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मोदी राज – तीन साल जज्बा भी, जलवा भी

मोदी सरकार को तीन साल हो गए हैं। विपक्ष खुश है क्योंकि उसे लगता है भाजपा सरकार कह कर भी अच्छे दिन नहीं ला पायी है। दूसरी तरफ भाजपा खुश है क्योंकि उसको लगता है कि उसने विपक्ष को नेस्तनाबूद कर दिया है। पक्ष और विपक्ष की इस लड़ाई में जनता कहाँ खड़ी है यह प्रश्न महत्वपूर्ण है। अच्छे दिन के वादे के साथ जिस सरकार ने शपथ ली थी उससे जितनी अपेक्षाएँ थीं उतनी अपेक्षाएँ इन तीन सालों में पूरी नहीं हुयी हैं। हाँ, योजनाओं और अभियानो के द्वारा एक भविष्य का खाका दिखने लगा है। जिस तरह से भाजपा लगातार राज्यों पर कब्जा करती जा रही है उससे लगता है कि जनता में भाजपा की विश्वसनीयता अभी बरकरार है। मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल पर विशेष संवाददाता अमित त्यागी एक विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं।
रेंद्र मोदी सरकार तीन साल बाद भी विश्वसनीय नजर आ रही है जो इस सरकार की सबसे बड़ïी सफलता है। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि सरकार का पहला साल तो अच्छा गुजर जाता है किन्तु दूसरा साल आते ही जनता सरकार से ऊबने लगती है। तीन साल के बाद तो विपक्षी अगले चुनाव की तैयारी शुरू कर देते हैं और सरकार के विरोध में बने माहौल से अपने लिए रास्ता तलाश लेते हैं।
किसी बडïे बदलाव के मुद्दे पर इतने प्रचंड बहुमत की सरकार इसके पहले इन्दिरा गांधी की सरकार थी जब बांग्लादेश की मुक्ति के मुद्दे पर जनता ने एक तरफा वोट दिया था। इसके बाद राजीव गांधी के पास भी प्रचंड बहुमत था किन्तु वह इन्दिरा गांधी की हत्या की सहानुभूति लहर थी। यदि 1971 की इन्दिरा सरकार की बात करें तो यह सरकार दो साल बाद ही जन अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरने के कारण अपनी लोकप्रियता खोने लगी थी। इसी आलोकप्रियता के बीच में गुजरात में छात्रों का नवनिर्माण आंदोलन हुआ जो बाद में 1974 आते आते जेपी आंदोलन के रूप में परिवर्तित हो गया। इन्दिरा गांधी तानाशाह बन गयी। देश में आपातकाल लगा। एक लोकप्रिय सरकार सबसे अलोकप्रिय सरकार बनी। एक अन्य प्रचंड बहुमत की राजीव सरकार भी शुरुआती तीन साल बाद बोफोर्स दलाली, शाहबानों प्रकरण के कारण विवादों में घिर गयी थी। इतिहास की सरकारों से तुलना करने पर वर्तमान की मोदी सरकार के साथ ऐसा कुछ विवादित नहीं दिखता है। शायद यही इस सरकार की सबसे बडïी सफलता दिखती है कि जनता में आज भी उसकी विश्वसनीयता बरकरार दिख रही है।
यदि देखा जाये तो तीन साल पहले सिर्फ मोदी का शपथ ग्रहण नहीं हुआ था बल्कि जनता के हितों पर लगे ग्रहण को हटाने से जोड़कर इसे देखा गया था। यह सरकार सिर्फ एक सरकार नहीं थी बल्कि यूपीए के समय सरकार की कम हो चुकी विश्वसनीयता को वापस लाना भी इसकी जिम्मेदारी थी। मोदी ने बड़े बड़े वादे किये। सबका साथ सबका विकास का नारा देकर सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया। ‘न खाऊँगा न खाने दूंगाÓ कहकर भ्रष्टाचार मुक्ति का संकल्प दिखाया। 56 इंच के सीने के बयान से शूरवीरों की तरह पाकिस्तान से लडऩे का ऐलान किया। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और 370 समाप्ति के मुद्दे के द्वारा कश्मीर समस्या के हल की आस दिखाई। एक सिर के बदले दस सिर के बयान ने सेना का मनोबल बढाने का काम किया। अब मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो चुके हैं। इन बयानों पर कितनी खरी उतरी है सरकार, यह प्रश्न चर्चा का विषय है ?
आज तीन साल बाद सरकार की उपलब्धियों की तरफ देखा जाये तो सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप अब तक नहीं लगा है। उनके विरोधी भी इस बात के लिए सरकार की पीठ पीछे प्रशंसा करते हैं। इसके उलट एक रिर्वस ट्रेंड दिखा है जिसमे सरकार के विरोधी राहुल गांधी हेराल्ड केस में फँसते दिखे हैं। केजरीवाल, लालू, ममता भी किसी न किसी मुद्दे पर घिरे नजर आ रहे हैं। ईमानदारी के चोला ओढने वाले केजरीवाल पर उनके ही खास सिपहसालार कपिल मिश्रा ने दो करोड़ की रकम का आरोप सबूतों के साथ लगाया है। पंजाब और गोवा में करारी हार के बाद मोदी विरोध के द्वारा खुद को राष्ट्रीय नेता बनाने में लगा यह नेता जनता की निगाह से उतर चुका है। एमसीडी चुनावों में हार के बाद तो अब दिल्ली वासियों ने ही केजरीवाल को जमीन पर पटक दिया है। केजरीवाल की हार मोदी विरोध के उस धडे की हार है जो खुद काम न करके सिर्फ विरोध के जरिये अपनी दुकान चलाना चाह रहे थे। एकजुट होने की कोशिश में लगा विपक्ष लगातार बिखराव की तरफ बढ जाता है। मोदी के विरोधी रहे नितीश कुमार का रुख मोदी की तरफ नर्म एवं लालू की तरफ गर्म हुआ है। तीन साल में दो बडे कदम सर्जिकल स्ट्राइक एवं नोटबंदी पर सरकार को जनता का भरपूर समर्थन मिला। नोटबंदी पर विपक्ष ने सरकार को घेरने की भरपूर कोशिश की किन्तु जिस तरह इस कदम को जनता ने समर्थन दिया उसके द्वारा उत्तर प्रदेश से दो क्षेत्रीय दल सपा और बसपा पूरी तरह साफ हो गये। लगभग डेढ दशक बाद महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्ता पर आसीन हुयी। एक और बड़ी बात जो इन तीन सालों में देखने को मिली है वह है कि अब पॉलिसी पेरालयसीस दिखाई नहीं देता है। नीतिगत निर्णय तेज हो रहे हैं। प्रशासन में सुधार दिखाई देने लगा है। अब जनता में यह संदेश नहीं है कि सरकार उदासीन है। सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी नहीं दिखती बल्कि काम करती दिख रही है। ईज ऑफ डूइंग बिजिनेस के वैश्विक सूचकांक में भारत की स्थिति सुधरी है। राष्ट्रिय स्वास्थ योजना आ चुकी है। स्वास्थ्य के क्षेत्र के बजट को एक प्रतिशत से क्रमबद्ध बढाकर 2.5 प्रतिशत तक करने की योजना एक सकारात्मक कदम साबित होने जा रहा है।
