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मरकज से मुरादाबाद- तक कौन भटका रहे हैं मुसलमानों को

 

दिल्ली में तलबीगी मरकज में हजारों की संख्या में कोरोना संक्रमितों के साथ छिपकर देश को कोरोना वायरस के जाल में फंसाने वाले ये तथाकथित खुदा के बंदे बाज नहीं आ रहे हैं। जब तबलीगियों पर थोड़ा सा शिकंजा कसने लगा तो उनके हमदर्द मुम्बई में लॉकडाउन तोड़ने लगे। बांद्रा और थाणे में हजारों की संख्या में बिला वजह इकट्ठे होकर पुलिस और कानून-व्यवस्था को चुनौती देने लगे और मुरादाबाद से लेकर इंदौर तथा बिहार के मोतिहारी और औरंगाबाद में पुलिस और डाक्टरों की टीम पर पथराव करने लगे। जरा इनकी हिम्मत तो देखें। अब कोई यह तो न कहे कि सरकार इन्हें दोयम दर्जे का नागरिक-मानती समझती है। ये तो सरकार और बहुसंख्यकों के सिर पर चढ़कर खुलेआम पेशाब कर रहे हैं। डाक्टरों से मारपीट, महिला नर्सों से अश्लीलता और सफाई कर्मचारियों पर थूकना आम्बत है। इनकी महिलायें छतों से ईंटे बरसा कर पुलिस पर हमला कर रही हैं।
उत्तर प्रदेश और बिहार की सरकारें जहां कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आए लोगों को सुरक्षित करने और बढ़िया से बढ़िया करने में जुटी है, वहीं मुसलमानों का एक खास वर्ग सरकार के सारे प्रयासों को विफल करना चाह रहा है। वह तो अपने मुल्ला के फरमान को देश, संविधान और प्रधानमंत्री से ऊपर मान बैठा है और उसी के हिसाब से आचरण भी करने पर आमदा है । मुरादाबाद में डॉक्टरों और पुलिस बल पर जिस तरह से सुनियोजित षडयंत्र की तरह पथराव हुआ उससे उन दिनों की कड़वी यादें ताजा हो गईं जब कश्मीर घाटी में पुलिस बलों पर कुछ गुमराह कश्मीरी युवकों के द्वारा बेशर्मी से पथराव किया जाता था। आज कश्मीर शांत है । पूरी तरह लॉकडाउन में है और वहां तो कोई पथराव जैसी बात सुनने को भी नहीं मिल रही । लेकिन, मुरादाबाद में तो औरतें छतों से ईंट बरसा रही हैं । मुरादाबाद में चिकित्सा कर्मियों और पुलिस के ऊपर पथराव इतना जबरदस्त था कि एक बार तो पुलिस भी हैरान रह गई। पर उत्तर प्रदेश पुलिस के बहादुर सिपाहियों ने अंत में पत्थर फेंकने वालों को वीडियो फुटेज की साक्ष्य पर दबोच ही लिया। हालांकि इस क्रम में पुलिस की कई गाड़ियां और एम्बुलेंस क्षतिग्रस्त हो गईं। डॉ अग्रवाल मरते-मरते बचे। कुल 17 हमलावरों को जेल भेजा गया और 12 अभी हिरासत में हैं । कुल 221 लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज हुआ है जिसमें 21 तो नामदज हैं । बाकियों की पहचान की जा रही है। मोरादाबाद के एस.एस.पी अमित पाठक ने कहा है कि कोई भी अपराधी बख्शा नहीं जायेगा और कोई भी बेगुनाह जेल नहीं भेजा जायेगा। पथराव करने वालों में औरतें भी पूरी बेशर्मी के साथ सक्रिय थीं। इन धूर्त बेवकूफों को कोई जरा यह समझाए कि जो सरकारी मुलाजिम तो अपनी जान को जोखिम में डालकर उनकी जान बचने और उन्हें सेहतमंद करने आ रहे हैं, क्या उन पर तुम्हें पथराव करते हुए शर्म नहीं आई? क्या तुम्हारा जमीर मर गया है? इन्हें यह भी तो पता होना चाहिए सरकारी मुलाजिम इनके नौकर नहीं हैं। यह देश के सेवक हैं। इनके साथ बेअदबी करके ये अपना असली चेहरा दिखा देते हैं और कानूनन जुर्म भी कर रहे हैं।
