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मुद्दे की बात करो, बकवास न करो चीन

ओंकारेश्वर पांडेय
अरूणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है्र परंतु यह चीन नहीं समझ रहा हैऔर वह गाहे बगाहे भारत को उकसाने वाला कदम उठाता रहता है। चीन का सपना रहा है वन एशिया वन चीन, और शायद इसी सपने को साकार करने के लिए वह नापाक चालें चलता है, चाहे वह दलार्ई लामा का विरोध हो या हाल ही में अरूणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों के नामों को बदलना

नी मीडिया आजकल रोज ब रोज भारत के खिलाफ आग उगल रहा है। और यह तब से और ज्यादा बढ़ा है, जबसे दलाई लामा ने अरुणाचल प्रदेश की यात्रा की। दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा से बौखलाये चीन की शी जिनपिंग सरकार ने एक बार फिर हमलावर रुख कर अख्तियार कर लिया है। अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा मजबूत करने के इरादे से उसने अपने नक्शे में देश के इस पूर्वोत्तर राज्य की छह जगहों के नाम भी बदल डाले।
19 अप्रैल, 2017 को चीन ने ऐलान किया कि उसने भारत के पूर्वोत्तरी राज्य के छह स्थानों को आधिकारिक नाम दिया है। चीन ने यह कदम, दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश की यात्रा को लेकर बीजिंग द्वारा भारत को कड़ा विरोध जताने के कुछ दिनों बाद उठाया। चीन का यह कदम अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा दोहराने का एक थोथा प्रयास है।
चीनी सरकार के साथ चीन की मीडिया का भारत के प्रति रुख लगातार धमकाने वाला है, जिससे भारत कतई नहीं डरने वाला। हाल ही में चीन के सरकारी मीडिया ने बीजिंग द्वारा अरुणाचल प्रदेश के छह स्थानों का नाम रखने पर भारत की प्रतिक्रिया को ÓबेतुकाÓ कहकर खारिज करते हुए चेताया कि अगर भारत ने दलाई लामा का Óतुच्छ खेलÓ खेलना जारी रखा तो उसे Óबहुत भारीÓ कीमत चुकानी होगी। दलाई लामा की अरूणाचल यात्रा से बौखलाये चीन ने इन छह स्थानों के ‘मानकीकृतÓ आधिकारिक नामों की घोषणा कर पहले से जटिल चल रही स्थिति को और अधिक जटिल बना दिया है।
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स की खबर के अनुसार, चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने 14 अप्रैल को घोषणा की थी कि उसने केंद्र सरकार के नियमों के अनुरूप ‘दक्षिण तिब्बतÓ (अरुणाचल प्रदेश) के छह स्थानों के नामों का चीनी, तिब्बती और रोमन वर्णों में मानकीकरण कर दिया है। रोमन वर्णों का इस्तेमाल कर रखे गए छह स्थानों के नाम वोग्यैनलिंग, मिला री, कोईदेंगारबो री, मेनकुका, बूमो ला और नमकापब री हैं। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत कहता है। जबकि सच तो ये है कि यह भारत का अक्साई चिन क्षेत्र है, जिसे चीन ने वर्ष 1962 के युद्ध में कब्जा लिया था। अरुणाचल प्रदेश पूर्वोत्तर भारतीय राज्य है। हिन्दी में अरुणाचल का अर्थ है – अरूण और अंचल यानी Óउगते सूर्य का पर्वतÓ। अरुणाचल प्रदेश की सीमाएँ दक्षिण में असम दक्षिणपूर्व मे नागालैंड पूर्व मे बर्मा/म्यांमार पश्चिम मे भूटान और उत्तर में तिब्बत से मिलती हैं। ईटानगर राज्य की राजधानी है। प्रदेश की मुख्य भाषा हिन्दी और असमिया है। भौगोलिक दृष्टि से पूर्वोत्तर के राज्यों में यह सबसे बड़ा राज्य है। पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की तरह इस प्रदेश के लोग भी तिब्बती-बर्मी मूल के हैं।