यदि किसानों की बात करें तो अब किसानों के लिए यूरिया की मारामारी अब नहीं दिखती है। फसल बीमा एक अच्छा कदम दिखता है तो गन्ना किसानो का भुगतान न होना सरकार की बड़ी विफलता है। कृषि क्षेत्र में एक मोर्चे पर सरकार जितनी आगे बती दिख रही है उतनी ही दूसरे मोर्चे पर असफल होती दिख रही है। शहरी एवं विकास मंत्रालय के स्वच्छ भारत अभियान की फोटो तो दिखाई देती रहती हैं किन्तु स्मार्ट सिटी योजना ठंडे बस्ते में जाती दिख रही है। इस मंत्रालय से जितनी ज्यादा अपेक्षाएँ थी उतना इस मंत्रालय ने काम नहीं किया है। इसकी योजनाएँ अभी लोगों को लाभान्वित करती नहीं दिख रही है।
गंगा की सफाई के लिए उमा भारती लगी हुयी हैं। उनका दावा है कि अक्तूबर 2018 तक गंगा स्वच्छ हो जाएगी। अभी तक उनका मंत्रालय सिर्फ योजनाएँ ही बना रहा है। कुछ भी जमीन पर नहीं है। बनारस में गंगा का हाल सुधरा नहीं है। घाटों की सफाई के नाम पर अच्छा खासा बजट लग रहा है। गंगा एक्शन प्लान किस तरह काम करेगा इसे कोई समझ नहीं पा रहा है। लोगों में तो यहाँ तक सुगबुगाहट है कि राम की तरह ही गंगा सिर्फ भाजपा के लिए चुनावी मुद्दा बन कर रह गयी है। इन दोनों विषय पर न कुछ काम हो रहा है और न ही दिखाई ही दे रहा है। खैर, अक्तूबर 18 तक देख लेते हैं कि उमा भारती का मंत्रालय क्या गुल खिलाता है। रविशंकर प्रसाद का आईटी मंत्रालय अच्छा काम करता दिख रहा है। डिजिटल इंडिया के द्वारा काफी मात्रा में युवा भाजपा से जुड़ चुका है। पुराने कानूनों को खत्म करने की दिशा में प्रारम्भ में तो सरकार तेजी से चलती दिखी थी किन्तु अब ठहराव दिखता है। न्यायिक सुधार कहीं पीछे रह गया है। न्यायिक नियुक्ति विधेयक के द्वारा न्यायपालिका एवं विधायिका में टकराव की स्थिति तक बन चुकी है। पर अब सब कुछ ठंडे बस्ते में है। मानव संसाधन मंत्री से कपड़ा मंत्री बनी स्मृति ईरानी शिक्षा के क्षेत्र में तो कुछ उल्लेखनीय नहीं कर पायी थीं किन्तु कपड़ा मंत्रालय में ठीक ठाक काम कर रही हैं। अब सरकार के कुछ अन्य एवं उन मंत्रालयों के कामकाज का आंकलन करते हैं जो सीधे जनसरोकारों से जुड़े दिखते हैं। जनता की रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करते हैं और जिनके बारे में जनता सबसे ज्यादा बात करती है।
प्रभु की रेल, अपेक्षाओं पर फेल :

रेलमंत्री सुरेश प्रभु बेहद शालीन एवं सक्षम व्यक्ति हैं। क्या शालीनता प्रशासनिक क्षमताओं की भी घोतक है यह देखना महत्वपूर्ण था। देश में आज भी आवागमन का एक बड़ा माध्यम रेल सेवा है। जनसंख्या का एक बड़ा भाग रेल पर आधारित है। बुलेट ट्रेन के द्वारा भारत विकसित देशों की श्रेणी में आने का ख्वाब देख चुका है। तेजस के द्वारा हवाई सेवा के ग्राहक रेल की तरफ आकर्षित होना तय है। ट्रेनों की रफ्तार बढाकर रोमांच तो पैदा किया जा सकता है किन्तु जिनके लिए ये सुविधाएं दी जा रही हैं वह एक बहुत बड़ा वोट बैंक नहीं है। यह वह वर्ग है जो सोशल मीडिया पर तो सक्रिय है किन्तु वह आवागमन के लिए सिर्फ सरकार पर मोहताज नहीं है। उसके पास अपनी निजी वाहन भी हैं। ट्रेन में चलने वाला ज्यादातर गरीब तबका है। वह सामान्य डिब्बे में सफर करता है। वहाँ के आधार सरकार की कार्यवाहियों को समझता है। वह बड़ी बड़ी बातों के आधार पर नहीं बल्कि डिब्बे में बैठने का स्थान मिल जाये इस आधार पर रेल मंत्रालय के कामकाज की समीक्षा करता है। जीआरपी के सिपाही अगर उसे आकर तंग करते हैं और दस रुपये ऐंठ लें तो उसे मोदी पर गुस्सा आता है। शौचालय में गंदगी और पानी की कमी उसे सरकार की विफलता लगती है। भले ही एसी डिब्बों में स्वच्छ भारत अभियान के द्वारा सफाई अच्छी हो गयी हो किन्तु भारत की आत्मा तो सामान्य डिब्बों में बसती है। वहाँ कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है।
सामान्य डिब्बों में न भीड़ की कमी हुयी है न ही सफाई व्यवस्था सुधरी है। न पुलिस का अत्याचार थमा है न ही सामान्य डिब्बों की संख्या में बढोत्तरी हुयी है। रेल से नियमित यात्रा करने वालों के अनुसार तीन साल के कार्यकाल में रेल मंत्री से निराशा हाथ लगी है। हाँ, टिवीटर पर की गयी शिकायतों का तुरंत संज्ञान लिया जाता है। कभी भूखे बच्चे को दूध पहुचाया जाता है तो कभी वृद्ध को चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जाती है। पर ऐसे खुशनसीब कितने हैं? उँगलियों पर गिने जा सकते हैं। लगातार पटरियों से उतरती रेल चिंता पैदा करती है। हर दुर्घटना को पाकिस्तान से जोड़कर अपनी जवाबदेही से बचा नहीं जा सकता है। रेलवे का विस्तृत तंत्र अब पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। रेलवे को तेज बनाने के स्थान पर सटीक बनाये जाने की आवश्यकता है। अपने मियां मि_ू बन कर कुछ युवाओं को तो बुलेट ट्रेन के चंगुल में लिया जा सकता है किन्तु 2014 में जनता ने जमीनी सुधार के लिए बहुमत दिया था सिर्फ हवाई उड़ान के लिए नहीं।
कौशल विकास योजना : जनसंख्या विस्फोट बना एक संसाधन :