क्या स्वास्थ्य टीम पर पथराव करने वालों को रात को नींद आ रही होगी? क्या पथराव करने से पहले इन्हें चुल्लू भर पानी में डूब कर नहीं मर जाना चाहिए था? दरअसल डाक्टरों और पुलिस टीम पर हमले की साजिश निश्चय ही इन्होने अपने आकाओं के आदेश पर पहले ही बना ली थी। इसी साजिश के तहत घरों की छतों पर ईंट-पत्थर पहले से ही भारी मात्रा में जमा कर लिए गए थे। महिलाओं को आगे करना भी इसी साजिश का ही अहम् हिस्सा था जिससे पुलिस चकरा जाए और तुरंत महिलाओं के खिलाफ महिला पुलिस कर्मियों की अनुपस्थिति में कोई सख्ती न कर सके।
मुरादाबाद की इस शर्मनाक घटना ने एक बार फिर से यह साबित किया है कि जहालत ही भारत के मुसलमानों की सबसे बड़ी दुश्मन है। अगर ये मदरसों की धार्मिक शिक्षा की बजाय अगर दुनियावी आधुनिक तालीम या रोजगार परक ट्रेनिंग हासिल करने पर ध्यान दें तभी तो ये देश की मुख्य धारा से जुड़ सकते हैं और अशिक्षा और बेरोजगारी से दूर होकर देश की सेवा में और अपनी माली हालात को सुधारने में जुट सकते हैं । अपने को इस्लाम का मानने वाले कहने वालों को इतनी भी शर्म नहीं आती कि जो डाक्टर उनकी जिंदगी बचाने के लिए अपनी जिंदगी खतरे में डालकर उनके पास आ रहा हैं, उन पर ये पूर्व नियोजित षड्यंत्र कर जानलेवा हमला कर रहे हैं।
बेशक इंदौर की घटना के बाद मुसलमानों की व्यापक स्तर पर निंदा हुई । पर फिर भी कुछ रोशन ख्याल मुसलमानों को छोड़कर बाकी सब चुप रहे। किसी ने अपनी कौम के बेशर्मों को आड़े हाथों नहीं लिया। इसमें कोई शक नहीं कि शाहीन बाग आँदोलन, फिर तबलीगी मरकज़ की घटना और उसके बाद मौलाना साद के अपने चेलों को दिए आहवान से सारा मुस्लिम समाज बदनाम हुआ। सारे देश में और पूरी दुनिया में इस तरह का संदेश चला गया कि ये तो कानून को किसी भी हालत में मानने को राजी नहीं हैं। आज सारी दुनिया कोरोना के खतरों के कारण सहमी हुई है। पर लगता है कि मुस्लिम समाज का एक हिस्सा समझने का नाम ही नहीं ले रहा है। अब वक्त की तो यह मांग है कि पढ़े-लिखे मुसलिम के भाई अपने आसपास के इलाक़ों में खुद जाकर इन जाहिल कट्टरपंथी मुसलमानों को जागरूक करें। उन्हें बताएं कि डॉक्टरों की टीम उनके बीच कोरोना फैलाने नहीं, बल्कि कोरोना से उनका बचाव करने के लिए ही आ रही है। मुसलमान पूरी तरह मेडिकल टीम व प्रशासन से सहयोग करें, इसी में उनका भी हित है और देश का भी हित है। यदि ऐसा तुरंत नहीं होता है तो एक गलत सन्देश पूरी दुनिया में जायेगा कि देश का आम मुसलमान तबलीगी हो गया है, जबकि, ऐसा है तो बिलकुल भी नहीं है । लेकिन जागरूकता नहीं आई तो खतरा यह है कि अब मुस्लिम बस्तियों में डॉक्टर और एम्बुलेंस नहीं जायेगी। यदि इस घटना के जवाब में उन्हें उन्हीं के सूरते हाल पर छोड़ दिया जाये तो उनकी बस्तियों की गलियां लाशों से भर जाएगी और उन्हें सुपुर्दे खाक करने वाले भी नहीं मिलेंगे। क्या ये तबलीगी यही देखना चाहते हैं ?
