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बजट और मेरा दृष्टिकोण

 

 

मैं एक उदाहरण देना चाहता हूं, मैं जब अपने मां के गर्भ में था यदि उस समय मेरी मां को दूध, मक्खन, घी, मछली मांस, अंडा, ड्राई फ्रूट, फल, सब्जी भरपेट खाने को मिला होता तो शायद आज मेरा रंग रूप दूसरा हुआ होता। मैं उस मां के पेट से जन्म लेकर आया हूं जिसको भरपेट भोजन नहीं मिला, वह आधे पेट खाकर सोती थी, कभी-कभी मां के पेट में भी मुझे भूखा रहना पड़ता था। आपने कभी इस पर सोचा, आपके दिल में कभी दर्द हुआ, हम जेल में जाते थे तो गाते थे,

धनवानों के राजमहल हम गरीब

को फांसीघर चलो बसाएं नया नगर।

मैं भी नरेन्द्र मोदी जी को धन्यवाद देना चाहता हूं, उन्होंने उस मां के दर्द को समझा और गर्भवती महिलाओं को छह हजार रूपये भोजन के लिए दिए। हिन्दी भाषी इलाके के लोग जो पिछड़े हैं, दलित हैं, गरीब हैं, मजदूर हैं, किसान हैं और गांव की झोपड़ी में रहने वाले हों, अपनी-अपनी माताओं तक यह संदेश पहुंचाओ कि छह हजार रूपये प्रत्येक गर्भवती महिलाओं को भोजन के लिए मिलेगा।

मैं कोसी के इलाके में घूमा हूं। जितना मेरे शरीर से पसीना बहा है उतना आज के नौजवान दूध नहीं पीए होंगे। डॉ लोहिया ने इसी सदन में श्रीमती इंदिरा नेहरू गांधी को कहा था हिन्दुस्तान मेें जो गरीब मां है उसको भर पेट भोजन नहीं मिलता है, दाल नहीं, प्रोटीन नहीं, विटामिन नहीं, उनको पोषक तत्व नहीं मिलता इसलिए उनके गर्भ से विकलांग बच्चे और कमजोर बच्चे जन्म लेते हैं। जिसे देश में मां के पेट से विकलांग बच्चे पैदा होंगे वह देश कभी बलवान नहीं हो सकता है।

गंाधी जी ने दर्शन दिया था, गांधी दर्शन है, नंबर एक- यानी कृषि, नंबर दो- कुटीर उद्योग और छोटे उद्योग, नंबर तीन हैं बड़े उद्योग। सरदार पटेल जी की मृत्यु के बाद आपने उस प्राथमिकता को बदल दिया। मैं माननीय नरेन्द्र मोदी जी को धन्यवाद देना चाहता हूं। माननीय सरदार पटेल जी और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की दृष्टि को माननीय वित्त मंत्री जी ने शुरू किया है, नंबर एक पर कृषि, नंबर दो पर ग्रामीण विकास। गांव और किसान सबसे ज्यादा पिछड़ा रहा है और उसका कल्याण करने के लिए योजना में जोर दिया गया है।

मैं किसान हूं। 1951 में 71.9 प्रतिशत किसान थे, 2001 में 45.1 हो गए, इस तरह 26.8 किसान कम हो गए। कृषि मजदूर वर्ष 1991 में 28.1 प्रतिशत था, जो वर्ष 2011 में 54.9 प्रतिशत हो गया, यानी 26.08 प्रतिशत बढ़ गया। एक तरफ किसान के प्रतिशत में कमी होती है, तो खुशी होती है कि वह खेती से हटकर कहीं दूसरे रोजगार में गया होगा, बाबू बना होगा, महल में गया होगा, कुर्सी पर बैठा होगा। लेकिन जब मैं दूसरी तरफ देखता हूं तो 26.8 प्रतिशत खेतिहर मजदूर में बढ़ोत्तरी हुई है। इसका मतलब है कि जो किसान था, उसे ही आपने खेतिहर मजदूर बना दिया है। जो खेती करने वाला था, वह मजदूर बन गया। गांव में जो 82.7 प्रतिशत लोग रहते थे, वे घटते-घटते 68.8 प्रतिशत हो गये, यानी 14 परसेंट कम हो गये। यह सोचा गया कि गांव का आदमी कम हुआ है, तो वह शहर गया होगा। उसने वहां अच्छी दुकान बनायी होगी, कारखाना बनाया होगा, बाबू बना होगा। लेकिन जब वे दिल्ली में आये, तो रिक्शा चलाते, ठेला चलाते और फुटपाथ पर सोते हैं, पेड़ के नीचे सोते हैं। सबसे ज्यादा पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के नौजवान दिल्ली में रोजगार खोजने के लिए आते हैं। वे यहां किसान का बेटा बनकर आये थे। किसी भी जाति का हो, लेकिन यहां रिक्शा चलाता है, ठेला चलाता है, मजदूरी करता है और फुटपाथ पर सोता है। वह एक पेड़ के नीचे रहता है, जन्मता है, पलता है और बढ़ता है। दूसरे पेड़ की छाया के नीचे शादी होती है।

