तो अब यह तय ही है कि नरेन्द्र मोदी सरकार अपने 2.0 के एजेंडे के तहत देश के नौजवानों को अपना कोई पसंदीदा बिजनेस चालू करने के लिए बड़े ही व्यापक स्तर पर कदम उठाने जा रही है। उसकी चाहत है कि देश की युवा शक्ति अपने करियर के विकल्प खुले रखें। सिर्फ नौकरी पाने के लिए न भागे। वे नौकरी देने वालों की कतार में लगें। वह बिजनेस करने के अवसर किसी भी हाल में न छोड़े। नौजवानों में ऐसा करने की इच्छा नहीं हैं, ऐसी बात नहीं है। परन्तु, उसमें सबसे बड़ी बाधा तो अब तक पूंजी का न होना ही होता था। बैंकों से ब्याज पर लोन प्राप्त करना भी भगवान के दर्शन पाने से कम नहीं था। पहले तो बैंक के पचासों चक्कर लगाओ। फिर जब किसी बैंक मैनेजर को किसी नौजवान का चेहरा पसंद आ जाये, या जाति, धर्म, प्रान्त, भाषा आदि किसी भी कारण से रहम आ जाये तब शुरू होगी प्रोजेक्ट बनाकर और फार्म भरकर जमा करने की बारी। गरीब नौजवान को प्रोजेक्ट बनाना तो आएगा नहीं। तब बैंक अधिकारी ही उसे अपने किसी पसंदीदा दलाल से भेंट करवायेगा। दलाल कन्सलटेंट पहले नखरे करेगा। व्यस्तता का बहाना करेगा। मोटी फ़ीस वसूलेगा। महीने दो महीने दौड़ाने के बाद प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाकर और फार्म भरकर जमा करेगा। इसमें आराम से तीन-चार महीने बीत जायेंगे। अब तीन चार महीने बैंक प्रोसेसिंग के नाम पर लेगा। जब पूरे छह महीने दौडऩे के बाद लोन स्वीकृत भी हो गया तब बारी आयेगी अचल सम्पति गिरवी रखने की, वह भी कृषि भूमि नहीं मकान? मकान तो अपना होना और शहर में होना विरले परिवारों का है। अब यदि होगा भी तो नब्बे प्रतिशत संयुक्त परिवारों का होगा। अब नौजवान उद्यमी अपने बाप-दादा और चाचाओ-भाईयों को समझा कर गिरवी रखवा दे मकान तब तो लोन मिले!
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हाल ही में संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए मोदी सरकार के लक्ष्यों को देश के समक्ष रखा और कहा कि सरकार किस तरह नए भारत की नींव रख रही है। इसे विस्तार से बताते हुए राष्ट्रपति ने अपने भाषण में विकास, नीति समेत कई बड़े मुद्दों का जिक्र किया। उन्होंने अपने अभिभाषण में बताया कि मोदी सरकार ने मुद्रा योजना के तहत अभी तक 19 करोड़ नव उद्यमियों को लोन दिए हैं। नई सरकार का लक्ष्य और 30 करोड़ लोगों को लोन देने का है। ताकि स्व-रोजगार और रोजगार देने की क्षमता को गैर-सरकारी क्षेत्रों में बढ़ाया जा सके।
आप जरा इन आंकड़ों पर गौर करें। यानी देश के 50 करोड़ लोगों को मुद्रा लोन देने का लक्ष्य है। इसमें से 19 करोड़ को लोन दिया भी जा चुका है। सच कहा जाए तो यह मुद्रा लोन योजना देश के लिए गेम चेंजर सिद्ध होने जा रही है। जिसने एक बार अपना कोई बिजनेस चालू करने के लिए लोन ले लिया तो मान लीजिए कि वह शख्स फिर नौकरी की तरफ तो नहीं भागेगा। वह तो बिजनेस ही करेगा। अगर इन 50 करोड़ लोगों का काम धंधा थोड़ा बहुत भी चला तो ये कम से कम दो -चार लोगों को रोजगार तो दे ही देंगे। यानी एक झटके में देश