प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल का शुभारंभ धमाकेदार तरीके से किया है। उनकी सरकार ने वित्त मंत्रालय के 12 वरिष्ठ अफसरों को जबरन रिटायर करा दिया। दरअसल सरकार ने डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉम्र्स के नियम 56 के तहत इन अफसरों को समय से पहले ही रिटायरमेंट दे दी। ये सभी अधिकारी आयकर विभाग में चीफ कमिश्नर, प्रिंसिपल कमिश्नर्स और कमिश्नर जैसे पदों पर तैनात थे। इनमें से कई अफसरों पर कथित तौर पर भ्रष्टाचार, अवैध और बेहिसाब संपत्ति के अलावा यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप थे। यानी संदेश अब साफ है। अब मोदी के राज में निकम्मे और कामचोर सरकारी बाबुओं की खैर नहीं है। अब बाबुओं के कामकाज पर गहरी नजर रखी जाएगी। अब वे सरकारी ओहदे की मौज-मस्ती नहीं काट सकेंगे। अगर मौज काटेंगे तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। यूं तो संदिग्ध अधिकारियों को अनिवार्य रिटायरमेंट दिए जाने का नियम दशकों पहले से ही प्रभावी है, पर इतनी कड़ी कार्रवाई तो पहली बार हुई है। मान कर चलिए कि अब कामचोर सरकारी बाबुओं पर गाज गिरती ही रहेगी। दूसरा रास्ता तो यही है कि ये अब सुधर जाएं। नहीं सुधरे तो कहीं के नहीं रहेंगे। कौन नहीं जानता कि देश का आम नागरिक सरकारी बाबुओं की काहिली के कारण कितना त्रस्त है। जन्म-मरण का प्रमाणपत्र देने वाले बाबुओं से लेकर बिजली-पानी के दफ्तर मे बैठे बाबू उनके पास आने वाले नागरिकों से घूस लिए बिना कोई काम ही नहीं करते। इनका जमीर तो पूरी तरह मर चुका है। ये अपने बच्चों से आंखें कैसे मिला पाते होंगे।
कुल मिलाकर मोदी सरकार का संदेश साफ है कि अब अपने कर्तव्यों का सही प्रकार से निर्वहन ना करने वाले बाबू फंसेंगे। अब ये नहीं देखा जाएगा कि वे किस पद पर हैं। सरकार की ताजा कार्रवाई में तो वित्त मंत्रालय के रसूखदार शिखर अफसर फंसे हैं। अब सरकार भ्रष्ट और संदिग्ध छवि वाले अफसरों को बख्शने के लिए कतई तैयार नहीं दिखती। निश्चित रूप से सरकार के इस तरह के कठोर फैसला लेने के दो लाभ होंगे। पहला, रोजगार की तलाश कर रहे कुछ ईमानदार नौजवानों को भी अवसर मिलेंगे। दूसरा, सिर्फ काम करने वाले ही सरकारी नौकरियों में बच सकेंगे।
यदि आप मोदी सरकार के कामकाज की ध्यानपूर्वक निगरानी रख रहे हैं तो आपको पता होगा कि इस सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ही छतीसगढ़ कैडर के दो आईपीएस अफसरों की सेवाएं समाप्त कर दी थीं। उन पर भी तमाम तरह के गंभीर आरोप थे। यानी एक्शन तो पहले से चल रहा है। इससे पहले भी मोदी सरकार 130 कामचोर और भ्रष्ट बाबुओं की सेवाएं समाप्त कर चुकी है। ग्रुप ‘ए’ सेवा के 11,828 और ग्रुप ‘बी’ सेवा के 19,714 अफसरों के सर्विस रिकॉर्ड को भ्रष्ट आचरणों के आरोप में खंगाला गया था। तो अब ऐसा कह सकते है कि भ्रष्ट और कामचोर सरकारी अफसरों का बुरा वक्त चल रहा है। पर सरकारी बाबू जल्दी से सुधरने वाले नहीं है। इनकी भी गलती नहीं है। इन्होंने 2014 से पहले पूरी जिंदगी बिना किसी खास जिम्मेदारी के ही काम किया है। अब इन्हें काम करना पड़ रहा है तो इनकी पेशानी से पसीना निकल रहा है। इन्होंने तो अबतक मौज ही काटी है और जनता को धौंस दिखाकर पैसे ही एंठते रहे हैं।