वर्ष 1990-91 में सीमांत किसान 59.4 प्रतिशत थे और लघु किसान 18.8 प्रतिशत थे। वर्ष 2010-11 में सीमांत किसान 59 परसेंट से बढ़कर 64-65 प्रतिशत हो गये और लघु किसान 18.8 प्रतिशत से बढ़कर 18.52 प्रतिशत हो गये। जितने सीमांत किसान थे, वे लघु किसान बन गये। दो हैक्टेयर, पांच हैक्टेयर जमीन वाले एक हैक्टेयर, आध हैक्टेयर जमीन के किसान बन गये। उन्हें किसने इस स्थिति में रहने के लिए मजबूर किया था?

हम एक तरफ वैज्ञानिक, मशीनीकृत और आधुनिक खेती की बात करते हैं, पहले हल और बैल से खेती होती थी, अब ट्रैक्टर से खेती होती है। पहले मजदूर हंसुआ से गेहूं काटता था, अब कम्बाइन मशीन से गेंहू काटता है। एक तरफ कहते हैं कि वैज्ञानिक खेती करो, मशीनीकृत खेती करो और दूसरी तरफ जमीन का बंटवारा कर दीजिए। वह भूमि सुधार नहीं था, वह भूमि की लूट थी।

लोक सभा में डाक्टर लोहिया ने कहा था कि ‘हिन्दुस्तान में जितने अंकशास्त्री हैं, वे सभी विषधर सांप के समान हैं। जैसी बीन बजाओगे, वैसे वे नाचेंगे और अगर आप बीन बजाना नहीं जानते तो उनको आप क्या नचा पाओगे।’’

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना हर खेती को पानी, हर हाथ को काम मिलेगा, पिछड़ों को, दलितों को और कमजोर वर्गों को ज्यादा लाभ मिलेगा, क्योंकि खेती-किसानी वही ज्यादा करते हैं। उसके खेत में पानी जाएगा, उसके खेत में हरियाली आएगी, घर में खुशहाली आएगी, चेहरे पर लाली आएगी, बेटों-बच्चों को आगे बढ़ाएगा-पढ़ाएगा और यह सब वह तब करेगा, जब उसके खेतों में पानी आएगा। पिछली सरकार ने जो योजनाएं बनाईं, मैं बिहार से हूं, उत्तर प्रदेश के लोग जानते हैं कि आपने कितनी सिचंाई योजनाएं बनाई। एक पश्चिमी कोसी नहर मेरे मिथलांचल में है। 1960 में यह योजना शुरू की गई थी और आज तक मेरे खेतों मे पानी नहीं आया। जमीन भी गई, उत्पादन भी गया, योजनाएं किसलिए बनीं कि ऐसी योजनाएं बनाओ जो आगे बढ़ती जाएं और कभी पूरी नहीं हो। इंजीनियर, नेता और ठेकेदार तीनों मिलकर तिकड़ी बनाओ और लूट-लूटकर खाते रहो और इस योजना को कभी पूरी मत होने दो।