इसी बीच बालीबुड के सुपर स्टार सलमान खान ने अपने नौ मिनट के वीडियो सन्देश में कट्टर पंथियों को बुरी तरह लताड़ा है । लॉकडाउन के कारण अपने घर से दूर फार्म हाउस में रह रहे “दबंग” अभिनेता ने पुलिस और डाक्टरों पर पत्थर बरसाने वालों पर गुस्सा जाहिर किया है । उन्होंने कहा कि चंद जोकरों की वजह से यह बीमारी कोरोना फैलती जा रही है । लोग मामले की नजाकत नहीं समझेंगे तो कहीं ऐसा न हो कि उन्हें समझाने के लिए सेना बुलानी पड़ जाए । करीब नौ मिनट के वीडियो में सलमान ने कोरोना पाजिटिव मरीजों के दुःख को नहीं समझाने वालों को इंसानियत का विरोधी बताया । उन्होंने कहा, कोरोना संक्रमित लोगों को समझ आता है कि उन्होंने एहतियात नहीं राखी उनसे गलती हो गई । मगर सावधानी नहीं बरतने वाले इसकी चपेट में निश्चित रूप से आ जायेंगे । फिर अपने पूरे खानदान, मुहल्ले, शहर और देश में फैला देंगे ।
नमाज पढ़नी है, पूजा करनी है तो घर में करो: सलमान ने आगे कहा, सरकार ने घर से बाहर नहीं निकलने, शारीरिक दूरी बनाने को कहा है । आप बताओ डाक्टर, पुलिस, बैंक में काम करने वालों का साथ देना है या नहीं । वे लोग 18-18 घंटे काम कर रहे हैं ताकि कोरोना वायरस के संक्रमण को रोका जा सके । यह बीमारी ऊँच-नीच, जाति-पाति, अमीरी-गरीबी और उम्र नहीं देखती । डाक्टरों-पुलिस पर पत्थर बरसाने वालों को फटकारते हुये उन्होंने कहा कि अगर आपके एक्शन सही होते तो लॉकडाउन और कोरोना वायरस दोनों ख़त्म हो गया होता । सलमान ने डाक्टरों और पुलिस पर पत्थर बरसाने वालों को फटकार लगाते हुये कहा कि डॉक्टर और नर्स आपकी जान बचाने आए और आपने उन पर पत्थर बरसा दिए । कोरोना से संक्रमित अस्पताल से भाग रहा है । भागकर जाओगे कहाँ? जिन्दगी की ओर भाग रहे हो या मौत की ओर । अगर ये डॉक्टर आपका इलाज नहीं करते और पुलिस सड़कों पर नहीं होती तो चंद लोगों की वजह से, जिनके दिमाग में चल रहा है कि हमें कोरोना वायरस नहीं होगा वे हिंदुस्तान के ढेर सरे लोगों को लेकर चल बसेंगे ।
बहरहाल, यह तो मानना होगा कि कोरोना के खिलाफ जंग में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिन-रात काम कर रहे हैं कोरोना योद्दाओं के साथ। वैसे उनका कायदे से साथ देने की बजाय कुछ भटके हुए मुसलमान अब भी शरारत से बाज नहीं आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि कोरोना उन्हें संक्रमित कर ही नहीं सकता । लेकिन, इनको सख्त डोज भी मिलने लगी है। जिन लोगों ने मुरादाबाद में डॉक्टरों हमला कर उन्हें अधमरा कर दिया, उनके खिलाफ शासन ने कठोर कदम उठाते हुए वीडियो साक्ष्यों के आधार पर मुरादाबाद के दंगाग्रस्त इलाके की घेराबंदी शुरू की और जवाबी कार्रवाई में उपद्रवियों को घर से खींच-खींच कर निकाला। इस घटना की वीडियो देखना भी अजीब है । पहले पत्थर मरकर जानलेवा हमला किया और अब इनके नेता हाथ जोड़े घूम रहे हैं और महिलायें दया की भीख मांग रही हैं । मुख्यमंत्री ने सब पर एनएसए लगाने के आदेश दे दिए हैं। यानि सबका कम से कम एक वर्ष तक जेल के अन्दर रहना तय है । इस बीच इन्हें एनएसए कानून के तहत जमानत तक नहीं मिलेगी । आरोपों