मेरी समझ से कश्मीर में अब भाजपा को पीडीपी से संबंध तोड़ लेना चाहिए। एक प्रयोग किया था, फेल हो गया। इसे मानने में कोई हर्ज नहीं है। यह ईगो का सवाल नहीं है।
मेरे हिसाब से केंद्र और महबूबा की सरकार में तालमेल नहीं बैठ पा रहा है, जिससे मोदी सरकार हुर्रियत के नेता गिलानी, यासिन मलिक, मीर वाइज आदि के प्रति आर्थिक नाकेबंदी के अलावा कोई और कठोर कदम नहीं उठा पा रही है।
जिस तरह आज नमाजियों की भीड़ ने कश्मीरी पुलिस के डीसीपी अय्यूब पंडित को पीट-पीट कर मारा है वह दर्दनाक है। और जिस तरह अय्यूब का परिवार यह कह रहा है कि वह सेना का जवान नहीं था, वह काफिर नहीं था कि उसकी हत्या कर दी, वह भी डरावना है।
क्या सेना के जवान और काफिर यानी जो इस्लाम में विलीव नहीं करते, उनकी हत्या करेंगे कश्मीरी? आज घर को घर के चिराग से आग लगी है!
जीवे-जीवे पाकिस्तान का नारा लगाते-लगाते कश्मीर का एक बड़ा समूह मानसिक रूप से जेहादी हो चुका है। गोली और टफ डिसीजन ही इनका स्थायी इलाज है।
हुर्रियत आदि की सुरक्षा को हटाने और इनके नेताओं को पाकिस्तान पहुंचाने का वक्त आ गया है। और शायद लोकल पोलिटिक्स और महबूबा के साथ सरकार चलाने के कारण केंद्र सरकार खुलकर अलगा्वादियों के खिलाफ कदम उठाने में हिचक रही है।
घिसट-घिसट कर कोई सरकार चलाने से अच्छा है, सरकार से अलग होइए और खुलकर वो कीजिए जिससे समस्याएं सुलझती हों! सरकार चलाना उपलब्धि नहीं, कश्मीर का स्थायी समाधान ढूंढऩा बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। पंजाब से आतंकवाद व अलगाववाद समाप्त हो सकता है तो कश्मीर के साढ़े तीन जिलों से भी यह मिट सकता है! बस आर-पार की ठान लीजिए!
संदीपदेव