भारत दुनिया में दूसरी सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है। चीन पहले स्थान पर है। चीन उत्पादकता में भी पहला स्थान रखता है। भारत में जनसंख्या विस्फोट चिंता का विषय रहा है। जनसंख्या नियंत्रण पर काफी व्यापक विमर्श होता रहा है। जनसंख्या को जन संसाधन के रूप में कभी देखा ही नहीं गया। वर्तमान सरकार की कौशल विकास योजना के द्वारा जनसंख्या का सकारात्मक पक्ष सामने आया है। चूंकि यह एक दीर्घगामी योजना है इसलिए इसके परिणाम आने में समय लगेगा। विश्व की सबसे ज्यादा युवा जनसंख्या वाले देश भारत में युवा मेधा को संगठित एवं कुशल कामगार बनाने की दिशा में यह प्रयास सफल होना चाहिए। कौशल विकास एक ऐसी योजना है जिसके युवाओं को वांछित रोजगार प्राप्त करने की दिशा में प्रेरित जा सकता है। स्किल इंडिया योजना भी एक दूरगामी परिणाम की रूपरेखा तैयार करती है।
यह योजनाएँ नीतिगत रूप से एक यू टर्न योजनायेँ कही जा सकती है। यदि आज तीन साल बाद सरकार का आंकलन किया जाये तो कौशल विकास के द्वारा सरकार कुछ बड़ा कर पायी हो ऐसा नहीं दिखता है। पर सरकारी दावा तो दो करोड़ रोजगार पैदा करने का है। चूंकि यह नापने का कोई आधिकारिक स्रोत उपलब्ध नहीं है इसलिए हम न तो इस दावे को स्वीकार कर रहे हैं न ही खारिज कर रहे हैं। सरकार के द्वारा रोजगार शुरू करने के लिए बिना गारंटी के ऋण की योजना भी अभी जमीन पर सफल दिखाई नहीं दे रही है। हालांकि, यह योजना देश के विकास और रोजगार में सहायक दिखाई देती है। इस योजना के द्वारा भारत की आबादी एक संसाधन के रूप में दिखाई देने लगी है।
पर्यटन के क्षेत्र में भारत की वैश्विक स्थिति में सुधार आया है। वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम के पर्यटन सूचकांक के अनुसार 2013 में भारत का स्थान 65 था। 2015 में भारत 52वे एवं 2017 में 40वे स्थान पर आ गया है। यह आंकड़ा बताता है कि भारत की स्थिति विदेशी सैलानियों की निगाह में सुधरी है। यह प्रधानमंत्री मोदी के ताबड़तोड़ विदेशी दौरों एवं उनके द्वारा भारत के पक्ष में बनाए गये व्यापक माहौल का परिणाम है। इस क्षेत्र में सरकार पूरी तरह सफल कही जा सकती है। पर्यटन को बढावा देने में स्वच्छ भारत अभियान भी सहायक हुआ दिखता है। दूर से देखने पर स्वच्छ भारत सफल लगता है। जमीन पर अभी इसमे कुछ खास नहीं हुआ है। सिर्फ बड़े बड़े महानुभावों ने झाड़ू लेकर फोटो शूट कराया है। कलफ लगे कुर्ते एवं बनारसी साड़ी में भाजपा नेताओं के फोटो स्वच्छ भारत अभियान की शोभा बढाते रहते हैं। सोशल मीडिया स्वच्छ भारत अभियान के फोटो से पटा रहता है किन्तु वास्तविकता में गंदगी के अंबार लगे पड़े हैं। समस्या स्वच्छता की नहीं है। ज्यादातर जिलों में कूड़े के निस्तारण के लिए कोई ठोस रूपरेखा का निर्माण नहीं हुआ है। जब तक हम कूड़े के निस्तारण के लिए एक स्थायी और दीर्घकालिक व्यवस्था का निर्माण नहीं करेंगे हमें कोई सरकारी अभियान स्वच्छ नहीं बना पाएगा। किसी भी अभियान में जन-भागीदारी का भी अहम योगदान होता है। स्वच्छ भारत अभियान के बजट से तो अभियान के अधिकारी जुड़ गये दिखते हैं किन्तु जनता में अभी व्यापक जागरूकता का अभाव साफ दिख रहा है।
ज़जमीन पर नहीं महिलाओं का उत्थान । सिर्फ बजट में हैं प्रावधान ।
देश की आधी आबादी की बात करने वाली भाजपा सरकार के तीन साल गुजरने के बाद उनसे यह प्रश्न लाजमी हो जाता है कि उन्होने महिलाओं के लिए क्या किया? क्या महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार आया? क्या महिलाएं अब पहले से ज्यादा सुरक्षित दिखती हैं? सवाल छोटे छोटे हैं किन्तु बेहद अहम हैं। सरकार द्वारा उज्जवला योजना के द्वारा लगभग दो करो गैस चूल्हे बांटे गए हैं जिसका फायदा निश्चित तौर पर महिलाओं को मिला है। तीन तलाक के मसले के द्वारा मुस्लिम महिलाओं को भी कुछ राहत मिलती दिख रही है किन्तु यह सब तो तस्वीर का एक पक्ष मात्र हैं। महिला अधिकारों की जमीनी स्थिति चिंताजनक बनी हुयी है। सरकार अपने बजट में वृद्धि तो कर रही है किन्तु इसके द्वारा अभी सुधार दिखाई देने शुरू नहीं हुये हैं। यदि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की बात करें तो पिछले वर्ष के बजट 17,408 करोड़ की तुलना में इस वर्ष 22,095 करोड़ का बजट आवंटित हुआ है। सरकार की एक महत्वकांक्षी योजना आंगनबाड़ी के लिए इनमे से 16,745 करोड़ रुपये आवंटित हैं। अब यदि ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ देखें तो असली खेल तो आंगनबाडिय़ों के पुष्टाहार वितरण में दिखाई देता है। गरीबों को मिलने वाला पुष्टाहार कौन खा रहा है इस पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। गरीब बच्चे अब भी कुपोषित हैं। वह सरकारी योजनाओं के माध्यम से पुष्ट होने का सपना ही देखते रह जाते हैं और बीच में बिचौलिये पुष्ट हो जाते हैं। चूंकि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का एक बड़ा आर्थिक संसाधन इस ओर खर्च हो रहा है तो प्रधानमंत्री की सही नीयत जनता तक नीति बन कर न पहुच पाना चिंताजनक है। प्रधानमंत्री की इस क्षेत्र में रुचि का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री ने इस मंत्रालय का बजट बढाने के लिए वित्तमंत्री का भी इंतजार नहीं किया था। उन्होने बजट के पूर्व ही इस मंत्रालय का बजट बढाने की घोषणा कर दी थी।
अब सिर्फ प्रधानमंत्री की महत्वाकाक्षाओं से सब ठीक चल रहा हो ऐसा भी नहीं है। इसको समझने के लिए एक और आंकड़े को समझते हैं। देश में 93 प्रतिशत आबादी असंगठित क्षेत्र से आती है। यह वर्ग ज्यादातर मजदूर एवं निम्न आय वर्ग से है। सरकार ने असंगठित क्षेत्र की महिलाओं के लिए नवजात शिशु को छह हजार की राशि प्रदान करने की शुरुआत की। यह योजना देखने में प्रभावशाली लगती है। इसके द्वारा वाहवाही भी खूब मिली किन्तु इसका एक स्याह पक्ष यह भी है कि इस स्कीम को जमीन तक उतारने के लिए 14,512 करोड़ की आवश्यकता है। यह आंकड़ा खाद्य एवं वितरण की स्थायी समिति का है। जाहिर सी बात है कि इतनी बड़ी राशि केंद्र सरकार स्वयं तो वहन करने से रही। राज्यों को भी इसके साथ सहयोग की आवश्यकता है। किन्तु यह भी न तो आसान दिखता है न ही प्रायोगिक। केंद्र सरकार के पास इस मद के लिए सिर्फ 2700 करोड़ का बजट है। यह कुल जरूरतों का 20 प्रतिशत भी नहीं है। यानि कि अगर राज्य सरकार इस मद में 80 प्रतिशत का वहन करें तब जरूरतें पूरी हो सकती हैं। पर यह संभव नहीं है।