एक मृदा परीक्षण योजना है। सॉयल हैल्थ कार्ड भी है। आपने इतने दिनों तक क्यों नहीं सोचा? आप तो अंधाधुधं जमीन में खाद देते चले गये। हिन्दुस्तान के अंदर 12 करोड़ हेक्टेयर जमीन है, उसमें मृदा परीक्षण का काम आसान नहीं है। युद्ध स्तर पर इसके लिए काम करना होता है। कृषि विज्ञान केन्द्रों में लैब दिये गये हैं। उनमें टैस्टिंग मशीन दी गई है, जिससे मिट्टी की जांच हो सके कि उसमें कौन सी कमी है। उसमें यूरिया कम है या नाइट्रोजन कम है या फास्फोरस कम है या पोटाश कम है या जिंक कम है। यह जांच करने के बाद किसान उसके हिसाब से उसमें वह खाद डालेगा। अब मेरा बच्चा मेरे जैसा अनपढ़ गंवार नहीं है। अब मेरा पोता मुझसे ज्यादा होशियार है क्योंकि कम्प्यूटर से नैट से निकालकर सारी बातें देखता है। अगर वह यह काम करेगा तो वह आधुनिक खेती करेगा। उसी तरह से लघु-सीमांत किसानों के बारे में मैं कहना चाहूंगा कि ग्रामीण गल्ला गोदाम की योजना अटल बिहारी वाजपेयी जी ने शुरू की थी। बिहार में कहीं पर गोदाम नहीं है। किसान का धान नहीं खरीदा जा रहा है। सरकार का रेट 1350 रूपये क्विंटल है। मैं किसान हूं। अपना 120 क्विंटल धान 1200 रूपये में बेचकर आया हूं। बिहार सरकार की व्यवस्था कहां है? वहां इसीलिए नहीं बना कि अगर ग्रामीण गल्ला गोदाम बनेगा, पैक्स के अंदर धान खरीदा जाएगा, किसान को ज्यादा रेट मिलेगा तो किसान खुशहाल हो जांएगे।

प्रधानमंत्री जी ने मुद्रा बैंक की स्थापना की। मुद्रा बैंक से सेल्फ गारंटी पर दस लाख रूपये तक का कर्ज दिया जाता है। यह रकम गरीब को मिलेगी, किसान के बेटे को मिलेगी, मजदूर के बेटे को मिलेगी, पिछड़े वर्ग के बेटे को मिलेगी, दलित के बेटे को मिलेगी, समाज के उपेक्षित, उपहासित और कमजोर वर्ग को मिलेगी तो उनके घर में खुशहाली आयेगी।

कौशल विकास योजना क्या है? चमड़े का काम, लोहे का काम, मिट्टी का काम, गिट्टी का काम, ये सब काम कौन करते हैं? ये काम पिछड़े और दलित समाज के लोग करते हैं। उनके हाथ में कौशल है, लेकिन उसकी कोई प्रमाणिकता नहीं थी। नरेन्द्र मोदी जी ने सोचा कि उनके बच्चे कहां आईटीआई और आईआईटी में पढऩे जायेंगे, इसलिए गांव-गांव में कौशल विकास योजना के लिए प्रशिक्षण केन्द्र बनाया। उन्हें तीन हजार रूपये प्रशिक्षण के समय में मिलेगा और गांव में उन्हें कौशल का एक प्रमाण-पत्र भी मिलेगा। उन्हें राज मिस्त्री, हल और कुदाल चलाने का प्रमाण-पत्र मिलेगा। ग्रामीण क्षेत्र में सभी काम करने वालों को प्रमाण-पत्र मिलेगा। वे भी एक प्रमाण-पत्र लेकर कहीं जायेंगे, क्योंकि हमे अनस्किल्ड लेबर कहा जाता था। किसान अनस्किल्ड लेबरर्स हैं, लेकिन अन्य लोग स्किल्ड लेबरर्स हैं।

मैं एक बार अपने खेत में हल चला रहा था। मेरे गांव के बगल में डिफेंस की हवाई पट्टी है। वहां जहाज उड़ रहा था तो मैं रूक गया। मैंने सोचा कि हवाई जहाज उड़ाने वाला ऊपर से कुछ बोल रहा है। मैंने अपने मन में कहा कि क्या बोल रहा है, तुम यही कह रहे हो कि तुम टेक्निकल हो और हवाई जहाज उड़ा रहे हो, तुम हवाई जहाज उतार कर आओ, और हल पकड़ कर, खेत जोत कर बताओ। हवाई जहाज उड़ाने में मैं नॉन-टैक्निकल हूं और हल चलाने में तुम नॉन-टेक्निकल हो, दोनों का सौदा बराबर है। तेरी विद्या हम न जाने, मेरी विद्या तुम न जानो।