की सुनवाई होने पर सरकारी डॉक्टर की साजिशन हत्या की सजा अलग से । सभी उपद्रवियों की सम्पत्ति को बेचकर नुकसान की भरपाई भी करनी होगी । बेचारे पहले से ही गरीब लोग अपनी गलत कारनामों की वजह से अब ये सड़कों पर आ जायेंगे । ये पूछें मौलाना साद से कि क्या वह इनकी जगह भरपाई करेंगे । कहना न होगा कि अब ऐसे गुमराह अज्ञानी कट्टरपंथियों के विरुद्ध कठोरतम कार्रवाई का वक्त आ गया है। कोरोना के खिलाफ अपनी जान को दांव पर लगा कर काम करने वालों पर हमला करने वाले कत्तई माफ नहीं किये जाएंगे। बेशक, इन कठिन हालातों में जो भी शख्स सरकारी बाबू पर हमला करता है, उसे माफ करना किसी भी तरह वाजिब भी नहीं है ।
साफ है, इस समय जो धूर्त कट्टरपंथी गुमराह होकर कोरोना योद्धाओं पर हमला करते हैं वे देश और समाज के दुश्मन है। वे इंसान हैं ही नहीं । उनके लिए किसी भी तरह की कोई सहानुभूति की कोई जगह नहीं हो सकती। जो जानवरों जैसा व्यवहार करेंगे, उन्हें जवाब तो उसी ढंग से ही मिलेगा न ?
अब भी वक्त है पढ़े-लिखे समझदार मुसलमान वर्ग के लोग समझ जाएं। वरना इतिहास में तो ये दर्ज हो ही जाएगा कि जब देश पर संकट की घड़ी आयी तो ये सारे लोग देश के साथ गद्दारी कर रहे थे । इनकी समझ में यह कब आयेगा कि राष्ट्रहित के विरुद्ध अपनी डफली बजाकर ये तो कहीं के नहीं रहेंगे । यदि इनका सामाजिक बहिस्कार हो जाये तो क्या ये कभी जी सकेंगे । ये यहीं पैदा हुये हैं । यहीं के नागरिक हैं । इनका फर्ज बनता है कि एक निष्ठावान नागरिक की ड्यूटी निभायें । यदि यह सुनहरा मौका इन्होने गंवा दिया तो न वे तो इस देश के रहेंगे न दुनिया के । अभी तो ये बंगलादेशी मुसलमानों की खातिरदारी में लगे हैं, ये खुद बांग्लादेश या पाकिस्तान में शरण मांग कर देखें तो इन्हें अपनी औकात तुरंत समझ में आ जायेगी । मैंने तो 1971 युद्ध में महीनों बांग्लादेश में बिताये हैं वहां हिंदी और उर्दू भाषी “बिहारी मुसलमानों” के साथ जैसा बर्ताव किया जाता है वह पाकिस्तान में उत्तर प्रदेश के मुस्लमान जो वहां चले गए थे और अबतक “मुहाजिर” ही हैं, उनसे बदतर ही है ।
इस वक्त न केवल मुसलमानों को, बल्कि सबकों यह समझना चाहिए कि डॉक्टरों की टीम उनके इलाक़े में कोरोना वायरस मरीज़ों की जॉंच के लिए ही आ रही है। वह भी पहले से पूछकर, समय लेकर आ रही है । जिनमें कोरोना के लक्षण हों, उन्हें ख़ुद क्वेरंटीन के लिए आगे आना चाहिए था, ताकि उनका, उनके परिवार व पड़ोसियों का कोरोना से बचाव हो सके। निश्चित रूप से मुसलमानों की ताजा स्थिति के लिए बड़ा जिम्मेदार उनका अशिक्षित होना ही है। अशिक्षा से हजारों समस्याएं निकलती है, जैसे बढ़ती आबादी, अज्ञानता, कट्टरता, अदूरदर्शिता, स्वच्छता, स्वास्थ्य, सामाजिक-आर्थिक पतन और तमाम ऐसी बुराइयां जो आपस मे मिलकर ऐसा दलदल पैदा करती है जिसमे पूरा कौम ही गर्त में चल जाता है। आज भारत में मुस्लिम समाज के रहनुमाओं को बैठकर सोचना होगा कि आख़िरकार उनकी कौम क्यों रास्ते से भटक गई?

आर.के. सिन्हा

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

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