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मीरा कुमारः दलित का कंबल क्यों ओढ़ा ?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मीरा कुमार का चिढ़ना स्वाभाविक है। बेंगलूरु में पत्रकारों ने जब उनसे पूछा कि उन्हें पता है कि वे हारनेवाली हैं, फिर भी वे राष्ट्रपति का चुनाव क्यों लड़ रही हैं ? इस पर मीराजी तुनुक गईं और उन्होंने पत्रकारों से पूछा तो क्या मैं बैठ जाऊं ? क्या मैं अपना नाम वापस ले लूं ? मीराजी बिल्कुल न बैठें। जरुर लड़ें। लेकिन वे जो कह रही हैं, उसे करके भी दिखाएं। वे कह रही हैं कि यह उनकी सैद्धांतिक लड़ाई है। भई, आज यह नई बात सुनी हमने ! कौनसी सैद्धांतिक लड़ाई ? आज तक राष्ट्रपति के चुनाव में कौनसी सैद्धांतिक लड़ाई लड़ी गई है ? हां, पार्टीबाजी जरुर होती रही है। वह आज भी हो रही है। विरोध के लिए विरोध हो रहा है। कई विरोधी टूटकर भाजपा से जा मिले हैं। अभी कांग्रेस जिन विरोधियों पर आस लगाए बैठी है, उनमें से भी कई भाजपा के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को चुपचाप वोट देनेवाले हैं। दूसरे शब्दों में जैसा कि मैंने उम्मीदवारों की नामजदगी के पहले लिखा था, कांग्रेस को बलि के बकरे की तलाश है। मीरा कुमार कहती हैं कि इसे दलित बनाम दलित चुनाव बनाना बहुत गलत है। मैं मीराजी की बात से सहमत हूं। यदि मीराजी वास्तव में ऐसा सोचती हैं तो उन्होंने हां क्यों भरी ? यह उनकी गलती है। वे दलित का कंबल ओढ़कर क्यों बैठ गई ? इसका अर्थ यह नहीं कि वे अयोग्य उम्मीदवार हैं। मैं उन्हें तब से जानता हूं, जब वे कालेज में पढ़ती थीं। आदरणीय जगजीवन बाबू से मैं मिलने जाता था, तब भी उनसे भेंट होती थीं। वे विद्वान, सदाचारी और गरिमामय महिला हैं। वे लोकसभा की अध्यक्षा भी रही हैं। वे विदेश सेवा की अफसर भी रही हैं। इतने सारे सदगुणों को उन्होंने चुनाव की बलिवेदी पर चढ़ा दिया। अब चढ़ा ही दिया तो वे देश को कम से कम यह बताएं कि आदर्श राष्ट्रपति कैसा होना चाहिए ? फखरुद्दीन अली अहमद जैसा या ज्ञानी जैलसिंह जैसा ? प्रतिभा पाटिल जैसा या के.आर. नारायण जैसा ? जाहिर है कि किसी दलित के राष्ट्रपति बनने से देश के दलितों का कोई चमत्कारी उद्धार नहीं होनेवाला ! नारायणजी के बनने से क्या हो गया ? जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद और अब्दुल कलाम के बनने से मुसलमानों का कौनसा उद्धार हुआ ? दलितों, पीड़ितों और गरीबों का उद्धार तो तभी होगा, जब मीरा कुमार जैसी संस्कारवान महिला किसी वानप्रस्थी या संन्यासी की तरह मैदान में निकल पड़े और देश में जन-जागरण का जिम्मा अपने कंधों पर ले लें।

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