महिला और बाल विकास मंत्रालय का काम इसलिए भी और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि देश की बालिकाओं के पोषण, स्वास्थ्य और मूलभूत जरूरतों की जिम्मेदारी इसी विभाग की है। भारत में सबसे ज्यादा और बड़ी समस्या बालिका स्वास्थ की है। सरकारी स्तर पर बालिकाओं के स्वास्थ्य में पिछले तीन साल में कोई अंतर देखने को नहीं मिला है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान मीडिया के स्तर पर तो प्रभावी दिखता है किन्तु बजट के स्तर पर यह कहीं पिछड़ जाता है। गत वर्ष सरकार ने इसके लिए पहले 100 करोड़ का बजट रखा बाद में इसे घटा कर 43 करोड़ कर दिया गया। कुछ ऐसा ही हाल महिला सुरक्षा से जुड़े मसलों का है। देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक निर्भया फंड की स्थापना की गयी थी। इसके लिये 3,000 करोड़ का फंड रखा गया। यह फंड एक सही और आवश्यक स्थान पर खर्च हो इसके लिये सिर्फ एक मंत्रालय को अधिकार नहीं दिये गए। विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारियों की एक समिति बनाई गयी जिसके आधार पर इस कोश का खर्च होना तय किया गया। अभी तक ऐसी कोई पुख्ता जानकारी प्राप्त नहीं हुयी है कि निर्भया फंड का किस तरह का इस्तेमाल हुआ है। हाँ, इसके दुरुपयोग की भी कोई जानकारी नहीं मिली है। 2017-18 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत इस कोश में 400 करोड़ का आवंटन आया जो अनुमान से काफी कम रहा।
इस तरह से 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक बड़ा मतदाता वर्ग महिलाओं का होगा। यह वर्ग मोदी को आशा भरी निगाह से देख रहा है। इस मंत्रालय की सफलता या असफलता के द्वारा महिलाओं का रुझान तय होगा। इस मंत्रालय की जिम्मेदारी अब ऐसे हाथों में देने की आवश्यकता है जिसे ग्रामीण क्षेत्रों की जानकारी हो और महिलाओं उसके अंदर अपनी छवि देखें। इस मंत्रालय को नितिन गडकरी जैसे एक तेज तर्रार मंत्री की अब नितांत आवश्यकता है।
वित्त मंत्रालय : जीएसटी से आस, जनता निराश:
वित्त मंत्रालय ऐसा मंत्रालय है जो बेहद अहम माना जाता है। अरुण जेटली इसे देख रहे हैं। यह एक पेंचीदा विभाग है जिसकी पेंचीदगी से जनता को कोई लेना देना नहीं होता है। जनता को सिर्फ महंगाई नियंत्रण एवं आसान टैक्स सिस्टम की आस होती है। नोटबंदी जैसा बड़ा काम इसी विभाग के तले किया गया। नोटबंदी के दौरान जनता बहुत परेशान रही और जेटली उस दौरान जनता के परेशानियों को कम करने में नाकाम रहे। बैंकों में लंबी लाइने लगी और भ्रष्टाचार रोकने के लिए की गयी नोटबंदी के दौरान नोट बदलने के खेल में बैंकों में खूब भ्रष्टाचार हुआ। चूंकि जनता मोदी के कदम के साथ थी इसलिए वित्त मंत्रालय की विफलता भी जनता मोदी प्रेम में भूल गयी। नोटबंदी के बाद आज भी वित्त मंत्रालय व्यवस्था को दुरुस्त नहीं कर पाया है। आज भी एटीएम में पैसे नहीं हैं। लोगों को निराशा हाथ लग रही है। व्यापारी वर्ग व्यापार मंदा होने के कारण परेशान है। रही सही कसर बैंक में जमा अपने ही पैसे की चार बार से ज्यादा निकासी पर चार्ज लगाकर वित्त मंत्री ने पूरी कर दी। जन धन खातों के द्वारा जो वाहवाही लूटी गयी थी वह खुशी अब गायब हो चुकी है। जनता को लगता है पहले जीरो बैलेंस के द्वारा उनसे खाते खुलवा लिए गए, उसके बाद नोटबंदी के द्वारा उसमे पैसे जमा करा लिए गए और अब उसी पैसे को निकालने मे सरकार पैसा ले रही है। यह तो विश्वासघात हुआ। नोटबंदी का समर्थन करने वाली जनता इस चार्ज से बेहद खफा दिखती है। वित्त मंत्रालय के पास कोई बड़ी उपलब्धि दिखाने के लिए नहीं है किन्तु जुलाई तक जीएसटी लागू करके वह एक बड़ी उपलब्धि प्राप्त करने की तरफ अग्रसर है।
अरुण जेटली रक्षा मंत्रालय भी देख रहे हैं। परिकर के गोवा जाने के बाद उसका अतिरिक्त प्रभार उनके पास है। मनोहर परिकर ने इन तीन सालों में रक्षा सौदों को इतना पारदर्शी बना दिया कि कई महंगी डील बहुत कम मे हो गयी। रक्षा सौदों मे दलाली बंद हो गयी। सेना का मनोबल बड़ा और सेना के स्तर में सुधार साफ तौर पर दिखा। वन रैंक वन पेंशन का बड़ा मसला सुलझा लिया गया। रक्षा मंत्रालय के बारे मे ज्यादा चर्चा के स्थान पर सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि जिस तरह के ईमानदारी के मापदंड परिकर ने स्थापित कर दिये थे वह मोदी सरकार की भ्रष्टाचार मुक्त छवि का मुख्य आधार बना। इसके साथ ही विदेश मंत्रालय भी अपेक्षा अनुरूप काम कर रहा है। चाहे कतर और सूडान से भारतीयों की वापसी हो या अन्तराष्ट्रीय न्यायालय में कुलभूषण जाधव की पैरवी। सबमे तेज कदम उठाए गए और जनता मे विश्वास का माहौल बना।
गृह मंत्रालय: मजबूत हाथों में बना लाचार

राजनाथ सिंह एक मजबूत और निर्णायक नेता माने जाते हैं। उनकी तेज तर्रार छवि के बाद लोगों की अपेक्षा थी कि वह कई ऐसे बड़े कदम उठाएंगे जिसके द्वारा मोदी का 56 इंच का सीना बरकरार रह पाएगा। हाफिज सईद, मसूद अजहर जैसे दरिंदे भारत वापस आ पाएंगे। कश्मीर समस्या हल हो जाएगी। नक्सलवादी सिर नहीं उठा पाएंगे। पुलिस सुधार के द्वारा एक नया कलेवर हम सबके सामने होगा। आंतरिक शरारती तत्व नियंत्रित होंगे। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। कश्मीर अशांत है। वहाँ अब भाजपा की सरकार है। पत्थरबाजों और सेना की झड़पों के द्वारा जनता का खून खौलता रहता है। जनता को विपक्ष में बैठी भाजपा की कथनी और वर्तमान की करनी में जमीन आसमान का अंतर दिखाई देता हौ।
