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भव्य राम मंदिर निर्माण की ओर बढ़ते कदम

 

राम मंदिर पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद मंदिर निर्माण हेतु सरगर्मियां तेज़ हो गयी हैं। न्यायालय ने तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है। अब ट्रस्ट में कौन कौन व्यक्तिसदस्य होंगे एवं राम मंदिर का पुजारी कौन होगा इस पर गतिविधियां पूरे उफान पर हैं। राम मंदिर आंदोलन में अहम किरदार रही विश्व हिन्दू परिषद चाहती है कि राजनीतिक लोगों का ट्रस्ट में ज़्यादा हस्तक्षेप न रहे। इसके साथ ही विहिप दलित पुजारी की पैरवी भी कर रही है। इन सबके बीच अमित शाह ने चार माह में भव्य राम मंदिर निर्माण की बात कहकर इस विषय पर सरकार की प्रतिबद्धता को सार्वजनिक कर दिया है। चूंकि राम मंदिर के विषय पर दायर सारी याचिकाएं अब खारिज हो चुकी हैं इसलिए किसी भी तरह की कोई कानूनी अड़चन अब आड़े नहीं है। एक ओर रामजन्मभूमि न्यास के सदस्य रामविलास वेदान्ती अयोध्या को अन्तराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में देखना चाहते हैं तो दूसरी तरफ जस्टिस लिब्रहान अब लालकृष्ण आडवाणी को देशभक्त राजनेता बता रहे हैं। रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण का शिल्प किस तरह का होना चाहिए इस पर भी सामाजिक परिदृश्य में वातावरण बन रहा है। सुझाव, विचार और विमर्श के द्वारा राम मंदिर भव्य बनेगा इसकी रूपरेखा तय होती दिखने लगी है। कई पड़ावों से गुजरने के बाद अब जब राम मंदिर निर्माण की तैयारी चल रही है तब इस ऐतिहासिक यात्रा में सभी का योगदान अविस्मरणीय बन जाता है। राम मंदिर जन्मभूमि का विषय जहां एक ओर हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे दिनेश त्यागी द्वारा हिन्दू जागरण मंच के माध्यम से 1983 में उठाया गया वहीं लालकृष्ण आडवाणी ने वीपी सिंह की सरकार के समय ऐतिहासिक रथयात्रा करके इसको राजनीतिक हलको का विषय बना दिया था।

अमित त्यागी  

 

भारत सम्पूर्णताओं से परिपूर्ण एक दिव्य राष्ट्र रहा है, राम जिसके कण कण में समाएं हैं। राम मंदिर बनने की तैयारी पूरी दिव्यता और भव्यता के साथ चल रही है। भारत भूमि को एक और प्रकृति ने प्राकृतिक एवं खनिज सम्पदा से नवाजा है तो दूसरी तरफ इन संसाधनों का सार्थक प्रयोग करते हुये ऐसे ऐसे शिल्प निर्मित कर दिये हैं जिसके द्वारा एक आम हिन्दुस्तानी स्वयं पर आत्ममुग्ध हो सकता है। एक ओर वृहदीश्वर मंदिर अपने विराट स्वरूप के कारण भगवान शिव के स्वरूप को दिव्यता प्रदान करता है तो कोणार्क का सूर्य मंदिर हजारों साल पहले पत्थरों पर की गयी नक्काशी का नायाब उदाहरण है। एक ओर सांची के स्तूप बुद्ध के मानव स्वरूप से इतर आध्यात्मिक स्वरूप का दर्शन कराते हैं तो  मीनाक्षी मंदिर के प्रत्येक स्तंभ को थाप देने से भिन्न भिन्न स्वर निकलते हैं। ऐसे ही लेपाक्षी मंदिर अपनी नक्काशी के साथ एक ऐसे स्तम्भ के लिए भी विख्यात है जो हवा में झूलता है। शायद यही है भारत के शिल्प की ताकत जिसको सुलझाने में आज का विज्ञान भी विफल रहा है। अभी कुछ समय पहले जब केदारनाथ में बाढ़ आयी थी तब मंदिर को छोड़कर हर स्थान पर नुकसान होना कहीं न कहीं सिर्फ आस्था का प्रश्न नहीं रह जाता है। इसके पीछे छिपे भारत के ज्ञान विज्ञान को नकारना इतना आसान नहीं है। आस्था, शिल्प, विज्ञान एवं आध्यात्मिकता के संगम के द्वारा अब भव्य और दिव्य राम मंदिर निर्माण करके आधुनिक युग का शिल्प विश्व के सामने आने को बेचैन है।

