराह फ़ैलाने वालों का खुद ही हिसाब कर देगी।
आर.के. सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)