नकसलवादियों के द्वारा अब भी सेना पर हमले जारी हैं। हालांकि, यह पहले से काफी कम हुये हैं किन्तु जिस सख्ती से दमन की अपेक्षा जनता को थी, वह नहीं हुआ। हाफिज सईद और मसूद अजहर का कहीं अतापता नहीं है। दाऊद का तो जिक्र ही अब बेमानी है। कुल मिलकर गृह मंत्रालय जनता की अपेक्षाओं पर बिलकुल भी खरा नहीं उतर रहा है। इसकी वजह यह नहीं है कि यह मंत्रालय अच्छा काम नहीं कर रहा है बल्कि इतनी ज्यादा अपेक्षाएँ 2014 के पूर्व भाजपाइयों ने पैदा कर दी थी कि अब वह उनके ही गले की हड्डी बन गयी है।
ऊर्जा के क्षेत्र में दिख रहा सुधार

ऊर्जा के क्षेत्र में अभूतपूर्व सुधार दिखाई दिया है। ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल इसके लिए बधाई के पात्र हैं। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व जीत में सरकार की ऊर्जा स्कीम एक बड़ी वजह रही है। पहले तो लोग यह माना ही नहीं करते थे कि ऊर्जा क्षेत्र भी चुनाव जीतने का एक माध्यम हो सकता है। मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल में सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि पहले स्कीमों को जनता तक पहुचाया जाये और इसके लाभ जनता को बताए जाये। जैसे ही जनता के बीच योजनाओं का लाभ पहुचा, सरकार की चुनावी स्थिति मजबूत हो गयी। मोदी के द्वारा बिजली और एलपीजी गैस घरों तक पहुचाना एक चुनावी अजेंडा नहीं रहा किन्तु यह इतने शांत ढंग से फलीभूत किया गया कि लगभग दो करोड़ लोगों तक उज्जवला योजना का लाभ पहुच गया। बिजली की दरों में वृद्धि भी अन्य सरकारों की तुलना में कम रही। मोदी सरकार के कार्यकाल में बिजली की वृद्धि दर घट कर आधी रह गयी है। राज्यों को बिजली भी पर्याप्त मात्र में मिल रही है। राज्यों को पहले से कम दर पर बिजली मुहैया होने से राज्यों में अघोषित बिजली कटौती अब नहीं दिखाई दे रही है। बिजली चोरी कुछ राज्यों में बड़ी समस्या रहती थी। कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में तो 70 प्रतिशत लाइन लॉस भी देखा जाता था। यदि ऊर्जा मंत्रालय इसी रफ्तार से काम करता रहा तो अगले दो सालों में वह अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेगा जिसमे बिजली की दरें, मीटर लगाने की व्यवस्था और बिलों के भुगतान की प्रकिळया को पारदर्शी करने की कवायद की जा रही है। बिजली खरीद की कीमत और ग्राहक द्वारा किए जा रहे भुगतान का पूरा डेटा सरकार उपलब्ध कराने जा रही है।
यह सब होने के साथ ही सरकार द्वारा 25 करोड़ घरों में स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य प्राप्त होता दिख रहा है। नवीनीकरण ऊर्जा के द्वारा 1.75 लाख मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता हासिल होने की स्थिति में बिजली किल्लत की समस्या दूर हो जाएगी। सौर ऊर्जा के क्षेत्र को भी विकसित करने की दिशा में सरकार ठीक दिशा में बढती दिख रही है। सरकार को रु 2.44 प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली देने के लिए राजस्थान की एक कंपनी ने निविदा भी हासिल की है। यदि सौर ऊर्जा क्षेत्र से इतने कम दामों पर बिजली उपलब्ध होती है तो इससे बेहतर विकल्प कुछ भी नहीं हो सकता है। अभी तक सौर ऊर्जा इसलिए मुख्यधारा में नहीं आ पायी थी क्योंकि यह काफी महंगी मानी जाती थी। पीयूष गोयल का विभाग सरकार की सफलता की कहानी गढ रहा है और मोदी के सपनों के भारत निर्माण की दिशा में बेहतर काम कर रहा है।
सड़ड़क परिवहन मंत्रालय के काम। दे रहे अच्छे पैगाम ॥
सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी एवं उनका मंत्रालय पूरी द्रुत गति से काम में जुटा हुआ है। ऐसा उनके विभाग के आंकड़े कह रहे हैं। वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान रिकॉर्ड 16,271 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण का ठेका दिया गया और 8,231 किलोमीटर का निर्माण हुआ। इसके पहले वित्त वर्ष 2015-16 में, कुल 6,029 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण किया गया था, जो उस साल का रिकॉर्ड था। एक जानकारी के अनुसार राजमार्ग निर्माण के लिए प्रतिदिन एक लाख सीमेंट की बोरियों का इस्तेमाल हो रहा है। इसके द्वारा रोजगार के अवसर भी पैदा हो रहे हैं और मूलभूत ढांचा भी मजबूत हो रहा है। नितिन गडगरी का मंत्रालय आगामी वर्षों में देश के विभिन्न राज्यों में दर्जनभर नए एक्सप्रेस-वे का निर्माण करने की तैयारी में जुटा है। इनमे से तीन एक्सप्रेस वे का निर्माण कार्य वर्ष 2017 में ही प्रस्तावित है। यह हैं मुंबई-वडोदरा, बेंगलुरु-चेन्नई और दिल्ली-अमृतसर-कटरा एक्सप्रेस-वे। जिस तरह की गडकरी की कार्यशैली रही है उसके अनुसार परियोजना के कार्यान्वयन में बाधाओं, भूमि अधिग्रहण की समस्या, राज्य सरकारों से ‘सकारात्मक सहयोगÓ के द्वारा वह इसमे विलंब नहीं आने देंगे।