बात जब राम मंदिर की हो रही है तो प्रभु श्रीराम के बारे में उर्दू के मशहूर शायर अल्लामा इकबाल का शेर महत्वपूर्ण हो जाता है। वह कहते हैं कि ‘है राम के वजूद पर हिंदोस्ता को नाज़, अहले नजऱ समझते हैं उनको इमाम ए हिन्द’। इन दो पंक्तियों में भारत की सांस्कृतिक विरासत और हमारे पूर्वजों का सारा सार छिपा है। अब जब राम मंदिर निर्माण की तैयारी अपने पूरे उफान पर चल रही है तब इस विषय के कुछ ऐतिहासिक संस्मरण रोचक बन जाते हैं। आज राम मंदिर के विषय का जो पड़ाव है वह कई राजनीतिक और सामाजिक पगडंडियों से होकर गुजरा है। भारत के राजनीतिक इतिहास में एक दौर ऐसा भी रहा है जब मंदिर के विषय नेताओं द्वारा उठाए जाने से परहेज किया जाता था। आज़ादी के बाद भारत के पहले राष्ट्रपति रहे राजेंद्र प्रसाद का प्रकरण इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है। 11 मई 1951 को सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन होना था। बार बार लुटेरों और शासकों द्वारा निशाना बने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण सरदार बल्लभ भाई पटेल ने कराया था। राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को मंदिर के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू नहीं चाहते थे कि राजेंद्र प्रसाद इसके उद्घाटन में जाएं। इस विषय पर दोनों के बीच मतभेद का जि़क्र रामचन्द्र गुहा की पुस्तक ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में मिलता है। नेहरू जी के अनुसार राष्ट्रपति के द्वारा ऐसे कार्यक्रम में जाने के अलग अलग निहितार्थ निकाले जाएंगे। जवाहर नेहरू के इस विचार के बावजूद राजेंद्र प्रसाद सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में गए और वहां उन्होंने कहा कि ”मैं एक हिन्दू हूं, मगर सारे धर्मों का आदर करता हूं। कई मौकों पर चर्च, मस्जिद, दरगाह और गुरुद्वारा भी जाता हूं।’’

राममंदिर के विषय के समय इस संस्मरण का जि़क्र इसलिए आवश्यक है क्योंकि जब 1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अपनी रथ यात्रा शुरू की तो उसके ऐतिहासिक मायने भी थे। इसके पहले जब 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बनी तो उसमें 86 सांसदों वाली भाजपा एवं 52 सांसदों वाले वामदल भी सहयोगी थे। अगस्त 1990 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मण्डल कमीशन का जिन्न बोतल से बाहर निकाला तो राजनीति में बवंडर आ गया। उस समय की राजनीतिक गतिविधियों ने भाजपा को असहज कर दिया। इस बीच भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने सितंबर 1990 में राम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या तक रथ यात्रा का ऐलान कर दिया। यह यात्रा 25 सितंबर को सोमनाथ से शुरू होकर 30 सितंबर को अयोध्या पहुंचनी थी। सोमनाथ से यात्रा की शुरुआत का उद्देश्य जनमानस में एक संदेश देने के लिए था कि जिस तरह विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण के बाद सोमनाथ के मंदिर पर कार्य हुआ है वैसे ही अयोध्या पर काम करना है। सोमनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में पहला है और इसे बार बार लूटा गया है। अरब यात्री अलबरूनी ने भारत यात्रा के अपने वृत्तांत में जब इस मंदिर के वैभव का जि़क्र किया था तब 1024 में महमूद गजनवी ने 5 हज़ार लुटेरों की फौज के साथ यहां हमला किया और हजारों श्रद्धालुओं को मार दिया। 1706 में औरंगजेब के द्वारा भी इस मंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया गया। आज़ादी के बाद सरदार पटेल द्वारा इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया। अब सोमनाथ के बाद राम मंदिर निर्माण की तैयारी चल रही है जो भारत के सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक होगा। इस स्थान से धार्मिक पर्यटन के माध्यम से बड़ा रोजगार भी पैदा होगा।