हां, यह भी मानना होगा कि बहुत से बाबू ईमानदार भी हैं। सरकार ईमानदार और सरकारी योजनाओं तथा कार्यक्रमों को तत्परता और निष्ठा से लागू करने वाले बाबुओं को अब पुरस्कृत भी करने लगी है। अफसोस तो तब होता है कि काहिल सरकारी बाबू अपने उन साथियों से भी प्रेरणा नहीं लेते जो अपने कर्तव्यों के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर देते हैं। इन्हें कुछ माह पूर्व पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ से सटे खरड़ शहर में जोनल लाइसेंसिंग अथॉरिटी में अधिकारी रही नेहा शौरी, नेशनल हाईवे के सत्येंद्र दुबे और पेट्रोलियम पदाधिकारी मंजूनाथ जैसे ईमानदार सरकारी अफसरों से सबक लेना चाहिए। इन अफसरों ने अपने दायित्वों के निर्वाह के लिए अपने प्राणों की आहुति तक दे दी। ये सभी मेहनती और कर्तव्य परायण सरकारी अफसर थे। ये बेईमानों को कभी छोड़ते नहीं थे।
ये सच है कि सत्य के रास्ते पर चलना कठिन है, पर देश के लिए यह करना जरूरी है। इस लिहाज से कोई अन्य विकल्प नहीं हो सकता। ईमानदार अफसरों को तो सरकार से हर तरह की मदद मिलनी ही चाहिए। इन पर ट्रांसफर की तलवार नहीं लटकनी चाहिए। अब तक तो भ्रष्ट पदाधिकारी किसी भी ईमानदार अफसर को हर तरह से प्रताडि़त ही करते रहते थे। कहना ना होगा कि बहुत से ईमानदार अफसरों को भारी कष्ट तक झेलने पड़ते हैं। इन्हें बार-बार ट्रांसफर कर दिया जाता है। अनुशासनहीन और अकर्मण्य बताकर प्रताडि़त किया जाता है।
सरकारी महकमों में छाई काहिली को देखकर सच में के. सुब्रमण्यम (केन्द्रीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर के पिता), टी. एन. चतुर्वेदी, जे.एन.दीक्षित, जगमोहन, राजदेव सिंह, पी.एन. हक्सर टी. एन. शेषन, जैसे बेहतरीन नौकरशाहों की याद आ जाती है। ये सभी तटस्थ और ईमानदार सरकारी अफसर थे। इनकी छवि कभी किसी राजनीतिज्ञ पिट्ठू या ‘आदमी’ की नहीं बनी। ये दिन-रात काम करते थे। ये किसी लाभ के लिए नहीं देश के हित में काम करते थे। अब तो इन जैसे सरकारी बाबुओं के नक्शे कदम पर ही सरकारी बाबुओं को चलना होगा। इन्हें समझना होगा कि इनसे देश बहुत कुछ अपेक्षा रखता है। ये देश को निराश नहीं कर सकते।
गुजरे कुछेक सालों से कई सरकारी बाबू सरकारी सेवा में रहते हुए ही किसी असरदार नेता के करीबी बन जाते हैं। उनका लक्ष्य बहुत साफ होता है। वे रिटायर होने के बाद पंजीरी खाते रहना चाहते हैं। कुछ बाबू नौकरी में रहते हुए ही किसी सियासी दल के साथ जुड़ जाते हैं। इनका लक्ष्य उस पार्टी का लोकसभा या विधानसभा चुनाव के समय टिकट लेना होता है।
मानकर चलिए कि हमारी नौकरशाही में अब संड़ाध आने लगी है। इसमें बड़े बदलाव करने की जरूरत है। अब कोई भी सरकार काम चोर अफसरों को झेल नहीं सकती। अब तो तब ही आपका सरकारी सेवा में गुजारा है जब आप लगातार रिजल्ट दे सके। आखिर किसी को भी निकम्मेपन के बदले में पारितोषिक तो नहीं दिया जा सकता है। अपने देश में बाबुओं के बीच में कहा ही जाता है कि अब तो हम सरकार के दामाद हो गए। अब तो हम अपने दफ्तर से तब ही विदा होंगे जब हमारे गले में चंदन की माला डलेगी, यानी जब हम रिटायर होंगे। ये सोच आज के नये भारत में स्वीकार नहीं की जा सकती। अब तो आपको हर दिन काम करना होगा।
आर.के. सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)