इसके साथ ही नितिन गडकरी की उपलब्धियों में पिछले तीन सालों में एक लाख 78 हजार किमी मार्ग को नेशनल हाइवे घोषित किया जाना है। मोटर व्हीकल एक्ट में ऐसे प्रावधान किए गए हैं जिससे सड़क दुर्घटना को कम किया जा सके। सड़क अच्छी हो तो उसमें लंबे सफर पर चलने वालों को हाइवे किनारे सुविधाएं मिले, इसके लिए राजमार्ग विलेज बनाने की योजना पर मंत्रालय काम कर रहा है। इस मंत्रालय के द्वारा नए मार्गों के निर्माण के साथ ही कुछ सुरक्षा के संबन्धित काम भी उल्लेखनीय हैं। 2020 तक सड़क दुर्घटनाओं में 50 फीसदी कमी लाने का लक्ष्य हैं। इसके लिए नये हाइवे के डिजाइन को कुछ ऐसा बनाया जा रहा है जिससे कि सड़क दुर्घटना नहीं के बराबर हो। देश भर की दुर्घटना वाली जगहों को ठीक किया जा रहा है। शहर से गुजरने वाले हाइवे में फ्लाईओवर बनाये जा रहे हैं। इसके अलावा देश में 13 एक्सेस कंट्रोल एक्सप्रेस वे बनाये जाने की योजना है जो पूरी तरह से सुरक्षा मानदंडों को ध्यान में रखकर बनाए जाएंगे। दिल्ली के ट्रेफिक पर एक बड़ा नियंत्रण उस परियोजना से लगेगा जिसमे दिल्ली में 135 किमी की ईस्टर्न पेरीफेरी बनाई जा रही है। साढ़े चार हजार करोड़ की लागत से बन रही ईस्टर्न पेरीफेरी अगस्त 17 तक तैयार होनी चाहिए। इससे राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उप्र से आकर दूसरे राज्यों में जाने वाले वाहनों को दिल्ली के अंदर नहीं आना पड़ेगा। छोटे शहरों में बायपास बन रहे हैं। चारधाम और कैलाश मानसरोवर तक सड़क मार्ग 2019 के पहले बनने की उम्मीद दिखाई गयी है। कैलाश मानसरोवर मार्ग पर काम आसान नहीं हैं। सर्दी के कारण काम गति से नहीं हो पाता इसके लिए आस्ट्रेलिया से दो अत्याधुनिक तकनीक की मशीन लाई गई है, जो पहाड़ काटने का काम करती हैं।
नितिन गडकरी मोदी सरकार के सर्वश्रेष्ट मंत्री कहे जा सकते हैं। उनके काम की शैली और प्रशासनिक क्षमता तय समय सीमा से पहले भी प्रोजेक्ट पूरा करा रही है। अन्य मंत्रालयों के द्वारा जहां मोदी पिछड़े नजर आते हैं वहीं सरकार की तीन साल की उपलब्धियों में नितिन गडकरी चार चाँद लगा देते हैं। बात जब सरकार के तीन साल की हो रही है तो सरकार का हिस्सा न होने बावजूद संगठन का काम संभाले भाजपा के राष्ट्रिय अध्यक्ष अमित शाह का मूल्यांकन भी आवश्यक है।
अमित शाह-मोदी बनाम कांग्रेस नीति

भाजपा के लिए अमित शाह जी जान से जुटे हुये हैं। वह ठहरने के मूड मे नहीं है। एक स्थान पर चुनाव खत्म होने पर वह बिना विश्राम किए दूसरे राज्य के लिए निकल जाते हैं। अमित शाह की रणनीतिक कुशलता और लगातार भाजपा की जीत के चलते सरकार और मंत्रियों का हौसला लगातार बढता चला जा रहा है। सरकार के जो धडे बेहतर काम नहीं कर पा रहे हैं उनकी कमियाँ भी अमित शाह की नीतियों की वजह से छुप जा रही हैं। भाजपा पूरे देश में राज्य करने के उद्देश्य से लगातार आगे बढ रही है। इसके विपरीत कांग्रेस के राहुल गांधी न तो सक्रिय हैं और न ही दूरदर्शी नेता। अमित शाह और राहुल गांधी का अंतर इस बात से समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में जब 08 मार्च को अंतिम चरण का मतदान सम्पन्न हुआ तब अमित शाह वहाँ से ही सीधे गुजरात चले गये जहां अगला चुनाव होना है। उन्होने वहाँ चुनावी तैयारियां शुरू कर दी। इसकी दूसरी तरफ राहुल गांधी का हाल देखिये कि उत्तर प्रदेश में चुनाव हारने के बाद राहुल ने कोई समीक्षा करना भी उचित नहीं समझा बल्कि वह तुरंत विदेश चले गये। आधिकारिक तौर पर राहुल के लिए कहा गया कि वह सोनिया गांधी को देखने गये हैं किन्तु इससे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का टूटा मनोबल और ज्यादा टूट गया।
अब शाह पूरे देश के दौरे पर हैं। हर राज्य में तीन-तीन दिन बिताते हुए वे करीब 95 दिन में यह दौरा पूरा करेंगे। इस दौरान वे हर राज्य में पार्टी के मतदान केंद्र स्तर के कार्यकर्ता से बातचीत करेंगे। इसकी शुरुआत वह पश्चिम बंगाल में उस नक्सलबाड़ी से कर रहे हैं जहां नक्सली आंदोलन की शुरुआत हुई थी। वह इसके द्वारा बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी के गढ़ में खूंटा गाड़ना चाह रहे हैं। उनकी पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात ही कार्यकर्ताओं में जोश भर देती है और कार्यकर्ताओं का जोश भाजपा सरकार का खून बढ़ा देता है। दूसरी तरफ राहुल गांधी की स्थिति देखिये। उनमे अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। कार्यकर्ताओं को संगठन में बदलाव का इंतजार है। पार्टी पदाधिकारियों की अपने काम में रुचि खत्म हो रही है क्योंकि उन्हें ये नहीं पता कि होने वाले बदलाव के बाद उनका पद उनके पास रहेगा या नहीं। कांग्रेसी चाहते हैं कि राहुल गांधी को जल्द से जल्द पुरानी टीम को बदलकर अपनी नई टीम बना लेनी चाहिए क्योंकि अगले लोकसभा चुनाव में अब महज दो साल ही बचे हैं किन्तु कांग्रेस में नेतृत्व नदारद है। भाजपा जहां ऐसी पार्टी के तौर पर दिख रही है, जिसके पास व्यवस्थित तंत्र और भविष्य की रणनीति है, वहीं कांग्रेस पूरी तरह दिशाहीन नजर आ रही है। कांग्रेस के भीतर एक बड़े बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है। कांग्रेस की समस्या अब और कोई नहीं बल्कि राहुल गांधी स्वयं बन गये हैं। विपक्ष में रहते हुए उन्होंने कोई सबक नहीं सीखा है। ऐसे में सरकार के नाकारा एवं अपेक्षा से नीचे चल रहे मंत्रालयों को राहुल गांधी की अकर्मण्यता से सबक लेना चाहिए। अमित शाह की दूरदर्शिता को समझते हुये अपनी जिम्मेदारी निभाने पर ध्यान देना चाहिए। 2019 की उल्टी गिनती अब शुरू हो चुकी है। सिर्फ कमजोर और लचर विपक्ष की आत्म मुग्धता में रहकर जनता का दिल आप नहीं जीत सकते। आपको काम दिखाना होगा। जनता में विश्वसनीयता बरकरार रखनी होगी। सिर्फ मोदी के नाम पर जीत कर आए सांसद और मंत्री इस बात को न भूलें कि दिल्ली एमसीडी चुनावों में अमित शाह ने सभी उम्मीदवारों के टिकट काटकर आगामी चुनावों के लिए रेड अलर्ट तो जारी कर ही दिया है।

नरेंद्र मोदी के पिछले तीन साल मनमोहन सिंह के
आखिरी तीन सालों के मुकाबले कहां ठहरते हैं?