इस अरुणाचल प्रदेश में दलाई लामा की यात्रा को लेकर दैनिक ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि दलाई लामा का कार्ड खेलना नई दिल्ली के लिए कभी भी अक्लमंदी भरा चयन नहीं रहा है। तो भइया ये धमकी का खेल खेलना चीन के लिए कब से अक्लमंदी की बात होने लगी।
चीन की धमकी भारत कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता। आज भारत सन 1962 का भारत नहीं है। चीन अगर अपनी सैन्य ताकत के भरोसे यह धमकी दे रहा है, तो उसे बाज आना चाहिए। क्योंकि स्वभाव से ही शांति प्रिय रहा देश भारत अपने देश के स्वाभिमान की रक्षा के लिए किसी भी स्तर पर जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाला नया भारत ऐसी धमकियों का करारा जवाब देने में सक्षम है। इसलिए बजाय धमकी, छल और झूठ के चीन को सच स्वीकारते हुए भारत के उस 90 हजार वर्ग मील के इलाके को खाली करने की ओर कदम बढ़ाना चाहिए, जिसे उसने अवैध तरीके से अपने कब्जे में कर रखा है।
भारत एक बड़े दिल वाला उदारवादी राष्ट्र है। भारत ने बांग्लादेश के साथ भूमि विवाद को बड़ी उदारता से निपटाया है। चीन को भारत के इस रुख से सीखना चाहिए।
चीनी मीडिया कहता है कि, Óदक्षिण तिब्बत ऐतिहासिक रूप से चीन का हिस्सा रहा है और वहां के स्थानों के मानकीकृत नाम रखना जायज है।Ó चीन का यह दावा सरासर गलत, बेबुनियाद और झूठ पर आधारित है। अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत बताने वाला चीन पहले तो तिब्बत की संप्रभुता ही स्वीकार कर ले। इतिहास गवाह है कि तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र था और उसे चीन ने जबरन कब्जा लिया।
दरअसल चीन को एक परिपञ्चव राष्ट्र की तरह बर्ताव करते हुए सीमा विवाद के व्यावहारिक हल पर ध्यान देना चाहिए। भारत-चीन अब तक सीमा विवाद को हल करने के लिए विशेष प्रतिनिधियों के साथ 19 वार्ताएं कर चुके हैं। पर कोई नतीजा नहीं निकला।
बजाय वार्ता को आगे बढ़ाने के चीन दलाई लामा हालिया अरुणाचल प्रदेश की यात्रा को बेवजह मुद्दा बना रहा है। दलाई लामा की यात्रा उनके तवांग के रास्ते तिब्बत छोडऩे और भारत में शरण मांगने के बाद सातवीं यात्रा थी। 81 वर्षीय तिब्बती आध्यात्मिक नेता की यात्रा के दौरान चीन ने भारत को चेतावनी दी थी कि वह अपनी क्षेत्रीय अखंडता और हितों की रक्षा के लिए ‘जरूरी कदमÓ उठाएगा।
चीन के सरकारी मीडिया ने कहा कि अगर भारत, दलाई लामा को अरुणाचल प्रदेश की यात्रा करने की अनुमति देकर घटिया खेल खेलता है तो चीन को भी ÓÓईंट का जवाब पत्थर से देने मेंÓÓ हिचकना नहीं चाहिए। दो अंग्रेजी अखबारों-चाइना डेली और ग्लोबल टाइम्स ने भारत के गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू के बयान के बाद भारत पर तीखा हमला बोला। धमकी किसे दे रहे हो भाई। भारत तुम्हारे पत्थर का जवाब लोहे से दे सकता है चीन, किसी गलतफहमी में न रहो। भारत के केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू, जो स्वयं अरुणाचल प्रदेश से आते हैं, ने कहा था कि अरुणाचल प्रदेश, जिसे चीन दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है, वह Óभारत का अभिन्न हिस्सा है।Ó रिजिजू की टिप्पणियों पर इन अखबारों ने कहा कि भारत दलाई लामा का इस्तेमाल चीन के खिलाफ एक Óरणनीतिक हथियारÓ के रूप में कर रहा है, क्योंकि चीन ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता और जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध के खिलाफ Óवीटो जैसे मजबूतÓ अधिकार का इस्तेमाल किया है।