नरेन्द्र मोदी जी प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिए 27 हजार करोड़ रूपए दे रहे हैं। इस योजना में 113 या 115 किलोमीटर सड़क रोज के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। इससे गांव बदलेगा। गांव में पक्की सड़कें बनेंगी। वहां की गलियां पक्की होगी। कांग्रेस ने मनरेगा योजना चलाई। मैं कहता हूं कि आप उस पैसे से हमारे गांव की सड़कों और गलियों को पक्का करने का काम करते, हमारे लिए मशीन, ट्रैक्टर और मोटर-साइकिल चलाने का रास्ता बनवाते। इससे गांव का कायाकल्प और कल्याण हो जाता। सड़क निर्माण सबसे ज्यादा रोजगार उपलब्ध कराने और विकास करने का साधन है। आपका ध्यान इस ओर क्यों नहीं गया। आप बातें नहीं, काम कर के दिखाते।

हम तो किसान हैं, हमारे बिहार में, उत्तर प्रदेश में किसी किसान के घर में नकदी खर्च दो हजार रूपये से ज्यादा नहीं है। चावल अपना, दाल अपनी, गेहूं अपना, सब्जी अपनी, दूध अपना, दही अपना, हम पैसा लेकर क्या करेंगे, क्या पैसा कूटकर खाएंगे। हमारा तो दो हजार रूपये में महीना चलता है। चार हजार रूपये बदलने का आदेश आया कि बदल लो, किसी तरह बचाकर 4000 रूपये, 2000 रूपये, 5000 रूपये घर में रखे थे। एक दिन में बदल कर ले आए फिर 3-4 महीने तक घर में खर्चा चलाया। कलेजा उनका फटता है, जो फाइव स्टार होटल में जाकर रहते हैं, राजा-रानी रहते हैं, सूइट का किराया एक लाख, डेढ़ लाख होता है।

मैं अपनी बात समाप्त करते हुए एक बात कहता हूं कि हिन्दुस्तान के गांव, गरीब, किसान, मजदूर, पिछड़े, दलित सबके लिए काम किया गया। मोदी जी ने कहा, सबका साथ, सबका विकास, उसमें कौन नहीं है, हिन्दू है, मुसलमान है, सिख है, ईसाई है, गरीब है, अमीर है, पिछड़ा है, दलित है, सबका साथ, सबका विकास। खेत में पानी सबके खेत में पानी, हर हाथ को काम, सबके हाथ में काम, हर एक चेहरे पर लाली, सबके चेहरे पर लाली, हर गर्भवती माता को 6 हजार रूपये, सबके घर में 6000 रूपये कोई भेदभाव नहीं किया गया। किसी जात के लिए नहीं, न अल्पसंख्यक है, न बहुसंख्यक है, हिन्दुस्तान एक समान है, इसलिए समदृष्टि रखिए, सबके लिए बराबर का काम करिए, तब भारत उठेगा, भारत शक्तिशाली बनेगा और भारत शक्तिशाली और मजबूत बनेगा। हमारा हिस्सा ज्यादा ही बनेगा, जब सबके बेटे नौकरी पांएगे तो सबसे ज्यादा हम पिछड़े वर्ग के लोग नौकरी पाएंगे, क्योंकि हमारी संख्या ज्यादा है, दलित ज्यादा नौकरी पाएगा, क्योंकि उसकी संख्या ज्यादा है। जब सबका विकास होगा, उसमें मेरी हिस्सेदारी ज्यादा होगी, जब सबका कल्याण होगा, मेरी हिस्सेदारी ज्यादा होगी, इसलिए हम उस दृष्टिकोण से सोचते हैं। नरेन्द्र मोदी जी की योजना से हिंदुस्तान में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परिवर्तन आयेगा। इसी से हिन्दुस्तान का कल्याण होने वाला है, इसीलिए मैं इस बजट का समर्थन करता हूं।

(लेखक के संसद में दिये भाषण के अंश)

 

हुक्म देव नारायण यादव

 

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