उद्योगों के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के विकास संबंधी आंकड़ों कों देखें तो मोदी सरकार का अब तक का प्रदर्शन यूपीए सरकार से उतना बेहतर भी नहीं कहा जा सकता।
पिछले लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह सरकार के खराब आर्थिक प्रदर्शन पर काफी तीखे हमले किए थे. इन हमलों का ज्यादातर जोर यूपीए के आखिरी तीन साल (2011 से 2014) में अर्थव्यवस्था के खराब प्रदर्शन पर था। 2011 में अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद यूपीए सरकार का प्रदर्शन धुंधला सा दिखने लगा था. नरेंद्र मोदी ने इस अवधि को नीतिगत जड़ता (पॉलिसी पैरालाइसिस) का काल कहा था. उन्होंने इसके लिए खराब आर्थिक विकास और औ़द्योगिक विकास के आंकड़ों को सबूत के तौर पर पेश किया था। लेकिन इन दोनों मोर्चो पर मोदी सरकार के पिछले तीन सालों का प्रदर्शन मनमोहन सिंह के आखिरी तीन सालों के प्रदर्शन से बेहतर नहीं दिखता. कम से कम आंकड़े तो ऐसा ही कहते हैं।
अर्थव्यवस्था की विकास दर

नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मनमोहन सिंह ने घोटाले उजागर होने के बाद 2011 से फैसले लेना बंद कर दिया. इसके चलते देश की अर्थव्यवस्था मुसीबत के भंवर में फंस गई। उन्होंने आर्थिक विकास दर के आंकड़ों को उठाते हुए आरोप लगाया था कि सरकार के लचर फैसलों के चलते देश की विकास दर पांच फीसदी के नीचे आ गई है। पुराने आधार वर्ष (2004-05) के लिहाज से यूपीए सरकार के आखिरी तीन साल में देश की औसत विकास दर 5.4 फीसदी थी। शायद इसलिए भी मोदी ज्यादा तीखे हमले कर रहे थे। लेकिन सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने आर्थिक विकास दर के आकलन का आधार वर्ष बदलकर 2011-12 करने का फैसला लिया. इससे भाजपा सरकार की विकास दर का आंकड़ा तो अचानक बढ़ा ही यूपीए सरकार के आंकड़ों में भी बदलाव हुआ। इस बदलाव के बाद मनमोहन सिंह के आखिरी तीन साल में अर्थव्यवस्था की विकास दर बढ़कर 6.3 फीसदी हो गई। अगर उऩके आखिरी साल की विकास दर इस पैमाने पर देखी जाए तो वह 6.9 फीसदी थी।
नए आधार वर्ष के आधार पर मनमोहन सरकार के विकास दर के आंकड़े नए आधार वर्ष के आधार पर मनमोहन सरकार के विकास दर के आंकड़े।
दूसरी ओर देश में अच्छे दिन लाने का दावा करने वाली भाजपा सरकार के पिछले तीन सालों में देश की औसत विकास दर 7.36 फीसदी रही है। इसके लिए कई जानकार अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के कीमतों में आई कमी को ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं. यानी मोदी सरकार के इन ‘अच्छेÓ तीन सालों के दौरान देश की अर्थव्यवस्था मनमोहन सिंह सरकार के ‘खराबÓ समय से बहुत ज्यादा बेहतर नहीं रही। मोदी सरकार के निर्णयों की जहां तक बात है जानकार भी मानते हैं कि मौजूदा सरकार ने कई साहसिक और अच्छे फैसले लिए हैं। लेकिन अभी तक के आंकड़ों को ​देखकर ऐसा नहीं कहा जा सकता कि बीते तीन सालों में मोदी सरकार का प्रदर्शन यूपीए सरकार की तुलना में बहुत प्रभावशाली है।
औ़़द्योगिक विकास के मोर्चे पर दोनों सरकारों की तुलना

मोदी सरकार ने शुक्रवार को औद्योगिक विकास को मापने वाले औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आधार वर्ष को भी बदलने की घोषणा कर दी. जीडीपी आकलन की तरह इसके लिए भी साल 2004-05 की जगह 2011-12 को आधार वर्ष बना दिया गया है।
नए आधार वर्ष के अनुसार जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक यूपीए सरकार के आखिरी तीन सालों की औसत औद्योगिक विकास दर 3.4 प्रतिशत रही. अगर अलग-अलग सालों के लिए इस आंकड़े को देखें तो 2011-12 से 2013-14 के बीच के तीन सालों में औद्योगिक विकास दर 3.5, 3.3 और 3.4 फीसदी रही. वहीं नरेंद्र मोदी के पिछले तीन सालों में औद्योगिक विकास का औसत 4.1 प्रतिशत रहा. नरेंद्र मोदी के बीते तीन सालों में औद्योगिक विकास दर 4.0, 3.4 और 5.0 फीसदी रही।
इसे दो तरह से देखा जा सकता है एक तो यह कि मोदी के तमाम प्रयासों और दावों के बावजूद उनके कार्यकाल में उद्योगों की विकास दर यूपीए सरकार से केवल 0.7 फीसदी ज्यादा ही रही है. दूसरा अगर कोई सरकार आती है तो तुरंत ही चमत्कारी बदलाव नहीं आते है। इस लिहाज से वर्ष 2016-17 की विकास दर का पांच फीसदी होना इस सरकार के बारे में सकारात्मक राय बनाता है। लेकिन फिर यह भी कहा जा सकता है कि वर्ष 2014-15 में जो विकास दर चार फीसदी रही उसमें भी एक बड़ा योगदान पिछले साल, पिछली सरकार द्वारा किये गये कामों का हो सकता है।सरकार आखिर किस चीज का जश्न मना रही है : राहुल गांधी

एक ओर केंद्र सरकार अपनी तीसरी वर्षगांठ पर कई कार्यक्रम आयोजित करेगी वही दूसरी तरफ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के तीन साल पूरा होने पर तंज कसा है कि ‘युवा नौकरियां के लिए जूझ कर रहे हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं और सैनिक सीमा पर मर रहे हैं। सरकार आखिर किस चीज का जश्न मना रही है? टूटे वादों, निकम्मापन और जनादेश के साथ विश्वासघात के तीन सालÓ। इसके साथ ही कांग्रेस पूरी तरह मोदी पर हमलावर है। कांग्रेस ने ‘3 साल 30 तिकड़मÓ शीर्षक से वीडियो जारी करते हुए केंद्र को कई मोर्चों पर नाकाम बताया है। कांग्रेसी वीडियो में प्रधानमंत्री मोदी, केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा नेताओं के पुराने बयानों और आम लोगों की राय को शामिल करते हुए सरकार से कई सवाल पूछे गये हैं। कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया देश के माहौल का जिक्र करते हुए कह रहे हैं कि आजकल अगर कोई असहिष्णुता पर बोलता है, तो उसे देशद्रोही कहा जाता है।

तीन साल की उपलब्धियों गिनाने निकले बड़े भाजपाई

मोदी सरकार के तीन साल की उपलब्धियां देश को बताने के लिए बीजेपी ने जबर्दस्तय तैयारी की है। पार्टी के 450 से ज्याकदा नेता 25 मई से 15 जून तक देश के 900 जगहों का दौरा कर रहे हैं। सरकार के सभी मंत्री अपने अपने मंत्रालयों का कामकाज का लेखाजोखा देने के साथ ही मोदी सरकार की महत्वपूर्ण और महत्वकांक्षी योजनाओं को भी जनता के सामने प्रमुखता से रखेंगे। कार्यक्रमों की शुरुआत 25 मई से हो जायेगी। प्रधानमंत्री मोदी गुवाहाटी में रैली को संबोधित करेंगे, तो पार्टी अध्य क्ष अमित शाह त्रिवेंद्रम और गंगटोक के कार्यक्रमों में शामिल होंगे। गृह मंत्री राजनाथ सिंह जयपुर जाएंगे। विदेश मंत्री सुषमा स्वमराज लखनऊ जाएंगी। वित्तो मंत्री अरुण जेटली अहमदाबाद, वेंकैया नायडू छत्तीरसगढ़ और नितिन गडकरी रांची जाएंगे। बीजेपी के सभी मुख्यीमंत्री, उप-मुख्युमंत्री प्रेस कॉन्फ्रें्स या किसी और कार्यक्रम के बहाने मोदी सरकार की उपलब्धियां बताएंगे। यूपी के सीएम योगी आदित्यंनाथ पटना, उप मुख्य-मंत्री केशव मौर्या नालंदा, एमपी के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान कटक, छत्तीीसगढ़ के सीएम रमन सिंह आसनसोल जाएंगे।