बीते कई हफ्तों से दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश के दौरे को लेकर भारत और चीन के बीच वाकयुद्ध चल रहा है। चीन ने भारत पर इस दौरे की इजाजत देकर द्विपक्षीय रिश्तों को Óगंभीर नुकसानÓ पहुंचाने का आरोप लगाया तो नई दिल्ली ने स्पष्ट कर दिया कि यह एक धार्मिक गतिविधि है। दलाई लामा के दौरे को लेकर चीन ने बीजिंग में भारतीय राजदूत विजय गोखले को बुलाकर अपना विरोध भी दर्ज कराया। लेकिन वह कुछ भी करे, उसका यह दावा बुनियाद रूप से गलत और दोषपूर्ण है क्योंकि इसका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है।
अरुणाचल प्रदेश के लोग बौद्ध धर्म – जो तिब्बत, चीन और दुनिया के कई हिस्सों में भारत से ही गया है – की उसी शैली का अनुकरण करते हैं जो तिब्बत, भूटान, सिक्किम और लद्दाख में चलन में है। इसलिए भारतीय इलाकों पर चीन के दावे का कोई धार्मिक आधार नहीं बनता।
चीन की इस कुटिल चाल को नाकामयाब करने के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय ने ठीक जवाब दिया कि भारतीय इलाके की जगहों को चीनी या तिब्बती नाम देने से वे चीन की नहीं हो सकतीं।
लेकिन चीन के लिए भारत की ओर से इतना जवाब दे देना भर काफी नहीं होगा। भारत को पूर्वी सीमा पर सुरक्षा और सतर्कता और मजबूत करनी होगी।
कश्मीर में अंदरुनी तत्वों के जरिये पाकिस्तान की कारस्तानियां और ठीक इसी समय अरुणाचल प्रदेश पर चीन का यह रुख दोनों देशों की भारत के खिलाफ सोची समझी साझा साजिश का संकेत देती हैं।
चीन का यह रुख इसलिए भी है क्योंकि भारत ने चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना वन बॉर्डर वन रोड में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी है और वह चीन की सीपीईसी परियोजना का विरोध भी कर रहा है। क्योंकि इसके तहत बन रही परियोजनाओं का कुछ हिस्सा जम्मू-कश्मीर के उस इलाके से भी होकर गुजर रहा है जो पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है। इसलिए चीन इस मुद्दे पर जो सम्मेलन आयोजित कर रहा है उसमें अपना प्रतिनिधि भेजने की बजाय भारत को सीमाई इलाकों में सुरक्षा के इंतजाम बढ़ाने चाहिए।
चीन के अखबार और पत्रकार चीन सरकार के इशारों पर नाचते हैं। भारत में मीडिया स्वतंत्र है। निष्पक्ष भी है। भारतीय मीडिया जहां चीन के मामले पर गंभीर और संतुलित विचार रख रहा है, वहीं चीनी मीडिया का रुख लगातार चेतावनी और धमकी भरा रहता है। यह कौन सी पत्रकारिता है? चीन की मीडिया का करारा जवाब भारतीय मीडिया दे सकता है। पर क्या इससे सीमा विवाद हल हो जाएगा?
बात तो बात से ही बनेगी। बेतुके बातों से बात बिगड़ेगी ही। तो बात करो, बकवास न करो चीन। पाकिस्तान के आतंकवादियों को शरण तुम दे रहे हो चीन. पूर्वोत्तर में भारतीय उग्रवादियों को हथियार तुम देते रहे हो चीन. आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान को संरक्षण तुम दे रहे हो चीन. जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध के खिलाफ Óवीटो तुम ही कर देते हो चीन. भारत के इलाकों पर अवैध कब्जा तुमने कर रखा है- चीन. जम्मू-कश्मीर के एक हिस्से पर भी कब्जा तुमने कर रखा है चीन. भारत की बढ़ती ताकत तुमसे देखी नहीं जा रही चीन. भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने से सिर्फ तुम ही रोक रहे हो चीन. एनएसजी में भारत की सदस्यता को भी सिर्फ तुम ही रोक रहे हो चीन. मगर कब तक? बात करो, बकवास न करो चीन। भारत तुम्हारी धमकियों से डरने वाला नहीं है।
(लेखक समाचार एजेंसी एएनआई के संपादक हैं और असम-अरुणाचल प्रदेश समेत पूर्वोत्तर राज्यों में छह साल तक रहकर पत्रकारिता कर चुके हैं)

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