पर्यटन और रोजगार का गहरा संबंध है। यूरोप के कई देश सिर्फ पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था पर आश्रित हैं। स्विट्जऱलैंड जैसे छोटे देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार पर्यटन है। अर्थव्यवस्था का आधार बनाने के लिए इन देशों ने मेहनत भी की है। उन्होंने न सिर्फ अपने यहां के प्राकृतिक सौन्दर्य को संरक्षित किया बल्कि नागरिकों को प्रशिक्षित किया ताकि वह पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग बन सकें। पर्यटकों के आने पर होटल व्यवसाय, ट्रांसपोर्ट व्यवसाय, टूरिस्ट गाइड सहित अनेकों क्षेत्र में रोजगार सृजित होने लगते हैं। इस रोजगार सृजन का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि यह उसी स्थान पर सृजित होते हैं जिस स्थान पर व्यक्ति निवास करता है। यह बड़े शहरों में रोजगार की तलाश करने जाने वाले नौजवानों के कारण बढ़ती शहरी आबादी को भी नियंत्रित करता है। धार्मिक पर्यटन सरकार को बहुत सी समस्याओं का हल प्रदान करता है। वेटिकन जैसा छोटा देश इसका उदाहरण है।

सोमनाथ और वेटिकन के आधार पर अयोध्या में हो धार्मिक पर्यटन  

सोमनाथ का मंदिर धार्मिक पर्यटन के द्वारा एक बड़ा रोजगार का माध्यम है। सोमनाथ के मंदिर में सालाना 45 लाख लोग दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में चंदे से प्रतिवर्ष 33 करोड़ रुपये मंदिर को प्राप्त होते हैं। धार्मिक पर्यटन की वजह से ट्रांसपोर्ट, होटल एवं अन्य स्थानीय व्यवसायों को रोजगार मिलता है। राम मंदिर का निर्माण होने एवं अयोध्या का समग्र विकास होने की स्थिति में अयोध्या धार्मिक पर्यटन का एक केंद्र बन जाएगा। यह हिन्दुओं के लिए उस तरह की भव्यता लिए होगा जिस तरह की भव्यता वेटिकन में है। वर्तमान में वेटिकन में 50 लाख पर्यटक प्रतिवर्ष आते हैं। वेटिकन में प्रवेश करने वाले प्रत्येक पर्यटक से 15-20 यूरो प्रवेश शुल्क के रूप में लिए जाते हैं। वेटिकन की सालाना आय 32 करोड़ यूरो या लगभग 2,532 करोड़ रुपये सालाना है। वेटिकन में 5 हज़ार लोग सीधे तौर पर काम करके रोजगार पा रहे हैं। अन्य माध्यम से रोजगार पाने वाले लोगों की संख्या लाखों में है। वर्तमान में वेटिकन धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से सबसे समृद्ध स्थान माना जाता है। इसाईयों में वेटिकन का वही महत्व है जैसा मुस्लिमों में मक्का का। अब भारत में अयोध्या हिन्दुओं का सबसे अहम केंद्र बनने जा रहा है।