की बेरोजगारी खत्म होती दिखाई दे रही है। अब जरा मुद्रा बैंक योजना का भी अवलोकन कर लें। अभी हाल ही में पटना की एक छोटी सी कंपनी आदि चित्रगुप्त फाइनेंस लिमिटेड के सीईओ ज्ञान मोहन से बात हो रही थी। उन्होंने अपनी कंपनी से बिना किसी गारंटी के पिछले मात्र एक वर्ष में 35,000 महिलाओं को सवा सौ करोड़ के लोन बांटे हैं। मजे की बात यह है कि मात्र अंगूठा लगाने और आंख की पुतली को स्कैन करके सॉफ्टवेयर के माध्यम से उनका फार्म भी भरा जाता है और क्रेडिट जांच भी हो जाती है। लोन स्वीकृत करने का समय होता है पंद्रह से बीस मिनट और सुखद बात है कि रिकवरी 100 प्रतिशत है।
यह तो कोई नहीं कह रहा कि जो लोन लेगा उसका कारोबार पहले दिन से ही छलांगे मारने लगेगा। यह तो माना ही जा सकता है कि कुछ को अपेक्षित सफलता नहीं मिलेगी। पर इतना तो निश्चित है कि एक बार जो बिजनेस करने के लिए निकलेगा, वह फिर नौकरी, इनक्रीमेंट और प्रमोशन के झमेले से मुक्त हो जाएगा। उसके बाद तो उसके लक्ष्य और सपने भी बड़े हो जाएंगे। इसलिए मोदी सरकार की मुद्रा योजना देश के लिए एक वरदान साबित हो रही है। मुद्रा योजना के तहत वर्ष 2017-18 के दौरान 4.81 करोड़ लोगों को कुल 2,53,677.10 करोड़ रुपये का लोन दिया गया था। ध्यान देने योग्य बात यह है कि मुद्रा योजना के तहत महिलाओं और दलितों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। निश्चित रूप से अगर भारत की नारी शक्ति और दलित वर्ग आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो गए तो फिर भारत निश्चित रूप से एक नए युग में प्रवेश कर लेगा। दलितों और औरतों को खुदमुख्तार बनाने की दिशा में भारत को अब कोई कसर नहीं छोडऩी होगी।
मुद्रा योजना से होने वाले सकारात्मक प्रभावों के बीच यह याद रखना आवश्यक है कि इस लोन की रिकवरी रिस्की भी हो सकती है। हालांकि, गरीब बैंकों को धोखा शायद ही देते हैं। दरअसल मुद्रा योजना के तहत दिए जाने वाले लोन के एवज में कोई संपत्ति रखने का प्रावधान नहीं है। ऐसे में यदि कोई कर्जदार लोन नहीं चुका पाता है तो वित्तीय संस्थानों के पास रिकवरी के लिए कोई विकल्प तो नहीं बचते हैं। इसलिए लोन देते वक्त वित्तीय संस्थाओं को बहुत समझदारी से ही निर्णय लेने होंगे। कहने की आवश्यकता नहीं है कि अब बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान भी अब बहुत सतर्क भी हो गए हैं। होना भी चाहिए। लेकिन, वास्तविकता यह है कि छोटे वित्तीय संस्थानों की रिकवरी तो शत प्रतिशत होती है, उसका कारण उनका अपने ग्राहकों से बेहतर सम्बन्ध ही है। पैसा डूबता है भी तो सरकारी बैंकों का ही। पर इस पक्ष से अगर आगे बात करें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की मुद्रा लोन योजना से देश के दूर-दराज इलाकों में रहने वाले नौजवानों और महिलाओं को भी लोन मिलने लगा है। क्या पहले कभी किसी ने सोचा भी था कि बिना किसी ठोस गारंटी के कोई इंसान बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से लोन भी प्राप्त कर सकता है?
