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ये रिसते जख्म

भारत एक नए मोड़ पर खड़ा है। पुन: पूर्ण बहुमत से चुनी गई मोदी सरकार की पहल से देश की संसद बहुत सक्रिय है और तेजी से नए कानून बना रही है ताकि जिन भी मामलों में हम पीछे रह गए हैं उनमें समय के साथ कदमताल मिला लें। प्रगति के अनेकों कीर्तिमानों के बीच अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान-2 सफलता पूर्वक अपनी यात्रा पर निकल गया है तो एथलेटिक्स में पिछले कुछ दिनों में 6 अंतरराष्ट्रीय पदक जीत 19 वर्षीय हिमा दास ने देश का सीना चौड़ा कर दिया है। मगर इन सब उपलब्धियों के बीच भी कुछ काले धब्बे से रिसते जख्म हर भारतवासी को उद्वेलित कर रहे हैं। देश में लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास विशेषकर राज्यों में बढ़ते दलबदल के कारण चिंताजनक है ही, वहीं भ्रष्टाचार का जहर अभी भी राष्ट्र की प्रगति में बाधा बना हुआ है। मगर इससे भी बड़ी चिंता देश में पैदा किए जा रहे साम्प्रदायिक तनाव की है जो बहुसंख्यकवाद बनाम अल्पसंख्यकवाद के वर्चस्व की लड़ाई में बदल गयी है।
पश्चिमी बंगाल, आंध्रप्रदेश, गोवा, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर विधायकों व राज्यसभा सांसदों द्वारा त्यागपत्र व दलबदल के समाचार मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल प्रारंभ होने के बाद से निरंतर आ रहे हैं। कर्नाटक में तो इन त्यागपत्रों के सहारे भाजपा ने अपनी सरकार भी बना ली। लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी के त्यागपत्र के बाद से किंकर्तव्यविमूढ़ व उलझी सी पार्टी ने नेताओं व कार्यकर्ताओं का मनोबल बुरी तरह तोड़ दिया है और यह हाल लगभग सभी विपक्षी दलों का है। विपक्षी दलों की विचारधारा, नीति, नेता व कार्यक्रमों को जिस तरह जनता ने नकारा है, उसमें ऐसा होना स्वाभाविक भी है। देश में जिस प्रकार राष्ट्रीयता व बहुसंख्यकवाद की भावना का प्रसार पिछले 7-8 वर्षों में हुआ है और सेकुलरवाद व अल्पसंख्यकवाद की राजनीति हाशिए पर आई है उसमें यह संक्रमण काल तो आना ही था। किंतु जिस प्रकार की पाला बदली व त्यागपत्रों की राजनीति चल रही है वह लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध है व इसके प्रभाव घातक भी हो सकते हैं। ऐसे सत्तारूढ़ भाजपा के नेता अहंकारी व तानाशाह भी हो सकते हैं और मजबूत विपक्ष के अभाव में जनहित व जनभावनाओं की अनदेखी भी हो सकती है। आवश्यकता है कि विपक्षी दल अपनी नीतियों में बदले समय के अनुरूप परिवर्तन कर पुन: जनता के बीच जाएं व सत्तारूढ़ दल संयम से काम करते हुए अपने अच्छे कार्यों के द्वारा जनमत को प्रभावित कर अगले चुनावों में और अधिक बहुमत से विजयी हो मगर पिछले दरवाजे से सत्ता में आने के खेल बंद होने चाहिए।
भ्रष्टाचार के रिसते जख्म बार बार टीस दे रहे हैं। यूपीए सरकार के दस वर्षों में केंद्र व अनेक राज्यों में भयंकर भ्रष्टाचार हुए। इन घोटालों व लूट पर मोदी सरकार को अपने पिछले कार्यकाल में जांच कर सजा दिलवाने का काम करना था किंतु वह किया नहीं गया, ऐसे में इनके दुष्प्रभाव बार बार सामने आ खड़े होते हैं। देश की जांच एजेंसियों की अतिशय सक्रियता बता रही है कि आज भी सबकुछ ठीक नहीं है एवं वित्तीय व आर्थिक अपराध आज भी बड़ी चुनौती है। भ्रष्टाचार मुक्त, विकेंद्रित व पारदर्शी व्यवस्था व सरकार देने के लिए ही जनता ने भाजपा व मोदी जी को चुना है। आवश्यकता है कि वे अब कम से कम समय में इन मामलों को निबटाकर दोषियों को सजा दिलवाए।
इस बार के लोकसभा चुनावों में एक बात पूर्णत: स्पष्ट व स्थापित हो गई कि देश की जनता ने सेकुलरपंथी, बांटो व राज करो तथा अल्पसंख्यकवाद की राजनीति को बुरी तरह से नकार दिया है। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण व आरक्षण की राजनीति ने पिछले तीन चार दशकों में देश में भीषण वैमनस्य फैलाया है। यह जनता को अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों, अगड़ों व पिछड़ों में बांटकर व वोटबैंक बनाकर सत्ता हड़पने व आकंठ भ्रष्टाचार व लूट का खेल बन गया था। इस खेल में देश का बहुसंख्यक समुदाय अपने आपको ठगा सा महसूस करता था। देश मे सेकुलर बुद्धिजीवियों की एक जमात भी इन सेकुलर दलों ने पैदा कर रखी है जो विभाजन की राजनीति को न्यायोचित ठहराने के लिए नित नए तर्क गढ़ते रहते हैं। नरेंद्र मोदी जी के चुंबकीय व प्रभावशाली नेतृत्व व ‘सबका साथ, सबका विकासÓ के नारे ने सेकुलर गिरोह को हाशिए पर धकेल दिया है। ऐसे में इनकी बिलबिलाहट स्वाभाविक भी है। किंतु जिस प्रकार नरेंद्र मोदी जी के पिछले कार्यकाल में ‘असहिष्णुता’ या ‘इन्टॉलरेंस’ के नाम पर इस गिरोह ने समाज मे अशांति फैलाने व मोदी सरकार को बदनाम करने की कोशिश की वहीं इस बार यह ‘भीड़-हिंसा’ या ‘मॉब लिंचिंग’ के नाम पर कर रहे हैं। यह वर्ग चाहता है कि हिंदू समाज बंटा रहे व देश में हिन्दू जातियों में बंटा रहे और अगड़े-पिछड़ों व अगड़े-दलितों में नफरत की खाई बनी रहे। ऐसे ही हिंदू-मुस्लिम, हिंदू-सिख, व हिंदू-ईसाई समुदायों के मध्य वैमनस्य बना रहे व ये काले अंग्रेज ‘बांटो व राज करो’ के फॉर्मूले से देश पर अंग्रेजों की तरह राज करते रहें व देश को लूटते रहें। सच तो यह है कि देश की जनता इनको नकारती जा रही है व इन लोगों के लाख भड़काने के बाद भी जनता नहीं भड़क रही है व छिटपुट घटनाओं को छोड़कर देश में कोई बड़ी हिंसा या दंगा नहीं हो पाया है। मगर एक अविश्वास, तनाव व आशंकाओं का वातावरण तो बन ही गया है जो घातक है। समय है कि सरकार इस गिरोह के खिलाफ सख्त कदम उठाए मगर उससे भी ज्यादा जरूरी है कि समाज के सभी वर्ग आपसी प्यार व सद्भाव को बनाए रख इनको नकार दे।
यह नए भारत के नए निर्माण का युग है और स्वस्थ व समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक है कि जो भी जख्म रिस रिस कर हमें परेशान कर हमारा विकास रोक रहे हैं उनको हर हालत में भरा जाए।

अनुज अग्रवाल
संपादक

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