हिन्दुओं के धर्म स्थल वैसे भी रोजगार का बड़ा माध्यम एवं आस्था का प्रतीक रहे हैं। जैसे तिरुपति बालाजी में सिर्फ लड्डू के व्यापार से ही 75 करोड़ सालाना की कमाई होती है। इस मंदिर में वार्षिक दान लगभग 650 करोड़ रुपये का है। शिर्डी के साई बाबा मंदिर में प्रतिवर्ष 360 करोड़ रुपये का चढ़ावा आता है। शिर्डी एक गांव था जहां धार्मिक पर्यटन के कारण आस पास के इलाके में काफी समृद्धि आ गयी है। अब जब राम मंदिर अपनी भव्यता और दिव्यता के साथ धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनेगा तब अयोध्या न सिर्फ रोजगार सृजन करने का माध्यम बनेगा बल्कि सांस्कृतिक वैभव को भी समृद्ध करेगा।  उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अयोध्या में हजारों करोड़ के खर्च के द्वारा सुधार की भूमिका पहले ही बन चुकी थी। अयोध्या में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का एक हवाई अड्डा बन रहा है। इसके माध्यम से देशी-विदेशी पर्यटक अब सीधे यहां आ पाएंगे। अयोध्या के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से सीधी रेलगाडिय़ां चलाने की शुरुआत होने की रूपरेखा बन रही है। अयोध्या के स्टेशन को भव्य बनाने पर भी काम किया जा रहा है। अब अगर सरकार की नीतियों के द्वारा यदि मूलभूत ढांचा एक बार मजबूत कर दिया जाता है तो सालों तक उसका फायदा स्थानीय रोजगार पर पड़ेगा। फिलहाल तो राम मंदिर निर्माण की तैयारियां ज़ोर शोर से चल रही हैं। इसका नक्शा पहले से तैयार था। पत्थर तराशने का कार्य रामजन्मभूमि कार्यशाला में 1990 से लगातार चल ही रहा था। आज भी यहां पत्थर तराशने का कार्य जोरशोर से चल रहा है। इसके साथ रामकथा कुंज, जहां रामराज्य और उनके आदर्शों से जुड़ी 100 से ज़्यादा मूर्तियां निर्मित होनी है, वहां भी दो दर्जन से अधिक मूर्तियां बनकर तैयार हैं। यहां काफी मात्रा में लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

अयोध्या बन सकती है सांस्कृतिक राजधानी 

भारत में धार्मिक पर्यटन का राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय बड़ा बाज़ार मौजूद है। अयोध्या के आस पास बनारस और प्रयागराज जैसे तीर्थ स्थल मौजूद हैं। विश्व में बौद्ध धर्म को मानने वाले एक बड़े वर्ग के लिए भारत एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। सारनाथ और बौद्ध गया भारत में स्थित हैं जो महात्मा बुद्ध से जुड़े प्रमुख स्थल हैं। अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटकों के आगमन को यदि हम सुलभ बना देते हैं तो वह बौद्ध धर्म के पर्यटन स्थल के साथ अयोध्या भी पर्यटन के लिए आना शुरू कर देंगे। इस तरह का धार्मिक पर्यटन वैश्विक पहचान का माध्यम बनता है। रोजगार सृजन का आधार बनता है। उत्तर प्रदेश में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या एवं भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा एक बड़े पर्यटक स्थल हैं। बनारस के घाट अगर आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर हैं तो लखनऊ अपनी नक्काशी के लिए। अयोध्या के केंद्र बनते ही आस पास के पर्यटन स्थल भी धार्मिक पर्यटन का भाग बन जाएंगे।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही अयोध्या पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। उच्चतम न्यायालय के फैसले के पहले ही सरयू घाट पर भगवान राम की 221 मीटर ऊंची कांस्य की प्रतिमा लगाने का ऐलान योगी सरकार द्वारा किया जा चुका था। इस पर काम भी शुरू हो चुका है। अयोध्या में सौंदर्यीकरण व पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भगवान राम पर आधारित डिजिटल लाइब्रेरी, लैंड स्केपिंग, प्रतिमा व पार्किंग के संबंध में प्रस्ताव कैबिनट द्वारा पास किए जा चुके हैं। मीरपुर गांव में 61.3807 हेक्टेयर भूमि को खरीदने के लिए 440.46 करोड़ का प्रस्ताव, पर्यटन की दृष्टि से वाराणसी की कैंट थाना के क्षेत्र को दो भागों में विभाजित किए जाने का फैसला एवं वाराणसी में सारनाथ स्तूप पर टूरिज्म पुलिस थाना बनाए जाने का फैसला सरकार द्वारा लिया जा चुका है। जिस तरह से 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर भूभाग में विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है ठीक वैसे ही राम मंदिर पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद अयोध्या के धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनने की रूपरेखा बन चुकी है। राम मंदिर आंदोलन से जुड़े सभी लोग इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे।

 

राम मंदिर विषय पर दायर सभी पुनर्विचार याचिकायें खारिज

उच्चतम न्यायालय  की संवैधानिक पीठ के द्वारा अयोध्या राम मंदिर के विषय पर दाखिल सभी 18 पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है। 9 नंवबर 2019 के राम जन्मभूमि-बाबरी फ़ैसले पर दिए गए फ़ैसले पर पुनर्विचार करने की मांग करते हुए 18 याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें से 9 याचिकाएं पक्षकार की ओर से दायर हुई थीं जबकि 9 याचिकाएं अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से लगाई गई थीं।