इस दौरान मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक उसके बाद नोटबंदी और हाल ही में अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में कूलभूषण मामले में भारत की जीत को भी मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धियों के रूप में बताया जाएगा। 2019 के आम चुनाव में दो-तिहाई बहुमत से जीतने की तैयारी में जुटी भाजपा ने मोदी सरकार की योजनाओं का प्रचार और तीन साल की उपलब्धियों का गुणगान करने के लिए खासतौर से अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित 131 सीटों का चयन किया है। गौरतलब है कि अनुसूचित जाति के लिए 84 और अनुसूचित जनजाति के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। केंद्र सरकार के मंत्रियों के साथ भाजपा संगठन खासतौर से पिछड़े वर्ग के लिए मोदी सरकार की योजनाओं और पहल का जिक्र इन क्षेत्रों में विशेष रूप से करेंगे। अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में जिन सीटों पर भाजपा का कब्जा है, वहां पर सांसद के साथ एक केंद्रीय नेता या मंत्री खासतौर से दौरा कर पिछड़े वर्ग के लिए मोदी के कामकाज का ब्यौरा देंगे।

मोदी सरकार की इन योजनाओं को जनता के सामने रखा जाना है

1 प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना
2 अटल पेंशन योजना
3 प्रधानमंत्री आवास योजना
4 बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना
5 सुकन्या समृद्धि योजना
6 प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
7 प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना
8 प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना
9 दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना
10 प्रधानमंत्री जनधन योजना
11 एक्सेनसेबल इंडिया
12 डिजिटल इंडिया
13 मेक इन इंडिया
14 मिशन इन्द्रधनुष
15 प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
16 स्टैंड अप इंडिया
17 स्टार्ट अप इंडिया
18 स्वच्छ भारत अभियान
जनभावनाओं का प्रतीक है पाकिस्तान पर सर्जिकल अटैक
पाकिस्तान जब जब भारत के सैनिकों के साथ बर्बरता पूर्ण कार्यवाही करता है भारत की जनता का खून खौल जाता है। उसे मोदी के 56 इंच का बयान याद आता है। उस समय उसे मोदी की विदेश नीति और अन्य देशों की यात्राएं बेमानी लगने लगती हैं। अभी पाकिस्तान के द्वारा जब फिर से भारत के सैनिकों के साथ अमानवीय हरकत सामने आई तो भाजपा का मतदाता वर्ग मोदी से पाकिस्तान पर कार्यवाही की अपेक्षा करने लगा। सेना ने कार्यवाही भी की। कुछ पाकिस्तान की चौकियों को उड़ा दिया। उसका बाकायदा विडियो रिलीज़ किया। तब जाकर कहीं लोगों के दिलों में शांति पड़ी।
पाकिस्तान पाए सर्जिकल अटैक से जनता को क्यों चैन पड़ता है इसकी भी वजह है। कश्मीर में पत्थरबाज़ों एवं नक्सली हमलों के बाद से जनता तिलमिलाई हुयी है। वह निर्णायक कार्यवाही चाहती है। उसके पास न सुनने के लिए समय है और न ही बर्दाश्त करने के लिए कोई वजह। वह रोज़ रोज़ की इन घटनाओं से आजिज़ आ चुकी है। उसे बुरा लगता है जब ट्रेन दुर्घटना में पाकिस्तानी हाथ बताया जाता है। उसे बुरा लगता है जब पत्थरबाज़ और कश्मीरी, सेना के जवानों के थप्पड़ मारते हैं। उसे बर्दाश्त नहीं होता जब विकास की अहम कड़ी सड़क बनाने में लगे लोगों को नक्सली मार डालते हैं। पर वह क्या करे? किस्से शिकायत करे ? भरोसा मोदी जी पर जो किया था। ऐसे में जब मोदी जी और उनके सिपहसालार पत्थरबाज़ों पर सख्ती करते हैं। जनता खुश होती है। सर्जिकल स्ट्राइक करते हैं, जनता खुश होती है। नक्सलियों के एक बड़े कमांडर को गिरफ्तार करते हैं, जनता खुश होती है। वास्तविकता यह है कि जनता इन विषयों में एक गुंडा छवि देखती है और मोदी उसकी नजऱ में पुलिस की भूमिका में है। जैसे ही पुलिस (मोदी) इन गुंडों (पाकिस्तान, नक्सली, पत्थरबाज़ों ) पर कार्यवाही करती है। जनता संतुष्ट हो जाती है। एक के बदले दस सर और 56 इंच के बयान जनता ने कार्यवाही के उद्देश्य से ही हाथों हाथ लिए थे।
इसके साथ ही टीम मोदी की उन कार्यवाहियों पर भी ध्यान देना होगा जिसकी वजह से ये घटनाएँ पहले से कम हुयी हैं। तीन साल के कार्यकाल में आईएस और अलकायदा को भारत में पैर जमाने से रोक देना एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जाना चाहिए। इंडियन मुजाहिद्दीन जैसे घरेलू आतंकवादी संगठन को भी लगभग खत्म कर दिया गया है। पिछले कुछ सालों में अपने मॉड्यूल के जरिये दुनिया में खौफ पैदा कर चुका आईएस भारत में जड़ें नहीं जमा पाया। इसने ऑनलाइन तो कुछ युवकों को अपने चंगुल में फांस लिया जो बाद में सीरिया या अफगानिस्तान चले गए। किन्तु वह भारत में कुछ बड़ा नहीं कर पाये। पिछले साल हरिद्वार में अर्धकुम्भ के दौरान आईएस एक बड़ा धमाका करना चाहता था किन्तु देशव्यापी मॉड्यूल बना लेने के बावजूद सुरक्षा अजेंसियों ने उनकी पकड़ कर ली। एक महीने के अंदर उनके सभी 14 आतंकवादी पकड़ में आ गए। सुरक्षा अजेंसी की सफलता इस बात से समझ आती है कि एमपी, बिहार, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना के सभी आईएस के मॉड्यूल घटना को अंजाम देने के पहले ही ध्वस्त कर दिये गए। यह तीन साल में सरकार की सबसे बड़ी सफलता रही है। जहां तक बात अल-क़ायदा की है कि है 2014 में ही जवाहिरी ने इसकी एक शाखा बनाने की घोषणा की थी। इसके लिए एक अमीर भी नियुक्त कर दिया था। उसे गिरफ्तार कर लिया गया और अल क़ायदा भारत में परवान नहीं चढ़ पायी। पूर्वोत्तर भारत में पैदा हुये कई आतंकी संगठन इस दौरान नेस्तनाबूद कर दिये गए, पूर्वोत्तर अब शांत दिखने लगा है। नक्सली लोगों में आत्मसमर्पण की तरफ झुकाव बढ़ा है। इसके परिप्रेक्ष्य में देखें तो 2014 मं1 सरकार बनने के सात महीने बाद बोड़ो उग्रवादी संगठन एनडीएफ़बी (एस )ने एक साथ 80 आदिवासियों की हत्या कर दी थी। इसके बाद की कार्यवाही में 906 बोड़ो उग्रवादियों को गिरफ्तार किया गया एवं 52 मुठभेड़ में मारे गए। इसका असर देखने को भी मिला। 2014 में जहां 824 हिंसक घटनाएँ हुयी एवं 212 लोग मारे गए। वहीं 2016 में घटनाएँ घट कर आधी रह गयी। 484 घटनाओं में 48 लोग मारे गए। यह माना जा सकता है कि इसकी एक वजह केंद्र सरकार की नीतियाँ एवं दवाब भी है।
इस तरह से यह बात तो स्पष्ट है कि तीन साल में सरकार ने जमीनी स्तर पर उग्रवादी, आतंकवादी एवं नक्सली संगठनो की रीढ़ तोड़ दी है। कुछ पुरानी समस्याओं को सुलझाने में समय तो लग रहा है किन्तु शायद हल भी यहीं से निकलेगा। यह बात पाकिस्तान भी समझ रहा है। इसलिए वह उकसाने की कार्यवाही करता है। जब भी पाकिस्तान की तरफ से कुछ गलत होता है भारत की जनता बर्दाश्त नहीं कर पाती है। वह 56 इंची मोदी से हर बार पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब देने की अपेक्षा रखती है। ऐसा करके वह कुछ गलत करती हो, ऐसा भी नहीं है।
अमित त्यागी

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