यह इंटरनेट नहीं आसान, बस इतना समझ लीजिए
निजता का सौदा है जिसे फ्री में बेचकर जाना है
सुन्दर पिचाई का कथन कि एआई यानी आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस आग और पहिये के अविष्कार से ज्यादा ताकतवर सिद्ध होगा, ने इन्टरनेट और तकनीकी उद्भव को ऐच्छिक आवश्यकता से हटा कर, पञ्चभूतों की तरह ही अनिवार्य आवश्यकताओं में ला खड़ा किया है। इस कथन ने भविष्य की दुनिया के कुछ ऐसे कल्प वृक्षों की तस्वीर उकेरी थी, जो पहले सतह के नीचे ही अंकुरित हो रहे थे, और सीमित लोग ही इस बदलाव को भांप रहे थे। इसकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि आज पहिये और आग के बगैर मुख्यधारा में संलंग्न मानवता कुछ घंटों के लिए भी क्रियाशील नहीं रह सकती है। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस की अनिवार्यता प्रकृति प्रदत्त पंचभूतों की तरह ही हमारे जीवन के प्रत्येक विस्तार में समाहित होने को आतुर है, ऐसे में सम्पूर्ण मानवता के हितार्थ, इसे किसी व्यक्ति विशेष या संस्थानों के प्रभाव में रहने देना श्रेयस्कर होगा?
फेसबुक आज अगर एक देश बने तो दो अरब से भी ज्यादा सदस्यों के साथ यह विश्व का सबसे बड़ा देश कहा जाएगा। इतने विशाल मानव सांख्यिकी, और उसके दैनिक इन्टरनेट व्यवहार का डाटा संकलन और माइनिंग से मानव सभ्यता के चरित्र को बड़े फलक पर निहारा जा रहा है। विचारों के उद्भव और विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक उनका त्वरित फैलाव, व्यक्ति अथवा समूहों द्वारा उसे सींचते हुए विभिन्न घटनाओं में उनकी उपयोगिता जैसे कठिन अल्गोरिथम को समझ पाना संभव हुआ है। सच तो यह है कि आपके द्वारा इन्टरनेट पर व्यतीत किया समय, आपके व्यक्तित्व का एक ऐसा आयाम रच रहा, जो दुनिया को समय के समानांतर ही एक वैकल्पिक काल और विश्व की रचना कर रहा है और इस विश्व का विधाता कोई अदृश्य सत्ता नहीं, बल्कि एक ऐसा तंत्र है, जिसके हाथों में नियति सौंपना कतई श्रेयस्कर नहीं होने वाला है। समय एक बड़ा करवट लेने को आतुर है और इन्टरनेट पर आपकी निजता अब बाज़ार के पास एक पूंजी है, जिसकी बुनियाद पर आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का विकास हो रहा। हम अपने मोबाइल फोन पर एप्लीकेशन आदि अपडेट करते ही जिन बदलावों को देख पा रहे हैं, एंड्राइड के हर नए वर्जन के साथ जो सुविधायें ऑटोमेटिक होकर आपको मिल रही है, वह मशीनी समझ को एक बच्चे से वयस्क होने की सूक्ष्म प्रक्रिया है। यह तमाम एप अथवा वेबसाइट्स, सर्च इंजन पर आपके द्वारा खोजा गया डाटा का संकलन, विभिन्न पोर्टल्स, ई-मेल आदि के जरिये आपके द्वारा किया गया संवाद, सभी कुछ एक ऐसे बड़े डाटा उद्योग का हिस्सा है, जिसका कल का उत्पाद एआई को मजबूत बनाते हुए हमारे जीवन में बेख़ौफ़ दखल देगा। दु:ख इस बात का है कि हमने अपनी सबसे कीमती संतति, अपनी निजता को मुफ्त बना रखा है। इसके पीछे कार्यरत संचार की राजनीतिक अर्थव्यवस्था अत्यंत जटिल है और मानवता को मानव संसाधान देखने की प्रवृत्ति ने निजता और नैतिकता जैसे मानवीय मूल्यों का गला घोट दिया है। बाजार गणित देख रहा है, गणित में संवेदना नहीं होती, अंक काटे और बांटे जाते हैं। अब समय है आपसे आपकी निजता का सौदा का, प्राइवेसी का बाज़ार परोसने की तैयारी है। बाज़ार जिसका भय बोता है, उसकी फसल काटने की तैयारी पहले करता है। ऐसी कठिन स्थति में आपका सावधान रहना और इन्टरनेट पर संतुलित व्यवहार ही तात्कालिक सुरक्षा है।
Kanishka Kashyap