इस मामले में सबसे पहले 2 दिसंबर को पुनर्विचार याचिका मूल वादी एम सिद्दकी के क़ानूनी वारिस मौलाना सैयद अशहद रशीदी ने दायर की थी। इसके बाद 6 दिसंबर को मौलाना मुफ़्ती हसबुल्ला, मोहम्मद उमर, मौलाना महफ़ूज़ुर्रहमान, हाजी महबूब और मिसबाहुद्दीन ने छह याचिकाएं दायर कीं। इन सभी पुनर्विचार याचिकाओं को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का समर्थन प्राप्त था।

इसके बाद 9 दिसंबर को दो और पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गईं। इनमें से एक याचिका अखिल भारत हिंदू महासभा की थी, जबकि दूसरी याचिका 40 से अधिक लोगों ने संयुक्त रूप से दायर की थी। संयुक्त याचिका दायर करने वालों में इतिहासकार इरफ़ान हबीब, अर्थशास्त्री व राजनीतिक विश्लेषक प्रभात पटनायक, मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर, नंदिनी सुंदर और जॉन दयाल शामिल थे।

हिंदू महासभा ने अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर करके मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ भूमि उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ़ बोर्ड को आवंटित करने के आदेश पर सवाल उठाये थे। साथ ही महासभा ने फ़ैसले से उस अंश को हटाने का अनुरोध किया था जिसमें विवादित ढांचे को मस्जिद घोषित किया गया है।

सभी याचिकाओं के खारिज होने से एक बात तो स्पष्ट हो गयी है कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के आधार पर अब राम मंदिर निर्माण में कोई बाधा शेष नहीं बची है।

 

शुरू हुयी अयोध्या राम मंदिर के पुजारी बनने की होड़

अयोध्या में राम जन्मभूमि का निर्णय उच्चतम न्यायालय ने दे दिया है। अगले तीन महीने में ट्रस्ट निर्माण की बात सरकार के द्वारा कही जा चुकी है। अब हर कोई उस मंदिर का पुजारी बनना चाहता है। इसको लेकर अब प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखे जाने लगे हैं। पुजारी बनने की होड़ में गुरु भाईयों आचार्य सत्येंद्र दास और महंत धर्म दास के साथ ही रामलला विराजमान के पक्षकार और राम जन्मभूमि न्यास के सदस्य त्रिलोकी नाथ पांडेय भी शामिल हैं। पुजारी बनने की यह होड़ राम मंदिर के पक्षकार महंत धर्म दास की ओर से प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राम मंदिर के रिसीवर को पत्र लिखे जाने से शुरू हुई। इस पत्र में उन्होंने 1949 में अपने गुरु बाबा अभिराम दास के राम मंदिर का पुजारी होने का जिक्र करते हुए उनके खिलाफ पुजारी रहते दर्ज मुकदमें और इसके आधार पर मंदिर और मस्जिद पक्षकारों द्वारा उनको पुजारी मानते हुए पार्टी बनाने का भी उल्लेख किया। महंत ने यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में उनके गुरु बाबा अभिराम दास को ही तत्कालीन पुजारी माना है। इसी आधार पर उन्होंने परंपरा और कानून का हवाला देकर गठित होने वाले ट्रस्ट में खुद को ट्रस्टी और पुजारी बनाने की मांग की है।