अब जैसा कि सर्वविदित है कि हमारे यहां कुछ लोगों को निंदा रस में अपार सुख मिलता है। इसलिए उन्होंने मुद्रा योजना की मीन-मेख भी निकालनी चालू कर दी है। इनका काम ही हर चीज की निंदा करना है। इन्होंने जीवन में दूसरों की निंदा करने के अतिरिक्त कुछ किया ही नहीं है। ये मुद्रा योजना की इस आधार पर निंदा कर रहे हैं कि इसके तहत बहुत छोटी राशि का लोन मिल रहा है। अब इन आलोचना संप्रदाय से जुड़े तत्वों को कौन समझाए कि माउंट एवरेस्ट को फतेह करने से पहले तेन्जिंग नॉरगे और एडमेंड हिलेरी ने भी छोटे-छोटे कदमों से चलना चालू किया था। इन्हें कौन बताए कि बड़े से बड़े और सफल से सफल कारोबारी की शुरूआत बहुत छोटे स्तर से ही शुरू होती है। कोई पहले दिन ही 100 करोड़ रुपये का कारोबारी नहीं हो जाता है।
इधर एमडीएच मसाले के वयोवृद्ध फाउंडर महाशय धर्मपाल गुलाटी का उदाहरण देना समीचीन रहेगा। दरअसल देश के विभाजन ने पंजाब के सैकड़ों लोगों को उद्यमी बनाया। उनमें महाशय धर्मपाल गुलाटी भी थे। उनका परिवार स्यालकोट (अब पाकिस्तान) से 1947 में दिल्ली के करोलबाग में आकर बसा था। महाशय धर्मपाल जी शुरू-शुरू में दिल्ली के कुतुब रोड पर तांगा चलाते थे, ताकि घर का खर्चा चल सके। उसके बाद उन्होंने छोटे स्तर पर मसालों को बेचने का काम शुरू किया। उनका बिजनेस आगे बढऩे लगा। वर्तमान में एमडीएच का सालाना कारोबार हजारों करोड़ रुपए में है। उसमें हजारों कर्मी कार्यरत हैं। अगर बात हाल के दौर के कारोबारियों की करें तो फ्लिपकार्ट जैसी विख्यात ई-कॉमर्स की कंपनी को सचिन बंसल और बिन्नी बंसल ने बहुत छोटे स्तर से ही चालू किया था। उसके बाद फ्लिपकार्ट ने ई-कॉमर्स के संसार जो कुछ करके दिखाया वो अब सारी दुनिया जानती है। इस क्रम में सचिन और बिन्नी बंसल ने हजारों नौजवानों को बेहतरीन नौकरियां दीं। अब बात दक्षिण भारत के शिव नाडार की भी कर लेते हैं। वे सन 1970 के आसपास तमिलनाडू से दिल्ली आए थे। कुछ समय तक नौकरी करने के बाद उन्होंने एचसीएल नाम से आई टी सेक्टर की कंपनी खोली। अब एचसीएल संसार की सबसे प्रमुख आईटी कंपनियों में से एक है। ताजा खबर यह है कि एचसीएल टेक ने ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड (सीए) के साथ डिजिटल सर्विस देने के लिए कई सालों की डील की है। क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के लिए एचसीएल डिजिटल कोर सिस्टम बनाएगी। साथ ही उसके डिजिटल प्रोडक्टस जैसे- क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया लाइव ऐप, क्रिकेट डॉट कॉम डॉट एयू, बिगबैश डॉट कॉम डॉट एयू और कम्युनिटी क्रिकेट ऐप को भी मैनेज करेगा।
तो बात साफ है कि आज के शिखर कारोबारी ने अपने कारोबार में बड़ी छलांग लगाने से पहले शुरूआत तो छोटे स्तर पर ही की थी। अब जिन्हें मुद्रा योजना के तहत लोन मिल रहा है, उनमें से कई कारोबारी भविष्य के धर्मपाल गुलाटी, सचिन बंसल और शिव नाडार तो बनेंगे ही।
आर.के. सिन्हा
(लेखक राज्यसभा सदस्य एवं हिन्दुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी के अध्यक्ष हैं)