इसके बाद राम मंदिर के वर्तमान पुजारी और महंत धर्म दास के बड़े गुरु भाई आचार्य सत्येंद्र दास ने भी 27 साल से राम लला की  पूजा करते आने का उल्लेख करते हुए पुजारी बनने का दावा कर दिया। दास ने अपने गुरु बाबा अभिराम दास की परंपरा को आगे बढ़ाने का हवाला दिया है और कहा है कि इसी आधार पर राम मंदिर के रिसीवर ने सबसे बड़ा शिष्य होने के नाते पुजारी के लिए उनका चयन किया था। महंत धर्म दास के पुजारी के लिए दावा करने के संबंध में उन्होंने कहा कि हो सकता है उनके गुरु भाई उसी परंपरा को आगे बढ़ाने की बात कर रहे हो लेकिन उनको यह मांग करनी चाहिए कि जब बड़े गुरु भाई पुजारी हैं तो छोटे गुरु भाई की कोई जरूरत नहीं है। आचार्य ने धर्म दास की मांग को जायज भी ठहराया और कहा कि वह हमारे छोटे भाई हैं।  पूजा का अधिकार चाहे हमको मिले या उनको मिले, उन्हें इसका समर्थन करना चाहिए। फिर क्या था दो गुरु भाईयों के बीच पुजारी बनने के लिए चल रही होड़ में रामलला विराजमान के पक्षकार त्रिलोकी नाथ पांडे ने भी एंट्री मार दी। पांडेय ने वर्तमान पुजारी सत्येंद्र दास को कमिश्नर का कर्मचारी करार देते हुए कहा कि उन्हें वेतन मिलता है। पुजारी तो ट्रस्ट बनाएगा। इस प्रकरण पर विहिप का कहना है कि पुजारी सर्वगुण संपन्न, वैदिक रीति रिवाजों को मानने वाला, ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला निपुण रामानंद संप्रदाय का व्यक्ति होना चाहिए। ठीक उसी तर्ज पर जैसा कि माता वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी में होता है। उसी विधि विधान से पूजा होनी चाहिए। पुजारी कौन होगा, यह ट्रस्ट तय करेगा।

 

लालकृष्ण आडवाणी एक चालाक और देशभक्त राजनेता हैं : जस्टिस लिब्रहान

जब बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराया गया था तब उसकी जांच के लिए तत्कालीन नरसिंह राव सरकार ने एक सदस्यीय लिब्रहान आयोग का गठन किया था। राम मंदिर विषय पर न्यायालय के निर्णय के बाद जस्टिस लिब्रहान के विचार ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं। गौरतलब है कि विवादित ढांचे को गिराने की अगुवाई लालकृष्ण आडवाणी एवं कल्याण सिंह जैसे नेताओं ने की थी। जस्टिस मनमोहन सिंह लिब्रहान को अब लगता है कि उनका जांच आयोग राजनीतिक समस्याओं को शांत करने के लिए गठित हुआ था और इसका कोई वास्तविक असर नहीं हुआ। उनका कहना है कि ”एक तरह से ये मेरे प्रयासों की बर्बादी था, जैसा कि सभी आयोगों की रिपोर्टों के साथ होता ही रहा है।’’

जस्टिस लिब्रहान ने 30 जून 2009 को अपनी रिपोर्ट पेश की थी। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए धर्म का इस्तेमाल रोकने के लिए सज़ा देने का प्रावधान करने की सिफ़ारिश की थी। हालांकि उनकी सिफ़ारिशों पर कभी अमल नहीं हो सका। जस्टिस लिब्रहान ने उस रिपोर्ट में कहा था कि बाबरी मस्जिद को गिराया जाना एक सोची समझी साजि़श थी। लालकृष्ण आडवाणी और कल्याण सिंह जैसे नेताओं को कभी क़ानून का डर नहीं दिखा।  इन सबमें महत्वपूर्ण बात यह है कि राम मंदिर आंदोलन के अग्रणी नेता रहे लालकृष्ण आडवाणी को जस्टिल लिब्रहान देशभक्त मानते हैं। इस संदर्भ में लिब्रहान का बयान काफी महत्वपूर्ण है। लालकृष्ण आडवाणी एक चालाक राजनेता हैं और देशभक्त हैं और मैं उन्हें कुछ हद तक बाबरी मस्जिद को गिराने का जि़म्मेदार भी मानता हूं। वह अपराधी हैं या नहीं ये आपराधिक अदालत को तय करना है। मैंने उन्हें अपराधी नहीं कहा है। अगर व्यावहारिक रूप से देखें तो बाबरी मस्जिद गिराने के लिए सबसे बड़े जि़म्मेदार कल्याण सिंह थे। सबसे ज़्यादा भूमिका उन्हीं की थी। हर स्टेज पर, हर अदालत के सामने उन्होंने झूठ बोला। इस घटना का राजनीतिक फ़ायदा भी उठाया। हालांकि कल्याण सिंह इन आरोपों को नकारते रहे हैं और उनका कहना रहा है कि जस्टिस लिब्रहान की रिपोर्ट कूड़ेदान में फेंकने के लायक है।

जस्टिस लिब्रहान का अपनी तफतीश के लिए मानना है कि सबूतों को सुरक्षित रखना इस जांच के दौरान सबसे मुश्किल काम रहा। उन्हें ये भी लगता है कि वो इसमें पूरी तरह से कामयाब नहीं हो सके। कई गवाह तो उनके समक्ष पेश ही नहीं हुए।  एक हज़ार पन्नों की रिपोर्ट तैयार करने के क्रम में लिब्रहान ने सौ से अधिक गवाहों के बयान दर्ज किए थे। जस्टिस लिब्रहान छह दिसंबर को एक राजनीतिक घटनाक्रम के तौर पर देखते हैं। वो कहते हैं कि इस घटना के पीछे राजनेता शामिल थे जो अब भारत की सत्ता में शामिल हैं और उनके यहां तक पहुंचने में इस घटना का अहम किरदार रहा है। वो ये भी कहते हैं कि इस जांच के बहुत से तथ्य सार्वजनिक नहीं हुए हैं और अब उनका सार्वजनिक होना ज़रूरी भी नहीं है। मुझे नहीं लगता कि बाबरी मस्जिद को गिराने पर कोई अभियुक्त सज़ा भुगतेगा। ये एक तरह का डिवाइन जस्टिस ही होगा। डिवाइन जस्टिस पर लिब्रहान का मानना है कि डिवाइन जस्टिस से मेरा मतलब है ईश्वर की ओर से किया गया न्याय, जो ईश्वर को सही लगा। क्या बाबरी मस्जिद का गिराया जाना ईश्वर की नजऱ में भी सही रहा होगा? इस पर जस्टिस लिब्रहान को लगता है, ”हो सकता है, इस पर मेरी कोई निजी राय नहीं है। मेरे पर कभी किसी सरकार का कोई प्रभाव नहीं रहा, न कभी कोई दबाव था। मैं जो कर सकता था मैंने किया।’’

 

राम की धरती पर्यटन स्थल के रूप में घोषित हो : राम विलास वेदांती

राम जन्मभूमि पर निर्णय के बाद मंदिर निर्माण की प्रक्रिया के क्रम उसकी भव्यता एवं शिल्प पर चर्चाएं शुरू हो गयी हैं। राम जन्मभूमि न्यास के सदस्य रामविलास वेदांती चाहते हैं कि अयोध्या में भव्य मंदिर बने। मंदिर इतना भव्य बने कि दुनियाभर के पर्यटक अयोध्या घूमने आएं। वेदांती का कहना है कि यह नगरी राम की धरती है और इसे विश्व पर्यटक स्थल के रूप में घोषित किया जाना चाहिए। राम विलास वेदांती का मानना है कि मंदिर कितने बड़े क्षेत्र में बनेगा, यह अभी तय नहीं है लेकिन 200 या 400 एकड़ की जमीन पर बने जिससे इसकी भव्यता नजर आए। यह मंदिर इतना भव्य हो कि दुनिया में सबसे अलग नजर आए और हर ओर इसकी चर्चा हो। इसके साथ ही मंदिर निर्माण में हर तबके के लोगों को शामिल किया जाना चाहिए।

वहीं अयोध्या रीविजिटेड किताब के लेखक और आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल का मानना है कि मंदिर के शिल्प पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मंदिर का निर्माण प्राचीन नक्शे के आधार पर ही होना चाहिए। अयोध्या में इसी स्थान पर एक मंदिर था जहां 14 खंभे कसौटी पत्थर लगे हुए थे। उसका नक्शा भी बना हुआ है जिसमें 14 कसौटी पत्थरों को दिखलाया गया है। गर्भगृह का आकार उन्हीं 14 पत्थरों पर आधारित होना चाहिए, जो कि प्राचीन मंदिर का था एवं जो 1130 ई. में गोविंदचंद्र के गवर्नर अनय चंद ने बनाया था। इसमें एक सोने का कलश होना चाहिए। प्राचीन मंदिर में बहुत सारे शिखर थे इसलिए गगनचुंबी शिखर बने। दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर बने।

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